काशी में होता है पाताल लोक के नागकूप का दर्शन
नागपंचमी
श्रावण
मास
के
शुक्ल
पक्ष
की
पंचमी
तिथि
को
मनाई
जाती
है।
इस
बार
नाग
पंचमी
09 अगस्त
को
मनाई
जाएगी.
इस
दिन
भगवान
शिव
के
गण
माने
जाने
वाले
नागों
की
पूजा
की
जाती
है.
भगवान
शिव
का
जलाभिषेक
किया
जाता
है।
इस
दिन
नागदेवता
की
पूजा
करने
और
रुद्राभिषेक
करने
का
खास
महत्व
होता
है।
इस
दिन
नागदेवत
को
दूध
और
लावा
चढ़ाकर
उनकी
पूजा
की
जाती
है।
कुछ
लोग
व्रत
भी
करते
हैं।
पंचमी
का
आरंभ
8 अगस्त
को
मध्यरात्रि
12 बजकर
37 मिनट
से
होगा।
इसका
समापन
9 अगस्त
को
रात
को
3 बजकर
15 मिनट
से
होगा।
इस
तरह
उदया
तिथि
के
अनुसार,
नागपंचमी
का
त्योहार
9 अगस्त
को
धूमधाम
से
मनाया
जाएगा।
पंचम
तिथि
सुबह
05.47 से
08.26 तक
रहेगा.
कुल
मिलाकर
2 घंटे
39 मिनट
के
लिए
पूजा
का
मुहूर्त
है.
दोपहर
में
12 बजकर
13 मिनट
से
1 बजे
तक
का
समय
भी
पूजा
के
लिए
शुभ
है।
इसके
बाद
प्रदोष
काल
में
भी
पूजा
का
शुभ
महूर्त
शाम
को
6 बजकर
33 मिनट
से
रात
को
8 बजकर
20 मिनट
तक
रहेगा।
नागपंचमी
के
दिन
हस्त
नक्षत्र
के
शुभ
संयोग
में
शिव
वास
योग,
साध्य
योग
और
सिद्ध
योग
का
शुभ
संयोग
बन
रहा
है।
कहते
है
जिन
लोगों
की
कुंडली
में
कालसर्प
दोष
या
फिर
राहु-केतु
से
संबंधित
कोई
दोष
हो
तो
नाग
पंचमी
के
दिन
नाग
देवता
की
पूजा
जरूर
करनी
चाहिए.
कहा
जाता
है
कि
ऐसा
करने
से
सर्पदंश
की
रक्षा
होती
है।
साथ
ही
आपके
घर
से
सांप
के
काटने
का
भय
भी
दूर
हो
जाता
है।
नाग
पंचमी
की
अनोखी
मान्यताएं
काशी
में
आज
भी
जीवंत
हैं।
मान्यताओं
और
परंपराओं
के
इस
मेले
में
आज
भी
बड़ी
संख्या
में
आस्थावानों
का
जमघट
होता
है।
मान्यतय
है
कि
यह
कुंआ
पाताल
लोक
से
जुड़ा
है।
इस
कुए
को
नागों
का
घर
भी
कहा
जाता
है।
श्रद्धालुओं
की
मानें
तो
तक्षक
नाग
इसी
कुएं
में
निवास
करते
है।
दावा
है
कि
यहां
के
दर्शन
मात्र
से
ही
काल
सर्प
दोष
ठीक
हो
जाता
है।
अकाल
मृत्यु
का
कारण
खत्म
हो
जाता
है।
सुरेश गांधी
सावन के महीने
में भगवान शिव के गले
का श्रृंगार कहे जाने वाले
नाग देवता की भी पूजा
की जाती है। इस
खास दिन को नाग
पंचमी के रूप में
मनाया जाता है। कहा
जाता है कि सावन
की पंचमी तिथि को आस्तिक
ने नागों को यज्ञ में
जलने से बचाया था।
तभी से नागपंचमी का
पर्व मनाया जाने लगा। वाराणसी
के जैतपुर में स्थित नाग
कुएं में विराजमान है
नागेश्वर महादेव। श्रद्धालु यहां आकर नागेश्वर
महादेव को दूध, लावा
और तुलसी की माला से
पूजा करते हैं, क्योंकि
शेषनाग को तुलसी बहुत
प्रिय है। खासकर नाग
पंचमी के दिन पास
पड़ोस ही नहीं देशभर
से श्रद्धालु आते हैं। कूप
में विराजमान नागेश्वर महादेव के दर्शन करते
है। कहते है जिस
किसी भी व्यक्ति को
स्वप्न में बार-बार
सर्प या नाग देवता
के दर्शन होते हैं, इस
कुंड का जल घर
में छिड़काव करने से इन
दोषों से मुक्ति मिल
जाती है.
