कान्हा के ‘रमन रेती’ में ‘लोटने’ मात्र से दूर जाते है शरीर के सारे ‘कष्ट’
सुरेश गांधी
भारत की आध्यात्मिक
विरासत में मथुरा का
गोकुल चमत्कार की ढेरों कहानियां
समेटे इस बात का
गवाह है कि भगवान
श्रीकृष्ण ने अपना बचपन
यहीं बीताया था। ‘रमन रेती’
वह स्थल है जहां
भगवान कृष्ण ने ग्वाल बालों
के साथ अपनी दिव्य
लीलाएं कीं थी। इस
पवित्र भूमि के कण-कण से भगवान
कृष्ण के चरणों की
यादें जुड़ी हैं। यह
उन श्रद्धालुओं और पर्यटकों के
लिए आकर्षण का केंद्र है
जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं
की भूमि का स्पर्श
करना चाहते हैं। रमन रेती
दो शब्दों से बना है,
‘रमन’ यानी ‘मस्ती-आमोद-प्रमोद’ और
‘रेती’ यानी ‘रेत’। यह
स्थान भगवान कृष्ण की उन लीलाओं
के लिए जाना जाता
है जब वे राधा
और अन्य गोपियों के
साथ रास किया करते
थे। यहीं पर वह
अपने बड़े भाई बलराम
और सखाओं के साथ विभिन्न
खेल भी खेला करते
थे।
एक पौराणिक कथा
के अनुसार, एक बार माता
यशोदा ने कृष्ण को
बालू खाने से रोकने
के लिए उनके हाथ
बांध दिए थे। कृष्ण
ने तब अपनी लीला
दिखाई और जब उनके
मुंह से रेत निकलने
लगी तो माता यशोदा
को पूरे ब्रह्मांड के
दर्शन हुए। रमन रेती
की रेत को अत्यंत
पवित्र माना जाता है,
और भक्त यहां रेत
में लेटकर कृष्ण भक्ति में डूब जाते
हैं। रमन रेती की
पवित्र रेत में चमत्कारी
उपचार शक्तियां हैं। जो लोग
जोड़ों के दर्द और
अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं
वे दर्द और पीड़ा
से राहत पाने के
लिए यहां की रेत
पर चलते हैं। यह
रेत किसी भी कंकड़-पत्थर से रहित है
और इस पर चलना
आरामदेह है। यहां आकर
तीर्थयात्रियों के मन में
शांति और सुकून की
अनुभूति होती है। श्रद्धालुओं
का कहना है कि
ब्रज की पवित्र रेत
जब शरीर को छूती
है तो वे धन्य
महसूस करते हैं। उनकादृढ़
विश्वास है कि श्री
कृष्ण के पैरों के
निशान आज भी रमण
रेती की पवित्र रेत
में अंकित हैं। खास यह
है कि रमन रेती
की रेत कपड़ों से
चिपकती नहीं है।
कहते है रमन
रेती में प्रसिद्ध भक्त-कवि रसखान ने
भी साधना की थी और
उनकी समाधि आज भी यहां
मौजूद है। मंदिर परिसर
के अंदर एक प्राचीन
रमन बिहारी जी का मंदिर
भी है। यहां राधा-कृष्ण की मनमोहक अष्टधातु
की मूर्तियों के भी दर्शन
होते हैं। रमन रेती
में एक गौशाला है,
जहां गायों की बड़ी संख्या
में देखभाल की जाती है।
भक्त इन्हें चारा खिलाना पुण्य
का कार्य मानते हैं। यहां होली
का उत्सव रंगों के बजाय रेत
के साथ मनाया जाता
है। भक्त एक-दूसरे
पर और भगवान की
मूर्तियों पर पवित्र रेत
फेंकते हुए होली का
पर्व धूमधाम से मनाते हैं।
बता दें, गुरु शरणानंद
जी महाराज का मथुरा में
गोकुल के नजदीक ‘श्रीउदासीन
कार्ष्णि आश्रम’ स्थित है, जिसे रमणरेती
आश्रम के नाम से
भी जाना जाता है।
स्वामी ज्ञानदासजी ने रमन रेती
में 12 वर्षों तक कठोर तपस्या
की थी, जिसके बाद
कृष्ण भगवान स्वयं उनके समक्ष प्रकट
हुए थे। यहां एक
