‘गणतंत्र’ की शक्ति से बढ़ा है हमारा ‘गर्व’
आज हम अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। अब तक के सफर पर नजर डालें तो गर्वानुभूति कर सकते हैं कि एक राष्ट्र की तरक्की के जो सोपान हो सकते हैं, हमारी स्थिति उनमें काफी संतोषजनक है। विशेषकर अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हमारी प्रगति दुनिया को चौंकाने वाली हैं। विश्व की पांचवी बड़ी आर्थिक शक्ति कहलाते हैं और अब तीन में शुमार होने के पथ पर अग्रसर है। मतलब साफ है 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित करने का साहस व विजन हमने दर्शाया है। तकनीकी, उत्पादन, चिकित्सा, शिक्षा और आधारभूत संरचना सबमें अपना देश दुनिया के बड़े राष्ट्रों में गिना जाता हैं। खास यह है कि भारत राजनीतिक और बेहद मजबूत वर्चस्व वाला देश बन गया है, जिसे दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकतें नेतृत्वकर्ता की तरह देखती है। कहा जा सकता है गणतंत्र दिवस देश के निश्चय को मजबूत बनाता है। संविधान नागरिकों के अधिकर बताता है और उन कर्त्तव्यों का निर्देश भी देता है जो उसके संचालन को सहज बनाएं। मौजूदा परिस्थितियों में युवाओं की सोच भी बदल रही है. कुल मिला कर, कह सकते हैं कि यह नये आशावाद का जन्म है. भारत के 76 वें गणतंत्र दिवस 2025 की थीम ’स्वर्णिम भारतः विरासत और विकास’ है। ये थीम देश की विरासत को संभालते हुए भारत की प्रगति की यात्रा को दर्शाती है
सुरेश गांधी
फिरहाल, 76वें गणतंत्र दिवस
के लिए पूरा भारत
तैयार है. देखा जाएं
तो गणतंत्र दिवस देश के
उन महान पुरुषों के
बलिदान को याद करने
का दिन है, जिन्होंने
भारत को गुलामी की
जंजीरों से मुक्त कराने
के लिए अपने प्राण
न्योछावर कर दिए। इसमें
उनका अपना कोई निजी
स्वार्थ नहीं था। वह
भारत की जनता को
सिर उठाकर सम्मान से जीने का
अधिकार दिलाना चाहते थे। यह सम्मान,
अधिकार और सामान कानून
से ही संभव था
और यह दोनों ही
चीजें भारत के संविधान
में सबसे ऊपर रखी
गई है। मतलब साफ
है भारत का संविधान
दो निम्नलिखित बिंदुओं पर पूर्णतः पारदर्शी
है। पहला है देश
के हर एक नागरिक
को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देना
तथा दूसरा है देश की
विकास सबका योगदान, जो
इस समय पूर्णतः तो
नहीं लेकिन दिखने लगा है। हर
स्तर पर राष्ट्र की
चेतना मजबूत हुई है। उसी
का परिणाम है कि यूक्रेन
हो या इजराइल फिलिस्तीन
संघर्ष, दुनिया को लगता है
कि भारत बात करेगा
तो वह मान जाएंगे।
भारत इस भरोसे को
निभाता भी है, जिससे
शांति स्थापित करने की दिशा
में कुछ सफलता मिलती
है। ऐसी ही परिकल्पना
हमारे संविधान निर्माता ने की थी।
भारत के विश्व गुरु
बनने की परिकल्पना राजनीतिक
प्रभुत्व का ही साक्षात
उदाहरण है कि जब
हम रूस यूक्रेन युद्ध
में आधी से ज्यादा
दुनिया रुस पर प्रतिबंधों
की बौछार करती है, तब
भारत रूस से क्रूड
ऑयल का सौदा करता
है। कोई देश हमें
दबा नहीं सकता, कोई
किसी चीज के लिए
बाध्य नहीं कर सकता।
देश की प्रगति देखने
का एक नजरिया अन्य
राष्ट्रों से तुलना भी
होता है। इस पहलू
से भी भारत गर्व
कर सकता है।
हमारे समकालीन आजाद हुए और
हमने बाद में गणतंत्र
बने ज्यादातर देशों से हम काफी
