Tuesday, 21 January 2025

महाकुंभ : ‘नागवासुकी’ के दर्शन बगैर अधूरा है ‘संगम स्नान’

महाकुंभ : ‘नागवासुकीके दर्शन बगैर अधूरा हैसंगम स्नान’ 

महाकुंभ में भारतीय ही नहीं विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचे हैं. महाकुंभ में अब तक नौ दिन में नौ करोड़ से अधिक श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा चुके है। लेकिन नौ दिनों में प्रयागराज के दारागंज के उत्तरी कोने पर स्थित प्राचीन नागवासुकी मंदिर में भी आस्थावानों का रेला उमड़ पड़ा है। कहते है मंदिर में नागराज वासुकी साक्षात विराजमान हैं। यही वजह है कि संगम में डुबकी लगाने वाला हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री मत्था टेकने पहुंचने रहा है। मान्यता है की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक की वह नागराज वासुकी का दर्शन कर लें। यहां कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए पूजा अर्चना भी की जाती है। इस मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था। उसने मूर्ति पर जैसे ही भाला चलाया तो अचानक दूध की धार निकली और चेहरे के ऊपर पड़ने से वो बेहोश हो गया। धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सी के तौर पर किया था। समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था. मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है, उसकी सारी बाधायें दूर हो जाती हैं। साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है 

सुरेश गांधी

फिरहाल, धर्म एवं आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम में चल रहे महाकुंभ में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है. 144 वर्षों के बाद आयोजित हो रहे महाकुंभ में देश-दुनिया से रोजाना लाखों लोग कुंभ में पहुंचकर संगम में डुबकी लगा रहे हैं. इस महाकुंभ में पहुंचने वाले लोग स्वयं को भाग्यशाली मान रहे हैं. 45 दिनों तक चलने वाले इस महाकुंभ में 45 करोड़ लोगों के शामिल होने का अनुमान है

कहते हैं कि महाकुंभ में स्नान करने के लिए स्वयं देवी-देवता नीचे उतर आते हैं और गंगा-यमुना का जल अमृत के समान हो जाता है. उस शुभ योग में कुंभ स्नान करने वालों को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है और वे जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति करते हैं. लेकिन ये मनोकामनाएं तब पूरी होती है जब आप नागों के राजा वासुकी नाग का दर्शन पूजन करते हैं. कहा जाता है प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन कर लें. वासुकी नाग के दर्शन करने मात्र से लोगों के सर्प दोष दूर हो जाते हैं.

नागवासुकी मंदिर में वासुकी की भव्य मूर्ति स्थित है. गंगा नदी के किनारे बसा यह मंदिर आध्यात्मिकता का भी प्रमुख केंद्र है. यहां  कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए पूजा अर्चना भी की जाती है. माघ, अर्ध कुंभ, महाकुंभ के साथ ही नाग पंचमी, सावन आदि प्रमुख मौकों पर भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है

कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था. जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक दूध की धार निकली और उसके चेहरे पर पड़ने से वह बेहोश हो गया

वेद-पुराणों में भी नागवासुकी मंदिर का जिक्र मिलता है. पौराणिक कथानुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सी के तौर पर किया था. वहीं, समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे। जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी। जलन को दूर करने के लिए वासुकी मंद्राचल पर्वत चले गए, लेकिन उनके शरीर की जलन खत्म नहीं हुई। तब नाग वासुकी ने भगवान विष्णु से अपनी पीड़ा के बारे में बताया और जलन खत्म करने का उपाय पूछा। 

भगवान विष्णु ने नागवासुकी को बताया कि वह प्रयाग चले जाएं वहां सरस्वती नदी का अमृत जल का पान करें और वही विश्राम करें, इससे उनकी सारी पीड़ा है खत्म हो जाएगी। भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था. इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है. जो भी श्रद्धालु नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है, उसकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. मंदिर के पुजारी श्याम बिहारी ने बताया कि शंकर भगवान के गले में जो नाग है, वही नागवासुकी हैं, जिनका मंदिर यहां है. इन्होंने देवताओं के लिए अपना शरीर अर्पण कर दिया था

