Monday, 6 January 2025

’धर्म’ और ’मोक्ष’ का ’जागृत तीर्थस्थल’ है ’महाकुंभ’

धर्मऔरमोक्षकाजागृत तीर्थस्थलहैमहाकुंभ’  

सनातन में महाकुंभ के महा स्नान को सबसे पवित्र माना गया है। पुराणों में भी प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल के महाकुंभ को धर्म और मोक्ष का जागृत तीर्थस्थल बताया गया है। इसे भारतीय संस्कृति और आस्था का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से होगी। जबकि समापन 26 फरवरी को होगा. पर लगता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संगम में स्नान करने से कई पाप मिट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है. इस माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि में संगम स्नान के बाद तर्पण, दान और व्रत रखकर सत्यनारायण भगवान की पूजा हजार अश्वमेघ यज्ञ के फल जैसा माना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु कथा सुनते हैं. पौष पूर्णिमा के प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं. इस बार पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ का शुभांरभ भी होने वाला है. इस साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 13 जनवरी दिन सोमवार को सुबह 5 बजकर 3 मिनट से शुरू हो रही है और उसका समापन 14 जनवरी को तड़के 3 बजकर 56 मिनट पर होगा. ब्रह्म मुहूर्त 527 से 621 तक तो विजय मुहूर्त 215 से लेकर 257 तक रहेगा. उदयातिथि के आधार पर पौष पूर्णिमा का व्रत और स्नान-दान 13 जनवरी को होगा। महाकुंभ में पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा के दिन होगा. खास यह है कि पौष पूर्णिमा के दिन रवि योग बन रहा है. इसमें सूर्य देव का प्रभाव अधिक होता है और इस वजह से सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं. पौष पूर्णिमा पर रवि योग सुबह 7 बजकर 15 मिनट से सुबह 10 बजकर 38 मिनट तक है. पौष पूर्णिमा के प्रातःकाल में वैधृति योग बनेगा, जो अगले दिन 14 जनवरी को प्रातः 0439 एम तक रहेगा. उसके बाद विष्कम्भ योग होगा. पौष पूर्णिमा के दिन आर्द्रा नक्षत्र सुबह 1038 बजे तक है, उसके बाद पुनर्वसु नक्षत्र है 

सुरेश गांधी

गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर बसा प्रयागराज भारत का एक पवित्र शहर है। यह शहर अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। हर बारह वर्ष में यहां लगने वाला महाकुंभ मेला लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। इन पवित्र घाटों पर स्नान करके श्रद्धालु मोक्ष की कामना करते हैं। कहते हैं कि युगों पहले अमृत की खोज में सागर को मथा गया. अमृत निकला, लेकिन इसे लेकर उन दो दलों में भीषण युद्ध हो गया, जिन्होंने इसे पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी. इसमें एक ओर थे देवता और दूसरे असुर. ये पहली बार था कि दो अलग-अलग तरह की संस्कृति, सोच और विचार रखने वाले लोग एक बड़े लक्ष्य के लिए एक साथ आए थे. वह लक्ष्य तक पहुंचे भी, लेकिन पा नहीं सके. क्योंकि लक्ष्य था अमृत और उस पर सिर्फ अपना ही अधिकार रखने की जिद लालच ने उसे किसी का नहीं रहने दिया. छीना-झपटी हुई और इस छीना-झपटी में अमृत कलश से अमृत कई बार छलका और अलग-अलग स्थानों पर जा गिरा. जहां-जहां अमृत की बूंदें छलकी वह सिर्फ पवित्र स्थल बन गया है, बल्कि महाकुंभ भी कहलाया। जिसमें प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार शामिल है

