Wednesday, 30 January 2019

‘कारसेवा’ ही है ‘श्रीराम मंदिर’ का अंतिम ‘विकल्प’


कारसेवाही हैश्रीराम मंदिरका अंतिमविकल्प
देर से मिला न्याय, न्याय नहीं अन्याय है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट ही कहता है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है एक आतंकवादी के लिए रात 12 सुनवाई करने वाला सुप्रीम कोर्ट करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा श्रीराम मंदिर देरी क्यूं कर रही है। जबकि चाहे वो सुप्रीम कोर्ट हो या अन्य अदालते वो देश के आमजनमानस के लिए ही बनी है और उन्हीं के कर से अदालत की व्यवस्थाएं चलती है। ऐसे में अगर साधु-संतों, महात्माओं के साथ देश की जनता खुद ही मंदिर निर्माण में जुट जाएं तो इसमें कोर्ट आफ कंटैक्ट कैसे हो सकता है? शायद यही वजह है कि कुंभनगरी में परम धर्म संसद में तिथि का ऐलान कर दिया गया है कि 21 फरवरी से शुरू होगा राम मंदिर निर्माण
सुरेश गांधी
प्रयागराज कुंभ में चल रही धर्म संसद एवं परम धर्म संसद में साधु-संत लगातार राम मंदिर निर्माण को लेकर मंथन कर रहे है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगातार तारीख पर तारीख दिए जाने से आहत साधु-संतों का का कहना है कि जब अदालते असमर्थ है, सरकारें असक्षम है तो मामला धर्म संसद पर टिकता है। ऐसा रुलिंग आर्टिकल 25 26 में भी कही गयी है। खासतौर से मामला तब शक के दायरे में जाता है जब सुप्रीम कोर्ट जजेज दोहरा चरित्र अपना रहा है। क्योंकि यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसने हाईकोर्ट को डे टू सुनवाई के लिए आदेश दिया और फैसला गया और अब जब मसला सुप्रीम कोर्ट में है तो वह सुनवाई से हीलाहवाली कर रहा है। जहां तक सरकार द्वारा न्यायालय में दी गयी अर्जी का सवाल है तो वह ठकोसला है। मंदिर तो उसी विवादित स्थल पर ही बनेगा, मंदिर का गर्भगृह वहीं है और वही पर पहले से ही मंदिर था ऐसा हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में माना है। मतलब साफ है इस धर्म संसद में अगले कुछ दिनों में बैठक में राम मंदिर को लेकर प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है। मंदिर के शिलान्यास की तिथि का भी ऐलान हो सकता है। मतलब साफ है अयोध्या में एक बार फिर 1992 जैसे हालात बन रहे हैं। साधु-संत एकबार कारसेवा के लिए बाध्य है। कहा जा रहा है बड़ी तादाद में कुंभ से साधु संत हिन्दू समाज अयोध्या पहुंचेगा। कुंभ में राम मंदिर निर्माण को लेकर 31 जनवरी से 2 फरवरी तक यज्ञ किया जाएगा। इसके बाद 21 फरवरी, 2019 को राम मंदिर के लिए आधारशिला रखने का प्रस्ताव पारित किया गया है।
यह परम धर्म संसद जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने बुलाई थी। निर्णय लिया गया कि साधु न्यासी अब अयोध्या की ओर कूच करेंगे। मंदिर निर्माण का जिम्मा साधु-संतों के कंधों पर होगा। इससे पहले राम मंदिर के लिए शांति पूर्ण और अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया जाएगा। रोके जाने पर गोली खाने को भी संत तैयार हैं। राम मंदिर के निर्माण के लिए जमीन सौंपे जाने तक जेल जाने का आंदोलन चलेगा। नंदा, भद्रा, जया, और पूर्णा नाम की शिलाओं का अयोध्या में शिलान्यास होगा। बता दें, केंद्र सरकार की इस याचिका से काफी लोग संतुष्ट नहीं है। निर्मोही अखाड़े का कहना है कि केंद्र सरकार उनके दावे को नकार रही है, इसलिए वह केंद्र की याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर कर सकती है। अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले से जुड़ी 0.313 एकड़ जमीन पर विवादित ढांचा था, जिसे कारसेवकों ने ढहा दिया तथा. ये जमीन 2.77 एकड़ एरिया के अंदर आती है। 1993 में एक प्रस्ताव लाकर सरकार ने कुल 67.703 एकड़ की जमीन पर कब्जा कर लिया था, जिसमें 2.77 एकड़ का हिस्सा भी शामिल था। गैर विवादित जमीन में 42 एकड़ का हिस्सा रामजन्मभूमि न्यास का है। हो जो भी सच तो यही है 2019 की जंग जीतने के लिए सियासी पार्टियां दांव पर चल रही है। कांग्रेस के प्रियंका मास्टरस्ट्रोक के बाद अब जगह जगह पोस्टर वार चल रहा है। इसमें बहन प्रियंका को गंगा बेटी तो राहुल को श्रीराम की भूमिका में दिखाया जा रहा है। जवाब में चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने भी बड़ा दांव चला है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ करने के खातिर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डालकर गैर-विवादित जमीन को उनके मालिकों को सौंपने की इजाजत मांगी है। मतलब साफ है कोर्ट इजाजत देगा या नहीं ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन यह सच है कि सुप्रीम कोर्ट में श्रीराम मंदिर के लटकाने, भटकाने, अटकाने वाले कांग्रेसी साजिश के जवाब में मोदी ने जबरदस्त सर्जिकल स्ट्राइक की है। दावा है कि चुनाव से पहले मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो जायेगा। 
