रामेश्वरम जल बाबा विश्वनाथ के चरणों में समर्पित
काशी और रामेश्वरम : जल का नहीं, आत्मा का संगम, दो छोर एक आस्था
उत्तर और
दक्षिण
भारत
के
बीच
आस्था
की
अनंत
धारा,
जो
पवित्र
जल
के
साथ
भावनाओं
को
भी
बहा
ले
जाती
है
जहां गंगा
का
आशीष
समुद्र
से
मिलता
है,
वहीं
भारत
का
हृदय
अपनी
पूर्णता
पाता
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। भारत की आत्मा उसकी संस्कृति और अध्यात्म में बसती है। यह भूमि केवल भौगोलिक सीमाओं का नाम नहीं, बल्कि विविधताओं के बीच अद्भुत एकता की जीती-जागती मिसाल है।
इसी एकता को नमन करती एक नई परंपरा हाल ही में आरंभ हुई, उत्तर के काशी विश्वनाथ और दक्षिण के रामनाथ स्वामी के बीच पवित्र तीर्थ जल का आदान-प्रदान।गंगा किनारे बसा
काशी विश्वनाथ धाम, जहां बाबा
विश्वेश्वर का निवास है,
और समुद्र तट पर स्थित
रामेश्वरम -जहां भगवान राम
ने सेतुबंध से पहले शिवलिंग
की पूजा की थी।
एक हिमालय की गोद में
उपजा आस्था का अमृत, दूसरा
हिंद महासागर की लहरों से
स्पर्शित। दूरी हजारों किलोमीटर,
परंतु आस्था का प्रवाह एक
ही दिशा में, भगवान
शिव की ओर। मतलब
साफ है काशी और
रामेश्वरम का यह संगम
केवल जल का नहीं,
बल्कि आत्मा का संगम है,
और यही संगम भारत
की सनातन पहचान है।
08 अगस्त को, श्री काशी
विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा रामेश्वरम से प्राप्त इस
पवित्र कोडी तीर्थ जल
को भगवान विश्वेश्वर के जलाभिषेक हेतु
स्वीकार किया गया। यह
पुण्य परंपरा भारतवर्ष की सनातन संस्कृति,
आध्यात्मिक एकता और राष्ट्रधर्म
को एक नई दिशा
प्रदान करती है। यह
केवल दो ज्योतिर्लिंगों का
ही नहीं, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत
के हृदयों का संगम है,
जो श्रद्धालुओं को सनातन परंपराओं
के सामंजस्य और अखंडता का
दिव्य अनुभव कराएगा।
बता दें, सनातन
धर्म के पावन इतिहास
में एक नए अध्याय
का शुभारंभ करते हुए श्री
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी और श्री रामनाथ
स्वामी मंदिर, रामेश्वरम के बीच पवित्र
तीर्थ जल एवं रज
का पारस्परिक आदान-प्रदान प्रारंभ
किया गया है। यह
पहल उत्तर और दक्षिण भारत
की धार्मिक परंपराओं के गहरे सांस्कृतिक
एवं आध्यात्मिक संबंध का सशक्त प्रतीक
है।
परंपरा जो दिलों को जोड़ती है
भारत की शक्ति
केवल उसके मंदिरों, तीर्थों
या शास्त्रों में नहीं, बल्कि
इस तथ्य में है
कि यहां की हर
परंपरा मनुष्यों को जोड़ती है।
काशी और रामेश्वरम का
यह संबंध केवल जल का
आदान-प्रदान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह है,
जो उत्तर और दक्षिण के
हृदयों को एक कर
देता है। यह परंपरा
श्रद्धालुओं को यह संदेश
देती है कि चाहे
हम कितने भी दूर क्यों
न हों, हमारी जड़ें
एक ही संस्कृति और
एक ही सनातन परंपरा
में गहराई से बसी हैं।
संदेश पूरे राष्ट्र के लिए
जब देश में
कई बार भाषाओं, रीति-रिवाजों और क्षेत्रों को
लेकर भिन्नता की बातें होती
हैं, तब यह परंपरा
याद दिलाती है कि हमारे
भेद सतही हैं, पर
हमारी आस्था गहराई में एक है।
काशी से रामेश्वरम और
रामेश्वरम से काशी बहता
यह पवित्र जल हमें यह
भी सिखाता है कि भारत
का वास्तविक मानचित्र केवल भूगोल से
नहीं, बल्कि भावनाओं से बनता है।
आगे का मार्ग
आवश्यक है कि ऐसी
परंपराएँ केवल प्रतीक न
बनकर जीवंत बनी रहें। तीर्थों
के बीच यह पवित्र
संवाद भारत की सांस्कृतिक
सुरक्षा-रेखा है। जैसे
गंगा और समुद्र का
संगम सदा प्रवाहित रहता
है, वैसे ही उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम की
आस्था का प्रवाह कभी
रुकना नहीं चाहिए।
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