इस बार 114 साल बाद तीर्थनगरी प्रयागराज में पूर्ण कुंभ का दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है. खास यह है कि अमृत की खोज आज भी जारी है. अमृत की यही खोज भारतीय जनमानस को एक साथ-एक जगह ले आती है. पवित्र नदियों के बहते जल के आगे सभी की सारी अलग पहचान छिप जाती है और वह सिर्फ मनुष्य रह जाते हैं. फिर तो गंगा में कमर तक उतरे और डुबकी लगाकर झटके से ऊपर उठे माटी के जीवंत पुतलों से सिर्फ एक ही आवाज आती है, हर-हर गंगे, जय गंगा मैया. गंगा घाट वह जगह बन जाते हैं, जहां सांसारिकता के सागर का मंथन होता है और इस मंथन से एकता की भावना का अमृत मिलता है. जिस आयोजन के तहत यह पूरी प्रक्रिया होती है, वह महाकुंभ कहलाता है. कुंभ मेला भारत के सबसे बड़े मेलों में शामिल है। हालांकि, यह भी तीन प्रकार का होता है। इसके प्रकार अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ है। पूर्णकुंभ मेला 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। यह मेला प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है, जिसमें करोड़ों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके पहले 2013 में प्रयागराज में पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया गया था। इसके बाद अब 2025 में पूर्णकुंभ आयोजित हो रहा है। हालांकि, इसे महाकुंभ नाम दिया गया है। जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं, तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है। पूर्णकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है और महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। इस प्रकार वर्षों की गणना करें, तो यह 144 सालों में एक बार आयोजित होता है। इस वजह से इसे महाकुंभ कहा जाता है। यह सबसे बड़ा मेला होता है, जिसमें सबसे अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं।

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के आयोजन ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत आज भी जीवंत है. महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यहे लाखों श्रद्धालुओं को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संगम भी है. ये महोत्सव भक्ति, परंपरा और आस्था के संगम का प्रतीक बन रहा है. छावनी में संतों का प्रवेश इस बात का संकेत है कि ये आयोजन हर दृष्टि से भव्य और अविस्मरणीय होगा. कहा जाता है कि पृथ्वी पर सबसे पहला यज्ञ खुद भगवान ब्रह्मा ने गंगा, यमुना और सरस्वती की पवित्र संगम पर किया था। इसी प्रथम यज्ञ से प्रथम के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना। जब ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे तो स्वयं भगवान श्री विष्णु 12 माधव रूप में इसकी रक्षा कर रहे थे। विष्णु के यही 12 माधव रूप द्वादश माधव कहे जाते हैं। समय के साथ विलुप्तप्राय हो चुके इन मंदिरों का भी नए सिरे से जीर्णोद्धार कराया गया है। महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु इनके दर्शन कर सकेंगे। पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान की पवित्रता को देखते हुए भगवान ब्रह्मा ने इसेतीर्थ राजयासभी तीर्थस्थलों का राजाभी कहा है। शास्त्रों - वेदों और महान महाकाव्यों - रामायण और महाभारत में इस स्थान को प्रयाग के नाम से संदर्भित किया गया है।पद्मपुराणके अनुसार - “जैसे सूर्य चंद्रमा के मध्य और चंद्रमा तारों के मध्य है, वैसे हीप्रयाग सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है।ब्रह्मपुराण में वर्णित है किप्रयाग में गंगा यमुना के तट पर माघ मास में स्नान करने से करोड़ों अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है।तीर्थराज को लेकर एक और कथा प्रचलित है। इसके अनुसार शेष भगवान के निर्देश से भगवान ब्रह्मा ने सभी तीर्थों के पुण्य को तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों, सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे। तीर्थराज प्रयाग वाले पलड़े ने धरती नहीं छोड़ी, वहीं बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमंडल को छूने लगा था।

