Monday, 20 January 2025

द्विपुष्कर योग में मनेगी कालाष्टमी, व्रत से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल

द्विपुष्कर योग में मनेगी कालाष्टमी, व्रत से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल 

कालाष्टमी भगवान शिव के उग्र रूप भैरव बाबा को समर्पित है

जीवन की सारी नकारात्मकता दूर होती है

साथ ही सभी संकटों का नाश होता है

साथ ही विशेष चीजों का दान करने से अन्न और धन की कमी नहीं होती है

इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है

सुरेश गांधी

वाराणसी। माघ महीने की मासिक कालाष्टमी व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है। इस तिथि पर लोग भैरव बाबा की पूजा-अर्चना करते हैं। कहते है, जो भक्त भैरव बाबा की उपासना करते हैं उनकी सभी समस्याओं का अंत तुरंत हो जाता है। साथ ही सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। जीवन की सारी नकारात्मकता दूर होती है। साथ ही सभी संकटों का नाश होता है। साथ ही विशेष चीजों का दान करने से अन्न और धन की कमी नहीं होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


काल
भैरव की कृपा से व्यक्ति काल के चक्र से मुक्त हो जाता है। कहते है जो व्यक्ति कालाष्टमी के दिन व्रत रखता है। उसे सभी संकटों से छुटकारा मिल जाता है। कालाष्टमी भगवान शिव के उग्र रूप भैरव बाबा को समर्पित है। कालभैरव भगवान शिव के क्रोध रूप हैं और उन्हें तांत्रिक देवता भी माना जाता है। काल भैरव की पूजा करने से बुरी शक्तियों का नाश होता है और जीवन में सकारात्मकता का वास होता है। काल भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। उनकी पूजा-अर्चना करने से जातक को तमाम बुरे प्रभावों से सुरक्षा प्राप्त होती है। काल भैरव की कृपा से जीवन में सफलता भी मिलती है। तंत्र-मंत्र या जादू-टोने से जुड़ी हर प्रकार की बाधा समाप्त हो जाती है। ज्योतिषीय दृष्टि से, काल भैरव की पूजा करने से नवग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के कृष्ण फक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन 22 जनवरी को दोपहर 3 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में मासिक कालाष्टमी का व्रत 21 जनवरी, 2025 दिन मंगलवार को रखा जाएगा। 

खास यह है कि साल की पहली मासिक कालाष्टमी के दिन शिववास एवं द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है। द्विपुष्कर योग में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को दोगुना फल मिलता है। साथ ही स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस शुभ दिन पर द्विपुष्कर योग सुबह 07 बजकर 14 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अमृत काल शाम 04 बजकर 23 मिनट से शाम 06 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। वहीं, विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 19 मिनट से दोपहर 03 बजकर 01 मिनट तक रहेगा।

कालाष्टमी पूजा मंत्र

काल भैरवाय नमः।।

क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट।।

हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः।।

ह््रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह््रीं।

ह््रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह््रीं।

ह््रीं बटुक! शापम विमोचय विमोचय ह््रीं कलीं।

र्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्

द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये ।।

नमो भैरवाय स्वाहा।

भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।

पूजा विधि

कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।

सूर्य देव को जल अर्पित करें।

घर और मंदिर की सफाई करें।

भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना करें।

दीपक जलाकर आरती करें।

मंत्रों का जप करें।

विशेष चीजों का भोग लगाएं।

जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें।

अन्न और धन का दान करें।

इन कामों को करने से बचें

तामसिक चीजों का सेवन करें।

किसी से लड़ाई-झगड़ा भूलकर भी करें।

बड़े-बुजुर्गों और महिलाओं का अपमान करें।

भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है। इस दिन काले कुत्ते को रोटी जरूर खिलानी चाहिए। कालाष्टमी पर किसी पास के मंदिर जाकर कालभैरव को दीपक जरूर लगाना चाहिए।

सामाग्री

काले तिल

सरसों का तेल

फल और मिठाई

धूपबत्ती

चंदन

काले वस्त्र

गुड़

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और धूप-दीप जलाएं।

कालभैरव बाबा की प्रतिमा को गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक करें।

काले तिल, सुपारी, लौंग, फूल, चंदन, रोली, सिंदूर आदि अर्पित करें।

भोग में फल, मिठाई, या अन्य भोजन चढ़ाएं।

पूजा के दौरान कालभैरव बाबा के मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें।

कालभैरवाय नमः

आखिर में कालभैरव की आरती करें।

मूर्ति का तीन बार प्रदक्षिणा लगाएं।

काले कुत्ते को रोटी खिलाएं।

सरसों के तेल से करें पूजा इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में नहाकर व्रत करने का संकल्प लें। फिर पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें। ह््रीं उन्मत्त भैरवाय नमः का जाप करें। इसके उपरान्त काल भैरव की आराधना करें। अर्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें। व्रत के सम्पूर्ण होने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं।

