भदोही में ‘कालीन मेले’ से विदक सकते है ‘विदेशी खरीदार’, प्रभावित होगा 400 करोड़ का कारोबार
फिरहाल, कारपेट साधारण
सभा की बैठक
में कालीन मेला
आयोजन को लेकर
सीईपीसी की मंशा
पर सवाल उठाए
गए। एकमा अध्यक्ष
ओएन मिश्र ने
कहा कि उद्योग
मंदी के दौर
से गुजर रहा
है। बावजूद इसके
सीईपीसी भदोही के साथ
सौतेला व्यवहार कर रहा
है। कहा कि
परिषद को हर
संभव सहयोग का
वादा करने के
बाद भी भदोही
में 200 करोड़ की
लागत से बने
एक्सपो मार्ट में मेला
आयोजन से कतरा
रही है। अब्दुल
हादी ने कहा
कि मार्ट निर्माण
से सरकार की
मंशा मझोले और
लघु उद्यमियों को
आगे लाना था
लेकिन सीईपीसी मेला
आयोजन से बचने
के लिए नित
नए बहाने बना
रही है।
80 फीसदी
निर्यातक चाहते है बनारस
में लगे कारपेट
फेयर
भदोही
में नहीं है
विदेशी खरीदारों एवं अन्य
प्रांतों के निर्यातकों
की ठहरने की
व्यवस्था
सुरेश गांधी
बनारस। किसी भी
आयोजन की सफलता
उसके सुविधाओं पर
निर्भर करता है।
सुविधाएं मुहैया कराएं बगैर
ना सिर्फ उसमें
पहुंचाने वाले खिन्न
होते है, बल्कि
सालों तक लोगों
का उस आयोजन
से मोह भंग
हो जाता है।
खासकर तब जब
उस आयोजन से
ना सिर्फ करोड़ों
अरबों के कारोबार
होते हो बल्कि
सरकार के खजाने
में विदेशी मुद्रा
बढ़ती है। कुछ
ऐसा ही कालीन
निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी)
के तत्वावधान में
आयोजित होने वाले
चार दिवसीय इंडिया
कारपेट एक्सपो 2019 को लेकर
है। राजनीतिक प्रभाव
में आएं मुठ्ठीभर
कालीन निर्यातक चाहते
है इस बार
कारपेट फेयर भदोही
हो। जबकि 80 फीसदी
से अधिक कालीन
निर्यातक चाहते है कारपेट
फेयर का आयोजन
बनारस में हो।
बनारस में मेला
लगाने वालों का
तर्क है कि
हाल ही में
200 करोड़ की लागत
से बना एक्स्पो
मार्ट कारपेट स्टाल
लगाने के अनुरुप
नहीं है। उसमें
कहीं 90 स्क्वायर मीटर का
हाल है तो
कहीं एकदम छोटा।
साथ ही अगर
निर्यातक किसी साजिश
के दबाव में
भदोही मार्ट में
फेयर लगाने को
तैयार हो भी
जाएं तो 60 से
अधिक देशों से
आने वाले तकरीबन
300 सौ आयातकों एवं वाराणसी,
मिर्जापुर, आगरा, राजस्थान, पानीपत,
दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, मुंबई,
नेपाल आदि शहरों
के 400 से अधिक
भारतीय कालीन निर्माता ठहरेंगे
कहां। उनके ठहरने
के लिए भदोही
में ना होटल
है और ना
ही अन्य सुविधाएं।
ऐसी दशा में
निर्यातकों व आयातकों
को पंचसितारा होटलों
से लैस बनारस
में ही ठहरना
पड़ेगा।
खास बात
यह है कि
बनारस से भदोही
जाने में अगर
जाम का झाम
नहीं झेलना पड़ा
तो दो घंटे
का वक्त लगता
है। जबकि कोई
निर्यातक या आयातक
नहीं चाहेगा कि
उसका दो ढाई
घंटे का वक्त
यूं ही जाया
हो। खास बात
यह है कि
कारपेट फेयर एक
एसे प्लेटफार्म है
जिससे न सिर्फ
कालीन निर्यात दर
में वृद्धि होती
है बल्कि बड़े
पैमाने पर भारतीय
निर्यातकों की साल
भर तक की
कमाई का आर्डर
भी मिल जाता
है। ऐसे में
सात समुंदर पार
से आने वाले
आयातकों एवं स्टाल
लगाने वाले अन्य
प्रांतों के कारोबारियों
को असुविधा का
समाना करना पड़ा
तो फेयर से
उनका मोह भंग
भी हो सकता
है। जिसका असर
कारपेट बेल्ट के लाखों
बुनकरों पर भी
पड़ना तय है।
जबकि लगातार 18 साल
से सफल फेयर
कराने वाली सीइपीसी