अच्छी स्थिति में है। यह
सब इसलिए है कि हम
मजबूत गणतंत्र है और यह
हमारे संविधान निर्माताओं की देन है।
अंग्रेजों की 200 साल से ज्यादा
की गुलामी से निकले देश
को किस तरह न
सिर्फ अपने पैरों पर
खड़ा करना है बल्कि
चलना और सरपट दौड़ना
है, यह हमारी दूरगामी
सूझबूझ और दृष्टि उन्हीं
में थी। यही दृष्टि
और समझ हमारे संविधान
की नींव है, जो
देश को आगे बढ़ाने
में भी कारगर और
लगातार बढ़ भी रही
है। सब कुछ हासिल
हो गया है और
आगे के लिए कुछ
करना शेष नहीं रहा,
ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। आगे
की तरक्की और गर्व के
अनेक मुकाम आएंगे, जिनकी बदौलत हर भारतवासी को
मुस्कुराने का मौका मिलेगा।
भारत की विकास यात्रा
जारी रहेगी और वह विश्व
के दूसरे देशों का भी मार्गदर्शन
करेगा। लेकिन यह तभी संभव
ही पायेगा जब हम जल
संरक्षण, बिजली की बचत, खेती
में कम रसायनों का
उपयोग और सार्वजनिक परिवहन
के उपयोग के माध्यम से
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के
प्रति और अधिक जागरुक
होंगे। स्वच्छता अभियान को नई ऊर्जा
प्रदान करने, जीवनशैली के मुद्दों से
निपटने और युवाओं द्वारा
मोबाइल फोन से परे
दुनिया की खोज करने
के तरीके अपनाने होंगे। देश की तेजी
से बढ़ती आबादी युवाओं
द्वारा सशक्त हो रही है।
भारत आने वाले 25-30 वर्षों
तक कामकाजी उम्र की आबादी
के मामले में अग्रणी बनने
जा रहा है, दुनिया
भी इस बात को
मानती है।
युवा शक्ति परिवर्तन
की वाहक भी है
और परिवर्तन की लाभार्थी भी
है। युवा ही हैं
जो भविष्य में नए परिवार
और एक नया समाज
बनाएंगे। उन्हें यह तय करने
का अधिकार है कि एक
विकसित भारत कैसा होना
चाहिए। इसी भावना के
साथ देश के हर
युवा को विकसित भारत
की कार्ययोजना में लगना होगा।
देश के प्रत्येक नागरिक
की इसमें भागीदारी और सक्रिय भागीदारी
होनी चाहिए। व्यक्ति से समाज और
समाज से राष्ट्र का
निर्माण होता है। एक
जिम्मेदार व्यक्ति के लिए समाज
और राष्ट्र के प्रति भी
जिम्मेदारी होती है। अगर
इसका निर्वाह नहीं किया जाए
तो उन्नत, सुसंस्कृत एवं आदर्श समाज
या देश की कल्पना
संभव नहीं है। मतलब
साफ है हमें अपने
पारिवारिक दायित्वों के साथ देश
और समाज के प्रति
दायित्वों को निर्वाह भी
पूरी ईमानदारी से करना चाहिए।
क्योंकि मनुष्य जब जिम्मेदारी से
भागता है तो उसका
व्यक्तित्व बौना हो जाता
है। जिम्मेदारी मिलने पर उसमें सफलता
और विफलता दोनों की संभावना होती
है। क्यों न हम गणतंत्र
के मौके पर संकल्प
लें, हम अपने देश
में जहां भी जिस
पद पर हैं अपनी
भूमिका ईमानदारी से निभाएंगे। साथ
ही दायित्व से मुंह नहीं
मोड़ेंगे। यही भावना और
नागरिक बोध हमें जापान,
अमेरिका और अन्य विकसित
राष्ट्रों से मजबूत और
प्रगतिशील बनाएंगा। गणतंत्र दिवस के अवसर
पर सभी को आत्म
अवलोकन करना चाहिए और
देश के प्रति अपने
कर्तव्यों को याद करना
चाहिए। शिकायतें करने की बजाय
समस्याओं का निराकरण कैसे
हो सकता है, के
मुद्दे पर बात होनी
चाहिए। खास तौर पर
नेताओं और नौकरशाहों को
इस ओर ध्यान देना
चाहिए। गरीबों के चेहरे पर
मुस्कुराहट लाकर गणतंत्र को
मजबूत बनाया जा सकता है।
एक समाज, समुदाय
या देश के नागरिक
