मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने पर जोर
बीएचयू में “भारतीय भाषा
उत्सव“ का भव्य आयोजन
सुरेश गांधी
वाराणसी। प्रबंध शास्त्र संस्थान, वाराणसी (बीएचयू) में बुधवार को “भारतीय भाषा उत्सव“ का भव्य आयोजन किया गया। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की पहल के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं की सांस्कृतिक समन्वय में भूमिका को उजागर करना था।
कार्यक्रम की शुरुआत स्वामी
विवेकानंद और श्री रामकृष्ण
परमहंस जैसे महान विचारकों
की शिक्षाओं से प्रेरित विषय
“मूल अभिव्यक्ति और मातृभाषा“ पर
हुई। वक्ताओं ने इस बात
पर जोर दिया कि
हमें अपनी मातृभाषा और
क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित और
बढ़ावा देना चाहिए, ताकि
हम विविधता की प्रासंगिकता को
समझ सकें।
इस उत्सव के
मुख्य आकर्षण में कविता पाठ
और शायरी शामिल थी, जहां कई
प्रख्यात कवियों और शायरों ने
भाषाई विविधता के महत्व को
व्यक्त किया। प्रतिभागियों ने विभिन्न राज्यों
के लोकगीतों और क्षेत्रीय भाषाओं
में प्रस्तुतियां दीं, जबकि भारतीय
संगीत की गहराई को
ग़ज़लों के माध्यम से
दर्शाया गया। वक्ताओं ने
यह भी बताया कि
बच्चों को स्थानीय बोलियों
में शिक्षा देकर उन्हें उनकी
सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ा
जा सकता है।
इसके अलावा, शिक्षाविदों
ने स्थानीय भाषाओं के उपयोग को
शिक्षा और प्रशासन में
प्रोत्साहित करने की आवश्यकता
पर चर्चा की।इस उत्सव का उद्देश्य भाषाई
विविधता के महत्व को
उजागर करना था। वक्ताओं
ने बताया कि कोई भी
घटना बिना कारण नहीं
होती और हर भाषा
अपनी सांस्कृतिक पहचान रखती है। भारतीय
भाषाएं केवल संवाद का
माध्यम नहीं हैं, बल्कि
ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर और विचारधारा का
भी प्रतिनिधित्व करती हैं। कार्यक्रम
के दौरान यह संदेश दिया
गया कि हमारी भाषाएं
न केवल हमारी सांस्कृतिक
एकता को मजबूत करती
हैं, बल्कि हमें अपनी जड़ों
से भी जोड़कर रखती
हैं।
विभिन्न क्षेत्रों के गीत, ग़ज़ल
और भाषण ने इस
विचार को बल दिया
कि विविधता में एकता ही
भारतीय संस्कृति की पहचान है।
“भारतीय भाषा उत्सव“ ने
सभी प्रतिभागियों को यह समझाया
कि मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं
का संरक्षण और संवर्धन हमारी
जिम्मेदारी है। शिक्षा में
स्थानीय भाषाओं के उपयोग पर
जोर देते हुए, इस
कार्यक्रम ने भारतीय भाषाओं
के प्रति सम्मान और जागरूकता बढ़ाने
का प्रयास किया। इस कार्यक्रम में
संस्थान के निदेशक आशीष
बाजपेयी, डॉ. शशि श्रीवास्तव,
डॉ. विशाल लहिरी, और डॉ. राम
शंकर उरांव उपस्थित रहे।
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