नाटी इमली की भरत मिलाप में उमड़ी आस्थावानों का सैलाब
क्या छत, गली, सड़क हर ओर भक्त अलौकिक छठा को नयनों में बसाने के लिए आतुर दिखे
काशी नरेश के वंशज कुंवर अनन्त नारायण सिंह के हाथों लीला का हुआ शुभारंभ
सुरेश
गांधी
वाराणसी।
’परे भूमि नहिं
उठत उठाए, बर
करि कृपासिंधु उर
लाए। स्यामल गात
रोम भए ठाढ़े,
नव राजीव नयन
जल बाढ़े‘।। जानहि
राम सकहि बखानी...।‘ रामायण के इस
चौपाई के बीच
बुधवार को काशी
की 476 साल पुरानी
विश्व प्रसिद्ध नाटी
इमली के भरत
मिलाप की परंपरा
गोधूलि बेला में
संपन्न हुई। गोधूली
बेला में जब
भगवान राम, लक्ष्ण,
भरत व शत्रुघ्न
आपस में गले
मिले तो इस
मनोरम दृश्य देख
लोगों की आंखे
भर आई। राजा
रामचंद्र समेत चारों
भाईयों के जयकारे
से पूरा परिसर
गूंजायमान हो गया।
चारों भाईयों के
इस पांच मिनट
की अलौकिक व
मनोरम दृश्य को
निहारने के लिए
बड़ी संख्या में
श्रद्धालुओं का रेला
उमड़ा था।
लीला के
लिए क्या छत,
गली, सड़क हर
ओर भक्त अलौकिक
छठा को नयनों
में बसाने के
लिए आतुर दिखे।
इस मौके पर
हाथी पर सवार
काशी नरेश के
वंशज कुंवर अनन्त
नारायण सिंह के
हाथों लीला का
शुभारंभ किया गया।
प्रभु श्रीराम का
रथ खीचने वाले
बंधुओं द्वारा जयश्रीराम जयश्रीराम
का उद्घोष पूरे
वातावरण को भक्तिरस
से सराबोर हो
गया। आसपास के
घरों की छतों
से फूलों की
वर्षा होती रही।
मैदान में भरत
मिलाप एवं राम
के राजतिलक प्रसंग
की प्रस्तुति दी
गई। इस दौरान
भव्य शोभायात्रा निकाली
गई। रथ पर
सवार राम, लक्ष्मण,
सीता, हनुमान, भरत,
शत्रुघ्न समेत अन्य
देवी-देवताओं का
जगह-जगह स्वागत
किया गया। लोगों
ने शोभायात्रा में
शामिल चारों भाईयों
को भगवान की
प्रतिमूर्ति मानकर उन्हें नमन
किया।
बता दें,
14 वर्षों तक पादुकाओं
का पूजन कर
चुके भरत अंतिम
दिन विरह सागर
में डूब कर
प्राणांत करना चाहते
थे, पर प्रभु
ने इस दर्द
को समझ लिया।
तब हनुमान जी
को भेज कर
अपने आगमन का
मंगल संदेश दिया
और भूमि पर
प्रणाम कर रहे
भरत को गले
से लगा लिया।
कहते है इस
दिन जब सूरज
डूबता है तब
भगवान का अंश
यहां के राम
लक्ष्मण में आ
जाता है। खासियत
यह है कि
यहां बनने वाले
राम, लक्ष्मण, भरत
व शत्रुघ्न सप्ताहभर
पहले से अन्न
सहित अन्य भोग
विलासता वाली वस्तुओं
का त्याग कर
देते है। गंगा
स्नान, पूजा-पाठ
व फल आदि
का ही सेवन
करते है। सदियों
पुरानी परंपरा का निर्वहन
करते हुए यादव
समुदाय के बहुत
से लोग मिलकर
खास तरह की
लकड़ियों से तैयार
10 टन वजन के
पुष्पक विमान को अपने
कंधों पर उठाते
हैं।
आंखों में काजल,
माथे पर चंदन,
माथे पर लाल
पगड़ी में सज-धज सफेद
पोशाक पहने यादव
बंधु विमान को
अपने कंधों से
खींच कर लीला
स्थल पर चारों
दिशाओं में भगवान
के दर्शन को
घंटों से व्याकुल
श्रद्धालु नजदीक से दर्शन
कराते हैं। विमान
पर भवान राम
एवं उनके भाइयों
का नजदीक से
दर्शन करने वाले
लोग अपने को
सौभ्यशाली मानते हैं और
इसी वजह से
वे घंटों पहले
लीला स्थल पर
पहुंच जाते हैं।
श्रीचित्रकूट रामलीला समिति के
तत्वावधान में भरत
मिलाप की यह
लीला विगत 475 वर्षों
से अनवरत होती
आ रही है।
लीला के 476वें
संस्करण के लिए
भरत मिलाप मैदान
सजाया गया। भीड़
नियंत्रित करने के
लिए मैदान से
मुख्य मार्ग की
ओर बैरिकेडिंग भी
लगाई गई। इस
अद्भुत क्षण को
देखने के लिए
लाखों श्रद्धालु आए।
चारों भाइयों का
मिलन देख पूरी
जनता भगवान राम
और बाबा भोलेनाथ
के जयकारे लगाने
लगे। चित्रकूट की
रामलीला में परंपरा
अनुसार आश्विन शुक्ल एकादशी
को भरत मिलाप
का आयोजन होता
है।
14 वर्ष के
वनवास के दौरान
भगवान राम दशानन
का वध करने
के बाद अयोध्या
की ओर लौटते
हैं। पत्नी सीता
और भाई लक्ष्मण
के साथ पुष्पक
विमान पर सवार
होकर मर्यादा पुरुषोत्तम
राम भरत मिलाप
मैदान पर पहुंचते
हैं। काशी की
परंपरा के अनुसार
नाटी इमली मैदान
में शाही सवारी
पर राज परिवार
के अनंत नारायण
आते हैं। उन्होंने
प्रभु राम, भाई
लक्ष्मण और माता
सीता के पुष्पक
विमान की परिक्रमा
कर नेग दिया।
वहां उपस्थित लाखों
की संख्या में
श्रद्धालु भगवान के जयकारे
लगाए। इस मौके
पर स्टांप शुल्क
पंजीयन मंत्री स्वतंत्र प्रभार
रवीन्द्र जायसवाल सपरिवार मौजूद
थे।
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