होने के नाते कुछ
दायित्वों का पालन व्यक्तिगत
रूप से करनी चाहिए।
ये भारत के नागरिकों
के लिए आवश्यक है
कि वो वास्तविक अर्थो
में आत्मनिर्भर बनें। ये देश के
विकास के लिए बहुत
आवश्यक है, यह तभी
संभव हो सकता है,
जब देश में अनुशासित,
समय के पाबंद, कर्तव्यपरायण
और ईमानदार नागरिक हों। हमें जरूरतमंद
लोगों की मदद करनी
चाहिए। परिवार एवं आसपास के
लोगों से मेलजोल और
समन्वय के साथ रहना
चाहिए। इससे परिवार और
समाज में शांति, आपसी
प्रेम और परस्पर विश्वास
की रसधार बहेगी। डिजिटल भारत, स्वच्छता अभियान, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्यसेवा, इंफ्रास्ट्रक्चर और सूचना तकनीक
जैसे क्षेत्रों में अपनी भागीदारी
सुनिश्चित करनी होगी। 2022 में
स्वतंत्रता दिवस पर अपने
संबोधन में मोदी ने
कहा था हमें 2047 तक
भारत को विकसित राष्ट्र
बनाने का संकल्प लेना
चाहिए, जब हमारी स्वतंत्रता
के सौ वर्ष पूरे
होंगे. लेकिन यह तभी संभव
हो पायेगा, जब हम खुद
इसके प्रति गंभीर होंगे। भारत अभी दुनिया
की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
है और एक-दो
साल में यह जर्मनी
को पीछे छोड़ते हुए
चौथे स्थान पर पहुंच जायेगा,
लेकिन प्रति व्यक्ति आय के हिसाब
से अब भी यह
130वें स्थान से नीचे है.
भारत में प्रति व्यक्ति
आय लगभग 22 सौ डॉलर है,
जबकि वैश्विक औसत 12 हजार डॉलर से
ऊपर है. पंद्रह सबसे
धनी और विकसित देशों
का औसत 42,500 डॉलर है. यूरो
क्षेत्र में भी लगभग
यही औसत है. उत्तरी
अमेरिका में प्रति व्यक्ति
आय 68 हजार डॉलर है.
दक्षिण एशिया का औसत भारत
के बराबर ही है, क्योंकि
यह बड़ा देश है.
उल्लेखनीय है कि आय
के मामले में बांग्लादेश भारत
से आगे है. यदि
क्रय शक्ति समता (पर्चेजिंग पॉवर पैरिटी) के
आधार पर आय को
देखें, तो ये आंकड़े
भिन्न दिखने लगते हैं. इस
आधार पर घरेलू मुद्रा,
जैसे भारत के मामले
में रुपये, को देखें, तो
उसकी क्रय शक्ति अधिक
होती है, जो विनिमय
दर में नहीं दिखती.
कहने का अर्थ
यह है कि भारत
में एक डॉलर में
आप अमेरिका की तुलना में
बहुत अधिक खरीद सकते
हैं. इस तरह भारत
में 22 सौ डॉलर 7000 डॉलर
के लगभग बराबर है,
पर इस मानक पर
भी भारत दुनिया में
128वें तथा एशिया में
31वें स्थान पर है. इस
प्रकार, अगले 25 वर्षों में 30 हजार डॉलर से
अधिक की प्रति व्यक्ति
आय के साथ विकसित
राष्ट्र की श्रेणी तक
पहुंचना बहुत मुश्किल लक्ष्य
है, पर यह प्रश्न
बना रहेगा. अभी भारत दुनिया
के सबसे तेजी से
बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है. बावजूद
इसके हम 81 करोड़ लोगों को
मुफ्त राशन मुहैया करा
रहे हैं. यह उनकी
खाद्य सुरक्षा की चिंता के
कारण है. मुफ्त राशन
भले ही नगद नहीं
है, पर यह उनकी
आय में योगदान करता
है. घर में नल
के जरिये स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता के
लिए राष्ट्रीय जल जीवन मिशन
कार्यरत है. लगभग 19 करोड़
ग्रामीण परिवारों में से तीन
करोड़ के आसपास को
नल की सुविधा मिल
चुकी है, पर बात
केवल नल की ही
नहीं, स्वच्छ जल की भी
है. इससे दूषित जल
से होने वाली बीमारियों
और आर्सेनिक जहर से बचाव
हो सकता है. स्थानीय
सरकारी स्कूल की गुणवत्ता किसी
से छिपी नहीं है.