दिखने लगी है अजब-गजब बाबाओं की टोली

प्रयागराज में महाकुंभ को अब सिर्फ कुछ ही दिन बाकी हैं. हर एक बीतते दिन के साथ कुंभ मेले की रौनक लगातार जगमग होती जा रही है. साधु संतों के अखाड़े पूरे लाव लश्कर के साथ कुंभनगरी पहुंच रहे हैं. इन बाबाओं में किसी के गले में मुंड, कहीं नागाओं का झुंड, हाथों में त्रिशूल और गले में रुद्राक्ष तो कहीं सिर पर जौ उगाएं बाबाओं की टोली घूम रही है। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के एक साधु तो महाकुंभ में महाकाल के वेश में पहुंचे। इसमें अलग-अलग अखाड़ाओं के साधु पहुंचने लगे हैं और तैयारियां जोरों पर हैं। महाकुंभ का साधु संत और श्रद्धालुओं में बेसब्री से इंतजार भी रहता है। कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है। साथ ही आत्मा और शरीर की शुद्धि का भी मार्ग माना जाता है. महाकुंभ में शाही स्नान की परंपरा भी बेहद खास है. महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है। इस स्नान में सबसे पहले साधु संत स्नान करते हैं. उसके बाद आम श्रद्धालु गंगा के पवित्र जल में डुबकी भी लगाते हैं. कहते है महाकुंभ के समय ग्रह और नक्षत्र की विशेष स्थिति के कारण संगम का जल भी अमृत जैसा हो जाता है। यही वजह है कि शाही स्नान को अत्यंत शुभ माना गया है

छह प्रमुख शाही स्नान यानी अमृत स्नान

महाकुंभ में होने वाले शाही स्नान का नाम बदल दिया गया है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान कर दिया है. अब से शाही स्नान को अमृत स्नान के नाम से जाना जाएगा. महाकुंभ का पहला अमृत स्नान 13 जनवरी सोमवार को होगा. महाकुंभ मेले में 6 शाही स्नान होंगे। ज्योतिषाचार्यो का कहना है कि इस दौरान, जो भी शाही स्नान करता है, उसे जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही कई जन्मों के पाप मिट जाते हैं. शाही स्नान ज्यादातर साधुसंत करते हैं. उनके बाद तीर्थंयात्री भी शाहीस्नान कर सकते हैं. हालांकि शाहीस्नान की कुछ प्रमुख तिथियां होती हैं.

13 जनवरी (पूस पूर्णिमा ) के दिन शाही स्नान

14 जनवरी (मकर संक्रांति ) के दिन शाही स्नान.

29 जनवरी (मोनी अमावस्या) के दिन शाहीस्नान.

03 फ़रवरी (बसंत पंचमी) के दिन शाही स्नान.

12 फरवरी (माघी पूर्णिमा) के दिन शाही स्नान.

26 फरवरी (महाशिवरात्रि )के दिन शाही स्नान

पौष पूर्णिमा पर होगा पहला अमृत स्नान

सनातन धर्म में ब्रह्म मुहूर्त को स्नान के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है. पौष पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त 5 बजकर 27 मिनट से सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक है. इस समय में आपको पौष पूर्णिमा का स्नान दान कर लेना चाहिए. यदि आपको महाकुंभ के पहले अमृत स्नान में शामिल होना है तो 13 जनवरी को ब्रह्म मुहूर्त में गंगा में आस्था की पवित्र डुबकी लगाएं. पौष पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त से लेकर पूरे दिन स्नान और दान का कार्यक्रम चलेगा. पौष पूर्णिमा के दिन का शुभ मुहूर्त यानी अभिजीत मुहूर्त दोपहर 1209 पी एम से 1251 पी एम तक है. पौष पूर्णिमा पर चंद्रोदय शाम को 5 बजकर 4 मिनट पर होगा. जो लोग पौष पूर्णिमा का व्रत रखेंगे, वे शाम को अंधेरा होने पर जब चंद्रमा अच्छे से प्रकाशवान हो तो उस समय अर्घ्य दें और पूजा करें. इससे आपकी कुंडली

का चंद्र दोष भी दूर होगा.

