सकट चौथ : धन-धान्य से भरेगा घर, दूर होंगे संकट, मिलेगा विघ्नहर्ता का आशीर्वाद
माघ मास की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, तिल चतुर्थी, माघी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में होता है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है. इस दिन भगवान गणेश, चन्द्र देव और माता सकट की उपासना की जाती है। कहते है जो माताएं सकट चौथ के दिन निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी श्रद्धा से गणेश भगवान की पूजा करती हैं, उनकी संतान हमेशा निरोग रहती है. उसके जीवन के संकट टल जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति होती है और संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं. उदयातिथि के अनुसार, इस बार सकट चौथ का व्रत 17 जनवरी को रखा जाएगा. सकट चौथ की चतुर्थी तिथि शुक्रवार की सुबह 4 बजकर 06 मिनट पर शुरू होगी, जबकि तिथि का समापन 18 जनवरी को सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर होगा. सकट चौथ के पूजन के लिए पहला मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से 6 बजकर 21 मिनट तक रहेगा और दूसरा मुहूर्त सुबह 8 बजकर 34 मिनट से 9 बजकर 53 मिनट तक है. साथ ही, चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात 9 बजकर 09 मिनट पर रहेगा. इस दिन पूजा के दौरान गणेश जी को तिलकुट का भोग लगाते हैं और सकट चौथ की व्रत कथा पढ़ते हैं। इस व्रत का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है, जिनमें गणेश जी ने अपने भक्तों के संकट दूर किए थे. पौराणिक कथा के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही भगवान गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा की थी. इसलिए इस व्रत को संतान के लिए फलदायी माना गया है
सुरेश गांधी
जिस प्रकार हर
महीने की एकादशी तिथि
भगवान विष्णु को समर्पित होती
है, ठीक उसी प्रकार
हर माह की चतुर्थी
तिथि भगवान गणेश के लिए
समर्पित मानी जाती है.
हर माह के कृष्ण
पक्ष की चतुर्थी तिथि
को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है.
वहीं, हर माह शुक्ल
पक्ष की चतुर्थी तिथि
को विनायक चतुर्थी कहते हैं. हर
साल माघ माह के
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी
तिथि को सकट चौथ
का व्रत रखा जाता
है. सकट चौथ को
तिलकुटा और तिलकुट चौथ
भी कहा जाता है.
यह व्रत महिलाओं के
लिए बेहद खास होता
है. यह व्रत माताएं
अपनी संतान की लंबी उम्र
और सुखी जीवन की
कामना के लिए रखती
हैं. इस दिन महिलाएं
श्रीगणेश की पूजा - आराधना
करती हैं और व्रत
रखती हैं. वैदिक पंचांग
के अनुसार, माघ माह के
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी
तिथि 16 जनवरी को सुबह 4ः09
मिनट पर होगी. वहीं,
इस चतुर्थी का समापन 17 जनवरी
को सुबह 5ः33 मिनट पर
होगा. ऐसे में उदयातिथि
के अनुसार, सकट चौथ का
व्रत 17 जनवरी 2025 को रखा जएगा.
मान्यता है कि सकट
चौथ का व्रत महिलाएं
अपनी संतान की लंबी उम्र
और खुशहाल जीवन की कामना
के लिए रखती हैं.
सकट चौथ का व्रत
रखने के बाद दिन
में भगवान गणेश जी की
पूजा-अर्चना की जाती है
और शाम में चंद्रमा
के दर्शन करने के बाद
ही सकट चौथ का
व्रत खोला जाता है.
ऐसे में 17 जनवरी को चंद्रोदय समय
रात को 9ः09 मिनट
पर होगा. सनातन के अनुसार, सकट
चौथ व्रत को पूर्ण
श्रद्धा से रखने से
भगवान गणेश प्रसन्न होते
हैं और जीवन में
सभी तरह के सुखों
की प्राप्ति होती है. सकट
चौथ के दिन पूजा
के दौरान व्रत कथा का
पाठ जरूर करना चाहिए.
ऐसा करने से संतान
को लंबी आयु का
आशीर्वाद मिलता है. सकट चौथ
का व्रत करने से
बच्चों के जीवन में
आ रही सभी परेशानियां
दूर हो जाती हैं.
ऐसी मान्यता है कि इस
दिन चंद्र देव को जल
अर्घ्य देने से संतान
को किसी भी बीमारी
का सामना नहीं करना पड़ता
और सौभाग्य की प्राप्ति होती
है.
