Sunday, 22 April 2018

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब?

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब? 
           बेशक, रेप बेहद घिनौना व दरिंदगी वाला कृत्य है। बढ़ती घटनाओं पर सख्ती बरतते हुए केन्द्र सरकार ने फांसी तक की सजा का प्राविधान करने की कोशिश में हैं। उम्मीद है कैबिनेट के बाद सदन में भी यह बिल पास हो जायेगा। इसके लिए हर तबका पीएम मोदी की सराहना भी कर रहा है। लेकिन सच यह भी है कि इस तरह के घृणित कार्य की आड़ में कुछ दूषित मानसिकता के लोग अपनी निजी दुश्मनी को साधने के लिए धन, बल व सत्ता की धौंस दिखाकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराने से भी बाज नहीं आते। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या फर्जी मुकदमें दर्ज कराने वालों या अपने बाहुबल व धबल के बूते बच निकलने वालों की भी फांसी होगी? क्योंकि एक-दो नहीं सैकड़ों मुकदमें ऐसे है जो ले देकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराएं गए है या गवाह व सबूतों को खरीदकर बच निकले है 
              सुरेश गांधी 
            रेप पर सबसे सख्त कानून लागू हो गया है। अब 12 साल से कम उम्र की नाबालिगों से रेप पर मौत की सजा मिलेगी। नए कानून के मुताबिक, नाबालिगों से रेप के मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की व्यवस्था की जाएगी। फॉरेंसिक जांच के जरिए सबूतों को जुटाने की व्यवस्था को और मजबूत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। इतना ही नहीं दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। अगर अपील दायर होती है तो 6 महीने में निपटारा करना होगा। नाबालिग के साथ बलात्कार के केस को कुल 10 महीने में खत्म करना होगा। मतलब साफ है इस नए कानून से नाबालिग से रेप की बढ़ती घटनाओं पर लगाम जरुर लगेगा, ऐसी कर कोई उम्मीद के साथ पीएम मोदी तारीफ भी कर रहा है। लेकिन इस नए कानून का कहीं दुरुपयोग नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? क्योंकि व्यवस्था तंत्र तो वही है जो ले देकर कभी रपट ही नहीं लिख्ती और कभी हकीकत से परे बिना किसी इंवेस्टीगेशन के ही फर्जी मुकदमें दर्ज कर देती है। 
          खासकर अगर किसी पीड़िता के दबाव में मुकदमा दर्ज भी पुलिस कर लेती है तो आरोपी को बचाने व सबूत मिटाने में पूरी ताकत झोक देती है। पीड़िता की मदद करने वालों पर ही फर्जी मुकदमें ठोक देती है। ऐसे में सवाल तो यही है क्या फर्जीगिरी के मास्टरमाइंड पुलिसकर्मियों को भी फांसी दिए जाने का प्राविधान होगा? क्योंकि अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके है जिसमें पुलिस ने पहले तो रपट दर्ज नहीं की। अगर दर्ज भी किया तो आरोपी को बचाने में हरहथकंडे अपनाती रही है? ताजा मामला उन्नाव, कठुआ से लेकर एटा, बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के मामले है। मतलब साफ है रेप जैसी घिनौने वारदात को रोकने के लिए एक ओर जहां यह आवश्यक है कि कानून कठोर हों वहीं यह भी कि उन पर सही तरह अमल भी हो और उनका दुरुपयोग न होने पाए। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश को हिला देने वाले निर्भया कांड के बाद भी यौन हिंसा रोधी कानून कठोर किए गए थे, लेकिन स्थिति में तनिक भी बदलाव देखने को नहीं मिला। ऐसा इसीलिए हुआ कि हम सख्त सजा का कोई उदाहरण पेश नहीं कर सके। किसी को बताना चाहिए कि आखिर निर्भया के हत्यारों को अभी तक उनके किए की सजा क्यों नहीं मिली? 
              यौन हिंसा के मामले में यह भी देखना होगा कि विकृत सोच इसलिए तो नहीं पनप रही कि समाज को बनाने-संवारने का एजेंडा किसी के पास नहीं रह गया है? कठुआ में एक मासूम बच्ची के साथ कई दिन तक दुष्कर्म होता रहा। अंत में हत्या भी कर दी गयी। लेकिन जब पुलिस रपट दर्ज कर कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, तो लोग आरोपितों के पक्ष में सड़कों पर उतर आएं। एटा में विवाह समारोह में सात वर्षीय बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। अगर पीड़ित अथवा पीड़क, दोनों का संप्रदाय एक न होता, तो इस त्रासदी को भी कुछ लोग कठुआ जैसी कुतार्किक जंग में तब्दील कर देते। पता नहीं ऐसे कुकर्मी यह क्यों भूल जाते हैं कि इस देश में हर रोज 100 से ज्यादा बलात्कार होते हैं। हर घंटे में करीब पांच बच्चे शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। यह अच्छा हुआ कि केंद्रीय कैबिनेट ने उस अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की जो एक ओर जहां 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए मौत की सजा तय करेगा वहीं दूसरी ओर दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की अवधि को बढ़ाकर दस वर्ष या फिर आजीवन कारावास में तब्दील करेगा। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि दुष्कर्म के अपराधियों के लिए कठोर सजा के प्रबंध किए जा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच और फिर ट्रायल को एक तय अवधि में पूरा करना होगा। ऐसा वास्तव में हो और दुष्कर्म के अपराधियों को समय रहते उनके किए की सख्त सजा मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और अदालती तंत्र को कहीं अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। इसके लिए तंत्र में सुधार भी करना होगा, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि दुष्कर्म के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत ही कम है। स्पष्ट है कि पुलिस को कमर कसने की सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति हो, यह राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना होगा। 
             नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़े नाबालिग से रेप पर मौत की सजा पर सवाल उठाते हैं। पॉक्सो एक्ट के तहत साल 2016 में कोर्ट के सामने 64,138 रेप केस सामने आए, इन में से सिर्फ 1869 मालमों में ही सजा सुनाई जा सकी। महिलाओं और बच्चों से रेप के जो मामले में पुलिस के सामने दर्ज करवाए गए उनमें से 96 प्रतिशत ऐसे केस थे जिनमें आरोपी परिवार का ही कोई सदस्या था, या दोस्त, पड़ोसी या परिचित था। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि नाबालिग से रेप पर फांसी की सजा से इस तरह के मामलों में गिरावट आएगी इसे लेकर संशय है। फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान आने से ऐसे केस रिपोर्ट होने का आंकड़ा भी गिर जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? ये जानते हुए कि आरोपी परिचित को मौत की सजा होगी पीड़िता पर शिकायत नहीं करने को लेकर और दबाव बनाया जाएगा। उसे धमकाया जाएगा। इससे पीड़िता अलग-थलग पड़ जाएगी। शिकायत के बाद की जाने वाली कार्रवाई, कोर्ट की कार्रवाई में तेजी और अदालत के भीतर व बाहर सक्षम वातावरण बनाने के बगैर सजा को कड़ा किया जाना किसी मतलब का नहीं है। यदि कार्रवाई में ही लंबा समय लगेगा तो फांसी की सजा भी आरोपियों में डर पैदा करने और अपराध घटाने में मददगार साबित नहीं होगा। साल 2016 में ही पॉक्सो एक्ट जिसके तहत मामलों का निपटारा एक साल के भीतर करने का प्रावधान था, करीब 89 प्रतिशत मामले लंबित रहे। यहां तक कि निर्भया कांड में नाबालिग आरोपी को छोड़ बाकी सभी आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद भी गैंगरेप की घटना रुकी नहीं है। सरकार का कहना है कि तमाम उपायो को तीन महीने में अमली जामान पहनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही ये भी तय हुआ है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में यौन अपराधियों का प्रोफाइल तैयार किया जाएगा और तमाम राज्य आपस में इस जानकारी को साझा करेंगे। वैसे भी दुष्कर्म के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना रहे अपराधी तत्व बेलगाम हो गए हैं। उनकी घिनौनी हरकतें समाज को शर्मिदा करने के साथ देश की छवि को भी खराब करने का काम कर रही हैं। ऐसे तत्वों के साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे तत्वों को सबक सिखाने और उनके मन में खौफ पैदा करने की जरूरत है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि आज दुष्कर्मी तत्व बेलगाम हैं और समाज खौफ में है। यह स्थिति सभ्य समाज के विपरीत है। आखिर आज के युग में ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग कैसे हो सकते हैं कि छोटी-छोटी बच्चियों को निशाना बनाएं? यह तो हैवानियत की पराकाष्ठा के अलावा और कुछ नहीं कि साल-दो साल की बच्चियां भी दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। 

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