मान्यता है कि नागपंचमी
के दिन दर्शन करने
व नाग नागिन का
जोड़ा चढ़ाने से काल सर्पदोष
दूर हो जाता है।
यहां के कुंए का
पानी 43 दिन लगातार मंसा
मां को चढ़ाने से
उसके सारे दुख-दर्द
कट जाते है। नागकुंड
में दर्शन करने वालों की
सुबह से ही कतार
लग जाती है। मंदिर
और कुंआ हज़ारो साल
पुराना है। इस कुएं
का वर्णन शास्त्रों में भी किया
गया है। इसे ‘करकोटक
नाग तीर्थ’ के नाम से
जाना जाता है। इस
नाग कुंड को नाग
लोक का दरवाजा बताया
जाता है। इसी स्थान
पर महर्षि पतंजलि ने पतंजलि सूत्र
तथा व्याकरणाचार्य पाणिनी ने महाभाष्य की
रचना की थी। मंदिर
के पुजारी का कहना है
कि एक बार नागराज
तक्षक वाराणसी संस्कृत की शिक्षा लेने
आएं। लेकिन उन्हे गरुण देव से
भय था जिसकी वजह
से वह बालक रूप
में बनारस आएं। गरूण देव
को इस बात का
पता चल गया कि
तक्षक बनारस में है और
उन्होंने उस पर हमला
कर दिया। हालांकि अपने गुरू का
प्रभाव होने के नाते
गरुण देव को तक्षक
नाग को अभय दान
देना पड़ा। कहते है
इस नागकूप पर महर्षि पतंजलि
ने तपस्या की थी। महर्षि
पतंजलि के इस तपोस्थली
का उल्लेख स्कंद पुराण में है।
महर्षि पतंजलि शेषावतार भी माने जाते
हैं। नाग पंचमी पर
हर साल उनकी जयंती
इस स्थान पर मनाई जाती
है। जयंती पर नागकुआं पर
शास्त्रार्थ का आयोजन होता
है। मान्यता है कि नाग
पंचमी के दिन स्वयं
महर्षि पतंजलि सर्प रूप में
आते हैं और बगल
में नागकूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते
हैं। इसके बाद शास्त्रार्थ
में बैठते हैं और शास्त्रार्थ
में शामिल विद्वानों और बटुकों पर
कृपा भी बरसाते हैं।
इस अनादि परंपरा को जीवंत पर्व
के दिन बनाया जाता
है। नागकूप के बारे में
कहा जाता है कि
पाताल लोक जाने का
रास्ता है। इस कूप
के अंदर सात कूप
है। इस कुंए की
गहराई 100 फीट है। सिर्फ
नागपंचमी के मौके पर
ही दर्शन होता हैं। शास्त्रार्थ
परंपरा युगों पुरानी वैदिक कालीन परंपरा से जुड़ी है।
महर्षि पतंजलि की जैतपुरा में
नागकूप में स्थापना मानी
जाती है। पतंजलि की
परंपरा शास्त्रार्थ की रही है,
इस लिहाज से नागकूप में
परंपरा का मान रखते
हुए प्रतिवर्ष परंपराओं का अनुपालन किया
जाता है। प्रतिवर्ष इसका
निर्वहन नागकूप क्षेत्र में आज भी
किया जाता है।
माना जाता है
कि पूरी दुनिया में
केवल तीन ही जगह
कालसर्प दोष की पूजा
होती है, उनमें यह
नाग कुआं पहले स्थान
पर है। कुआं के
अंदर शिवलिंग हमेशा पानी में डूबा