शुभ मुहूर्त
माघ
कृष्ण
चतुर्थी
तिथि
का
प्रारंभ
: 17 जनवरी,
सुबह
04ः06
बजे
से
माघ
कृष्ण
चतुर्थी
तिथि
का
समापन
: 18 जनवरी,
सुबह
05ः30
बजे
पर
अभिजीत
मुहूर्त
: 12ः10
पीएम
से
12ः52
पीएम
सौभाग्य
योग
: प्रातःकाल
से
लेकर
देर
रात
12ः57
तक
शोभन
योग
: देर
रात
12ः57
बजे
से
अगली
सुबह
तक
चांद
निकलने
का
समय
: रात
09ः09
बजे
व्रत कथा
व्रत के दौरान
गणेश जी से जुड़ी
कथा सुनना शुभ माना जाता
है। सकट चौथ व्रत
की अलग अलग कथाएं
हैं. सकट चौथ व्रत
की पहली कथा के
अनुसार, एक बार मां
पार्वती स्नान करने जा रही
थीं. तब उन्होंने अपने
पुत्र गणेश जी को
स्नान घर के बाहर
खडा़ करके यह आदेश
दिया कि, जब तक
मैं खुद स्नान घर
से वापस ना आ
जाऊं तुम किसी को
भी अंदर आने की
इजाजत मत देना. अपनी
माता की बात मानकर
भगवान गणेश स्नान घर
के बाहर से ही
पहरा देने लगे. ठीक
उसी समय भगवान शिव
मां पार्वती से मिलने आए
लेकिन, क्योंकि मां पार्वती ने
गणेश भगवान को पहरा देने
का आदेश दिया था
इसलिए उने शिव जी
को अंदर जाने से
रोका. इस बात से
शिव जी बेहद क्रोधित
हुए और उन्हें अपमानित
महसूस हुआ. ऐसे में
उन्होंने गुस्से में अपने त्रिशूल
से भगवान गणेश पर प्रहार
किया जिससे उनकी गर्दन कट
कर गिर गई. जब
मां पार्वती स्नान घर से बाहर
आई तो उन्होंने भगवान
गणेश का कटा हुआ
सिर देखा और रोने
लगी और उन्होंने शिव
जी से कहा कि,
उन्हें किसी भी हाल
में भगवान गणेश सही सलामत
वापस चाहिए. तब रोती बिलखती
मां पार्वती को शांत करने
के लिए शिवजी ने
एक हाथी के बच्चे
का सिर लेकर भगवान
गणेश जी को लगा
दिया. इस तरह से
भगवान गणेश को दूसरा
जीवन मिला और उनके
जीवन से एक बड़ा
संकट टल गया. कहा
जाता है इसी के
बाद से इस दिन
का ननाम सकट पड़ा
और तभी से माताएं
अपने बच्चों की सलामती और
लंबी उम्र की कामना
के लिए माघ माह
के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी
को गणेश चतुर्थी का
व्रत करने लगी. इसमें
एक कथा शिव पुराण
की है, जिसमें भगवान
कार्तिकेय और गणेश जी
के बीच पृथ्वी की
परिक्रमा करने वाली है.
जिसमें गणेश जी भगवान
शिव और माता पार्वती
की परिक्रमा करके यह प्रतियोगिता
जीत जाते हैं, जबकि
उनके बड़े भाई पृथ्वी
का चक्कर लगाकर आते हैं, फिर
भी वे हार जाते
हैं क्योंकि गणेश जी अपनी
बुद्धि से साबित करते
हैं कि पृथ्वी से
बड़े तो माता पिता
हैं, जिनके चरणों में सभी लोक
वास करते हैं. इस
पर शिवजी गणेश जी को
प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद
देते हैं और वरदान
देते हैं कि जो
भी व्यक्ति चौथ व्रत रखकर
गणेश पूजन करेगा और
चंद्रमा को अर्घ्य देगा,
उसे सुख, समृद्धि, पुत्र,
धन आदि प्राप्त होगा.
उसके संकट मिट जाएंगे.