हिरण पार्क भी है। यहां
चित्तीदार हिरण और काले
हिरण देखे जा सकते
हैं।
रमन रेती के ठीक पीछे रमन सरोवर है, जहां रोजाना हजारों श्रद्धालु स्नान करते हैं। इसे श्री बिहारी जी कुंड मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। कहते है श्री कृष्ण ने कई चमत्कार दिखाए या यूं कहें अपनी लीलाएं कीं। उनकी एक बाल लीला तब हुई जब श्री कृष्ण को मां यशोदा ने मिट्टी खाने के बाद डांटना चाहा तो उनके मूंह में ब्रह्मांड देखा। जिस स्थान पर यह चमत्कार हुआ था, उसे अब ब्रह्माण्ड घाट के नाम से जाना जाता है। कहते है जो व्यक्ति ब्रह्माण्ड घाट के दर्शन करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। भक्तगण दिव्य यमुना नदी से जल की बूंदें अपने ऊपर भी छिड़कते हैं। ब्रह्माण्ड मंदिर ब्रह्माण्ड घाट के परिसर में स्थित है। ब्रह्माण्ड मंदिर के पास पवित्र पीपल के पेड़ की पूजा महिलाएं करती हैं। रमन रेती के पास ही चिंताहरण घाट है।
कहते है जब
यशोदा मां ने शिशु
कृष्ण जी के मुंह
में ब्रह्मांड को देखा, तो
वे चिंतित हो गईं। वे
चिंताहरण घाट की ओर
चल पड़ीं और यहीं
पर उनकी सारी चिंताएं
दूर हो गईं। चिंतेश्वर
महादेव मंदिर में 1,111 लिंग हैं। अगर
आप ध्यान से देखेंगे तो
पाएंगे कि एक शिवलिंग
में 1,111 छोटे-छोटे शिवलिंग
खुदे हुए हैं। यहाँ
मां यशोदा की मूर्ति की
पूजा की जाती है,
जिसमें वे कृष्ण जी
के कान खींचती हैं,
क्योंकि वे बहुत शरारती
थे। हनुमान जी, दाऊजी (कृष्ण
जी के भाई) और
उनकी पत्नी रेवती की मूर्तियों की
भी यहां पूजा की
जाती है। महावन, जिसे
पुरानी गोकुल के नाम से
भी जाना जाता है,
एक छुपा हुआ रत्न
है। महावन अपनी खीर मोहन
मिठाई के लिए जाना
जाता है। महावन में
योगमाया मंदिर, मथुरा नाथजी मंदिर, श्यामलालजी मंदिर और चौरासी खंभा
मंदिर हैं।
द्वारिकाधीश मंदिर
मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही हैं, जो कि सोने व चांदी के हैं। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। मंदिर की वास्तुकला, राजस्थान की हवेलियों से काफ़ी मिलती-जुलती है। मंदिर का विशाल अग्रभाग, जिसमें मेहराबदार प्रवेशद्वार और जालीदार खिड़कियां हैं। श्रृंगार आरती के दौरान मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
भगवान कृष्ण को समर्पित “द्वारकाधीश
मंदिर” का निर्माण 1814 में
एक कृष्ण भक्त द्वारा करवाया
गया था। यार्ड के
ठीक सामने गर्भगृह है जहां द्वारकाधीश
जी की पवित्र मूर्ति
स्थापित है। मंदिर में
“द्वारकाधीश के राजा” के
दर्शन के साथ साथ
दीवारों और आंगन की
छत पर सुंदर पेंटिंग
भी देखी जा सकती
है जिनमे कृष्ण के जन्म के
दृश्य और कई अन्य
लोगों द्वारा उनके द्वारा रास
नृत्य के प्रदर्शन को
दिखाया गया है। मंदिर
में मुख्य मूर्ति के अलावा, कई
अन्य हिंदू देवताओं और छोटे तुलसी
के पौधे को भी
देख सकते हैं जो
भगवान के प्रिय हैं
और उनके भक्तों के
लिए अत्यधिक पूजनीय हैं। हिंडोला उत्सव