रहता है। नागपंचमी के
दिन होने वाले मेले
से पहले पंप द्वारा
कुएं का सारा पानी
बाहर निकाला जाता है। उसके
बाद उसमें जो शिवलिंग स्थापित
है उसका श्रृंगार व
पूजा-पाठ करके वापस
रख दिया जाता है।
इस प्रक्रिया के बाद अपने
आप एक घंटे में
कुआं वापस भर जाता
है। पानी आने का
रहस्य आज भी बना
है। कूप निर्माण को
लेकर बताया जाता है, इसका
जीर्णोद्धार संवत एक में
किसी राजा ने करवाया
था। इस हिसाब से
इसका समयकाल लगभग 2074 साल पुराना है।
महर्षि पतंजलि ने यहीं पर
अपने गुरु पाणिनि के
साथ कई महत्वपूर्ण ग्रंथों
की रचना की, जिसमें
महाभाष्य, चरक संहिता, पतंजलि
योग दर्शन प्रमुख हैं। महर्षि पतंजलि
शेषावतार थे, इसलिए वे
पर्दे की आड़ से
अपने सभी शिष्यों को
एक साथ सभी विषय
पढ़ाते थे। किसी को
भी पर्दा हटाने की परमिशन नहीं
थी। इस कूप में
पानी कहां से आता
है यह रहस्य आज
भी बरकरार है। अंदर कूप
की दीवारों से पानी आता
रहता है। सफाई के
लिए दो-दो पम्पों
का सहारा लेना पड़ता है।
इसके चारों तरफ सीढ़िया हैं।
नीचे कूप के चबूतरे
तक पहुंचने के लिए दक्षिण
से 40 सीढ़ियां, पश्चिम से 37, उत्तर और पूरब की
ओर दीवार से लगी 60-60 सीढ़ियां
हैं। इसके आलावा कूप
में शिवलिंग तक उतरने लिए
15 सीढ़ियां हैं। कूप में
दक्षिण दिशा ऊंची है,
जिसमें 40 सीढ़ियां हैं, जो प्रमाणित
करती है यह कूप
पूरी तरह वास्तुविधि से
बना है।
पौराणिक मान्यताएं
भगवान शिव के गले
का हार नाग वासुकी
हैं। वहीं जगत के
पालनहार भगवान विष्णु भी नाग की
शय्या पर शयन करते
हैं। इसके अलावा विष्णु
की शय्या बनें शेषनाग पृथ्वी
का भार भी संभालते
हैं। मान्यता है कि नाग
भले ही विष से
भरे हों लेकिन वह
लोक कल्याण का कार्य अनंत
काल से करते आ
रहे है। इन्हीं नाग
देव को मनाने के
लिए नाग पंचमी के
दिन नागों की पूजा की
जाती है, जिससे नाग
का भय न हो
और साथ ही हमारी
कुंडली में अगर कालसर्प
दोष हो तो वह
उसे समाप्त करें। राहु और केतु
से पीड़ित व्यक्ति को यहां पूजा
से काफी लाभ और
फायदा मिलता है। यहां के
जल को घरों में
छिड़कने से सर्पभय नहीं
रहता और पूजा से
सर्पभय से मुक्ति मिलती
है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत
में राजा जनमेजय ने
अपने पिता राजा परीक्षित
की मृत्यु का बदला लेने
के लिए नागों का
नरसंहार करने के लिए
यज्ञ शुरू किया था.
ऋषि आस्तिक ने नागों को
बचाने के लिए यज्ञ
रोकने में सफल रहे.
