भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण से मुक्ति बगैर अधूरी है आजादी
स्वतंत्रता संग्राम का मूल उद्देश्य केवल अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्ति पाना नहीं था, बल्कि एक ऐसे भारत का निर्माण करना था जो न्याय, समानता, पारदर्शिता और जनकल्याण के सिद्धांतों पर खड़ा हो। आज़ादी के 78 वर्ष बाद भी, जब हम राष्ट्रगान के साथ तिरंगा लहराते हैं, तो यह सवाल मन में उठता है, क्या हम वास्तव में उस सपनों के भारत को पा सके हैं जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने की थी? दुर्भाग्य से, आज देश के सामने तीन ऐसी जकड़नें हैं जो हमारी लोकतांत्रिक यात्रा को कमजोर कर रही हैं, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण। ये तीनों न केवल शासन-प्रशासन की पारदर्शिता को निगलते हैं, बल्कि राष्ट्र की विकास गति को भी बाधित करते हैं
सुरेश गांधी
जी हां, देश को बाहरी दुश्मनों से नहीं, बल्कि इन आंतरिक बुराइयों से सबसे बड़ा खतरा है। जब तक भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण खत्म नहीं होते, तब तक 1947 की स्वतंत्रता अधूरी है। सच्ची आज़ादी वही होगी, जब हर नागरिक को समान अवसर, ईमानदार शासन और न्यायपूर्ण व्यवस्था मिले। या यूं कहे अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति पाने के बाद भी यदि हम इन तीन जकड़नों से मुक्त नहीं हो पाते, तो यह आज़ादी अधूरी है। असली आज़ादी तब होगी जब भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लगे और हर योजना का लाभ पारदर्शिता के साथ जनता तक पहुंचे। परिवारवाद का अंत हो और नेतृत्व का चयन केवल योग्यता, ईमानदारी और जनसेवा के आधार पर हो। तुष्टिकरण की राजनीति समाप्त हो और हर नागरिक को समान अधिकार, अवसर और न्याय मिले, बिना जाति, धर्म या क्षेत्र के भेदभाव के। मतलब साफ है आज़ादी की सालगिरह सिर्फ झंडा फहराने और भाषण देने का अवसर नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी समय है। यदि हम इन तीनों विकृतियों को समाप्त करने का संकल्प लें, तभी हम अपने बच्चों को एक सशक्त, समृद्ध और सच्चे अर्थों में स्वतंत्र भारत सौंप पाएंगे।
भ्रष्टाचार केवल पैसों की
हेराफेरी नहीं, बल्कि यह व्यवस्था के
प्रति लोगों का विश्वास तोड़ने
वाली बीमारी है। जब जनता
देखती है कि मेहनत
और योग्यता से ज्यादा रिश्वत
और जोड़-तोड़ से
काम होते हैं, तो
उसकी उम्मीदें खत्म हो जाती
हैं। आज़ादी के बाद से
अनेक योजनाएं बनीं, बजट आवंटित हुए,
लेकिन भ्रष्ट तंत्र ने उनकी सफलता
को निगल लिया। भ्रष्टाचार
की जड़ें केवल सरकारी
दफ्तरों में ही नहीं,
बल्कि समाज के हर
स्तर तक फैली हैं,
राजनीति से लेकर व्यवसाय
और शिक्षा तक। लोकतंत्र की
ताकत उसकी भागीदारी में
है, लेकिन जब राजनीतिक दल
या संस्थाएं कुछ परिवारों की
जागीर बन जाती हैं,
तो लोकतंत्र केवल नाम का
