Tuesday, 16 July 2024

अब भगवान भोलेनाथ के हाथों में होगी सृष्टि की कमान

अब भगवान भोलेनाथ के हाथों में होगी सृष्टि की कमान  

देवशयनी एकादशी के दिन से सृष्टि के पालनहार भगवान श्रीहरि योगनिद्रा में चले गएं। यानी चातुर्मास की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने के बाद सृष्टि का कामकाज यूं ही चलता रहेगा, फर्क सिर्फ इतना होगा कि भगवान विष्णु की जगह अब भगवान शिव संसार का संचालन करेंगें। हालांकि इस अवधि में कोई भी शुभ काम नहीं होंगे। सिर्फ और सिर्फ पूजा-पाठ, भगवान भोलेनाथ की भक्ति होगी। मांगलिक कार्यों का परिहार होगा। कहते है चातुर्मास में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इसके पुण्य-प्रताप से अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी हो जाती है। जबकि विवाहित जातकों के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही घर में मंगल का आगमन होता है। भला क्यों नहीं, भगवान भोलेनाथ देवों के देव है। इस दौरान खासकर भोलेनाथ के सबसे प्रिय माह सावन में महादेव संग मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा-अर्चना की जाएं तो बिगड़ते कामों को बनने में देर नहीं लगती। सावन सोमवार का व्रत रखने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है

सुरेश गांधी 

इस साल सावन 22 जुलाई को शुरू होकर 19 अगस्त को समाप्त होगा। इस महीने में अद्भुत संयोग बन रहा है। माह का आरंभ सोमवार से हो रहा है और सावन का अंतिम दिन भी सोमवार को पड़ रहा है। इस बार महीने में पांच सोमवार पड़ रहे हैं। सावन के पहले ही दिन सोमवार 22 जुलाई को प्रातः से लेकर रात्रि 1140 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इसके अलावा प्रीति योग और श्रवण नक्षत्रों का भी योग रहेगा। अगले दिन 23 जुलाई यानी सुबह 557 बजे से दोपहर 1205 बजे तक पुष्कर योग मिलेगा। पूरे 30 दिन के सावन में इस बार कृष्ण पक्ष की षष्ठी की हानि रहेगी तो शुक्ल पक्ष में नवमी तिथि की वृद्धि रहेगी। ज्योतिषाचार्यो का दावा है कि इन अद्भुत संयोगों से युक्त सावन भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी सिद्ध होगा। पूरे माह भगवान शिव की आराधना, रुद्राभिषेक आदि से उन्हें प्रसन्न कर श्रद्धालु इच्छित वर प्राप्त कर सकेंगे। मान्यता है कि सावन के सभी सोमवारों का व्रत करने से साधक के जन्म-जन्मांतर में किए सभी पाप कट जाते हैं। बता दें, देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारंभ हो जाता है, इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं. देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं. देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को है. देवउठनी एकादशी को उत्थाना एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थानी एकादशी, उत्थाना एकादशी और हरिबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह कार्तिक माह की दूसरी एकादशी है. इसी दिन तुलसी विवाह है.

इन चार महीनों में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास शामिल हैं. चातुर्मास के आरंभ होने के साथ ही अगले चार महीनों तक शादी-विवाह आदि सभी शुभ कार्य करना वर्जित हो जाता है. तपस्वियों का भ्रमण भी बंद हो जाता है. इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है. हरि और देव का अर्थ तेज तत्व से है. इस समय में सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेज कम होता जाता है. इसलिए कहा जाता है कि देव शयन हो गया है. यानी देव सो गए हैं. तेज तत्व या शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं होते हैं. कार्यों में बाधा आने की सम्भावना भी होती है. इसलिए देव सोने.के बाद शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिये मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिये। सावन में साग, भादों में दही, कारमें दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिये। जो व्यक्ति चौमासा में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। मतलब साफ है चातुर्मास में अभीष्ट की सिद्धि के लिए भक्त प्रिय वस्तुओं का त्याग करेंगे। इन चार महीने के दौरान हम लोग अपनी कोई कोई प्रिय चीज का त्याग कर देते हैं। कुछ लोग अपनी बुरी आदतों को त्यागने का संकल्प लेते हैं और चार महीने तक इसका पालन करते हैं। भक्तों को पलाश के पत्तों पर भोजन करना चाहिए। नियमित दीप दान करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करने से सिर्फ वह पाप मुक्त व्यक्ति बैकुंठ में स्थान पाता है और भगवान की सेवा में रहता है। 