जिस दिन ये यज्ञ
रुका वो दिन पंचमी
तिथि था, जो आज
नाग पंचमी के रूप में
मनाया जाता है. मान्यता
है कि इस दिन
नागदेवता की पूजा करने
से आपका धन बढ़ता
है और सर्पदंश का
भय दूर होता है।
इस दिन भगवान शिव
बहुत ही प्रसन्न मुद्रा
में होते हैं और
भक्तों की हर मनोकामना
पूरी होने का आशीर्वाद
देते हैं। इस साल
नागपंचमी के दिन कई
अद्भुत संयोग बन रहे हैं
जिससे इस पर्व की
शुभता और बढ़ रही
है। इन शुभ संयोग
के बीच में भगवान
शिव की पूजा अर्चना
करने से आपको समस्त
कष्टों से मुक्ति मिलती
है।
क्या करें और क्या नहीं
नागपंचमी पर नागदेवता को
दूध लावा चढ़ाना शुभ
माना जाता है। नागदेवता
को दूध पिलाना संभव
न हो तो किसी
शांत एकांत स्थान पर जाकर कटोरी
में दूध और लावा
रख आएं। नागपंचमी पर
भूलकर भी किसी सांप
की हत्या न करें। अगर
इस दिन सर्प दिख
जाए तो इसे दूर
से प्रणाम करके अपना रास्ता
बदलकर कहीं और चले
जाएं। लेकिन भूलकर भी सांप को
परेशान न करें। नागपंचमी
के शुभ अवसर घर
में या फिर मंदिर
में रुद्राभिषेक करना बेहद शुभ
माना जाता है। इस
दिन भैरव मंदिर में
जाकर पूजा अर्चना करें
और कच्चा दूध अर्पित करें।
नाग देवता ने निभाई थी भाई की भूमिका
एक कथा में नाग देवता ने भाई की भूमिका भी निभाई है। उन्होंने बहन के लिए ऐसा हार बनाया, जो सर्प बन जाता था। प्राचीन समय में एक राज्य में सेठ रहता था, जिसके सात बच्चे थे। सेठ के सभी सात बेटों की शादी हो चुकी थी। सेठ की सबसे छोटी बहू बुद्धिमान और अच्छे स्वभाव वाली थी। एक दिन बड़ी बहू घर की सभी बहुओं को मिट्टी लाने के लिए अपने साथ ले गई। जमीन खोदते समय बड़ी बहू की नजर एक सांप पर पड़ी और वह उसे खुरपी से मारने लगी। तब सबसे छोटी बहू ने उसे रोका और कहा कि इस सर्प ने कोई पाप नहीं किया है। सबसे छोटी बहू ने सांप के पास जाकर कहा, ‘तुम यहीं रुको, हम थोड़ी देर में लौटेंगे।’ इतना कहकर सभी बहुएं घर लौट गईं। काम में व्यस्त छोटी बहू सांप से किया वादा भूल गई और सांप उसका इंतजार करता रहा। अगले दिन जब सबसे छोटी बहू को सांप से किया हुआ वादा याद आया, तो वह दौड़कर सांप के पास गई। उसने सांप के पास जाकर क्षमा मांगी और बोली, ‘भाई, मैं काम में व्यस्त होने के कारण अपना वादा भूल गयी।’ सांप ने कहा, ‘तुमने मुझे अपना भाई समझा, इसलिए मैंने तुम्हें जाने दिया, नहीं तो कोई और होता तो मैं उसे डस लेता।” इसके साथ ही नाग ने कहा, ’तुमने मुझे भाई कहा है, इसलिए आज से मैं तुम्हारा भाई हूं, तुम्हें जो भी मांगना हो मांग लो।’ तब सबसे छोटी बहू बोली- मेरा कोई भाई नहीं है, आज से तुम ही मेरे भाई हो। कुछ दिन बाद नाग मनुष्य का रूप धारण करके अपनी बहन को लेने आया। उस पर विश्वास करके परिवार वालों ने छोटी बहू को जाने दिया।
सांप
सबसे छोटी बहू को
अपने घर ले गया,
जहां सांप का परिवार
रहता था। सांप के
घर में इतना सारा
धन देखकर बहू को आश्चर्य
हुआ। एक दिन सांप
की मां ने छोटी
बहू से कहा, ‘अपने
भाई को थोड़ा ठंडा
दूध पिलाओ।’ लेकिन छोटी बहू इस
बात को भूल गई
और उसने सांप को
गर्म दूध पिला दिया,
जिससे सांप का मुंह
जल गया। सांप की
मां बहुत क्रोधित हुई,
लेकिन सांप ने उसे
शांत कर दिया। थोड़ी
देर बाद सांप ने
कहा कि उसकी बहन
के घर जाने का
समय हो गया है।
जैसे ही उन्होंने घर
को अलविदा कहा, नाग के
परिवार ने छोटी बहू
को सोने, चांदी, हीरे, मोती, कपड़े और गहनों
से लाद दिया। जब
छोटी बहू घर लौटी,