बता दें, महाकुंभ को भव्य और दिव्य बनाने के लिए योगी सरकार द्वारा प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार और कॉरिडोर निर्माण किया गया. नाग वासुकी मंदिर, अलोप शंकरी शक्तिपीठ, लेटे हनुमान जी मंदिर और मनकामेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार कॉरिडोर से श्रद्धालुओं को सुगम दर्शन की सुविधा मिल रही है और महाकुंभ में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह मंदिर महत्व रखता है. इस मंदिर का दर्शन पूजन करने के बाद तीर्थ सफल माना जाता है. साथ ही यहां रुद्राभिषेक भी होता है। यहां सबकी मनोकामना पूरी होती है। 

समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु द्वारा उन्हें यहां जगह दिया गया। यहां ब्रह्मा जी ने शंकर जी के स्थापना के लिए यज्ञ किया था। उस यज्ञ में भगवान वासुकी जी भी गए हुए थे। जब वे वापस आने लगे तो विष्णु जी ने कहा कि इन्हें यहां स्थापित कर दिया जाए। वासुकी जी थोड़ा नाराज हुए कि मैं सात हजार वर्ष से यहां पड़ा हूं और आज मेरी याद आई। विष्णु जी ने कहा कि नाराज मत होइए, कोई वचन मांग लीजिए। तब उन्होंने वचन मांगा कि कुंभ सावन की नाग पंचमी को तीनों लोक में हमारी पूजा हो। यहां सावन में दर्शन करने मात्र से सभी ग्रहों का नाश हो जाता है। कुंभ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह मंदिर महत्व रखता है। इस मंदिर का दर्शन पूजन करने के बाद भी कुंभ तीर्थ सफल माना जाता है। यहां दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में हर साल इजाफा देखने को मिल रहा है। यि मंदिर काफी प्राचीन है. इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है कि यह मंदिर कब बना. लेकिखास यह है कि दुनिया का यह इकलौता मंदिर है, जहां नागवासुकि की आदमकद प्रतिमा है

मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान इस दौरान मंदिर में विग्रह के दर्शन मात्र से पाप का नाश होता है. वहीं, कालसर्प के दोष से भी मुक्ति मिलती है. इसकी परंपरा महाराष्ट्र के पैष्ण तीर्थ से जुड़ती है, जो नासिक की तरह गोदावरी के तट पर स्थित है. अपने अनूठे वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध नागवासुकि मंदिर के पूर्व-द्वार की देहली पर शंख बजाते हुए दो कीचक बने हैं, जिनके बीच में लक्ष्मी के प्रतीक कमल दो हाथियों के साथ बने हैं. इसकी कलात्मकता सबसे अधिक आकर्षित करती है. नागवासुकि का विग्रह भी आकार-प्रकार में कम सुंदर नहीं है. देश में ऐसे मंदिर अपवाद रूप में ही मिलेंगे, जिसमें नाग देवता को ही केंद्र में प्रतिष्ठित किया गया हो. इस दृष्टि से नागवासुकि मंदिर असाधारण महत्ता रखता है. मान्यता है कि परमपिता ब्रह्मा के मानसपुत्रों ने नागवासुकी को मूर्ति के रूप में यहां स्थापित किया हैं। यहां मौजूद पत्थर 10 वीं सदी से भी प्राचीन बताये जाते हैं। मंदिर परिसर मे गणेश पार्वती, भीष्म पितामह की शर-शय्या पर लेट हुई प्रतिमा भगवान शिव की भी मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि मराठा शासक श्रीधर भोंसले ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया. वहीं, कुछ लोग इसका श्रेय राघोवा को देते हैं. जैसे असम के गुवाहाटी में नवग्रह-मंदिर ब्रह्मपुत्र के उत्तर तट पर स्थित है, वैसे ही प्रयागराज में नागवासुकि मंदिर भी गंगा के तट पर अलग स्थित दिखायी देता है. आर्यसमाज के अनुयायी भी इस मंदिर की महत्ता मानते हैं. दरअसल, स्वामी दयानंद सरस्वती ने कुंभ मेले के दौरान कड़ाके की ठंड में कई रातें इस मंदिर की सीढ़ियों पर काटी थीं.