सावन में बरसेगीशिवकी कृपा

शिव का सबसे प्रिय महीना, भोले की कृपा पाने का सबसे शुभ दिन और अगर ऐसे में आपने कर ली विधि-विधान से पूजा-अर्चन जलाभिषेक तो इस सावन में आप पर बरसेगी महादेव की कृपा। खास यह है कि इस बार हर सोमवार को ग्रहों का विशेष योग हैं। ऐसा संयोग 50 साल बाद बना है। इसमें विधि-विधान से पूजा-अर्चन जलाभिषेक करने से होगा रोजगार में तरक्की। आय में वृद्धि, प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता, ज्ञान, शिक्षा और कृषि में उन्नति होगीं। वैसे तो साल का हर दिन पावन होता है। लेकिन सावन मास में शिवलिंग के दर्शन पूजन का अलग ही महत्व माना गया है। वैसे भी आप चाहे महादेव की प्रतिमा की पूजा करें या फिर लिंग रूप उनकी आराधना। महादेव की कृपा अपने हर भक्त पर बरसती है। क्योंकि भोले में सारी दुनिया समायी है। जगत के कण-कण में महादेव का वास है। धरती पर शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है। तभी तो शिवलिंग के दर्शन को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है। इसी मान्यता के चलते भक्त पूरे सावन भर शिवलिंग को मंदिरों और घरों में स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। सावन सोमवार भगवान भोलेनाथ की पूजा का सबसे उत्तम दिन माना जाता है

इस बार श्रावण मास में 5 सावन सोमवार है, जिसकी वजह से भी यह महीना अत्यंत शुभ माना जा रहा है. ज्योतिषाचार्यो का कहना है कि इस साल का सावन सोमवार अतिशुभ फलदायी है क्योंकि पहली सोमवारी और अंतिम सोमवारी पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो शिव भक्तों के मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अच्छा है. यह योग सभी कार्यों को सिद्ध करने की क्षमता रखता है, ऐसी मान्यता है. इतना ही नहीं, पहली सोमवारी पर प्रीति योग और अंतिम पर शोभन योग बन रहा है. ये दोनों भी शुभ योग माने जाते हैं. अद्भुत संयोगों से युक्त यह सावन अत्यंत फलदायी सिद्ध होगा। पूरे माह भगवान शिव की आराधना, रुद्राभिषेक आदि से उन्हें प्रसन्न कर श्रद्धालु इच्छित वर प्राप्त कर सकेंगे। सनातन पंचांग में मुख्य पांच बातों तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण का ध्यान रखा जाता है। इनके ही आधार पर पंचांगों की निर्मिति होती है। प्रत्येक दिन कोई कोई योग होता है, इन सभी योगों के अपने फलित होते हैं। कुछ के फलित सकारात्मक तो कुछ के निषेधात्मक होते हैं। श्रवण नक्षत्र का जब योग होता है तो सावन मास आरंभ होता है। इसके अलावा इस बार सावन के प्रथम दिन पूरे समय सर्वार्थ सिद्ध योग मिल रहा है। यह योग किसी भी कार्य के लिए शुभ माना जाता है। इस दौरान सभी ग्रह शुभ स्थिति में होते हैं और व्यक्ति को सफलता दिलाने में मदद करते है। प्रीति योग परस्पर प्रेम सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है, इसके स्वामी भगवान विष्णु हैं। परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाने तथा अपने रूठे स्वजनों को मनाने, विवादों को निपटाने के प्रयास इसमें सफल होते हैं। इस योग में किए गए शुभ कार्यों से मान-सम्मान बढ़ता है। अगले दिन 23 जुलाई को दोपहर तक मिलने वाला पुष्कर योग तब बनता है जब सूर्य विशाखा और चंद्रमा कृतिका नक्षत्र में होते हैं। सूर्य और चंद्र की यह स्थिति एक साथ होना अत्यंत दुर्लभ अवस्था माना जाता है। इस योग को सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है।