विकसित राष्ट्रों में माता-पिता
अपने बच्चों के लिए खुशी-खुशी नजदीकी स्कूल
को चुनते हैं, लेकिन हमारे
यहां झुग्गियों में रहने वाले
भी बच्चों को निजी स्कूल
में भेजना पसंद करते हैं
और ट्यूशन पर बड़ा खर्च
करते हैं. नगरपालिका या
गांव के स्कूल में
पढ़ाने वाले शिक्षक भी
अपने बच्चों को निजी स्कूल
में भेजते हैं. कोई राष्ट्र
इसलिए विकसित नहीं होता कि
वहां के गरीब भी
कार पर चढ़ें, बल्कि
इससे निर्धारित होता है कि
धनी लोग भी बस,
ट्रेन और मेट्रो जैसे
सार्वजनिक यातायात के साधनों का
इस्तेमाल करें. ऐसा तभी हो
सकेगा, जब सेवाओं की
गुणवत्ता बहुत अच्छी हो,
वे नियमित हों, भरोसेमंद हों
तथा सस्ती हों.
भारत में विदेशी
पूंजी निवेश बढ़ रहा है।
देश इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवा-सुविधाओं
के मामले में आगे बढ़
रहा है। जरा सोचिए,
यह सबकुछ कहां से हो
रहा है। यह देश
के नागरिकों के टैक्स के
पैसे से ही तो
हो रहा है। कहते
हैं कि भारत में
बेशुमार कालाधन है। लोगों ने
बिना टैक्स दिए बेशुमार दौलत
बना ली है। जरा
सोचिए लोग सच्चे मन
से अपना पूरा-पूरा
टैक्स चुकाएं तो देश कहां
से कहां चला जाएगा।
और टैक्स देने में और
मुट्ठी सख्त कर लें
तो विकास के बदले देश
अवनति की तरफ बढ़
जाएगा। टैक्स के ही पैसे
सड़कें बनती हैं। नहर
निकाली जाती हैं। स्कूल-कालेज, अस्पताल बनते हैं। सड़क,
मोहल्ले, कालोनी व बस्ती रात
में बिजली से जगमगाती है।
जब हम सफल होते
हैं, तो यह व्यक्तिगत
ही नहीं सामाज और
राष्ट्र की भी उपलब्धि
होती है। फर्ज करिये
कि देश के किसी
खिलाड़ी ने ओलंपिक में
सोना या चांदी जीत
लिया तो यह केवल
उस खिलाड़ी की उपलब्धि नहीं
होती, पूरा समाज और
देश उसपर गर्व करता
है। गौरवान्वित होता है। हमारा
फर्ज है कि कुछ
ऐसा करें जिससे, समाज
और देश दोनों गर्व
करे। अपना निजी चाहत
कुछ ऐसा बनाएं जो
बड़े फलक पर बड़े
समुदाय के हर्ष का
कारण बने। जरूरी नहीं
कोई राष्ट्रीय स्तर का ही
कार्य करें। अपने गली-मोहल्ले
के कुछ गरीब बच्चों
को मुफ्त में पढ़ाकर भी
हम राष्ट्र निर्माण में योगदान कर
सकते हैं। व्यक्ति अपना
विकास समाज में रहकर
ही कर सकता है।
समाज से बाहर हम
इसकी कल्पना नहीं कर सकते।
एक नागरिक होने के नाते
हमे अपने देश के
संविधान में वर्णित राष्ट्रीय
कर्तव्यों का अनुपालन पूरी
निष्ठा से करना चाहिए।
देश की एकता-अखंडता
और संस्कृति की रक्षा सब
करें।
गणतंत्र दिवस देश के
निश्चय को मजबूत बनाता
है। संविधान नागरिकों के अधिकार बताता
है और उन कर्तव्यों
का निर्देश भी देता है,
जो उसके संचालन को
सहज बनाएं। वह अतीत को
वर्तमान से और वर्तमान
को भविष्य जोड़ने का भी काम
करता हैं। गणतंत्र के
रूप में भारत की
सात दशकों की विकास यात्रा
चुनौतियां भरी रही है।
आज एक आर्थिक शक्ति,
सामरिक समर्थ और वैज्ञानिक तकनीकी
प्रगति के साथ यह
देश एक नई छबि
गढ़ रहा है। काशी
से लेकर अयोध्या व
नए संसद भव से
लेकर महाकुंभ की भव्यता जनमानस
में आत्मविश्वास बढ़ाने वाले है। अंतर्राष्ट्रीय
स्तर भी भारत की
साख बढ़ी है। संयुक्त
राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भागीदारी और
