बरसाना : आज भी होता है राधाकृष्ण की मौजूदगी का अहसास
मथुरा
और
वृंदावन
भले
ही
भगवान
श्रीकृष्ण
की
लीलास्थली
हो
लेकिन
बरसाना
को
राधा
रानी
के
लिए
जाना
जाता
है।
यहीं
पर
राधा
का
जन्म
हुआ
था.
जो
राधा
कृष्ण
के
प्रेम
का
प्रमुख
केन्द्र
बिन्दु
है.
आज
भी
यहां
का
राधा
रानी
मंदिर
इसकी
कहानी
कहता
है।
यह
मंदिर
राधा
रानी
को
समर्पित
है।
यहां
एक
साथ
राधा
कृष्ण
की
पूजा
की
जाती
है।
मंदिर
भानुगढ़
पहाड़ी
की
चोटी
पर
है।
ढाई
सौ
मीटर
की
ऊंचाई
बने
इस
मंदिर
से
राधाष्टमी
और
लठमार
होली
खेली
जाती
है,
जिसे
देखने
भारत
ही
नहीं
सात
समुंदर
पर
से
भी
सैलानी
पहंचते
है।
इस
मंदिर
को
बरसाने
की
लाड़ली
का
मंदिर
और
राधा
रानी
का
महल
भी
कहा
जाता
है।
बता
दें,
राधाकृष्ण
ने
नंदगांव-बरसाना
में
बचपना
की
लीलाएं
की
हैं।
इसमें
से
एक
लठामार
होली
प्रमुख
है,
जिसे
अभी
दोनों
गांव
के
लोग
जीवंत
किए
हुए
हैं।
आज
भी
होली
खेलने
के
दौरान
राधाकृष्ण
के
होने
का
अहसास
होता
है।
राधा
भगवान
श्रीकृष्ण
की
आह्लादिनी
शक्ति
एवं
निकुंजेश्वरी
मानी
जाती
हैं।
इसलिए
राधा
किशोरी
के
उपासकों
का
यह
अतिप्रिय
तीर्थस्थल है। लट्ठमार होली
में
राधारानी
के
गांव
बरसाने
की
गोपियां
और
नंदगांव
के
ग्वाले
होली
खेलते
हैं।
एक
दिन
बरसाने
में
नंदगांव
के
युवक
जाते
हैं
और
बरसाने
की
हुरियारिन
उन
पर
लट्ठ
बरसाती
हैं
और
दूसरे
दिन
बरसाने
के
युवक
नंदगांव
पहुंचकर
लट्ठमार
होली
की
परंपरा
को
निभाते
हुए
ढाल
से
अपना
बचाव
करते
हैं
सुरेश गांधी
वैसे तो हमारे देश में राधा देवी के अनेक मंदिर हैं, मगर इन सभी में मथुरा के बरसाना में स्थित राधा रानी का मंदिर सर्वप्रमुख है। यह स्थान श्रीकृष्ण भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। बरसाना की राधा रानी और भगवान कृष्ण को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है। भले ही उनकी शादी नहीं हुई थी। मगर वे दुनियाभर में प्यार का प्रतीक कहलाते हैं। साथ ही राधा रानी को श्रीकृष्ण की आत्म कहा जाता है। राधा रानी का जन्म भले ही बरसाना से 50 किमी दूर रावल में हुआ है, लेकिन वे बरसाना में ही पली-बढ़ी है। भगवान श्रीकृष्ण की तरह वे भी अजन्मीं थी। उनके पिता श्री ब्रषभानु और माता कीर्ति थी। पूर्वजन्म में कीर्ति ही कलावती थी। राधा रानी का जन्म जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इसलिए बरसाना के लोगों के लिए यह जगह और दिन बहुत महत्वपूर्ण है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है।
पौराणिक मान्यताएं
आज भी गूंजती है राधारानी के पायल की झंकार
बरसाना में उनकी तमाम
बाल लीलाओं के निशान आज
भी मौजूद है। ब्रह्मांचल पर्वत
के मध्य स्थित गहवरवन
जो लताओं व पताओ से
घिरा है। जिसे राधारानी
ने स्वयं अपने हाथों से
लगाया था। इसी वन
में राधारानी अपनी सहचरियों के
साथ नित्य विहार करती थी। यहां
तक कि भगवान श्रीकृष्ण
ने भी कई बार
गहवरवन की लताओं पताओ
के बीच राधारानी व
उनकी सखियों के साथ रास
रचाया था। गहवरवन के
आसपास तमाम लीला स्थल
है। दानगढ़, मोरकुटी, मानगढ़ जहां भगवान श्रीकृष्ण
व राधारानी ने अपनी तमाम
बाल लीलाएं की थी। आज
भी यह बाल लीलाएं
बूढ़ी लीला महोत्सव के
दौरान जीवंत हो उठती है।
गहवरवन में साधना करने
वाले साधु संता का
कहना है कि रात
के अंधेरों में आज भी
छोटी सी बच्ची की
आवाज सुनी जाती है,
लेकिन उन्हें कोई दिखाई नहीं
देता।
गहवरवन के वास कौ आस करे शिव शेष।
ताकि महिमा कौ कहे जहां कृष्ण धरे सखी भेष।।
राधारानी का सबसे प्रिये
बरसाना का गहवर वन
जिसे खुद उन्होंने अपने
हाथों से सजाया संवारा
था। लता पताओ से
घिरे गहवरवन के कुंजन वन
में आज भी बृषभान
दुलारी के पायलों की
झंकार सुनाई देती है। गहवरवन
में वास करने वाले
तमाम संतो ने रात
के अंधेरों में पायलों की
झंकार सुनी है। मंदिर
के पुजारियों का कहना है
कि उन्होंने कई बार रात
के अंधेरों में पायलों की
झंकार सुनी, लेकिन जब कुटिया से
बाहर निकलकर देखा तो कोई
भी नजर नहीं आता।
गोवर्धन पर्वत की तरह बरसाना
के गहवरवन की भी परिक्रमा
लगाई जाती है। यह
परिक्रमा लगभग चार किमी
की होती है। उक्त
परिक्रमा में ब्रह्मांचल पर्वत
के चारों शिखरों दानगढ़, मानगढ़, भानगढ़, विलासगढ़ के दर्शन होते
