संघ का शताब्दी वर्ष : समाज निर्माण और संस्कृति पुनर्जागरण का महायज्ञ
“संघ का शताब्दी वर्ष केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि आने वाले सौ वर्षों के लिए राष्ट्र निर्माण का संकल्प है ”
हिन्दू राष्ट्र कोई संकीर्ण विचार नहीं, बल्कि सनातन का अखंड दृष्टिकोण है” : सुभाष जी
सुरेश गांधी
हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को
लेकर वर्षों से बहस चलती
रही है। आलोचक इसे
संकीर्ण और जातिवादी रंग
देने की कोशिश करते
हैं, जबकि सच्चाई इससे
एकदम भिन्न है। दरअसल, हिन्दू
राष्ट्र कोई राजनीतिक सत्ता
का मॉडल नहीं, बल्कि
सनातन संस्कृति का जीवन-दर्शन
है। यह वह दृष्टिकोण
है जो जाति और
वर्ग की सीमाओं से
ऊपर उठकर समाज को
एक सूत्र में पिरोता है।
कुंभ और संगम इसका
सबसे जीवंत प्रमाण हैं। जब 65 करोड़
लोग बिना किसी भेदभाव
के पवित्र डुबकी लगाते हैं, तो यह
केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता, बल्कि
सनातन की उस विराट
परंपरा का उत्सव होता
है जिसमें सभी जातियाँ, सभी
वर्ग और सभी प्रदेश
एक साथ आते हैं।
यही सनातन है, यही हिन्दू
राष्ट्र की वास्तविकता है।
वाराणसी, लंका स्थित विश्व
संवाद केन्द्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ प्रचारक
सुभाष जी से हमारी
खास बातचीत। इस संवाद में
उन्होंने संघ के शताब्दी
वर्ष, उसकी दिशा और
उद्देश्य पर विस्तार से
विचार रखे। प्रस्तुत हैं
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश गांधी द्वारा पूछे गए सवाल
और सुभाष जी के जवाब...
संघ के शताब्दी वर्ष को आप किस दृष्टि से देखते हैं?
शताब्दी वर्ष केवल उत्सव
नहीं, बल्कि महायज्ञ है। यह स्मरण
का अवसर हैकृबीते सौ
वर्षों में संघ ने
समाज को क्या दिया।
और यह संकल्प का
अवसर हैकृआने वाले सौ वर्षों
में भारत को विश्वगुरु
बनाने के लिए हमें
क्या करना है। शाखाओं
का विस्तार, सज्जन शक्ति का संगठन, परिवार
प्रबोधन, पर्यावरण रक्षा, आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक संरक्षण और नागरिक कर्तव्य,
ये केवल कार्यक्रम नहीं,
बल्कि नवभारत निर्माण की रूपरेखा हैं।
डॉ. हेडगेवार द्वारा शुरू की गई शाखाओं का आज क्या महत्व है?
समाज की विविधता को संघ किस तरह देखता है?
भारत की सबसे
बड़ी ताकत उसकी विविधता
में एकता है। संघ
का लक्ष्य है सज्जन शक्ति
को संगठित करना, ताकि अच्छाई की
आवाज प्रबल हो। शताब्दी वर्ष
में प्रबुद्ध जन गोष्ठियां, युवा
सम्मेलन और सामाजिक सद्भावना
बैठकें होंगी। जाति, पंथ, भाषा, प्रांत
की दीवारें तोड़कर समरस समाज का
निर्माण ही हमारा संकल्प
है।
संघ परिवार और संस्कृति पर इतना जोर क्यों देता है?
परिवार भारतीय समाज का किला
है। शताब्दी वर्ष में परिवार
प्रबोधन पर विशेष बल
है। हर घर में
पूजा का स्थान हो,
परंपरा जीवित रहे, भाषा-भूषा
का सम्मान हो। माता-पिता
बच्चों को केवल शिक्षा
ही नहीं, बल्कि संस्कार भी दें। संस्कारित
परिवार ही राष्ट्र की
आत्मा है।
आज के संदर्भ में संघ का पर्यावरण दृष्टिकोण क्या है?