जी-20 समूह की अध्यक्षता
इसका बड़ा प्रमाण है।
समाज में यह दुष्वृत्ति
घर किए हुए हैं
कि समस्त उत्तरदायित्व सरकार का है। सरकारी
संसाधनों की क्षति उसकी
अपनी क्षति नहीं है। लोकतंत्र
में सरकार का खजाना और
संपत्ति जन धन है।
अर्थात तो यह सब
नागरिकों की संपत्ति है
और उसकी क्षति प्रत्येक
नागरिक की क्षति है।
यद्यपि समय की क्षति
का कोई उल्लेख नहीं
होता है, परंतु राष्ट्र
की सबसे बड़ी इच्छा
समय की बर्बादी है।
समय की पाबंदी को
जनप्रतिनिधि, अधिकारी और कर्मचारी ही
नहीं आम आदमी की
भी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। जनता
के खजाने पर जिस तरह
का अवांछनीय बोझ डाला जाता
है, इस प्रवृत्ति पर
भी रोक लगनी चाहिए।
भारत में भांति-भांति
के अति विशिष्ट व्यक्तियों
की संख्या लाखों में है, इस
पर भी कंट्रोल होना
चाहिए। क्योंकि दुनिया भर के अति
विशिष्ट व्यक्तियों की तुलना में
भारत में उनकी बहुतायत
है। इस पर भी
लगाम लगाने की जरूरत है।
स्वाधीन भारतीय गणतंत्र में जाति, वर्ण,
भाषा, धर्म, प्रथाओं और पारिस्थितिकी की
विलक्षण विविधताएं मौजूद हैं। यहां की
सभ्यता और संस्कृति की
बहूयार्मी संरचना जितनी जीवंत है उतना ही
कठिन है, इन इकाइयों
को बांधकर साथ चलना। विभिन्न
राजनीतिक प्रभावों के घात-प्रतिघात
चलते रहे हैं, उनके
बीच ज्ञान, विज्ञान, कला और साहित्य
के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति
दर्ज हुई है। इसमें
हमें राष्ट्र गौरव का बोध
होता है और विरासत
को संभालने की प्रेरणा मिलती
है।
एक ईमानदार और
सच्चे व्यक्ति को हमेशा अपने
परिवार, समाज और देश
के प्रति दायित्व का अहसास होता
है। इसके अलावा हमें
अपने स्वयं के प्रति का
दायित्व भी है। जैसे
हमेशा स्वस्थ रखना, अपने को फिट
रखना, अपने मन-प्राण
को हमेशा उल्लासित व उर्जावाण बनाए
रखना। तब ही दूसरे
के प्रति जिम्मेदारी निभा पाएंगे। देश
की आजादी के लिए समर्पित
युवाओं की एक पूरी
पीढ़ी अस्तित्व में आई, जिसका
हर प्रयास आजादी के लक्ष्य की
ओर निर्देशित था। आज हर
संस्था, हर व्यक्ति को
इस संकल्प के साथ आगे
बढ़ना चाहिए कि हर प्रयास
और कार्य विकसित भारत के लिए
होगा। आपके लक्ष्यों, आपके
संकल्पों का लक्ष्य एक
ही होना चाहिए- विकसित
भारत’’। भारत को
तेज गति से एक
विकसित देश बनाने के
तरीके खोजने पर विचार करें
और एक विकसित राष्ट्र
बनने की दिशा में
सुधार के लिए विशिष्ट
क्षेत्रों की पहचान भी
करने के अलावा हमें
राष्ट्रीय हित और नागरिक
भावना के प्रति तत्पर
रहना होगा। क्योंकि जब नागरिक, किसी
भी भूमिका में, अपना कर्तव्य
निभाना शुरू करते हैं,
तो देश आगे बढ़ता
है। धर्म और संस्कृति
के प्रति देशवासियों की गहरी निष्ठा
और आस्था होनी चाहिए। राजनीतिक
संस्कृति में गंभीरता और
दायित्व बोध लाने की
जरूरत है। बढ़ती आबादी
के लिए जरूरी सुविधाएं
जुटाना व संसाधन मुहैया
कराना बड़ी चुनौती है।
स्वाधीन भारतीय गणतंत्र में जाति, वर्ण,
भाषा, धर्म, प्रथाओं और पारिस्थितिकी की
विलक्षण विविधताएं मौजूद हैं। यहां की
सभ्यता और संस्कृति की
बहूयामी संरचना जितनी जीवंत है उतना ही
कठिन है, इन इकाइयों
