‘दीपदान’ से मिलती है मां लक्ष्मी
की कृपा, जीवन में फैलती है कृति
दीप जलाने से दूर होती नकारात्मक ऊर्जा
सुरेश गांधी
वाराणसी।
कार्तिक मास की शुरुआत
हो चुकी है। इस
दौरान दीपावली सहित कई प्रमुख
त्योहार आ रहे हैं।
लेकिन कार्तिक मास में दीपदान
का महत्व सबसे ज्यादा है।
कहते है दीपदान से
न सिर्फ मां लक्ष्मी प्रसन्न
होती है, बल्कि दीपदान
करने वाले के जीवन
में धन, ज्ञान, यश
व सौभाग्य का प्रकाश फैलता
है. यम के भय
से मुक्त होकर अंत समय
में मोक्ष की प्राप्ति होती
है. यही वजह है
कि धनतेरस, सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
सहित विभिन्न पुण्यतिथियों पर दीपदान किया
जाता है. इस मास
में सूर्य अपनी नीच राशि
तुला में रहते हैं
जिससे वातावरण में अधिक अंधकार
के साथ नकारात्मक ऊर्जा
व्याप्त होती है। ऐसे
में दीपक जलाने से
सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
ज्योतिषियों का कहना है
दीपदान की वर्तिका के
रंग व नामों का
उल्लेख भविष्य पुराण में है. जिसमें
भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को दीप दान
का महत्व बताने के साथ देवताओं
को देने वाले दीपकों
की वर्तिका के बारे में
बताते हैं. वे कहते
हैं कि भगवान सूर्य
के लिए प्रदत्त दीप
की वर्तिका रक्त रंग की
होनी चाहिए जो पूर्णवर्ति कहलाती
है. इसी तरह भगवान
शिव के लिए निर्मित
वर्तिका श्वेत यानी सफेद होनी
चाहिए जो ईश्वरवर्ति कहलाती
है. जबकि विष्णु के
लिए भोगवर्ति कहलाने वाली वर्तिका पीत
वस्त्र की, गौरी के
लिए सौभाग्यवर्ति कहलाने वाली वर्तिका कुसुम
रंग की, दुर्गा के
लिए पूर्णवर्तिका कहलाने वाली लाख के
समान रंग की होनी
चाहिये. कहते हैं ब्रह्मा
के लिए प्रदत्त वर्तिका
पद्यवर्ति, नागों के लिए दी
गई वर्तिका नागवर्ति तथा ग्रहों के
लिए दी जाने वाली
वर्तिका ग्रहवर्ति कहलाती है. इन देवताओं
के लिए ऐसे ही
वर्तिकायुक्त दीपक का दान
करना चाहिये.
इस महीने में
भगवान लक्ष्मीनारायण की विशेष कृपा
भक्तों को प्राप्त होती
है। मां लक्ष्मी के
बिना इस संसार की
कल्पना भी नहीं की
जा सकती, इसलिए कार्तिक मास में मां
लक्ष्मी को प्रसन्न करने
के लिए दीपदान के
खास उपाय बताए गए
हैं। माना जाता है
कि कार्तिक माह में आकाशमंडल
का सबसे बड़ा ग्रह
माना जाने वाला सूर्य
अपनी नीच की राशि
तुला में गमन करता
है। इस वजह से
वातावरण में अंधकार पांव
पसारने लगता है। इसलिए
इस पूरे मास में
दीपक जलाने, जप, तप और
दान व स्नान करने
का विशेष महत्व माना गया है।
अगर किसी विशेष कारण
से कार्तिक में प्रत्येक दिन
आप दीपदान करने में असमर्थ
हैं तो पांच विशेष
दिन जरूर करें। पद्मपुराण
के उत्तरखंड में स्वयं महादेव
कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक
कृष्णपक्ष के पांच दिन
में दीपदान का विशेष महत्व
बताते हैं।
कृष्णपक्षे
विशेषेण
पुत्र
पंचदिनानि
च
पुण्यानि
तेषु
यो
दत्ते
दीपं
सोऽक्षयमाप्नुयात्
विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन (रमा एकादशी
से दीपावली तक) बड़े पवित्र
हैं। उनमें जो भी दान
किया जाता है, वह
सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं
को पूर्ण करने वाला होता
है। अग्निपुराण में बताया गया
है कि जो मनुष्य
देव मंदिर अथवा ब्राह्मण के
गृह में दीपदान करता
है, वह सबकुछ प्राप्त
कर लेता है। पद्मपुराण
के अनुसार मंदिरों में और नदी
के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मीजी
प्रसन्न होती हैं। दुर्गम
स्थान अथवा भूमि पर
दीपदान करने से व्यक्ति
नरक जाने से बच
जाता है। पद्मपुराण के
अनुसार, जो देवालय में,
नदी के किनारे, सड़क
पर दीप देता है,
उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक
में प्रतिदिन दो दीपक जरूर
जलाएं। एक श्रीहरि नारायण
के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग
के समक्ष जलाएं। माना जाता है
कि जिसने कार्तिक में भगवान केशव