मकर संक्रांति पर होगा दूसरा शाही स्नान

दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर होगा. इस दिन दान-पूण्य के बाद खास पूजन होगा।

मौनी अमावस्या को होगा तीसरा अमृत स्नान

महाकुंभ का तीसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या के दिन किया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की शुरूआत 28 जनवरी को शाम को 07 बजकर 35 मिनट से होगी और तिथि का समापन 29 जनवरी को शाम को 06 बजकर 05 मिनट पर होगी। ऐसे में 29 जनवरी को मौनी अमावस्या मनाई जाएगी। पवित्र स्नान के अलावा मौनी अमावस्या पर भूले बिसरे पितरों के श्राद्ध और दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन मौन रहकर स्नान और दान करने से कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है. यह दिन पितरों को प्रसन्न करने

और उनके आशीर्वाद पाने का उत्तम समय माना गया है. 

बसंत पंचमी को होगा चौथा शाही स्नान

इस दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है जो ज्ञान और कला की देवी हैं. मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से ज्ञान में वृद्धि होती है. पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से शिक्षा, कला और संगीत के क्षेत्र में सफलता मिलती है. माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 02 फरवरी को सुबह 914 बजे शुरू होगी और 03 फरवरी को सुबह 652 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व 02 फरवरी को मनाया जाएगा. पूजा का शुभ समय सुबह 709 से दोपहर 1235 बजे तक रहेगा. इस दौरान अगर महाकुंभ के त्रिवेणी संगम पर स्नान का अवसर प्राप्त होता है, तो यह भक्तों के लिए बहुत ही पुण्यकारी रहेगा. 

महाशिवरात्रि पर होगा पांचवा शाही स्नान

पांचवां शाही स्नान 26 फ़रवरी, बुधवार को महाशिवरात्रि के दिन होगा. चतुर्दशी तिथि 26 फ़रवरी को सुबह 1108 बजे से शुरू होकर 27 फ़रवरी को सुबह 854 बजे खत्म होगी.

अमृत के स्नान नियम

महाकुंभ में स्नान के दौरान नियम का पालन करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसे में स्नान करने से पहले ही इसके नियम के बारे में जरूर जान लें। अमृत स्नान के दौरान साबुन और शैंपू का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्नान के बाद श्रद्धा अनुसार अन्न, धन और वस्त्र समेत आदि चीजों का दान करें। दीपदान करना भी इंसान के जीवन के लिए अधिक फलदायी माना गया है। अगर आप महाकुंभ में डुबकी लगाने वाले हैं तो इस बात का भी ध्यान रखें कि गृहस्थ लोगों को 5 बार डुबकी लगानी चाहिए। धार्मिक मतानुसार गृहस्थ लोग जब महाकुंभ में 5 बार डुबकी लगाते हैं, तभी उनका कुंभ स्नान पूरा माना जाता है। महाकुंभ में स्नान के बाद अपने दोनों हाथों से सूर्य देव को जल का अर्घ्य आपको अवश्य देना चाहिए। कुंभ मेले का आयोजन सूर्य देव की विशेष स्थिति को देखकर ही किया जाता है, इसलिए महाकुंभ के स्नान के साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य देने से आपको शुभ फलों की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान के दौरान सूर्य को अर्घ्य देना कुंडली में सूर्य की स्थिति को मजबूत भी करता है। कुंभ में स्नान करने के बाद आपको प्रयागराज में स्थिति लेटे हुए हनुमान जी या नागावासुकी मंदिर के दर्शन भी करने चाहिए। मान्यताओं के अनुसार इन मंदिरों का दर्शन करने के बाद ही भक्तों की धार्मिक यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

योगी का अखाड़ा होगा आकर्षण का केन्द्र

महाकुंभ में नाथ संप्रदाय का अखाड़ा खास आकर्षण रहेगा, जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठहरेंगे. इस अखाड़े की भव्य तैयारियां हो रही हैं. संतों के ठहरने, धार्मिक अनुष्ठानों और आध्यात्मिक चर्चाओं के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं. यह अखाड़ा महाकुंभ में भारतीय संस्कृति का प्रतीक बनेगा.

No comments:

Post a Comment