रह जाता है। परिवारवाद
से न केवल नई
और प्रतिभाशाली नेतृत्व पीढ़ी का मार्ग
अवरुद्ध होता है, बल्कि
नीतियां भी जनहित के
बजाय निजी हित में
बनने लगती हैं। चाहे
राष्ट्रीय स्तर पर हो
या स्थानीय निकायों में, जब सत्ता
व नेतृत्व की चाबी वंशानुगत
हो जाती है, तो
“जनता का, जनता के
लिए, जनता द्वारा“ शासन
एक खोखला नारा बन जाता
है।
भारत ने 1947 में
विदेशी शासन से मुक्ति
पाई, लेकिन आज़ादी के 78 साल बाद भी
तीन आंतरिक दुश्मन हमारे लोकतंत्र और विकास की
राह में सबसे बड़ी
रुकावट बने हुए हैं,
भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण। ये
तीनों बुराइयाँ न केवल शासन-प्रशासन को कमजोर करती
हैं, बल्कि समाज की एकता
और आर्थिक प्रगति को भी पीछे
धकेल देती हैं। भ्रष्टाचार
सिर्फ़ रिश्वतखोरी तक सीमित नहीं
है, बल्कि यह उस मानसिकता
का प्रतीक है जिसमें निजी
लाभ के लिए कानून
और नैतिकता की बलि दी
जाती है। इससे विकास
योजनाओं का पैसा ग़लत
जेबों में चला जाता
है, ईमानदार अफसर हाशिये पर
चले जाते हैं, और
जनता का लोकतंत्र पर
विश्वास डगमगाने लगता है। इसे
खत्म करने के लिए
पारदर्शी व्यवस्था, कड़े दंड और
लोकपाल जैसी संस्थाओं को
मजबूती देना ज़रूरी है।
खासतौर से जब राजनीति
या संस्थानों में वंश और
रिश्तेदारी, योग्यता से ऊपर रखी
जाती है, तो लोकतंत्र
‘जनतंत्र’ से ‘परिवारतंत्र’ में
बदल जाता है। राजनीति
में यह प्रवृत्ति, प्रतिभाशाली
कार्यकर्ताओं का हक छीन
लेती है, नीतियों को
परिवार केंद्रित बना देती है,
और जनता के विश्वास
को चोट पहुंचाती है।
इससे निपटने के लिए दलों
के भीतर आंतरिक लोकतंत्र
और पारदर्शी नेतृत्व चयन आवश्यक है।
तुष्टीकरण का मतलब है
किसी विशेष वर्ग या समुदाय
को अनुचित लाभ देकर राजनीतिक
फायदा लेना। इसके दुष्परिणाम समाज
में असमानता और असंतोष बढ़ता
है, राष्ट्रीय एकता कमजोर होती
है, और विकास योजनाएं
वोट बैंक के बोझ
तले दब जाती हैं।
समान अवसर और न्याय
आधारित नीतियां ही इसका विकल्प
हैं। इन बुराइयों से
मुक्ति के लिए, चुनावी
चंदे में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार
विरोधी कानूनों का सख्त पालन
हो। वोट देने से
पहले सोच-समझकर निर्णय
लेने की पहली शर्त
हो। सीबीआई, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं
को दबाव से मुक्त
करना हो, जो उदाहरण
बनें, न कि अपवाद।
बुरी आदतों की बेड़ियों से मुक्ति है सच्ची आज़ादी
हम हर साल
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस
मनाते हैं। यह दिन
हमें याद दिलाता है
कि गुलामी के बंधन तोड़ना
ही आज़ादी नहीं है, बल्कि
जीवन के हर क्षेत्र
में स्वतंत्र होना भी उतना
ही जरूरी है। सवाल यह
है, क्या हम अपनी
बुरी आदतों, निर्भरताओं और लतों से
सच में आज़ाद हैं?
हमें खुद से भी
पूछना चाहिए, क्या हम अपनी
बुरी आदतों, निर्भरताओं और लतों से
सच में आज़ाद हैं?
