‘तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को ‘आजादी’

सुरेश गांधी

बता दें,
गरीब परिवारों
से ही
तीन तलाक
की 75 फीसदी
महिलाएं पीड़ित
थी। अब
तक तलाक
देने के
काफी अजीब
कारण होते
रहे। कभी
सब्जी में
नमक नहीं
तो तलाक
दे दिया,
जो किसी
हैरतअंगेज से कम नहीं। तीन
तलाक बिल
लैंगिक समानता
और महिलाओं
के सम्मान
का मामला
है। तीन
तलाक कहकर
बेटियों को
छोड़ दिया
जाता है,
इसे सही
नहीं कहा
जा सकता।
इस सामाजिक
कुप्रथा को
खत्म करना
ही सरकार
के लिए
अंतिम विकल्प
था। हो
जो भी
सच तो
यही है
71 साल बाद
मुस्लिम महिलाओं
को सती
प्रथा जैसे
ट्रिपल तलाक
से आजादी
मिल गयी
है। इसके
लिए प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी
बधाई के
पात्र है।
तमाम उठापटक
के बीच
तीन तलाक़
की प्रथा
को गैर
कानूनी घोषित
करने में
मोदी सरकार
सफल रही।
इस कानून
में पत्नी
को इंस्टेंट
तीन तलाक
देने वाले
मुस्लिम शख्स
को तीन
साल सजा
का प्रावधान
है। मोदी
का मानना
है कि
इस बिल
से मुस्लिम
महिलाओं पर
अत्याचार रुकेगा
और उन्हें
समान अधिकार
मिलेगा। ’’प्रस्तावित कानून लिंग समानता
पर आधारित
है और
यह मोदी
सरकार के
सबका साथ,
सबका विकास,
सबका विश्वास
के सिद्धांत
का हिस्सा
है। मतलब
साफ है
अब बोलकर,
लिखकर या
किसी इलेक्ट्रॉनिक
माध्यम जैसे
मोबाइल, ईमेल
से दिया
गया तलाक
गैरकानूनी और अमान्य होगा। राष्ट्रपति
की मुहर
लगते ही
यह अध्यादेश
कानून के
तौर पर
काम करेगा।
बता दें
अब तीन
तलाक देना
अपराध है।
इसमें तीन
साल की
सजा का
प्रावधान है।
या यूं
कहें अगर
कोई पति
अपनी पत्नी
को एक
साथ तीन
तलाक देता
है। रिश्ता
पूरी तरह
से खत्म
कर लेता
है, तो
उस सूरत
में उसके
खिलाफ एफआईआर
होगी। एफआईआर
दर्ज होने
के बाद
पति की
गिरफ्तारी हो जाएगी। ये गिरफ्तारी
गैर-जमानती
होगी, यानि
मजिस्ट्रेट ही जमानत दे सकता
है। लेकिन
अग्रिम जमानत
नहीं मिल
सकती है।
सरकार के
इस फैसले
से उन
लाखों मुस्लिम
महिलाओं का
आत्मसम्मान बढ़ा है, जिनकी जिंदगी
तीन तलाक
से बर्बाद
हो गयी
थी। सच
तो यह
है कि
इस तरह
की कुरीतियां
पहले ही
खत्म हो
जानी चाहिए
थीं। एक
साथ तीन
तलाक पर
प्रतिबंध के
बाद धर्म
के नाम
पर पुरुष
आजादी का
नाजायज फायदा
नहीं उठा
पाएंगे। खासकर
तीन तलाक
के दौरान
हलाला के
लिए जो
शर्त रखी
जाती है,
उसे सभ्य
समाज में
कतई स्वीकार
नहीं किया
जा सकता।
लेकिन अब
शरीयत का
हवाला देकर
महिलाओं को
मर्जी के
खिलाफ संबंध
बनाने के
लिए कुछ
मौलबी मजबूर
नहीं कर
सकते।
महिला आयोग
में आने
वाले 80 फीसद
मामले मुस्लिम
समुदाय से
जुड़े होते
थे। अधिकतर
मामले पहली
बीवी को
छोड़कर दूसरी
महिला से
निकाह करने
के आते
थे। इस
फैसले से
मुस्लिम महिलाओं
के जीवन
स्तर में
सुधार आएगा।
क्योंकि तीन
तलाक का
दंश झेल
रहीं मुस्लिम
महिलाओं के
लिए यह
अध्यादेश घनघोर
अंधेरे में
उस किरण
की तरह
है, जिससे
बेटियों के
सुरक्षित भविष्य
की तस्वीर
साफ देखी
जा सकेगी।
इस फैसले
से आधी
आबादी को
न्याय मिलेगा।
महिला सशक्तीकरण
की दिशा
में की
गई बेहतर
शुरुआत है।
मुस्लिम महिलाओं
के साथ
हो रहे
अन्याय के
सिलसिले को
रोकने के
साथ ही
समाज सुधार
को गति
देने का
मार्ग भी
प्रशस्त किया
है। गौरतलब
है कि
ट्रिपल तलाक
में अब
दोष साबित
होने पर
आरोपी पति
को तीन
सालों के
लिए जेल
की सजा
हो सकती
है। ये
एफआईआर पीड़ित
पत्नी, उसके
खूनी और
करीबी रिश्तेदार
की तरफ
से ही
की जा
सकती है।
जिस महिला
को तीन
तलाक दिया
गया है
वो अपने
लिए और
अपने बच्चे
के लिए
गुजारा भत्ता
की मांग
कर सकती
है। साथ
ही अपने
नाबालिग बच्चे