के समक्ष दीपदान किया है, उसने
सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर
लिया और समस्त तीर्थों
में गोता लगाने के
समान फल की प्राप्ति
होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण
में कहा गया है
जो कार्तिक में श्रीहरि को
घी का दीप देता
है, वह दीपक जितने
पल जलता है, उतने
वर्षों तक हरिधाम में
आनन्द भोगता है। फिर अपनी
योनि में आकर विष्णुभक्ति
पाता है।
भगवान श्री हरि को सबसे प्रिय है कार्तिक मास
दीप दान, स्नान-पूजन, जप-तप के
साथ व्रत त्योहार का
29 दिनी कार्तिक मास 15 नवंबर तक रहेगा। इसमें
हर ओर पंच पर्व
धन तेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली,
गोवर्धन पूजा, भाई दूज का
उजास छाएगा। करवाचौथ, छठ पूजा और
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा भी आएगी। देव
उत्थान एकादशी पर चातुर्मास के
समापन के साथ चार
मास की योग निद्रा
से भगवान श्रीहरि विष्णु जागेंगे और मांगलिक कार्यों
का श्रीगणेश होगा। कार्तिक मास के अधिपति
भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस
मास में उनकी पूजा
करने से विशेष फलों
की प्राप्ति होती है। मान्यता
है कि इस मास
में गंगा सहित अन्य
पुण्य सलिलाओं में स्नान करने
के साथ दान करने
से कई गुना अधिक
पुण्य फलों की प्राप्ति
होती है। इसके अलावा
कार्तिक मास में मां
तुलसी की पूजा करने
से विशेष फलों की प्राप्ति
होती है। इस मास
में मंदिर, नदी और तालाब
पर दीप दान करना
चाहिए।
बाबा विश्वनाथ धाम में इस बार
जलेगा पितरों के नाम का दीया
देव दीपावली (15 नवंबर)
पर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में पहली बार
25 हजार पितरों के नाम से
दीये जलाए जा सकेंगे।
गेट नंबर चार से
गंगा द्वार और ललिता घाट
तक पूर्वजों की याद में
दीये जलाने की व्यवस्था की
गई है। इसके लिए
चार कैटेगरी में 1100 से 11000 रुपये शुल्क जमा कराए जा
रहे हैं। मंदिर प्रशासन
ने दीया डोनेशन नाम
से ऑनलाइन बुकिंग भी शुरू की
है। श्रद्धालु अलग-अलग कैटेगरी
में बुकिंग करके दीये जलवा
सकते हैं। दीये मंदिर
प्रशासन की तरफ से
ही जलवाए जाएंगे। दीया डोनेशन के
लिए श्रद्धालु मंदिर की वेबसाइट-एप
से ऑनलाइन या फिर कार्यालय
से ऑफलाइन बुकिंग करा सकते हैं।
इसके लिए गंगा ज्योति,
काशी प्रकाश, देव दीपक और
दिव्य गंगा ज्योत कैटेगरी
बनाई गई है। पितरों
के नाम से दीये
जलाने के लिए बुकिंग
कराते समय श्रद्धालुओं को
पितरों का नाम दर्ज
कराना होगा। इसके बाद मंदिर
प्रशासन के पुजारियों के
पास नामों की सूची आ
जाएगी, फिर पितरों के
नाम का संकल्प लेकर
और मंत्रजाप कर दीये जलाए
जाएंगे। दीया डोनेशन के
लिए बुकिंग कराने वाले श्रद्धालुओं के
घर बाबा विश्वनाथ का
प्रसाद भी भेजा जाएगा।
प्रसाद में मिश्री, रुद्राक्ष,
ड्राई फ्रूट आदि रहेगा। इसका
शुल्क 350 रुपये होगा। यदि किसी ने
और प्रसाद की मांग की
तो उन्हें निशुल्क भेजा जाएगा। एसडीएम
शंभू शरण ने कहा
कि दूर से आने
वाले कई भक्तों की
मांग थी कि देव
दीपावली पर अपने पितरों
के नाम से दीप
जलाना चाहते हैं। कई बार
वे काशी नहीं आ
पाते हैं। ऐसे में
मंदिर प्रशासन ने पितरों के
नाम दीप जलवाने का
निर्णय लिया। इस व्यवस्था के
तहत कम से कम
पांच और अधिकतम 51 दीये
जलवाए जा सकते हैं।
गंगा ज्योति
: पांच दीये जलाए जाएंगे।
शुल्क 1100 रुपये है। गेट नंबर
चार से मंदिर परिसर
में दीप जलाए जा
सकेंगे।
काशी प्रकाश
- 11 दीये जलेंगे। शुल्क 2100 रुपये है। इन दीयों
को गंगा की ही
तरफ रखा जाएगा।
देव दीपक
- 21 दीये जलेंगे। शुल्क 5100 रुपये है। गंगा के
सामने मंदिर और घाट की
सीढ़ियों की ओर दीप
जलाए जाएंगे।
दिव्य गंगा
ज्योत
- इसे एक्सक्लूसिव कैटेगरी में रखा गया
है। इसमें 51 दीये जलाए जाएंगे।
शुल्क 11000 रुपये है। दीये गंगा
आरती के समय ही
जलाए जाएंगे। उस वक्त लाखों
भक्त मां गंगा की
पूजा करते हैं।
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