आज बहुत से लोग
दिन-रात मोबाइल में
डूबे रहते हैं, जंक
फूड पर निर्भर हैं
या फिर इंद्रियों के
वश में जीते हैं।
सच्ची स्वतंत्रता का मतलब है,
वही सोचना जो हमें और
समाज को सुख दे,
वही बोलना जो दूसरों का
सम्मान बढ़ाए, और वही करना
जो सृष्टि को सुंदर बनाए।
मतलब साफ है सच्ची
आज़ादी केवल राजनीतिक स्वतंत्रता
नहीं है, बल्कि अपने
विचार, आदतों, शरीर और संसाधनों
पर नियंत्रण पाना भी है।
यदि हम बुरी आदतों,
फिजूलखर्ची, लत और भौतिकवादी
मानसिकता से मुक्त हो
जाएं, तो ही जीवन
में सही मायने में
स्वतंत्रता का अनुभव कर
सकेंगे।
अनुशासन से स्वतंत्रता
किसी संगठन या
व्यक्ति में अनुशासन की
कमी का दोष अक्सर
दूसरों पर डाल दिया
जाता है, जबकि सुधार
की शुरुआत खुद से होनी
चाहिए। ट्रैफिक सिग्नल तोड़ना, गलत जानकारी देना,
समय पर काम न
करना, ये सब छोटी-छोटी अनुशासनहीनताएं हैं,
जिनसे छुटकारा पाना जरूरी है।
तनाव और चिंता से मुक्ति
चिंता कभी खत्म नहीं
होती - पढ़ाई, नौकरी, प्रमोशन... हर मोड़ पर
नई चिंता। असल में हमें
समस्या नहीं, बल्कि अपनी प्रतिक्रिया मारती
है। ऐसे में अपना
ध्यान उन चीजों पर
लगाएं, जिन पर आपका
नियंत्रण है। अपने लिए
नई चुनौतियां तय करें, सकारात्मक
सोच अपनाएं और मानसिक शांति
बनाए रखें।
नशे की लत से आज़ादी
नशे से छुटकारा
पाना कठिन है, लेकिन
असंभव नहीं। सही इलाज, पर्याप्त
नींद, व्यायाम और नशे के
माहौल से दूरी इस
मुक्ति में सहायक होते
हैं।
भौतिकवाद की बेड़ियां
हमारी इच्छाएं और दिखावटी जीवनशैली
हमें प्रकृति और सरलता से
दूर कर रही हैं।
हर व्यक्ति साल में कम
से कम एक पौधा
लगाए, पानी की बर्बादी
रोके और संसाधनों का
जिम्मेदारी से उपयोग करे।
फिजूलखर्ची पर नियंत्रण
पैसा आपका सेवक
है, मालिक नहीं। खर्च करने से
पहले सोचेंकृक्या यह जरूरत है
या सिर्फ चाहत? न्यूनतम जीवनशैली अपनाकर बचत और संतोष
दोनों पाया जा सकता
है।
समय का अनुशासन
आज का काम
कल पर न टालें।
अगले दिन का शेड्यूल
रात में ही तय
करें, अधूरे काम को प्राथमिकता
दें और खुद को
समय पर काम पूरा
करने की आदत डालें।
स्वास्थ्य की आज़ादी
तेज़ रफ्तार जिंदगी
में स्वास्थ्य अक्सर पीछे छूट जाता
है। नियमित व्यायाम, योग और संतुलित
आहार से शरीर को
बीमारियों के बंधन से
मुक्त रखा जा सकता
है।
आगे का स्वर्णिम पथ
आजादी के 78 वर्ष बाद भारत
एक बार फिर उस
पहचान की ओर बढ़
रहा है, जिसके लिए
कभी उसे सोने की
चिड़िया कहा जाता था।
जब 15 अगस्त 1947 को यह देश
गुलामी की जंजीरों से
मुक्त हुआ, तब हमारे
पास न पर्याप्त अनाज
था, न मजबूत उद्योग,
न आधुनिक शिक्षा और न ही
रक्षा क्षमता। लेकिन आज, भारत दुनिया
की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
है और 2027 तक तीसरे स्थान
पर पहुंचने की ओर अग्रसर
है। फोर्ब्स का अनुमान है
कि अगले 10 वर्षों में भारत की
अर्थव्यवस्था 8 ट्रिलियन डॉलर की होगी,
जबकि जेफरीज और पीडब्ल्यूसी का
मानना है कि यह
10 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा
पार कर सकती है।
अभी हमारी जीडीपी लगभग 3.94 ट्रिलियन डॉलर है और
बीते दशक में औसतन
7 फीसदी की दर से
बढ़ी है। विशेषज्ञों का
आकलन है कि आने
वाले 10-20 वर्षों में यह वृद्धि
दर 10 फीसदी तक पहुंच सकती
है।
मैन्युफैक्चरिंग और रक्षा में नई पहचान