को अपने
पास रखने
की मांग
कर सकती
है। गुजारा
भत्ता की
रकम और
बच्चे की
कस्टडी पर
फैसला मजिस्ट्रेट
लेंगे।
महत्वपूर्ण तथ्य
यह है
कि पाकिस्तान
समेत दुनिया
के 20 देश
से अधिक
देशों में
तीन तलाक
पर बैन
है। अब
भारत में
नरेंद्र मोदी
कैबिनेट ने
मुस्लिम महिला
(विवाह अधिकार
संरक्षण) विधेयक,
2019 को मंजूरी
दे दी
है। यह
बिल शादीशुदा
मुस्लिम महिलाओं
के अधिकारों
की रक्षा
करेगा और
’तलाक-ए-बिद्दत’ को रोकेगा।
लेकिन मुस्लिम
संगठनों की
हिमाकत करने
वाली पार्टियों
एवं मौलानाओं
को डर
है कि
मोदी सरकार
इस बिल
के जरिए
उनका उत्पीड़न
करेगी। एक
ख्याल यह
भी है
कि कहीं
यह कदम
कॉमन सिविल
कोड की
राह तो
नहीं खोलेगा।
लेकिन हमें
यह नहीं
भूलना चाहिए
कि मुसलमान
औरत भी
तो हिन्दुस्तान
में ही
है, हिन्दुस्तान
की है।
उसे हिन्दुस्तान
के हर
कानून का
फायदा मिलना
ही चाहिए।
उसे अपने
कानूनी हक
पता भी
होने चाहिए।
उसे पता
होगा, तभी
तो वह
कठमुल्लों की राजनीति को समझकर,
अपना इस्तेमाल
होने से
रोक पाएगी
और तभी
आगे बढ़
पाएगी। अपनी
जिंदगी खुलकर
जी पाएगी।
भारतीय औरत
अब पहले
वाली औरत
नहीं रही।
वहां की
मुसलमान औरत
भी न
सिर्फ अब
अपने हक
से वाकिफ
है, बल्कि
मुल्ला-मौलवियों
के फरेब
को भी
समझने लगी
है। वह
बेचैन है
अपनी सीरत
बदलने के
लिए। तो
ऐसे में
औरत तो
सोचेगी ही,
मुस्लिम मर्दो
को भी
अपनी सोच
बदलनी होगी।
सोशल प्लेटफॉर्म
पर भी
वह सक्रिय
दिखी है।
मुस्लिम महिलाएं
जिस तरह
से अपनी
बात कह
रही हैं,
उसका स्वागत
होना चाहिए।
इस फैसले
के बाद
उसके जेहन
में आई
जुंबिश को,
मर्दो को
समझना होगा।
उन्हें समझना
होगा कि
एक नई
दुनिया बनानी
है, तो
यह औरत
को साथ
लेकर ही
हो सकता
है। नई
दुनिया का
सपना औरत
को दबाकर,
उसके अरमानों
को कुचलकर
पूरा नहीं
हो सकता।
असल जिम्मेदारी
मुस्लिम नौजवानों
के कांधे
पर है।
नई पीढ़ी
को समझना
होगा कि
औरत क्या
है? उसका
हक क्या
है और
यह भी
कि औरत
को न
समझकर, उसके
हकों पर
पानी डालकर
वह भी
तरक्की नहीं
कर सकता।
मुस्लिम औरत
ने गुरबत
देखी है।
उसने इसके
खिलाफ लड़ाई
लड़ी है।
सिलाई-कढ़ाई
की है,
लिफाफे बनाए
हैं, मसाले
कूटे हैं।
खुद पढ़ी,
दूसरों को
पढ़ाया भी
है। यानी
जाहिली से
जहीनीयत तक
का लंबा
सफर उसने
तय किया
है। यह
उसके जज्बे
और जुनून
का नतीजा
है। मर्द
को तो
कभी कोई
लड़ाई न
लड़नी पड़ी,
न उसने
कभी लड़ी।
औरत अपनी
लड़ाई लड़कर
यहां तक
आई है।
वह आगे
भी अपनी
लड़ाई खुद
लड़ेगी। आज
के नौजवानों
को बस
उसकी लड़ाई
को समझना
होगा। यह
एक नई
राह खुली
है। इस
राह की
रोशनी में
चलना होगा।
आज का
दिन यकीनी
तौर पर
मुस्लिम समाज
की आधी
आबादी के
संघर्ष और
उसकी खुशी
को सल्यूट
करने का
है। उसके
लिए ईद
के जश्न
जैसा है।
बहुत अलग
होता है
देख कर
कुछ कहना
और जी
कर कुछ
कहना। तीन
तलाक की
पीड़ा इन
औरतों ने
भोगी है।
इन्हें घर
से बेघर
किया गया
है। सड़कों
पर फेंका
गया है।
सदियों तक
दिए जाने
वाले धार्मिक
हवाले उन्हें
डराते रहे
हैं और
काबू में
रखने की
कोशिश करते
रहे हैं।
उनकी तकलीफ
किसी ने
नहीं सुनी।
फिर आखिरकार
वे बगावत
पर उतर
आईं और
अब मजहबी
हवाले उन्हें
डरा नहीं
रहे। इस
दौरान जितनी
भी पीड़ा
मुसलमान औरतों
ने मौलवियों
की तरफ
से झेलीं।
इस फैसले
के बाद
उन्हें माफ
करते हुए
आगे बढ़ना
होगा। अभी
इस तरह
की कई
अमानवीय प्रथाएं
हैं। जिनके
खिलाफ उन्हें
लामबंद होना
है। हलाला
भी ऐसी
ही प्रथा
है। दीन
के नाम
पर चल
रहे इस
रिवाज की
पड़ताल ने
मेरी कायनात
को झकझोर
कर रख
दिया।
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