कब ‘खामोश’ होगी ‘गद्दारों’ की ‘जुबान’
बर्फ की
सफेद चादर से
ढकी जम्मू कश्मीर
की हसीं वादियां...
इसे जन्नत बनाती
हैं। लेकिन कश्मीर
के बदन पर
वो लकीर भी
मौजूद हैं, जिसे
दुनिया ’लाइन ऑफ
कंट्रोल’ कहती है।
भारत और पाकिस्तान
के बीच खून
से खींची गई
इस लकीर की
हिफाजत के लिए
देश के न
जाने कितने शूरवीरों
ने अपने प्राणों
की आहूति दी
है। और आज
भी देश के
हजारों सपूत देश
की सीमा पर
मौत से जंग
लड़ रहे हैं
ताकि हम सुकून
की नींद सो
सकें, और सुरक्षित
रह सके हमारा
वतन। अफसोस है
कि उन्हीं जवानों
की सहादत पर
देश में मौजूद
राष्ट्र विरोधी ताकते या
यू कहें गद्दार
या भारत तेरे
टुकड़ें होंगे गैंग, के
समर्थक वतन पर
कुर्बान होने वाले
44 जवानों की चिता
की आग अभी
ठंडी भी नहीं
हुई कि नेता
अपनी-अपनी सियासी
रोटी सेकने में
जुट गए है
सुरेश गांधी
पुलवामा की घाटना
के बाबत एक
तरफ कांग्रेस नेता
नवजोत सिद्धू कहते
है, ’’क्या कुछ
लोगों की करतूत
के लिए पूरे
देश को जिम्मेदार
ठहराया जा सकता
है?’ं भारत
व पाकिस्तान के
बीच मुद्दों का
स्थायी हल खोजने
की जरूरत है.। इस
तरह के आतंकवादियों
का कोई देश,
धर्म और जाति
नहीं होती है।
चंद लोगों की
वजह से पूरे
पाकिस्तान को जिम्मेदार
नहीं ठहराया जा
सकता। तो दुसरी
तरफ चारा घोटाले
में जेल की
हवा खा रहे
लालू के बेटे
तेजवी यादव भी
कुछ इसी तरह
की भाषा बोल
रहे है। पुलवामा
की घटना को
अंजाम देने वाला
मानव बम आदिल
डार के पिता
गुलाम हसन डार
को कुछ ऐसे
लोग भी हैं
जो उन्हें ’मुबारक’ बोल रहे हैं।
फिरहाल, देश में
उबलते गुस्से और
शहादत पर बदले
की मांग के
बीच सुरक्षाबलों के
सामने सबसे बड़ा
टारगेट पुलवामा के राक्षस
के तलाशना है।
पुलवामा का राक्षस
यानि आत्मघाती हमलावर
आदिल डार को
ट्रेनिंग वाला अफगानी
आतंकी गाजी राशिद।
क्योंकि हमले के
वक्त गाजी राशिद
का गुर्गा कामरान
भी पुलवामा में
ही मौजूद था।
जम्मू-कश्मीर गठबंधन
सरकार से भाजपा
द्वारा हाथ खींच
लिये जाने के
तुरंत बाद आश्चर्यचकित
महबूबा मुफ्ती ने जो
बयान दिया, वह
आनेवाले दिनों में बढ़ते
तनाव तथा आतंकवादियों
व अलगाववादियों के
अधिक पहुंच और
आक्रामक तेवरों की झलक
देता है। जब
तकवो सत्ता में
थी हर फैसले
से महबूबा मुफ्ती
पीडीपी के वोट
बैंक को सींच
रही थीं। महबूबा
की दिलचस्पी न
सरकार में थी,
न केंद्र द्वारा
दिये गये धन
के सही उपयोग
में। वह आतंकवादी-
पत्थरबाज- पाकिस्तान समर्थक तत्वों
को यह बताना
चाहती थी कि
भाजपा उनके सहारे
चल रही है
और वह भाजपा
की नीतियां कतई
लागू न होने
देंगी। बीच-बीच
में पाकिस्तान से
बातचीत की हिमायत,
हुर्रियत के प्रति
नरमी, पत्थरबाजों की
रिहाई समेत अनेक
मामलों के जरिये
महबूबा के मन
का झुकाव पता
चल रहा था।
यह अलग बात
है कि मोदी
कश्मीर को आर्थिक
विकास, ढांचागत प्रगति की
ओर ले जाना
चाहते थे। लेकिन
उन्हें समझना होगा ये
तब तक संभव
नहीं, जब तक
अतिवादी जेहादियों का समूल
खत्म न किया
जाये।
मतलब साफ
है सीआरपीएफ के
काफिले को निशाना
बनाने का काम
चाहे जिस आतंकी
संगठन ने किया
हो, इससे इन्कार
नहीं किया जा
सकता कि उसे
सीमा पार से
शह-समर्थन मिलने