दुसरी कथानुसार, एक समय की
बात है, एक नगर
में एक नेत्रहीन बुढ़िया
थी, जो गणेश जी
की भक्त थी. वह
हर माह में चतुर्थी
का व्रत रखकर गणेश
जी की पूजा करती
थी. एक दिन गणेश
जी उसकी भक्ति से
प्रसन्न होकर प्रकट हो
गए. उन्होंने उस बुढ़िया से
कहा कि आज जो
चाहो, मांग लो, तुम्हारी
मनोकामना पूरी होगी. इस
पर बुढ़िया ने कहा कि
प्रभु! मांगना तो नहीं आता
है. फिर कैसे क्या
मांगा जाए? इस पर
गणपति बप्पा ने कहा कि
अपने बेटे और बहू
से पूछ लो कि
क्या मांगना चाहिए? इस पर वह
बुढ़िया अपने बेटे के
पास गई और पूछा
कि गणेश जी से
क्या मांग लिया जाए?
उसने कहा कि धन
मांग लो, जबकि बहू
ने कहा कि अपने
लिए नाती मांग लो.
उस बुढ़िया ने आसपड़ोस के
लोगों से भी पूछा.
लोगों ने कहा कि
तुम्हें धन और नाती
से क्या लाभ? अपने
लिए आंखें मांग लो. वह
बुढ़िया लौटकर गणेश जी के
पास गई और बोली
कि हे भगवान! आप
प्रसन्न हैं तो 9 करोड़
की माया दो, निरोगी
काया दो, अखंड सुहाग
दो, आंखों की रोशनी दो,
नाती और पोता दो,
सुख और समृद्धि दो
और जीवन के अंत
में मोक्ष दो. बुढ़िया की
बातें सुनकर गणेश जी ने
कहा कि तुमने तो
ठग लिया. फिर भी जाओ,
तुम्हारी सभी मनोकामना पूर्ण
हो. इतना कहकर गणेश
जी वहां से चले
गए. गणेश जी के
आशीर्वाद से बुढ़िया अपनी
आंखों से देखने लगी.
घर धन और धान्य
से भर गया. कुछ
समय बाद उसे नाती
का सुख प्राप्त हुआ.
उसकी सभी मनोकामना पूर्ण
हो गई.
विधि
सकट व्रत कोई
सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय
तक रखता है तो
वहीं कई महिलाएं इस
व्रत का पारण अगले
दिन सूर्योदय के बाद करती
हैं। इस दिन माताएं
शुभ मुहूर्त में गणेश जी
की विधि विधान पूजा
करती हैं और साथ
ही सकट चौथ की
कथा भी सुनती हैं।
सकट चौथ व्रत की
सुबह स्नान कर गणेश भगवान
की प्रतिमा के समक्ष घी
का दीपक जलाएं और
पूरी श्रद्धा से ये व्रत
रखने का संकल्प लें।
ये व्रत निर्जला रखा
जाता है यानी कि
इस व्रत में पूरे
दिन कुछ भी खाया
पिया नहीं जाता है।
फिर शाम में शुभ
मुहूर्त में गणेश भगवान
की पूजा की जाती
है और इस दौरान
सकट चौथ की कथा
भी सुनी जाती है।
इस दिन गणपति बप्पा
को तिल के लड्डुओं
का भोग जरूर लगाया
जाता है। फिर रात
में चांद निकलने के
बाद दूध से चांद
को अर्घ्य दिया जाता है।
इसके बाद व्रत का
पारण कर लिया जाता
है।कुछ महिलाएं व्रत की रात
में ही अन्न ग्रहण
कर लेती हैं तो
वहीं कई महिलाएं अगले
दिन सूर्योदय के बाद व्रत
खोलती हैं। हालांकि व्रत
की रात में फलाहारी
भोजन ग्रहण किया जा सकता
है। अगर आप गर्भवती
हैं और पहले से
सकट का व्रत रख
रही हैं और इस
व्रत को रखना चाह
रही हैं तो आपके
लिए सुझाव है कि आप
निर्जला व्रत न रहें।
पूरे दिन कुछ न
कुछ फलाहारी भोजन करती रहें।
जिससे शरीर में कमजोरी
न आए। इसके अलावा
व्रत रखने से पहले
अपने डॉकर से सलाह
भी जरूर लें। सकट
चौथ व्रत में न
तो कुछ खाया जाता
है और न ही
पिया जाता है। ये
व्रत निर्जला रखा जाता है।
लेकिन हां कुछ महिलाएं
व्रत की रात में
भोजन जरूर कर लेती
हैं। तो आपके यहां
जिस तरह से ये
व्रत रखा जाता है
वैसे ही आप ये
व्रत रहें। पूजा के लिए
अपना मुख पूर्व या
उत्तर दिशा की ओर
रखें और साफ आसन
बिछाकर बैठ जाएं. पूजा
के लिए एक चौकी
तैयार कर लें और
पीले रंग का कपड़ा
बिछाकर इसमें भगवान गणेश की मूर्ति
या तस्वीर को स्थापित करें.