को बांधकर साथ चलना। विभिन्न
सांस्कृतिक प्रभावों के घात-प्रतिघात
चलते रहे हैं। उनके
बीच ज्ञान, विज्ञान, कला और साहित्य
के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति
दर्ज हुई है। इसमें
हमें राष्ट्र गौरव का बोध
होता है और विरासत
को संभालने की प्रेरणा मिलती
है।।
उपभोक्तावाद पर जोर देने
से बाजार को बढ़ावा मिल
रहा है। मानवीय मूल्यों
से दूर होती आमजन
की शिक्षा भी भूल भुलैया
ही साबित हो रही ह।ै
भारत का आधुनिक लोकतंत्र
उपनिवेश की विकट छाया
से मुक्ति की कोशिश में
लगा है। आज भारतीय
सभ्यता और संस्कृति से
जुड़ाव बनाए रखना एक
चुनौती है। मातृभाषा में
पढ़ाई के साथ डिजिटलीकरण
की दिशा में सावधानी
से आगे बढ़ना होगा।
नए माहौल में हाइब्रिड प्रणाली
आवश्यक हो रही है।
ऑनलाइन शिक्षा पूरक और विकल्प
दोनों ही रूपों में
लोकप्रिय हो रही है।
विद्यार्थी और अध्यापक दोनों
के कौशलों और दक्षताओं को
पुर्नपरिभाषित करने की जरूरत
है। कृत्रिम वुद्धि की उपयोगिता व
संभावनाएं बहुत हैं। अनेक
राजनीतिक दलों में दिशाहीनता
नजर आने लगी हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में लोक लुभावन,
स्वार्थ और सत्ता हथियाने
व उस पर अपना
कब्जा जमाएं रखने की इच्छा
मजबूत हो रही है।
आज देश सेवा के
मूल्य को पुनः प्रतिष्ठित
करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
निजी लाभ और समाज
कल्याण के बीच की
खाई को पाटने की
की जरूरत है। अमृत कल
की अपेक्षा है कि हमारी
आकांक्षाओं की लय भारत
की प्रगति के साथ संगत
हो। विकसित राष्ट्र बनाने का स्वप्न देश
के साथ निश्छल प्रतिबद्धता
की मांग करता है।
इसके लिए इसके लिए
सबको जिम्मेदारी निभानी होगी। कहना न होगा
भारत के नागरिकों में
अधिकारों के प्रति जागरूकता
और उनके लिए संघर्ष
की भावना बलवती होती गई है।
हर कोई भारत की
प्रगति में अपना आहुति
देने पर तत्पर है।
भला क्यों नहीं, संसार में हर प्राणी
अपने लक्ष्य की ओर बढ़
रहा है। सूर्य, चंद्र,
सितारे सब अपने लक्ष्य
की ओर बढ़ते रहते
हैं। फिर हमें भी
अपने जीवन में आगे
बढ़ना चाहिए। हमें अपने दायित्व
को समझना चाहिए। अपने राष्ट्र के
प्रति भी हमारे कुछ
दायित्व है। हमें सिर्फ
अपने निजी उद्देश्य पूर्ति
हेतु कार्य नहीं करने चाहिए।
उससे बढ़कर भी हमें
कुछ करना होगा।
आज की युवा
पीढ़ी निजी जीवन के
प्रति चिंतित है। वह अपना
जीवन मौज-मस्ती व
विलासितापूर्ण तरीके से जीना चाहती
है। नौकरी भी वह इसी
तरह की चाहती है।
परिवार, समाज एवं देश
के प्रति उदासीनता का भाव है।
यह बेहद विषैला विचार
है। कहावत सुनी होगी, अपने
लिए जिए तो क्या
जिए। अपना पेट तो
हर जानवर पाल लेता है।
फिर पशु और मानव
में फर्क क्या? मानव
वहीं है जो दूसरे
का उपकार करे। दूसरों की
सहायता करें। माता-पिता भगवान
के दूसरे रूप होते हैं,
उनकी सेवा करें। परिवार
के बड़े सदस्यों को
प्रेम व सम्मान दें
और छोटे के प्रति
स्नेह रखें। उनके लिए आर्थिक
व मानसिक रूप से संबल
बनने का प्रयास करें।
जब एक परिवार व
समाज आपस में अच्छे
रिश्ते से गुंथा व
जुड़ा रहेगा और तरक्की करेगा
तो देश भी आगे
बढ़ेगा। एक-दूसरे का