के साथ ही
सीमा के अंदर
भी किसी न
किसी तरह की
मदद मिली होगी।
यह ठीक नहीं
कि तमाम सक्रियता
और सजगता के
बावजूद न तो
सीमा पार आतंकियों
को पालने-पोसने
वालों को सबक
सिखाया जा पा
रहा है और
न ही सीमा
के अंदर के
ऐसे ही तत्वों
को। बता दें,
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा
जिले में काकापोरा
गांव में आदिल
डार के घर
की दीवार पर
एके 47 के साथ
उसकी तस्वीर चस्पा
है। यह जगह
घटनाथल के पास
ही है। जहां
आदिल डार ने
विस्फोटक से लदी
गाड़ी से सीआरपीएफ
की बस में
टक्कर मारी थी
जिसमें 40 जवान शहीद
हो गए थे।
यह गांव पहले
से आतंकी गतिविधियों
का गढ़ रहा
है। यह वही
जगह है, जहां
से लश्कर-ए-तैयबा के अबू
दुजाना का ताल्लुक
रहा है। सुरक्षा
बलों की एक
कार्रवाई में दुजाना
मारा गया था।
आदिल तीसरे दर्जे
का आतंकवादी था।
वह पत्थरबाजी करने
वाले समूह में
भी शामिल रहा
है, लेकिन वह
एक लो प्रोफाइल
आतंकवादी था जो
पिछले साल ही
आतंकी संगठन में
भर्ती हुआ था।
इसीलिए वह सुरक्षा
बलों के रडार
पर भी नहीं
था और शायद
इसी वजह से
वह इतने बड़े
हमले को अंजाम
देने में कामयाब
रहा।
जहां तक
पाकिस्तान को खत्म
करने की आवाज
का सवाल है
तो वह खुद
ही खत्म हो
रहा है। पड़ोसी
देशों से आर्थिक
सहायता मिलना बंद हो
गई है, यह
सभी को पता
है और वह
धीरे-धीरे मर
रहा है। हर
युद्ध का जवाब
गोली से देना
मुनासिब नहीं है।
अब जरूरत केवल
इतनी है कि
पाकिस्तान का नामोनिशान
मिटाना है तो
सूचना युद्ध का
इस्तेमाल करना होगा।
उसके दिमाग पर
चोट करना होगी।
आर्थिक रूप से
वह वैसे भी
कमजोर है, इसलिए
उसे मानसिक रूप
से मारने के
लिए व्हाट्सएप व
अन्य सोशल साइट
का इस्तेमाल देशप्रेम
के लिए करें।
इसके अलावा सिंधू
जल समझौते के
बारे में भी
विचार किया जाना
चाहिए। कुटनीतिक उपायों के
जरिए पाकिस्तान को
दंडित करने के
साथ ही चीन
को भी कोई
सख्त संदेश देने
की जरुरत है।
वह जैशए-मोहम्मद
सरगना का खुला
बचाव करके भारतीय
हितों के खिलाफ
ही काम कर
रहा है। चीन
को यह बताया
जाना चाहिए ि
कवह केवल वुहान
में बनी सूझ-बूझ के
खिलाफ काम कर
रहा है बल्कि
पाकिस्तान की ढाल
बनकर शत्रु सरीखे
रवैये का परिचय
दे रहा है।
इसमें संकोच इसलिए
नहीं की जानी
चाहिए क्योंकि आज
भारत को चीन
की जितनी जरुरत
है उससे ज्यादा
उसे भारत की
है। इसी के
साथ अपनी खुफिया
तंत्र को मजबूत
करने की जरुरत
है। अभी यह
होता है कि
दुर्घटना हो जाती
है और एजेंसियां
बाद में पहुंचती
हैं लेकिन संभावना
पर देश नहीं
चलता, इसलिए जानकारी
पुख्ता मिले और
हम घटना होने
के पहले पहुंचें।
आर्मी के लिए
किसी को मारना
बड़ी बात नहीं
है, उसे अनुमति
मिले तो वो
कभी गोली चलाने
में पीछे नहीं
रहते, लेकिन गोली
चलाने के बाद
सलाखों के पीछे
डाल दिया जाएगा
तो वे भी
बचना शुरू कर
देंगे। देश में
पार्टियां केवल एक
ही मुद्दे को
लेकर राजनीति में
आती हैं कि
वे आर्टिकल 370 हटाएंगी।
वे पांच सालों
तक इस मुद्दे
पर राजनीति करती
हैं और फिर
चुनाव लड़ती हैं,
लेकिन धारा वैसी
की वैसी है।
राजनीतिक पार्टियां नहीं चाहतीं
कि यह मुद्दा
खत्म हो।
हमें इतना
भी उदार नहीं
होना चाहिए कि