है। कहते है गोवर्धन
की सात परिक्रमा व
गहवरवन की एक परिक्रमा
का बराबर महत्व माना जाता है।
मान्यता है कि ब्रह्मांचल
पर्वत ब्रह्मा जी का ही
स्वरुप है। पर्वत के
चारों गढ़ ब्रह्माजी के
मुख व गहवरवन वक्ष
स्थल है।
कीर्ति मंदिर
बरसाना स्थित कीर्ति मंदिर को रंगीली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर परिषद के भीतर भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों की सुंदर झांकिया बनी हुई हैं. इस मंदिर का निर्माण जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने करवाया था. मंदिर के गर्भगृह में राधा की मां कीर्ति स्थापित हैं. यहां हर रोज हजारों की संख्या में पर्यटक भगवान के दर्शन करने आते हैं. कीर्ति मंदिर दुनिया का इकलौता मंदिर जहां मां की गोद में सो रही हैं। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
कीर्ति मंदिर बरसाने का एक खास मंदिर है जो देवी राधा और उनकी मां को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे के दोनों तरफ अष्ट सखियां लाडलीजी को निहारती नजर आएंगी। यहां आपको विभिन्न क्षाकियां भी देखने को मिलेंगी। राधा रानी को झूला झुलाते श्रीकृष्ण की झांकी बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। सखियों के साथ रासलीला करते राधा कृष्ण की झांकी पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह मंदिर करीब 13,200 वर्ग फीट में फैला हुआ है। मंदिर के गुंबद में 25 स्वर्ण कलश लगाए हैं। मंदिर की छत पर इटेलियन मार्बल लगा हुआ है।
नंद गांव
बरसाना से तकरीबन नौ किमी की दूरी पर नंद गांव है. यहां स्थित मंदिर तकरीबन पांच हजार साल पहले का है। यहीं पर नंद और यशोदा का घर हुआ करता था. मंदिर के गर्भ गृह में यशोदा, नंद और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा विराजमान है. बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहां भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुंदर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। राधाजी को लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग का भोग लगाया जाता है और उस भोग को सबसे पहले मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। इस अवसर पर राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाअष्टमी का त्योहार मनाते हैं।
पौराणिक कथानुसार,
श्रीकृष्ण का जन्म होने
के बाद गोकुल गांव
में कंस का अत्याचार
बढ़ने लगा था। ऐसे
में लोग परेशान होकर
नंदबाबा के पास पहुंचे।
तब नंदराय जी ने सभी
स्थानीय राजाओं को इकट्ठा किया।
उस समय वृषभान बृज
के सबसे बड़े राजा
थे। उनके पास करीब
11 लाख गाय थी। तब
उन्होंने मिलकर गोकुल व रावल छोड़ने
का फैसला किया था। तब
गोकुल से नंद बाबा
और गांव की जनता
जिस पहाड़ी पर पहुंचे उसका
नाम नंदगांव पड़ गया। दूसरी
और वृषभान, कृति और राधारानी
जिस पहाड़ी पर गए उसका
नाम बरसाना पड़ गया। धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार, आज
भी पेड़ के रूप
में राधा रानी और
भगवान श्रीकृष्ण वहां पर मौजूद
है। बगीचे में एक साथ
दो पेड़ बने हुए
है जिसमें एक का रंग
श्वेत यानि सफेद और
दूसरे का रंग श्याम
यानि काला है। ऐसे
में ये पेड़ राधा-कृष्ण के प्रेम का
प्रतीक माने जाते हैं।
कहा जाता है कि
आज भी राधा-कृष्ण
पेड़ के रूप में
यमुना नदी को निहारते
हैं। साथ ही आज
भी इन पेड़ों की
पूजा की जाती है।
प्रेम सरोवर
नंद गांव और
बरसाना के बीच प्रेम
सरोवर स्थित है. गर्ग पुराण
के अनुसार एक बार राधा
ने यहां पर कृष्ण
से मिलने आई लेकिन उस
दिन कृष्ण नहीं आए. तब
उनके वियोग में राधा रोने
लगी और उनके आंशु
की धारा से इस
सरोवर का निर्माण हुआ
था.
मोरकुटी
बरसाना के मोरकुटी में
राधा मयूरों को नृत्य सिखाती
थीं. यहां कभी-कभी
भगवान श्रीकृष्ण भी मोर बनकर
राधा से नृत्य सीखा
करते थे। मान्यता है
कि गोपियां इसी मार्ग से
दही-मक्खन बेचने जाया करती थी।
यहीं पर कभी-कभी
कृष्ण उनकी मटकी छीन
लिया करते थे। बरसाना
का पुराना नाम ’ब्रह्मासरिनि’ भी
कहा जाता है। ’राधाष्टमी’
के अवसर पर प्रतिवर्ष
यहां मेला लगता है।
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