दूर होते हैं कालसर्प दोष

देश में कालसर्प दोष निवारण की विशेष पूजा त्र्यबंकेश्वर, उज्जैन, हरिद्वार और वाराणसी में भी होती है, लेकिन वहां पर नागवासुकि मंदिर नहीं है, इसलिए दोष निवारण के लिए प्रयागराज की विशेष ख्याति है. जिनकी कुंडली में कालसर्प योग होता है, वो यहां जरुर पहुंचते है। मंदिर में जातक स्वयं पूजा-पाठ का सामान ले जाकर काल सर्प दोष से मुक्ति पा सकते हैं। इसके लिए पूजा विधि भी बताई जाती है। सबसे पहले प्रयाग के संगम में स्नान कर लें फिर वासुकी नाग मंदिर में मटर, चना, फूल, माला और दूध के साथ जाए। इसके बाद वासुकी नाग के दर्शन करके उन्हें उक्त सामग्री अर्पित करके उनसे काल सर्प दोष दूर करने की प्रार्थना करें। 

एक अन्य कथा के हवाले से पुजारी बताते है कि जब देवी गंगा स्वर्ग से गिरीं तो वह पृथ्वी लोक से पाताल लोक में चली गईं। वहां उनकी धारा नागराज वासुकी के फन पर गिरी। इससे ही इस स्थान पर भोगवती तीर्थ का निर्माण हुआ। इसके बाद नागराज वासुकी और शेष भगवान पाताल लोक से चल कर वेणीमाधव का दर्शन करने प्रयाग आएं। जब वह प्रयाग आएं तो भोगवती तीर्थ भी साथ में आए। यही वजह है कि इस स्थान को नागराज वासुकी के साथ भोगवती तीर्थ का वास भी माना जाता है। यहां मंदिर से पूर्व की ओर गंगा के पश्चिमी हिस्से में भोगवती तीर्थ है। बारिश के मौसम में जब गंगा में बाढ़ आती है तो इसका जल मंदिर की सीढ़यिं तक पहुंच जाता है। कहा जाता है कि उस समय जो भी श्रद्धालु वहां स्नान करते हैं उन्हें भोगवती तीर्थ का लाभ मिलता है। कथानुसार, मराठा के एक राजा, जिन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। उन्होंने नाग वासुकी के मंदिर में मन्नत मांगी कि यदि उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया तो वह मंदिर का जीर्णोद्धार कराएंगे। इसके बाद कुछ ही वक्त में राजा कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। तब उन्होंने नाग वासुकी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसके अलावा उन्होंने मंदिर के साथ ही पक्के घाट का निर्माण कराया।    

मुख्य द्वार पर रक्षक के रूप में

स्थापित है भीष्म पितामह

मान्यता है कि घर में सांप निकलने पर इस मंदिर के दर्शन कर 5 पत्थर की गोट्टियां ले जाकर अपने घर में रख ले। सांप के साथ सारे दोष अपने आप खत्म हो जाएंगे। कहते है यहां रहने के दौरान ही वाराणसी के दिवोदास जी महाराज ने नाग वासुकी को प्रसन्न करने के लिए 60 हजार साल तक तपस्या की थी। स्वस्थ होने के बाद जब नाग वासुकी यहां से जाने लगे देवताओं ने उन्हें रोकने की कोशशि की। तब नाग वासुकी ने यह शर्त रखी थी, ’’यदि मैं प्रयाग में रुकूंगा तो संगम स्नान के साथ श्रद्धालु के लिए मेरा दर्शन अनिवार्य होगा और दूसरा सावन की पंचमी के दिन तीनों लोकों में एक साथ मेरी पूजा होगी।’’ जब देवताओं ने उनकी इन मांगों को स्वीकार कर लिया। तब नाग वासुकी जी को ब्रह्माजी के मानस पुत्र द्वारा वहीं पर स्थापित किया गया

मंदिर के पुजारी ने कहा, “मंदिर के अंदर स्थित गर्भगृह में प्रतिदिन शाम को भोजन आरती के बाद बिस्तर लगाया जाता है। सुबह जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो बिस्तर का चद्दर अस्त-व्यस्त होता है। जैसे उस पर कोई लेट हो। मान्यता है कि नाग वासुकी प्रतिदिन बिस्तर पर आराम करते हैं।“ 

इस मंदिर के आस-पास बनी सैकड़ों घरों में सावन मास में अक्सर सांप दिखाई देते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि आज तक इस क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति को कभी भी किसी जहरीले जंतु ने नहीं काटा और ना ही किसी को कोई नुकसान पहुंचाया। नागवासुकि को शेषराज, सर्पनाथ, अनंत और सर्वाध्यक्ष भी कहा गया है। शिव और श्रीगणेश इन्हें अपने गले में धारण करते हैं। पद्म पुराण में इनको संसार की उत्पत्ति और विनाश का कारक बताया गया है। मंदिर के मुख्य द्वार पर रक्षक के रूप में भीष्म पितामह की मूर्ति भी यहां स्थापित है।




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