बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज
सुबह श्रद्धालुओं
ने
लगाई
आस्था
की
डुबकी,
शाम
को
2565 दीपों
से
मंदिर
में
दीपों
की
श्रृंखला
जलाई
गयी
विश्व में
शांति
हो
और
लोगों
का
कोरोना
संक्रमण
से
बचाव
हो,
इसके
लिए
प्रार्थना
की
गई
सादगी से
की
बोधिवृक्ष
के
नीचे
प्रार्थना
मंदिर के
गर्भगृह
में
भगवान
बुद्ध
की
मूर्ति
के
समक्ष
विशेष
रूप
से
पूजा-अर्चना
की
गई
सुरेश गांधी
वाराणसी। आज ही के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और आज ही के दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ था। बौद्ध धर्मावलंबियों के आस्था के केन्द्र भगवान बुद्ध की पावन उपदेश स्थली सारनाथ में भगवान बुद्ध की 2565वीं बुद्ध जयंती समारोह का सार्वजनिक रूप से आयोजन नहीं किया गया। बुद्ध जयंती के मौके पर विश्व के कई देशों से धर्मगुरु, लामा, श्रद्धालु और पर्यटक बोधगया आते थे। अंतरराष्ट्रीय पीस मार्च का भी आयोजन किया जाता था, लेकिन लॉकडाउन
के कारण इस बार यह समारोह नहीं मनाया गया। मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा लॉकडाउन के कारण सादगी से पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे प्रार्थना की गई। इससे पहले सदस्यों ने मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की मूर्ति के समक्ष विशेष रूप से पूजा-अर्चना की। परिसर में धीमी सूर में बुद्धं शरण गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज सुनाई दे रही थी।बौद्ध भिक्षु जिनानन्द ने बताया कि
लॉकडाउन के कारण इस
बार सार्वजनिक तौर पर बुद्ध जयंती
नहीं मनाई जा रही है।
कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन
का असर पूरे देश में है। यही वजह है कि इस
बार धर्म गुरुओं और लामाओं द्वारा
सादगी से बौद्ध जयंती
मनाई गई। बुद्ध जयंती का बौद्ध धर्मावलंबियों
के लिए विशेष महत्व है क्योंकि आज
ही के दिन भगवान
बुद्ध का जन्म हुआ
था, उन्हें बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई
थी और आज ही
के दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ था।
उन्होंने बताया कि भगवान बुद्ध
के जीवनकाल की तीनों घटनाएं
आज ही के दिन
हुई थी। इसलिए इसे त्रिविध जयंती के रूप में
भी मनाया जाता है। आज की तिथि
का विशेष महत्व है। आज बुद्ध पूर्णिमा
को इसे बुद्ध जयंती के रूप में
भी मनाया जाता हैं। हम लोगों ने
आज सादगी से पूजा-पाठ
किया है। पूरे विश्व में शांति हो और लोगों
का कोरोना संक्रमण से बचाव हो,
इसके लिए प्रार्थना की गई है।
वैदिक ग्रंथों के अनुसार भगवान
बुद्ध नारायण के अवतार हैं,
उन्होंने 2500 साल पहले धरती पर लोगों को
अहिंसा और दया का
ज्ञान दिया था। बौद्ध धर्म को मानने वाले
विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग
इस दिन को बड़ी धूमधाम
से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध
विष्णु के नौवें अवतार
हैं। इसी वजह से हिन्दुओं के
लिए भी यह दिन
पवित्र माना जाता है।
भगवान बुद्ध ने चार आर्यसत्य
बताए हैं जिसके माध्यम से मनुष्य को
जीवन जीने की प्रेरणा दी
है। दुख है। दुख का कारण है।
दुख का निवारण है।
दुख निवारण का उपाय है।
महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में
घर छोड़ दिया और संन्यास ले
लिया था। उन्होंने कहा कि हिंसा के
लिए प्रेरित मन को शुद्ध
स्थिति में लाना ही बुद्ध है।
जाति, धर्म, भाषा और लिंग के
आधार पर मनुष्य और
मनुष्य के भीतर भेद
करने का संदेश न
भारत का हो सकता
है, न बुद्ध का
हो सकता है, धरती पर इस विचार
के लिए जगह नहीं हो सकती।
मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में शाम साढ़े छह बजे महाबोधि
सोसाइटी ऑफ इंडिया के
सयुक्त सचिव भिक्षु सुमित्ता नन्द के नेतृत्व में
आधा दर्जन बौद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध की प्रतिमा के
समक्ष दीप जला कर विश्व शांति
के लिए धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र पाठ किया। जो लगभग एक
घण्टे तक चला। इस
मौके पर भिक्षु मैत्री,
भिक्षु चंदिमा मौजूद थे। वहीं दूसरी तरफ धम्म शिक्षण केन्द्र में भिक्षु चंदिमा के नेतृत्व में
बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध
की प्रतिमा के सामने दीप
जला कर बुद्ध वंदना
की गई। इस दौरान भिक्षु
महाकश्यप, भिक्षु करूणा, भिक्षु चितबोधि , भिक्षु प्रज्ञा शील शामिल थे।
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