तो बड़ी बहू को
उसके धन से ईर्ष्या
होने लगी। नाग ने
सबसे छोटी बहू को
गहनों के साथ हीरों
का हार और एक
माला भी दी। यह
हार पूरे राज्य में
चर्चा का विषय था।
जब रानी को इसके
बारे में पता चला,
तो उसने यह हार
मंगवाया। सबसे छोटी बहू
को यह अच्छा नहीं
लगा और उसने सांप
को बुलाकर सारी बात बता
दी। सबसे छोटी बहू
ने अपने भाई से
कहा कि ऐसा कुछ
करो कि यह हार
सबसे छोटी बहू के
गले का हार बन
जाए और कोई और
पहने तो उसके गले
में सांप बन जाए।
बहन की बात मानकर
भाई ने वैसा ही
किया। जब रानी ने
यह हार पहना, तो
वह हार उसके गले
में सांप बन गया।
रानी चिल्लाने लगी। रानी की
चीख सुनकर राजा ने सबसे
छोटी बहू को लाने
का आदेश दिया। जब
छोटी बहू राजा और
रानी के पास आई,
तो उसने कहा कि
यह हार उसके गले
का हार और दूसरों
के गले का सांप
बन जाता है। तब
राजा ने अपनी सबसे
छोटी बहू से हार
पहनने को कहा। जैसे
ही उसने उसे पहना,
सांप एक हार में
बदल गया। यह चमत्कार
देखकर राजा बहुत प्रसन्न
हुआ और उसे अपना
धन देकर विदा कर
दिया।
करें ये उपाय
भगवान शिव को नाग
अति प्रिय है इसलिए उन्होंने
अपने गले में नागराज
को धारण किया है।
ऐसे में अगर आप
नागपंचमी के दिन कुछ
विशेष उपाय करते हैं
तो नाग देवता के
साथ ही आपको भगवान
शिव की भी कृपा
प्राप्त होती है। नाग
पंचमी के दिन नाग
देवता को दूध पिलाना
तो शुभ माना ही
जाता है, लेकिन साथ
ही इस दिन आपको
अपने घर के मुख्य
द्वार पर नाग-नागिन
की आकृति बनानी चाहिए। इसके बाद आपको
नाग देवता का पूजन करना
चाहिए। ऐसा माना जाता
है कि अगर आप
प्रवेश द्वार पर नाग की
आकृति बनाते हैं तो आपके
जीवन में आर्थिक संपन्नता
आती है। आपके सभी
काम बनने लगते हैं
और साथ ही कालसर्प
दोष से भी आपको
मुक्ति मिलती है। अगर आपके
जीवन में समस्याएं बार-बार आती रहती
हैं, धन की बचत
आप नहीं कर पाते
हैं, परिवार में कलह-कलेश
रहते हैं तो आपको
नाग पंचमी के दिन नाग
देवता को दूध पिलाने
के बाद, चांदी की
वस्तुएं खरीदकर घर लानी चाहिए।
संभव हो तो चांदी
की धातु से बनाई
हुए नाग-नागिन का
जोड़ा घर लाएं और
पूजा करने के बाद
इस किसी शिव मंदिर
में अर्पित कर के आ
जाएं। ऐसा माना जाता
है कि यह उपाय
करने से नाग देवता
के साथ ही भगवान
शिव भी प्रसन्न होते
हैं और आपके जीवन
में सुधार आने लग जाता
है। अगर आप चांदी
के नाग-नागिन का
जोड़ा नहीं लाए हैं
और केवल चांदी की
वस्तुएं खरीदकर घर लाए हैं
तो यह भी आपके
लिए शुभ ही माना
जाता है। नाग पंचमी
के दिन आपको नाग
देवता को फल, दूध
अर्पित करने चाहिए और
साथ ही भगवान शिव
की भी पूजा आराधना
करनी चाहिए। यह आसान सा
उपाय आपके जीवन में
स्थिरता लाता है, आपकी
आर्थिक स्थिति सुधरती है और संचित
धन में वृद्धि होती
है। इसके साथ ही
मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी
यह उपाय बहुत शुभ
माना गया है। इस
दिन दूध और धान
की लावा चढ़ाते है.
नाग देवता को दूध और
धान का लावा चढ़ाने
से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. इस
दिन नाग देवता की
पूजा करने पर जीवन
में कई तरह के
ग्रह दोष दूर हो
जाते हैं. वहीं जिन
जातक की कुंडली में
कालसर्प दोष है, उन्हें
नाग पंचमी के दिन नाग
देवता की उपासना करने
से विशेष फल मिलता है
और दोष का अशुभ
प्रभाव कम हो जाता
और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.
छोटे गुरू और बड़े गुरू के पीछे की कहानी...