सोमवारी शुभ महूर्त

1. पहला सावन सोमवार, 22 जुलाई को

2. दूसरा सावन सोमवार, 29 जुलाई को

3. तीसरा सावन सोमवार, 5 अगस्त को

4. चौथा सावन सोमवार, 12 अगस्त को

5. पांचवा सावन सोमवार, 19 अगस्त को

पहला सावन सोमवार को सावन कृष्ण प्रतिपदा हैं

योग : प्रीति- सुबह से 0558 पीएम तक, फिर आयुष्मान योगं 2

नक्षत्रः श्रवण- सुबह से 1021 पीएम तक, उसके बाद धनिष्ठा नक्षत्र

सर्वार्थ सिद्धि योगः सुबह 0537 एएम से रात 1021 पीएम तक

ब्रह्म मुहूर्तः 0415 एएम से 0456 एएम तक

अभिजीत मुहूर्तः 1200 पीएम से 1255 पीएम तक

रुद्राभिषेक समय या शिववास : गौरी के साथ 0111 पीएम तक

दूसरा सावन सोमवार को कृष्ण नवमी है

योगः गण्ड- 0555 पीएम तक, फिर वृद्धि योग

नक्षत्रः भरणी- 1055 एएम तक, उसके बाद कृत्तिका नक्षत्र

ब्रह्म मुहूर्तः 0417 एएम से 0459 एएम तक

अभिजीत मुहूर्तः 1200 पी एम से 1255 पीएम तक

रुद्राभिषेक समय या शिववास : 0555 पीएम तक

तीसरा सावन सोमवार को शुक्ल प्रतिपदा है

योगः व्यतीपात- 1038 एएम तक, फिर वरीयान योग

नक्षत्रः अश्लेषा- 0321 पीएम तक, उसके बाद मघा नक्षत्र

ब्रह्म मुहूर्तः 0420 एएम से 0503 एएम तक

अभिजीत मुहूर्तः 1200 पीएम से 1254 पीएम तक

रुद्राभिषेक समय या शिववासः श्मशान में 0603 पीएम तक, उसके बाद गौरी के साथ

चौथे सावन को शुक्ल सप्तमी हैं

योगः शुक्ल- 0426 पीएम तक, फिर ब्रह्म योग

नक्षत्रः स्वाति- 0833 एएम तक, उसके बाद विशाखा नक्षत्र

ब्रह्म मुहूर्तः 0423 एएम से 0506 एएम तक

अभिजीत मुहूर्तः 1159 एएम से 1252 पीएम तक

रुद्राभिषेक समय या शिववासः भोजन में 0755 एएम तक, फिर श्मशान में

पांचवे सावन सोमवार को पूर्णिमा है

योगः शोभन- 1247 एएम, 20 अगस्त तक, फिर अतिगण्ड योग

नक्षत्रः श्रवण- 0810 एएम तक, फिर धनिष्ठा- 0545 एएम, 20 अगस्त तक

सर्वार्थ सिद्धि योगः 0553 एएम से 0810 एएम तक

रवि योगः 0553 एएम से 0810 एएम तक

ब्रह्म मुहूर्तः 0425 एएम से 0509 एएम तक

अभिजीत मुहूर्तः 1158 एएम से 1251 पीएम तक

रुद्राभिषेक समय या शिववासः श्मशान में दृ 1155 पीएम तक, उसके बाद गौरी के साथ

लाभ

हर सोमवारी को भगवान शिव की विशेष पूजा करने से लाभ होगा। इस दिन खड़ा चावल, बेलपत्र, पंचामृत से शिवजी को स्नान कराएं। इस बार सावन व्रतधारियों के लिए कमाई, आमदनी और रोजगार बढ़ाने वाला रहेगा। जीवन की आशाएं पूरी होंगी। उम्दा खेती के आसार हैं तथा यह सावन विद्यार्थियों के लिए ज्ञान, दरिद्रता और बीमारी नष्ट करने वाला सिद्ध होगा। इस दिन शिव की आराधना करने वाले जातकों की आयु में वृद्धि होगी। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। भगवान शिव की हरियाली से पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है। खासतौर से श्रावण मास के सोमवार को शिव का पूजन बेलपत्र, भांग, धतूरे, दूर्वाकुर आक्खे के पुष्प और लाल कनेर के पुष्पों से पूजन करने का प्रावधान है। इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताए गए हैं उनमें दूध, दही, शहद, घी, शर्करा को मिलाकर बनाए गए पंचामृत से भगवान आशुतोष की पूजा कल्याणकारी होती है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए एक दिन पूर्व सायंकाल से पहले तोड़कर रखना चाहिए। सोमवार को बेलपत्र तोड़कर भगवान पर चढ़ाया जाना उचित नहीं है। भगवान आशुतोष के साथ शिव परिवार, नंदी भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में लाभकारी है। शिव की पूजा से पहले नंदी की पूजा की जानी चाहिए। सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व होता है। इसे भगवान शिव का दिन माना जाता है। इसलिए सोमवार के दिन शिव भक्त शिवालयों में जाकर शिव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन भक्ति पूर्वक शिव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है। कार्य क्षेत्र एवं जीवन के दूसरे क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है। जीवन पर आने वाले संकट टल जाते हैं। इसके अलावा इस दिन आयुष्मान योग एवं सौभाग्य योग भी बन रहा है। इस शुभ योग में भगवान शिव की पूजा करने से दांपत्य जीवन में आपसी प्रेम और सहयोग बढ़ता है। आर्थिक परेशानियों में कमी आती है तथा जीवन पर आने वाले संकट से भगवान शिव रक्षा करते हैं।

 

 

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