पैर खींचना शुरू करेगा तो
पतन की तरफ बढ़ता
चला जाएगा। इसका अंतिम पड़ाव
विनाश है। नए भारत
की क्षमता अकल्पनीय है। आगामी बीस
वर्ष भारत के युवाओं
के हैं। हम भारत
को विकसित राष्ट्र बनाने के सपने को
साकार कर सकें, इसके
लिए हमें अपनी ऊर्जा
को नई दिशा देने
की जरूरत है। हमारे आर्थिक
बदलाव में एक अन्य
महत्त्वपूर्ण पहलू भी शामिल
हुआ है। डिजिटल प्रौद्योगिकियां
आमूलचल परिवर्तन ला रही हैं।
आर्थिक प्रतिमान भी बदल रहे
हैं। हर व्यक्ति तक
पहुंचने के लिए डिजिटल
समावेशन हो रहा है।
यूपीआइ, कोविन और डीबीटी के
माध्यम से डिजिटल कौशल
को बड़े पैमाने पर
मान्य किया जा रहा
है। ‘ओपन नेटवर्क फॉर
डिजिटल कॉमर्स’ (ओएनडीसी) ‘मेक-इन-इंडिया’
की तरह की ही
एक पहल है, जो
ई-कॉमर्स के संचालन के
तरीके को मौलिक रूप
से नया रूप देने
की कोशिश करता है। दूसरे
शब्दों में कहें, तो
ओएनडीसी आपको अन्य नेटवर्क
के भागीदारों के साथ जोड़कर
ई-कॉमर्स के माध्यम से
आगे बढऩे का अवसर
प्रदान करता है। यह
ई-कॉमर्स में समाधान भी
करता है।
हम अब तक की अपनी उपलब्धियों पर संतोष की सांस तो ले सकते हैं, लेकिन चैन से बैठने का समय अभी नहीं आया है। भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए इसे 12 हजार डालर पर लाना होगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को लगातार तेज आर्थिक विकास की आवश्यकता होगी। उच्च आर्थिक विकास के लिए मैन्यूफैक्चरिंग में निवेश चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने लगभग सभी महत्वपूर्ण सेक्टर में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम की घोषणा की है। इससे न केवल कुछ महत्वपूर्ण टेक्नोलाजी के मामले में हम आत्मनिर्भर हो सकेंगे, बल्कि मैन्यूफैक्चरिंग हब भी बन सकेंगे। सप्लाई चेन बाधित होने से चीन से बहुत सा निवेश निकल रहा है और ऐसे में पीएलआइ स्कीम ने भारत को निवेश के लिए अच्छे गंतव्य के रूप में सामने रखा है। यूएई, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ आपसी व्यापारिक समझौते करने की भारत की कोशिश से इसे और लाभ मिल रहा है। विरासत पर गर्व करना भी एक अहम प्रण है। भारतीयों को अपनी भारतीय पहचान पर गर्व होना चाहिए। गुलामी की मानसिकता से बाहर आने का प्रण भी विकास के लिए आवश्यक है। हमें पश्चिम का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी राह बनानी होगी और हमने इसकी शुरुआत कर दी है। हमें भारतीयों की समृद्धि के लिए लिए गए फैसलों पर पश्चिम की मुहर का इंतजार नहीं करना चाहिए। एकता एवं एकजुटता भी विकास की राह में एक ऐसा ही प्रण है। सभी तरह के भेदभाव भुलाकर सबके साथ आने से ही देश आगे बढ़ सकता है। अगले 25 साल बहुत अहम हैं। चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन भारत उनसे पार पाने में भी सक्षम है। अगले 25 वर्ष में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का प्रण हर भारतीय को लेना चाहिए। इस दिशा में सभी राजनीतिक दलों और विचारधाराओं को सरकार के साथ मिलकर लक्ष्य की दिशा में बढ़ने का प्रयास करना होगा।
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