द्वारकाधीश जगत मंदिर का
प्रसिद्ध उत्सव है जिसे “झुला उत्सव”
के नाम से भी
जाना जाता है। इस
उत्सव में राधा रानी
और कृष्णा जी की मूर्ति
को सोने चांदी से
लेकर, फूल पत्ती, जरी,
रंग बिरंगे वस़्त्रों से लेकर फलों
से मिलकर बने हिंडोला या
झूले में रखा जाता
है और उन्हें झुलाया
जाता है।
गोकुल घाट
यमुना मतलब कान्हा की
पटरानी। यमुना की लहरों से
अठखेलियां करने को श्रद्धालु
लालायित रहते हैं। गोकुल
वह स्थान हैं, जहां उन्हें
कंस के कारागार में
जन्म के बाद पिता
वसुदेव यमुना पार कर मैया
यशोदा के पास लाए
थे। गोकुल के घाटों पर
ही साथियों संग कान्हा यमुना
में अठखेलियां करते थे। इसी
यमुना में उन्होंने कालिया
नाग का मर्दन किया
था। गोकुल का ठकुरानी और
मुरलीधर घाट आज खिलखिला
रहे हैं। यहां से
यमुना में बोटिंग का
आनंद भी पर्यटकों को
मिल रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु
शाम को यहां पहुंचते
हैं और समय बिताते
हैं।
विश्राम घाट
ब्रह्मांड घाट
ब्रह्मांड घाट वही स्थान
है, जहां के बारे
में मान्यता है कि भगवान
श्रीकृष्ण ने यहां मिट्टी
खाई तो मैया यशोदा
ने उससे मुंह खोलने
को कहा, जब कान्हा
ने मुंह खोला तो
मैया को मुख के
अंदर मिट्टी के स्थान पर
ब्रह्मांड दिखाई दिया। इसीलिए स्थान को ब्रह्मांड घाट
के नाम से जाना
जाता है। घाट पर
स्थित भगवान श्रीकृष्ण के ब्रह्मांड बिहारी
मंदिर पर मिट्टी के
लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
चौरासी खंबा मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव और देवकी को कंस द्वारा बंदी बना लेने के उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी मां यशोदा के साथ भगवान श्री कृष्ण इसी घर में रहा करते थे। यही कारण है इस मंदिर में श्रीकृष्ण का बाल रूप मौज़ूद है। दरसअल गोकुल के नंद भवन मंदिर जिसे चौरासी खंबा मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है जिस तरह मथुरा के द्वारकाधीश और वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर में जाने के लिए तंग गलियों से गुज़रना पड़ता है, ठीक उसी तरह इस मंदिर तक जाने वाला रास्ता है।
मान्यताओं की मानें तों कहा जाता है बलराम जी के जन्म के उपरांत देवी यशोदा यहां कुछ ही समय के लिए रही थीं। तो मंदिर की खासियत की बात करें तो चौरासी खंबार नामक इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव और देवकी को कंस द्वारा बंदी बना लेने के उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी मां यशोदा के साथ भगवान श्री कृष्ण इसी घर में रहा करते थे। यही कारण है इस मंदिर में श्रीकृष्ण का बाल रूप मौज़ूद है। इसके अलावा भी यहां इनकी अनेकों मूर्तियां रखी हुई हैं जिसमें से एक मूर्ति के बारे में मान्यता प्रचलित है यह प्रतिमा ज़मीन से अपने-आप निकली थीं। इसके अतिरिक्त इस मंदिर के पास में ही एक गौशाला भी है।
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