भगवान का हल्दी और
कुमकुम से तिलक करें.
फूल, माला, मौली, रोली, 21 दुर्वा, अक्षत, पंचामृत, फल और मोदक
का भोग लगाएं. अब
धूप-दीप जलाएं और
गणेशजी की आरती करें.
रात्रि में चंद्रोदय के
बाद चंद्रमा को दूध और
जल से अर्घ्य दें
और पूजा करें. सकट
चौथ के दिन भगवान
गणेश और चंद्रमा की
पूजा की जाती है।
मान्यता है कि गणेश
जी की कृपा से
सभी विघ्न और कष्ट दूर
हो जाते हैं।
क्या
खाएं-
शक्करकंदी, तिल, गुड़, उड़द
और चावल
क्या
न
खाएं-
राहु ग्रह से संबंधित
चीजें नहीं खानी चाहिए
जैसे मूली, कटहल, काला नमक और
प्याज
इस दिन उत्तर
या पूर्व दिशा की ओर
मुंह करके गणेश जी
की पूजा करनी चाहिए।
गणेश जी को
दुर्वा, मोदक और तिल
के लड्डूओं का भोग जरूर
लगाना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा
सुनने के बाद आरती
अवश्य करें।
सकट चौथ के
दिन भूलकर भी साधक को
काले रंग के वस्त्र
धारण नहीं करने चाहिए।
ऐसा करना काफी अशुभ
माना गया है। व्रत
करने वाली महिलाओं को
इस बात का भी
ध्यान रखना चाहिए कि
जब आप चंद्रमा को
अर्घ्य दे रही हों,
तो इस दौरान पानी
के छींटे पैरों पर नहीं गिरने
चाहिए।
पूजा सामाग्री
गणेश जी की
प्रतिमा, लाल फूल, 21 गांठ
दूर्वा, जनेऊ, सुपारी पान का पत्ता,
सकट चौथ की पूजा
के लिए लकड़ी की
चौकी, पीला कपड़ा, लौंग,
रोली, अबीर, गुलाल, गाय का घी,
दीप, धूप, गंगाजल, मेहंदी,
सिंदूर, इलायची, अक्षत, हल्दी, मौली, गंगाजल, 11 या 21 तिल के लड्डू,
मोदक, फल, कलश, चंद्रमा
को अर्घ्य देने के लिए
दूध, चीनी आदि, इत्र,
सकट चौथ व्रत कथा
की पुस्तक।
भोग
भगवान गणेश को जो
चीज सबसे ज्यादा प्रिय
है वो है मोदक
और लड्डू. आप गणेश जी
को बेसन के लड्डू
का भोग लगा सकते
हैं.
नियम
सकट चौथ के
दिन भगवान गणेश को उनके
हरे रंग के ही
कपड़े पहनाना चाहिए।
सकट चौथ के
दिन भगवान गणेश को तिलकुट
का भोग लगाना न
भूलें।
इस दिन तिल
से बनी चीजों, तिल
के लड्डू या तिल से
बनी मिठाई का भोग लगाया
जा सकता है।
सकट चौथ के
दिन चंद्रमा को जल अर्घ्य
देने के बाद ही
व्रत का पारण किया
जाता है।
इन मंत्रों का करें जाप
गणपूज्यो
वक्रतुण्ड
एकदंष्ट्री
त्रियम्बकः।
नीलग्रीवो
लम्बोदरो
विकटो
विघ्रराजक
:।।
धूम्रवर्णों
भालचन्द्रो
दशमस्तु
विनायकः।
गणपर्तिहस्तिमुखो
द्वादशारे
यजेद्गणम।।
गणेश स्तुति मंत्र
ॐ
श्री
गणेशाय
नमः।
ॐ
गं
गणपतये
नमः।
ॐ
वक्रतुण्डाय
नमः।
ॐ
हीं
श्रीं
क्लीं
गौं
गः
श्रीन्महागणधिपतये
नमः।
ॐ
विघ्नेश्वराय
नमः।
गजाननं
भूतगणादि
सेवितं,
कपित्थ
जम्बूफलसार
भक्षितम्।
उमासुतं
शोक
विनाशकारणं,
नमामि
विघ्नेश्वर
पादपंकजम्।
No comments:
Post a Comment