आज एक-दुजे के होंगे भगवान शालिग्राम व माता तुलसी
घर-घर
सजेंगे
मंडप
: महिलाएं
करेंगी
हल्दी,
मेंहदी
सहित
अन्य
वैवाहिक
रस्में,
निकलेगी
बारात,
लेंगे
फेरे,
फिर
शुरु
हो
जायेगी
मंगल
कार्यो
की
शुरुवात
भगवान विष्णु
ने
वृंदा
को
दिया
था
तुलसी
बनने
का
वरदान
सुरेश गांधी
वाराणसी। सनातन में तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है. इस दिन सृष्टि के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर चार महीने की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर इस दिन तुलसी के पौधे की विशेष पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप संग तुलसी विवाह विधि-विधान के साथ किया जाता है। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जो चार महीने की योगनिद्रा में होते हैं उन्हे शंखनाद और मंगलगीत गाकर जगाया जाता है।
तुलसी विवाह विशेष रूप से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन किया जाता है. तुलसी को बहुत पवित्र माना जाता है. घर में तुलसी का पौधा उगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है. शालिग्राम शिला भगवान विष्णु का प्रतीक है. तो इस खास दिन पर इन दोनों की शादी कराने से भक्तों को धार्मिक पुण्य मिलता है. तुलसी विवाह करना बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ तुलसी जी का विवाह कराने पर सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शुभ महूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक
माह की द्वादशी तिथि
12 नवंबर, मंगलवार को शाम 4 बजकर
02 मिनट पर शुरू हो
रही है. यह तिथि
बुधवार, 13 नवंबर को दोपहर 1 बजकर
01 मिनट पर समाप्त होगी.
उदया तिथि के अनुसार,
13 नवंबर को तुलसी विवाह
मनाया जाता है. 12 नवंबर
2024 को तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
प्रदोष काल में शाम
5 बजकर 29 मिनट से लेकर
शाम 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि
इस दिन तुलसी
के पौधे को अच्छी
तरह से साफ करें
और उसकी पूजा करें.
तुलसी के पौधे को
गंगाजल से स्नान कराएं.
तुलसी के पौधे को
फूलों और रोली से
सजाएं. शालिग्राम शिला को भी
अच्छी तरह से साफ
करें और उसकी पूजा
करें. शालिग्राम शिला को भी
गंगाजल से स्नान कराएं.
शालिग्राम शिला को फूलों
और रोली से सजाएं.
तुलसी और शालिग्राम के
विवाह के लिए एक
छोटा सा मंडप सजाएं.
मंडप को फूलों और
रंगोली से सजाएं. विधि-विधान से तुलसी और
शालिग्राम का विवाह संपन्न
करें. विवाह के दौरान मंत्रों
का जाप करें. विवाह
के बाद तुलसी और
शालिग्राम को प्रसाद चढ़ाएं.
इस तरह भगवान विष्णु
के रूप शालिग्राम और
विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न
किया जाता है। इस
दिन महिलाएं रीति-रिवाज़ से
तुलसी वृक्ष से शालिग्राम के
फेरे एक सुन्दर मंडप
के नीचे किए जाते
हैं। विवाह में कई गीत,भजन व तुलसी
नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के
पाठ किए जाने का
विधान है । धार्मिक
मान्यता है कि निद्रा
से जागने के बाद भगवान
विष्णु सबसे पहले तुलसी
की पुकार सुनते हैं इस कारण
लोग इस दिन तुलसी
का भी पूजन करते
हैं और मनोकामना मांगते
हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण
के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का
आयोजन माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की
प्राप्ति होती है, दांपत्य
जीवन में प्रेम बना
रहता है। तुलसी विवाह
के दिन व्रत रखना
शुभ माना जाता है.
व्रत रखने से मन
शुद्ध होता है और
मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
तुलसी विवाह के दिन दान
करना बहुत पुण्यदायी होता
है. आप अपनी सामर्थ्य
के अनुसार किसी भी चीज
का दान कर सकते
हैं. तुलसी विवाह की कथा सुनने
से मन शांत होता
है और आत्मिक शक्ति
मिलती है. विवाह में
आ रही बाधाओं को
दूर करने के लिए
तुलसी के पत्ते को
गंगाजल में मिलाकर पीने
से विवाह में आ रही
बाधाएं दूर होती हैं.
तुलसी के तेल की
एक बूंद माथे पर
लगाने से भी लाभ
होता है. तुलसी की
माला को धारण करने
से भी लाभ होता
है.
तुलसी मंत्र
देवी
त्वं
निर्मिता
पूर्वमर्चितासि
मुनीश्वरैः
।
नमो
नमस्ते
तुलसी
पापं
हर
हरिप्रिये।।
ॐ
सुभद्राय
नमः,
मातस्तुलसि
गोविन्द
हृदयानन्द
कारिणी,नारायणस्य
पूजार्थं
चिनोमि
त्वां
नमोस्तुते।।
महाप्रसादजननी,
सर्व
सौभाग्यवर्धिनी,
आधि
व्याधि
हरा
नित्यं,
तुलसी
त्वं
नमोस्तुते।।
ॐ
श्री
तुलस्यै
विद्महे।
विष्णु
प्रियायै
धीमहि।
तन्नो
वृन्दा
प्रचोदयात्।।
पौराणिक मान्यताएं
सनातन के अनुसार वृंदा
का विवाह राक्षस कुल में ही
दानव राज जलंधर से
संपन्न हुआ था. लेकिन
वृंदा बचपन से ही
भगवान विष्णु की भक्त थी.
एक बार देवताओ और
दानवों में युद्ध होने
लगा, तब जलंधर युद्ध
पर जाने लगे तो
वृंदा ने कहा. स्वामी
आप युद्ध पर जा रहे
हैं, आप जब तक
युद्ध में रहेंगे, मैं
पूजा में बैठकर आपकी
जीत के लिए अनुष्ठान
करुंगी. जब तक आप
नहीं लौट आते मैं
अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी. ऐसे
में कोई भी देवता
जलंधर को पराजित नही
कर पा रहे थे.
तब भगवान विष्णु जी राय मांगी
गई. भगवान विष्णु ने एक चक्रव्यूह
रचा भगवान विष्णु ने जलंधर का
रूप धरा और वृंदा
के महल में पहुंच
गए. वृंदा ने जैसे ही
अपने पति को देखा
तो तुरंत पूजा मे से
उठ गई और उनके
चरणों को छू लिया.
इधर, वृंदा का संकल्प टूटा,
उधर युद्ध में देवताओ ने
जलंधर को मार दिया.
इस पर भगवान विष्णु
अपने रूप में आ
गए पर कुछ बोल
न सके. वृंदा ने
कुपित होकर भगवान को
श्राप दे दिया कि
वे पत्थर के हो जाएं.
इसके चलते भगवान तुरंत
पत्थर के हो गए,
सभी देवताओं में हाहाकार मच
गया. देवताओं की प्रार्थना के
बाद वृंदा ने अपना श्राप
वापस ले लिया. इसके
बाद वे अपने पति
का सिर लेकर सती
हो गईं. उनकी राख
से एक पौधा निकला
तब भगवान विष्णु जी ने उस
पौधे का नाम तुलसी
रखा और कहा कि
मैं इस पत्थर रूप
में भी रहूंगा, जिसे
शालिग्राम के नाम से
तुलसी जी के साथ
ही पूजा जाएगा.
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