वैसे तो नागपंचमी
के दिन छोटे गुरु
और बड़े गुरु के
लिए जो शब्द प्रयोग
किया जाता है उससे
तात्पर्य यह है कि
हम बड़े व छोटे
दोनों ही नागों का
सम्मान करते हैं और
दोनों की ही विधिविधानपूर्वक
पूजन अर्चन करते हैं। क्योकि,
महादेव के श्रृंगार के
रूप में उनके गले
में सजे बड़े नागदेव
हैं तो वहीं उनके
पैरों के समीप छोटे-छोटे नाग भी
हैं और वो भी
लोगों की आस्था से
जुड़े हुए होते हैं।
सात पीढियों की रक्षा करेंगे नाग देवता
नागपंचमी मानव मित्र सर्पों
का विनाश रुकवाने, शत्रुता खत्म करने और
सद्भाव बढ़ाने का पर्व है।
मान्यता है इस बार
ऐसा संयोग है जिस किसी
ने भी अगर विधि-विधान से पूजा कर
ली तो उसके सात
पीड़ियों की रक्षा करेंगे
नाग देवता। कहते हैं सर्प
वायु पीता है अर्थात
वायुमंडल की संपूर्ण विषाक्तता
को स्वयं ग्रहण कर वह मानव
व अन्य जीव-जंतुओं
के लिए स्वच्छ पर्यावरण
प्रदान करता है। शायद
इसीलिए नाग कल्याणकारी शिव
को सर्वाधिक प्रिय है। उन्होंने बासुकी
नाग को अपने गले
का हार बना लिया।
इसलिए नाग भी देवता
के रूप में पूजे
जाने लगे। शिव ने
स्वयं भी तो समुद्र
मंथन से निकले विष
को जगत के कल्याण
के लिए अपने कंठ
में धारण कर लिया।
बौद्ध साहित्य में भी उल्लेख
है कि बासुकी नाग
भगवान बुद्ध का उपदेश सुनने
के लिए अपनी प्रजाति
के साथ आता था।
रामायण और महाभारत में
भी बासुकी की कथाओं का
उल्लेख है। शास्त्रों में
पाताललोक को नागलोक के
रूप में मान्यता दी
गयी है। कहते हैं
नागदेवता की पूजा से
कालसर्प दोष से मुक्ति
मिलता है। इस दिन
महिलाएं नाग देवता की
आराधना के साथ परिवार
की सुख-समृद्धि और
दीर्घायु की कामना करती
हैं। इस व्रत के
प्रताप से कालभय, विषजन्य
मृत्यु और सर्पभय नहीं
रहता। नागपंचमी के व्रत का
सीधा सम्बन्ध उस नाग पूजा
से भी है जो
शेषनाग भगवान शंकर और भगवान
विष्णु की सेवा में
तत्पर है। इनकी पूजा
से शिव और विष्णु
पूजा के तुल्य फल
मिलता है। नागपंचमी के
दिन भगवान शिव के विधिवत
पूजन से हर प्रकार
का लाभ प्राप्त होता
है। नागपंचमी के दिन नागदेवता
का दूध से अभिषेक
कर पूजा करने से
परिवार पर उनकी कृपा
बनी रहती है। मान्यता
है कि जो भी
श्रद्धालु नागदेवता की पूजा करते
हैं, नागदेव उनके परिवार के
सदस्य की रक्षा करते
हैं। परिवार के किसी सदस्य
की मृत्यु नाग के डंसने
से नहीं होती। मान्यता
है कि इस शुभ
तिथि के दिन सृष्टि
के अनुष्ठाता ब्रह्मा ने शेषनाग को
पृथ्वी का भार धारण
करने का आदेश दिया
था।
शेषनाग के फन पर टिकी है पृथ्वी
कहते हैं इस
दिन नागों की पूजा करने
का विधान है। हिन्दू धर्म
में नागों को भी देवता
माना गया है। महाभारत
आदि ग्रंथों में नागों की
उत्पत्ति के बारे में
बताया गया है। महाभारत
के अनुसार महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां
थीं। इनमें से कद्रू भी
एक थी। कद्रू ने
अपने पति महर्षि कश्यप
की बहुत सेवा की,
जिससे प्रसन्न होकर महर्षि ने
कद्रू को वरदान मांगने
के लिये कहा। कद्रू
ने कहा कि 1 हजार
तेजस्वी नाग मेरे पुत्र
हों। महर्षि कश्यप ने वरदान दे
दिया जिसके फलस्वरूप सर्पों की उत्पत्ति हुई।
इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख थे।
कद्रू के बेटों में
सबसे पराक्रमी शेषनाग थे। इनका एक
नाम अनन्त भी है। शेषनाग
ने जब देखा कि