कत्तई नहीं चाहेगी
उसकी साख पर
बट्टा लगे और
सुविधाओं के अभाव
में मेला फलाप
हो, कारोबार पर
असर पड़े।
गौरतलब है कि
पिछली सपा सरकार
में निर्यातकों की
डिमांड पर भदोही
में एक्स्पों मार्ट
का निर्माण हुआ
है। निर्माण के
तीन साल बाद
भी उसे फेयर
लगाने लायक अमली
जामा नहीं पहनाया
जा सका है।
लेकिन इसके निर्माण
में सपा के
नेता अपनी भूमिका
बताते है। वे
चाहते है कि
मार्ट का क्रेडिट
उन्हें तभी मिलेगा
जब उसमें मेला
कार आयोजन वरना
सफेद हाथी साबित
होगा। खासकर अखिलेश
यादव की किए
कराएं पर पानी
फिर जायेगा। यही
वजह है कि
सपा के कुछ
नेता मुठ्ठीभर निर्यातकों
पर अपना दबाव
बनाकर फेयर भदोही
मार्ट में ही
लगाने की इन
दिनों मांग कर
रहे है। उनकी
इस मांग में
अब अखिल भारतीय
कालीन निर्माता संघ
भी यह कहकर
शामिल हो गयी
है कि फेयर
भदोही में लगने
से निर्यातकों का
लाभ होगा। उन्हें
कारोबार करने में
आसानी होगी। विदेश
से आएं खरीदारों
को वे आसानी
से अपना शोरुम
व गोदाम में
जमा स्टाक दिखाकर
आर्डर ले सकते
है। लेकिन वे
भूल कर रहे
है कि कालीन
मेला आयोजित करने
वाली ईकाई सीइपीसी
सिर्फ भदोही तक
ही सीमित नहीं
है।
सीइपीसी के सदस्य
राजस्थान, पानीपत, जम्मू कश्मीर,
दिल्ली, मुंबई सहित पूरे
देश में है,
जो हर फेयर
में अपना स्टाल
लगाते है। और
जब वे भदोही
में स्टाल लगायेंगे
तो उनके समक्ष
ठहरने से लेकर
खाने पीने व
आवागमन के साथ
साथ कालीनों के
ट्रांसपोटेशन में भी
भारी दिक्कत का
सामना करना पड़ेगा।
क्योंकि भदोही में ना
तो इतनी बड़ी
संख्या में निर्यातकों
व आयातकों की
ठहरने की होटल
व्यवस्था नहीं है।
इसके अलावा दुसरे
प्रांतो से आने
वाले निर्यातकों को
कालीनों के ले
आने व ले
जाने में भी
वक्त के साथ
साथ किराया भी
अधिक खर्च करने
पड़ेंगे।
इसके अलावा
भदोही में बेइंतहा
बिजली कटौती व
उबड़-खाबड़ सड़के
बड़ी समस्या है।
यही वजह है
कि भदोही के
कुछ निर्यातकों समेत
एकमा की मांग
पर सीइपीसी ने
देशभर के समस्त
कालीन निर्यातकों को
ईमेल भेजकर उनकी
इच्छा जाने की
कोशिश की है
कि आखिर मेला
भदोही मार्ट में
लगे या बनारस
के संपूर्णानंद संस्कृत
विश्व विद्यालय ग्राउंड
में। सूत्रों की
माने तो अब
तक 80 फीसदी से
अधिक निर्यातकों ने
सीइपीसी को दिए
गए ईमेल जवाब
में फेयर बनारस
में ही लगाने
की सहमति प्रदान
की है।
बैठक
में एकमा के
पूर्व अध्यक्ष हाजी
शौकत अली अंसारी,
शाहिद हुसैन अंसारी,
गुलामन, मुश्ताक अंसारी, आलोक
बरनवाल, रवि पाटौदिया,
राजाराम गुप्ता आदि शामिल
थे। इस दौरान
जब मीटिंग में
शामिल कुछ निर्यातकों
से बात की
गयी तो उनका
साफ कहना था
मामला संघ है
इसलिए वो कुछ
बोल नहीं सकते,
लेकिन भदोही में
असुविधाओं को देखते
हुए वे भी
चाहते है कि
मेला बनारस में
ही लगे। क्योंकि
अगर एक बार
अन्य प्रांतो से
आने वाले निर्यातकों
व विदेशों से
आने वाले खरीदारों
को आवागमन से
लेकर ठहरने तक
में दिक्कत हुई
तो वे दोबारा
नहीं आना चाहेंगे।
उनके इस आक्रोश
का कोपभाजन मंदी
से गुजर रहे
कारपेट इंडस्ट्री को ही
उठाना पड़ेगा।
Gandhi's thinking is baseless and nonsence. Only I can say for Bhadohi industry it is not good.
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