प्रकृति के साथ संतुलन
हमारी जिम्मेदारी है। शताब्दी वर्ष
का संकल्प हैकृप्लास्टिक का बहिष्कार और
जल संरक्षण। वृक्षारोपण और स्वच्छता अभियान
को जीवनशैली का हिस्सा बनाना।
समाज और प्रकृति दोनों
की रक्षा संघ की प्राथमिकता
है।
आत्मनिर्भरता के संदर्भ में आपका क्या कहना है?
हमारा मंत्र है, “हमारा स्वाभिमान,
आत्मनिर्भरता।” यह केवल नारा
नहीं, बल्कि शताब्दी वर्ष का मूल
संकल्प है। ग्रामीण उद्योग,
स्थानीय उत्पादन और कुटीर शिल्प
का संरक्षण। आत्मनिर्भर समाज ही आत्मनिर्भर
राष्ट्र का आधार है।
संघ संस्कृति और धरोहर को कैसे देखता है?
संघ के लिए
संस्कृति केवल अतीत की
स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा है।
मातृभाषा का सम्मान, परंपरागत
जीवनशैली का पालन और
सांस्कृतिक यात्राओं का आयोजन। पूजा-घर और मंदिर
केवल ईंट-पत्थर नहीं,
बल्कि संस्कृति के संवाहक हैं।
संघ हमेशा नागरिक कर्तव्यों पर जोर क्यों देता है?
अधिकारों से पहले कर्तव्य।
अनुशासन, ईमानदारी और सेवा को
नागरिक धर्म बनाना होगा।
राष्ट्र प्रथम, स्वयं बाद मेंकृयह भावना
हर नागरिक के जीवन में
उतरे, यही शताब्दी वर्ष
का संदेश है।
संघ के ऐतिहासिक नायक और प्रेरणाएं कौन हैं?
डॉ. हेडगेवार दृ
संगठन के प्रणेता। गुरुजी
गोलवलकर : वैचारिक आधार व शाखाओं
का विस्तार। नानाजी देशमुख : ग्रामीण विकास के आदर्श। दत्तोपंत
ठेंगड़ी : श्रमिक व उद्योग जगत
के मार्गदर्शक। इन्हीं से प्रेरित होकर
सेवा भारती, विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम और विश्व हिंदू
परिषद जैसी संस्थाएं खड़ी
हुईं।
स्वतंत्रता संग्राम में संघ की क्या भूमिका रही?
संघ ने प्रत्यक्ष
राजनीति से दूरी रखकर
समाज को जागृत किया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन
में अनेक स्वयंसेवक भूमिगत
रहकर सक्रिय रहे। नानाजी देशमुख
और दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे सेनानी संघ
की शाखाओं से प्रेरित हुए।
संघ का मानना था
कि स्वतंत्रता केवल सत्ता परिवर्तन
नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का
माध्यम हो।
बहुत चर्चा होती है ‘हिन्दू राष्ट्र’ को लेकर। आप इसे कैसे परिभाषित करेंगे?
हिन्दू राष्ट्र कोई राजनीतिक सत्ता
का मॉडल नहीं, बल्कि
सनातन संस्कृति का जीवन-दर्शन
है। यह जाति और
वर्ग से ऊपर उठकर
समाज को एक सूत्र
में पिरोता है। कुंभ और
संगम इसका जीवंत प्रमाण
हैं, जहाँ करोड़ों लोग
बिना भेदभाव के एक साथ
आते हैं। हिन्दू राष्ट्र
का अर्थ है, जाति
से परे, वर्ग से
ऊपर और भेदभाव से
मुक्त समाज, जहाँ हर नागरिक
अपने कर्तव्यों का पालन करते
हुए राष्ट्र और संस्कृति को
सर्वोपरि माने। मतलब साफ है,
हिन्दू राष्ट्र जाति का नहीं,
बल्कि सनातन का पर्याय है।
संघ के भविष्य का मार्गदर्शन कौन-सा दर्शन करेगा?
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव
दर्शन। इसमें व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र
एक-दूसरे से जुड़े हैं।
मानव और प्रकृति का
संतुलन बना रहे। विकास
केवल भौतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भी
हो। यही भविष्य का
पथ है।
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