‘मेक इन इंडिया’
और पीएलआई स्कीम का असर अब
दिखने लगा है। विदेशी
कंपनियां चीन का विकल्प
तलाशते हुए भारत का
रुख कर रही हैं।
अगले दशक में भारत
वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की
ओर अग्रसर है। रक्षा क्षेत्र
में भी भारत आत्मनिर्भरता
की ओर तेजी से
बढ़ रहा है। वर्ष
2023 में रक्षा निर्यात 25 फीसदी बढ़कर ₹20,915 करोड़ तक पहुंच
गया। आने वाले वर्षों
में भारत दुनिया के
शीर्ष 10 रक्षा निर्यातक देशों में शामिल हो
सकता है और 2040 तक
टॉप 5 में भी।
स्टार्टअप क्रांति और युवा शक्ति
भारत आज दुनिया
का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप
इकोसिस्टम है, 12.3 लाख से अधिक
रजिस्टर्ड स्टार्टअप और 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न
के साथ। देश की
औसत आयु 30 वर्ष से कम
है, जो हमारी सबसे
बड़ी ताकत है। अगले
10 वर्षों में 16 करोड़ से अधिक
नई नौकरियां पैदा होने की
संभावना है, और 80 करोड़
से अधिक लोग कार्यबल
में होंगे।
कृषि, विज्ञान और खेल में छलांग
आज भारत न
केवल अपनी पूरी आबादी
को खाद्यान्न उपलब्ध कराता है, बल्कि उत्पादन
के मामले में दुनिया में
दूसरे स्थान पर है। हमारे
वैज्ञानिक अंतरिक्ष में नए कीर्तिमान
गढ़ रहे हैं और
खिलाड़ी ओलंपिक सहित विश्व स्तरीय
प्रतियोगिताओं में परचम फहरा
रहे हैं। दुनिया के
हर कोने में भारतीय
अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा
रहे हैं। लेकिन चुनौतियां
भी बड़ी है, इन
उपलब्धियों के बावजूद सवाल
बने हुए हैं, आज
भी बड़ी आबादी गरीबी
में क्यों जी रही है?
बेटियों को बराबरी का
हक मिलने के बाद भी
वे यौन हिंसा का
शिकार क्यों होती हैं? गांवों
में सड़क, पानी, बिजली,
शिक्षा और चिकित्सा जैसी
सुविधाओं की कमी क्यों
पलायन को मजबूर करती
है? बेरोजगारी और महंगाई क्यों
विकराल रूप ले रही
हैं? जाति और धर्म
के नाम पर वैमनस्य
क्यों बढ़ रहा है
और चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर
रहा है? ये वे
प्रश्न हैं जो हमें
यह सोचने पर मजबूर करते
हैं कि सिर्फ आर्थिक
प्रगति ही पर्याप्त नहीं
है, सामाजिक सद्भाव, समान अवसर और
न्याय भी उतने ही
जरूरी हैं।
संकल्प का समय
स्वतंत्रता दिवस का जश्न
तभी सार्थक होगा जब हम
न केवल अपनी उपलब्धियों
पर गर्व करें, बल्कि
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में
अपने कर्तव्यों का पालन भी
करें। शासन को जवाबदेह
बनाए रखें, वैमनस्य को खत्म करने
का प्रयास करें और आने
वाली पीढ़ियों के लिए ऐसा
भारत बनाएं जो सचमुच सोने
की चिड़िया कहलाने योग्य हो। गगन में
लहराता तिरंगा सिर्फ विजय का प्रतीक
नहीं, बल्कि यह स्मरण कराता
है कि स्वतंत्रता के
साथ जिम्मेदारी भी उतनी ही
बड़ी है। अगर हम
एकजुट होकर आगे बढ़ें,
तो 2047 में स्वतंत्रता के
शताब्दी वर्ष तक भारत
निश्चित ही एक समृद्ध,
शक्तिशाली और न्यायपूर्ण राष्ट्र
बन सकता है। जब
हम 2047 में स्वतंत्रता के
100 वर्ष पूरे करेंगे, तो
हमारा लक्ष्य सिर्फ आर्थिक महाशक्ति बनना नहीं, बल्कि
एक ऐसा राष्ट्र बनना
होना चाहिए, जो न्यायपूर्ण, समृद्ध,
सुरक्षित और एकजुट हो।
अगर हम एकजुट होकर
आगे बढ़ें, तो भारत फिर
से दुनिया की सोने की
चिड़िया बन सकता है।
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