त्रिदेवों के विवाद से हुई काल भैरव की उत्पत्ति

प्राचीन काल की एक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच यह प्रश्न उठा कि उनमें से सबसे श्रेष्ठ कौन है। इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवी-देवताओं की सभा का आयोजन हुआ। गहन विचार-विमर्श के बाद भगवान शिव और विष्णु ने सभा के निर्णय को स्वीकार कर लिया, लेकिन ब्रह्मा जी असंतुष्ट रहे। उन्होंने भगवान शिव का अपमान करने का प्रयास किया, जिससे शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए। ऐसे में भगवान शिव ने अपने रौद्र रूप में काल भैरव को प्रकट किया। काल भैरव काले कुत्ते पर सवार होकर हाथ में दंड लिए प्रकट हुए थे। उन्होंने क्रोध में ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। इस घटना के बाद ब्रह्मा जी ने क्षमा याचना की, जिससे शिव का क्रोध शांत हुआ। इस घटना के बाद काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न स्थानों पर भटकना पड़ा। जब वे वाराणसी पहुंचे तब उन्हें अपने पापों से मुक्ति मिली। काल भैरव कोमहाकालेश्वरऔरडंडाधिपतिके नाम से भी जाना जाता है। वाराणसी में उन्हेंदंडपानीकहा जाता है क्योंकि यहां उन्हें दंड (पाप) से मुक्ति मिली थी।

शिव के अंश है कालभैरव

शिवपुराण के शतरुद्र संहिता में वर्णित है, वैरवः पूर्णरुपो हि शंकरस्य परमात्मनः अर्थात भैरव शिव के पूर्ण अवतार ही है। वाराह और कर्म पुराण में भी भैरव कथ का वर्णन है। पृथ्वी पर भगवान शिव के अनेको स्वरुप एवं हजारों नाम शास्त्रों में भी वर्णित है। कहीं पंचमुखी तो कही त्रिमुखी भगवान शिव के स्वरुप दिखते है। पंचमुख शिव पंचमहाभूत के द्योतक है। काशी में इन पंचमुख के अलग-अलग मंदिरों में विधि विधान से स्थापित है। महाकालेश्वर-महामृत्युजंय दारानगर ईशानेश्वर कोतवालपुरा, नंदिकेश्वर विश्वनाथ ज्ञानवापी, उमेश्वर मैदागिन भैरेश्वर मैदागिन में आज भी अवस्थित है। एलिफेंटा की प्रसिद्ध त्रिमुखी मूर्ति में भी एकमुखाकृति अघोर स्वरुप बाबा कालभैरव का मिलता है। जिसे भगवान शिव का रौद्र रुप माना जाता है। भैरवः शस्यते लोके प्रत्यायतन संस्थितः। भूलामतने कार्यो भैरव स्तुभयड़करः।। नामक इस श्लोक में भी बाबा कालभैरव की महिमा वर्णित है।

सबसे प्रमुख गण हैं काल भैरव

भैरवजी भगवान शिव के अतिप्रिय और विश्वासपात्र हैं। कुछ विद्वान उन्हें प्रकारांतर से शिव का अवतार मानते हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार भैरव जी शिव जी के सर्वप्रधान गण हैं। शिव दरबार के अध्यक्ष अथवा मुख्य सचिव। उन्हें शिवजी के गणों में सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है। प्रत्येक शिव मंदिर की अदृश्य रूप में देखभाल श्री भैरवजी ही करते हैं। जहां भी शिवमंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरव जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। जहां नहीं की जाती, वहां मानसिक रूप से उनकी उपस्थिति की कल्पना करके उनकी पूजा की जाती है। शिवजी के गणों में वीरभद्र का भी नाम प्रसिद्ध है, किन्तु वह केवल अनुचर हैं, जबकि भैरवजी स्वयं समर्थ और देवतुल्य अधिकार सम्पन्न हैं। यहां तक कि उन्हें शिवजी का प्रतिरूप अथवा स्थानापन्न भी माना जाता है। हालांकि भैरवजी की आकृति भयंकर है, देख कर रोमांच हो जाता है, लेकिन भक्तों पर कृपालु होकर उनका संकट निवारण करने में वे सबसे आगे रहते हैं।

No comments:

Post a Comment

मौनी अमावस्या : सभी दोषों से मिलेगी मुक्ति, प्राप्त होगी आध्यात्मिक शक्ति

मौनी अमावस्या : सभी दोषों से मिलेगी मुक्ति , प्राप्त होगी आध्यात्मिक शक्ति   सनातन में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है . इ...