80 फीसदी पानी हम
पाकिस्तान को दे
दें और बदले
में आतंकी हमले
भी झेलते रहें।
यह उदारता कम
करना होगी। चायना
यदि किसी देश
को कुछ देता
है तो उससे
कुछ लेता भी
है। हम खुद
अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार रहे
हैं। पाक को
सभी सुविधाओं को
बंद कर देना
चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक हमारी
ड्यूटी थी, लेकिन
राजनेताओं ने इसे
राजनीति में घसीट
दिया। सेना ने
1947 के बाद कई
बार अपना खून
बहाया है, अब
जरूरत है कि
राजनेता भी आगे
आएं। हर बार
सेना को आगे
कर दिया जाता
है, हम तो
हमेशा आगे खड़े
हैं। 26 जनवरी और 15 अगस्त
पर ही देशभक्ति
जागती है। उसके
बाद फिर सब
शांत हो जाता
है। देशभक्ति लोगों
के दिमाग में
बनी रहे, इसके
लिए देशभक्ति का
पाठ पढ़ाना होगा
और एक तिरंगा
हर घर पर
लहराना होगा।
इस हमले
के बाद देश
के नेतृत्व के
साथ आम लोगों
का रोष-आक्रोश
से भर उठना
स्वाभाविक है। जवानों
का यह बलिदान
व्यर्थ नहीं जाना
चाहिए। शत्रु से बदला
लिया जाना आवश्यक
ही नहीं अनिवार्य
है, लेकिन रोष-आक्रोश के इन
क्षणों में इस
पर भी विचार
करना होगा कि
आखिर आतंकियों के
दुस्साहस का निर्णायक
तरीके से दमन
कैसे किया जाए?
इस पर गंभीरता
से विचार इसलिए
होना चाहिए, क्योंकि
उड़ी में आतंकी
हमले के बाद
सीमा पार सर्जिकल
स्ट्राइक के वैसे
नतीजे नहीं मिले
जैसे अपेक्षित थे।
वास्तव में जैश
और लश्कर सरीखे
आतंकी संगठनों को
समर्थन-संरक्षण देने वाला
पाकिस्तान जब तक
भारत को नुकसान
पहुंचाने की कीमत
नहीं चुकाता तब
तक न तो
उसकी सेहत पर
असर पड़ने वाला
है और न
ही उसकी भारत
विरोधी हरकतें बंद होने
वाली हैं। इसलिए
आतंकी संगठनों और
उनके समर्थकों-संरक्षकों
को मुंह तोड़
जवाब देने के
साथ ही जम्मू-कश्मीर में अपने
जवानों की सुरक्षा
की नए सिरे
समीक्षा की आवश्यकता
इसलिए भी है,
क्योंकि कश्मीर में आतंकवाद
का खतरा बढ़ता
दिख रहा है।
दुनिया को यह
भी संदेश जाना
चाहिए कि इस
बार भारत तब
तक चैन से
नहीं बैठेगा जब
तक आतंकवाद को
खाद-पानी दे
रही ताकतों को
सबक नहीं सिखाता।
ऐसे प्रस्ताव जमीन
पर भी उतरने
चाहिए। ध्यान रहे कि
एक समय संसद
ने यह प्रस्ताव
पारित किया था
कि पाकिस्तान के
कब्जे वाले भारतीय
भू-भाग को
वापस लिया जाएगा।
माना कि
जम्मू-कश्मीर के
पुलवामा में सीआरपीएफ
जवानों पर आतंकी
हमले के बाद
सरकार ने बड़ा
कदम उठाया है।
गृह मंत्रालय के
आदेश के बाद
जम्मू-कश्मीर प्रशासन
ने हुर्रियत और
अलगाववादी नेता मीरवाइज
उमर फारूक, अब्दुल
गनी बट्ट, बिलाल
लोन, हाशमी कुरैशी,
शब्बीर शाह की
सरकारी सुरक्षा वापस ले
ली है। इसके
अलावा इन्हें मिल
रही सारी सरकारी
सुविधाएं छीन ली
गई है। लेकिन
अफसोस है कि
इस आदेश में
पाकिस्तान परस्त और अलगाववादी
नेता सैयद अली
शाह गिलानी का
नाम नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत
की कोशिशि होनी
चाहिए कि वो
पाकिस्तान की साजिशों
को एक बार
फिर बेनकाब करें।
इसके अलावा पाकिस्तान
की आर्थिक ढांचे
को नुकसान पहुंचाने
के लिए बड़े
फैसले ले। मोस्ट
फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का
दर्जा वापस लेना