वैसे भी लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा गरम है। हर विपक्षी पार्टिया इस मामले को कुछ ज्यादा ही तुल देने में जुटी है। मोदी सरकार पर कटाक्ष किए जा रहे है कि मंदिर के नाम पर सत्ता में आएं मोदी कब बनायेंगे मंदिर। फिरहाल, अयोध्या की गैर-विवादित जमीन में सबसे बड़ा हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास का पास है। सरकार ने अपनी अर्जी में गैर-विवादित जमीन पर यथास्थिति हटाने की मांग की है। इस याचिका में केंद्र ने सिर्फ .313 एकड़ जमीन को ही विवादित माना है। सरकार ने इस ज़मीन को छोड़कर बाकी 67 एकड़ जमीन को उसके मालिकों को सौंपने की अनुमति मांगी है। बाकी के बचे 0.313 एकड़ जमीन जो विवादित है इसपर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करे। दावा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को मान लिया तो वसंत पंचमी से मंदिर निर्माण शुरु हो जायेगा। बता दें, केंद्र और राज्य सरकार ने कुल 70.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया हुआ है। मतलब साफ है मोदी के इस दांव से राफेल की झूठ, किसानों को कर्जमाफी का लॉलीपाप, गरीब मजदूरों के खातों में न्यूनतम राशि जमा करने सहित साफ्ट हिन्दुत्व कार्ड प्रियंका बांड्रा के बूते जंग जीतने का ख्वाब पाले सिर्फ राहुल गांधी बल्कि मायावती, अखिलेश समेत सभी विपक्षी पार्टियों के होश उड़ गए है। कुंभ से तो नारा दिया गया हैबहुत हुआ राम का अपमान, अब होगा मंदिर निर्माण। खास बात यह है कि सरकार के इस फैसले को आमजनमानस के साथ साथ साधुं संत भी ऐतिहासिक बताते हुए मोदी को बधाई दे रहे है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मोदी के इस साहसी कदम का स्वागत किया है।
अयोध्या में जमीन विवाद बरसों से चला रहा है। अयोध्या विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है। अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है। मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी। 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था। अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था। जिसके बाद मामला आगे और बढ़े इसके लिए तब की नरसिम्हा राव सरकार ने आसपास की पूरी जमीन को अधिग्रहित कर लिया था। तब से जमीन पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक है। अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि इस जमीन को लौटा दी जाए। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में 2.77 एकड़ जमीन बांटी थी। राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को मिला, राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला। जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन बांटने के फैसले पर रोक लगाई थी। अयोध्या में विवादित जमीन पर अभी राम लला की मूर्ति विराजमान है। 6 दिसंबर, 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में अध्यादेश लाकर विवादित स्थल और आस-पास की जमीन का अधिग्रहण किया था। इसमें 40 एकड़ जमीन रामजन्मभूमि न्यास की है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका में कहा कि हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दी जाए विवादित भूमि तक पहुंचने का रास्ता वगैरह बनाया जा सके। हालांकि, इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले अर्जी को बहाल कर दिया था। कोर्ट ने जमीन को सरकार के पास ही रखने को कहा था और आदेश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसके बाद सरकार जिनकी जमीनें हैं, उन्हें सौंप दे। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के 30 सितंबर, 2010 की फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद 9 मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। लेकिन केस में तारीख पर तारीख पड़ने से संतो ंके अलावा आमजनमानस नाराज है। पक्ष विपक्ष सभी मोदी सरकार को चौतरफा घेर रहे है। रामलला के मुख्य पुजारी का कहना है कि जिस प्रकार से तारीख पर तारीख बढ़ रही है, इससे ये साफ दिख रहा है कि जल्दी न्याय नहीं मिल रहा है। संतों का कहना है कि अब जिसपर संतों का आशीर्वाद होगा, वही व्यक्ति ही सत्ता पर विराजमान होगा। संतों के मुताबिक, अब चाणक्य नीति के अनुसार नए राजा का चयन होगा, जो राम मंदिर का निर्माण करेगा। उधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवस संघ, विश्व हिंदू परिषद समेत उनके अन्य संगठनों के द्वारा लगातार मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाया जा रहा है। 
इलाहाबाद हाई कोर्ट की पीठ ने 30 सितंबर 2010 को भूमि बंटवारे के मसले पर आदेश नहीं दिया, बल्कि यह भी स्वीकार किया कि बाबरी ढांचा हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके खड़ा किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हाई कोर्ट के आदेश पर खुदाई की और अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि बाबरी के ढांचे का निर्माण हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके किया गया था। टाइटल का विवाद अनावश्यक रूप से जोड़कर अयोध्या विवाद को लंबा खींचा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वो करोड़ों लोगों की भावना से जुडे इस मसले का वरीयता से निपटाएं। ताकि यह जन आस्था का प्रतीक बन सके। अनावश्यक विलंब होने से संस्थानों से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। जहां तक लोगों के धैर्य और भरोसे की बात है तो अनावश्यक विलंब से संकट पैदा हो रहा है। अगर अदालत 1994 में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे के आधार पर न्याय दिया होता तो देश में अच्छा संदेश जाता। अगर अयोध्या विवाद का निपटारा हो जाए और तीन तलाक पर प्रतिबंध लागू हो जाए तो देश में तुष्टीकरण की राजनीति हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी।



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