उनकी माता व भाइयों
ने मिलकर ऋषि कश्यप की
एक और पत्नी के
साथ छल किया है
तो उन्होंने अपनी मां और
भाइयों का साथ छोड़कर
गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी
आरम्भ की। उनकी तपस्या
से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने
उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी
बुद्धि कभी धर्म से
विचलित नहीं होगी। ब्रह्मा
ने शेषनाग को यह भी
कहा कि यह पृथ्वी
निरंतर हिलती-डुलती रहती है। अतः
तुम इसे अपने फन
पर इस प्रकार धारण
करो कि यह स्थिर
हो जाय। इस प्रकार
शेषनाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी
को अपने फन पर
धारण कर लिया। क्षीर
सागर में भगवान विष्णु
शेषनाग के आसन पर
ही विराजित होते हैं। धर्म
ग्रंथों के अनुसार भगवान
श्रीराम के छोटे भाई
लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के
बड़े भाई बलराम शेषनाग
के ही अवतार थे।
नागों की मां थी सुरसा
रामायण में सुरसा को
नागों की माता और
समुद्र को उनका अधिष्ठान
बताया गया है। महेन्द्र
और मैनाक पर्वतों की गुफाओं में
भी नाग निवास करते
थे। हनुमान जी द्वारा समुद्र
लांघने की घटना को
नागों ने प्रत्यक्ष देखा
था। नागों की स्त्रियां अपनी
सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध
थी। रावण ने कई
नाग कन्याओं का अपहरण किया
था। प्राचीन काल में विषकन्याओं
का चलन भी कुछ
ज्यादा ही था। इनसे
शारीरिक सम्पर्क करने पर व्यक्ति
की मौत हो जाती
थी। ऐसी विषकन्याओं को
राजा अपने राजमहल में
शत्रुओं पर विजय पाने
तथा षड्यंत्र का पता लगाने
हेतु भी रखा करते
थे। रावण ने नागों
की राजधानी भोगवती नगरी पर आक्रमण
करके वासुकि, तक्षक, शंक और जटी
नामक प्रमुख नागों को परास्त किया
था। कालान्तर में नाग जाति
चेर जाति में विलीन
हो गयी जो ईस्वी
सन के प्रारम्भ में
अधिक समपन्न हुई थी।
खेतों की रक्षक है नाग
भारत में नागों
को खेत की रक्षा
करने वाला बताया गया
है। यहां नागों को
क्षेत्रपाल भी कहा जाता
है। जीव-जंतु जो
फसलों को नुकसान पहुंचाते
हैं, सांप उन्हें खाकर
खेतों को हरा-भरा
रखने में मदद करते
हैं। नागपंचमी के दिन लोग
नाग देवता का सत्कार करते
हैं और इनकी पूजा
करते हैं।
घरों में नहीं चढ़ता तवा
परम्परा के अनुसार नागपंचमी
के दिन घर-घर
में नागदेवता का पूजन किया
जाता है। महिलाएं नागदेवता
की पूजा करने के
साथ ही वर्षों पुरानी
परम्परा को आज भी
बरकरार रखी है। जिसके
चलते घर में तवा
भी नहीं चढ़ाया जाता
और न ही चावल
बनाये जाते हैं। केवल
दाल-बाटी जैसे व्यंजन
का उपयोग होता है। इसलिये
घर-घर में दाल-बाटी ही बनती
है। साथ ही चाकू
या कैंची का उपयोग भी
नहीं किया जाता। इस
दिन केवल गुड़ की
मिठाई का भोग लगाने
का विशेष महत्व है।
नहीं होती खुदाई ं
इस दिन पृथ्वी
की खुदाई करना वर्जित है।
भोले भण्डारी नागपंचमी के दिन अपनी
झोली से विषैले जीव
को भूमि पर विचरण
के लिये छोड़ देते
हैं और जन्माष्टमी के
दिन पुनः अपनी झोली
में समेट लेते हैं।
इस मास में भूमि
पर हल नहीं चलाना
चाहिये। मकान बनाने के
लिये नींव भी नहीं
खोदनी चाहिये। इस दिन किसी
सपेरे से नाग खरीदकर
उसे खुले जंगल में
छोड़ने से शांति मिलती
है। पूजा में चंदन
की लकड़ी का प्रयोग
अवश्य करें।
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