काफी नहीं हैं।
पाक से आने
वाले सामानों पर
कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी
बढ़ाना साहसी कदम
है। इससे पाक
की ओर से
भारत को निर्यात
किए जाने वाले
48.8 करोड़ डॉलर के
सामान पर असर
पड़ सकता है।
भारत ने पाकिस्तान
से 2017-18 में 48.8 करोड़ डॉलर
का आयात किया
था, जबकि 1.92 अरब
डॉलर का निर्यात
किया था। इससे
पहले 2016-17 में दोनों
देशों के बीच 2.27 अरब
डॉलर का व्यापार
हुआ था। भारत,
पाकिस्तान को टमाटर,
गोबी, चीनी, चाय,
ऑयल केक, पेट्रोलियम
ऑयल, कॉटन, टायर,
रबड़ समेत 137 वस्तुओं
का प्रमुख रूप
से निर्यात करता
है। इसे अटारी-बाघा बॉर्डर
के जरिए पाकिस्तान
को निर्यात की
जाती है।
वहीं, भारत, पाकिस्तान
से अमरूद, आम,
अनानास, फ्रेबिक कॉटन, साइक्लिक
हाइड्रोकॉर्बन, पेट्रोलियम गैस, पोर्टलैंड
सीमेंट, कॉपर वेस्ट
और स्क्रैप, कॉटन
यॉर्न जैसे 264 प्रमुख
उत्पादों का आयात
करता है। इसे
पाकिस्तान उरी, पुंछ
और मुज्जफराबाद तीन
रास्तों से भारत
से आयात करता
है। लेकिन उसे
ब्लैकलिस्टेड करना बेहद
जरुरी है। पाकिस्तान
की खुफिया एजेंसी
आईएसआई और पाकिस्तान
में बैठे आतंकी
आका कश्मीर घाटी
के युवाओं को
आतंकी राह पर
ले जाने के
लिए हमेशा नए-नए कदम
उठाते रहते हैं।
पिछले साल भर
में 90 से ज्यादा
युवकों ने अलग-अलग आतंकी
तंज़ीमों का रास्ता
चुना है। खुफ़िया
रिपोर्ट के मुताबिक
कुल 90 युवकों ने जिन्होंने
अलग-अलग आतंकी
संगठन का रास्ता
चुना है उनमें
से 14 आतंकी अनंतनाग
से हैं, 38 पुलवामा
से हैं, 23 शोपियां
से हैं और
15 कुलगाम से हैं।
सबसे ज्यादा 38 युवा
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा
जिले से अलग-अलग आतंकी
गुटों में शामिल
हुए हैं जिनमें
फिदायीन हमलावर आदिल अहमद
डार भी शामिल
था।
पाकिस्तान की खुफिया
एजेंसी आईएसआई का जैश
से सबसे नजदीकी
रहा है। अब
जैश-ए-मोहम्मद
के आतंकवादियों पर
सबसे ज्यादा भरोसा
कर रही है
और उन आतंकवादियों
को फिदायीन दस्ता
बनाकर कश्मीर घाटी
में बड़ी वारदात
को अंजाम देने
की कोशिश में
लगा हुआ है।
खुफिया रिपोर्ट से यह
जानकारी मिली है
कि पाकिस्तान की
खुफिया एजेंसी आईएसआई पाक
अधिकृत कश्मीर के तेजिन
में 100 से 150 जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों
को विशेष तरीके
की ट्रेनिंग चल
रहा है। पाकिस्तान
को यह दर्जा
साल 1996 में दिया
गया था। इसके
तहत पाकिस्तान को
भारत के साथ
ट्रेड करने में
जो छूट मिलती
है, वह बंद
हो गई। बता
दें कि जैश-ए-मोहम्मद
के सरगना मौलाना
मसूद अजहर को
पाकिस्तान की खुफिया
एजेंसी आईएसआई का समर्थन
हासिल है। इस
बात की पुष्टि
स्वयं भारत के
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत
डोभाल कर चुके
हैं कि 1999 के
कंधार विमान हाईजैक
की घटना में
आईएसआई ने तालिबानी
आंतकियों का समर्थन
किया था। इस
घटना में मसूद
अजहर समेत 3 आतंकी
छोड़े गए थे।
लेकिन पाकिस्तानी सेना
ने मसूद अजहर
और उसके साथियों
की गिरफ्तारी के
बजाय पंजाब प्रांत
में खुलकर इमरान
खान के समर्थन
में प्रचार करने
की छूट दे
दी
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