Wednesday, 19 February 2025

क्या ‘पश्चिम बंगाल’ बनेगा ‘सनातनियों’ के लिए ‘मृत्यु प्रदेश’...?

क्या ‘पश्चिम बंगाल बनेगा ‘सनातनियों के लिए ‘मृत्यु प्रदेश...? 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हिंदू विरोध की मानसिकता से किस कदर ग्रसित हैं इस बात की बानगी एक फिर देखने को मिली है। या यूं कहे महाकुंभ जैसे महाअमृत पर्व को उनके द्वारामृत्यु कुंभबताने बखेड़ा खड़ा हो गया है. खासकर उस महाकुंभ की, जिसकी दिव्यव्यता, भव्यता और पौराणिकता पूरी दुनिया ने सिर्फ देखी है, बल्कि इस सफल आयोजन की सराहना भी की है. लेकिन तुष्टिकरण का भूत उन पर इस कदर सवार है कि महाकुंभ के नाम के साथ मुत्यु कुंभ जोड़कर ममता ने पूरे सनातन के स्वाभिमान की जड़े हिलाकर रख दी है। उनके इस ओछी मानसिकता से सिर्फ साधु-संतों में आक्रोश की ज्वाला दहक रही है, बल्कि हर सनातनी अपने को अपमानित महसूस कर रहा है। जबकि सच यह है कि जिस हादसे की वह जिक्र कर रही है, उसके बाद भी 56 करोड़ से अधिक आस्थावानों ने तमाम झंझावतों मुश्किलों का सामना करते हुए संगम में डुबकी लगायी है, जो यह बताने के लिए काफी है कि ममता ही नहीं पूरा विपक्ष कुछ अनर्गल अलाप करें, हर सनातनी अपनी आस्था के प्रति संवेदनशील है 

सुरेश गांधी

फिरहाल, दिल्ली चुनाव बीत चुका है और बिहार चुनाव की आहट फिजाओं में तैरने लगी है. इसके बाद 2026 के मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल का चुनाव होना है। लेकिन चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को लेकर सियासत तेज हो गयी है। समाजवादी पार्टी समेत तमाम विपक्षी दल महाकुंभ पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। इसी क्रम में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव, सपा मुखिया अखिलेश यादव के बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने महाकुंभ को लेकर विवादित बयान दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाकुंभ को मृत्यु कुंभ बता दिया है। ममता बनर्जी ने कहा कि ये अब महाकुंभ नहीं रहा बल्कि मृत्यु कुंभ हो गया है। ममता के इस बयान पर वार-पलटवार का दौर शुरू हो गया है। ममता के बयान को लेकर सबसे बड़ा आक्रोश साधु-संतों में है। दरअसल, महाकुंभ के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पावन स्नान के लिए त्रिवेणी संगम पहुंच रहे हैं। महाकुंभ 2025 में 19 फरवरी तक 56.46 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने पवित्र डुबकी लगाई है। इसी बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विवादित बयान के बाद देशभर की राजनीति गरमा गई है। जबकि साधु-संतो ने ममता के बयान को सनातन धर्म का अपमान बताया है

अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ ने सनातन धर्म की दिव्यता को शीर्ष पर स्थापित किया है. वह महाकुंभ का मूल्यकन करती हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा सनातन और उसके प्रतीकों का अपमान किया है. उनका बयान सनातन धर्म के खिलाफ उनकी मानसिकता को दर्शाता है. ऐसे बयान देकर वह भी अरविंद केजरीवाल के रास्ते पर चल रही है. और वही भाग्य (केजरीवाल जैसा) उनका इंतजार कर रहा है और यह महाकुंभ उनके राजनीतिक करियर के लिए जरूर मृत्यु कुंभ साबित होगा. क्योंकि वह पश्चिम बंगाल को दूसरा बांग्लादेश बनाना चाहती हैं. ममता बनर्जी को अपने शब्दों के लिए माफी मांगनी चाहिए। महाकुंभ सनातन संस्कृति और आस्था का प्रतीक है. ममता बनर्जी को स्वयं प्रयागराज महाकुंभ में आकर इसका अवलोकन करना चाहिए. जिस महाकुंभ में 56 करोड़ से अधिक सनातनियों ने पुण्य अर्जित किया और दिव्य अनुभव प्राप्त किया, उसे मृत्यु का कुंभ कहना अत्यंत निंदनीय है.

जगतगुरु संतोष दास सतुआ बाबा ने कहा, ममता बनर्जी देश में रहते हुए भी भारत विरोधी मानसिकता का जीता-जागता उदाहरण हैं। वह पाकिस्तान के लिए कार्य कर रही हैं। जब से वह सत्ता पर काबिज हुई हैं, तब से भारत और बंगाल के लोगों के साथ छल-कपट के साथ उन्होंने काम किया है। उनका बयान करोड़ों हिंदुओं का अपमान है। उनका बयान भारतीय संस्कृति के प्रति श्रद्धा रखने वालों का अनादर है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार उड़ीसा और मैं यूं कहूं कि पूर्वी भारत का हिंदू जिस तरह से जगा है और इस कुंभ के अमृत स्नान के लिए रहा है, उसको लेकर आपके मन में बेचैनी होना स्वाभाविक है. उन्होंने कहा, ’महाकुंभ को मृत्यु कुंभबोलकर उन्होंने करोड़ों श्रद्धालुओं का अपमान किया है. वो  हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों की इज्जत नहीं करती हैं और ना ही वो सनातनियों के विश्वास और आस्था को समझती हैं. वो महाकुंभ में पवित्र डुबकी लगा चुके करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को नहीं समझ सकती. उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि महाकुंभ अनादिकाल से चला रहा है। मगर वह कहती हैं कि महाकुंभमृत्यु कुंभहै। उनकी यह भाषा गलत है। जगतगुरु संतोष दास सतुआ बाबा ने महाकुंभ का जिक्र करते हुए कहा कि दुनियाभर से लोग महापर्व में शामिल होने के लिए लाखों की संख्या में रहे हैं। वहां जो घटना घटी है, उस पर संत समाज और भारत के लोग दुखी हैं। मगर जिस तरह से राजनीतिक दल सियासत कर रहे हैं, वह सही नहीं है। आने वाले चुनाव में उन्हें इसकी सजा मिलेगी। उनको देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। 

बता दें, प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ को लेकर वेस्ट बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला किया है. हाल में हुए भगदड़ की घटना को लेकर ममता बनर्जी ने महाकुंभ कोमृत्यु कुंभकहा. उन्होंने योगी सरकार पर हमला करते हुए यह भी कहा कि कुंभ में वीआईपी लोगों को खास सुविधा दी जा रही है. वहीं, गरीब और आम लोगों को इससे वंचित रखा जा रहा है. इससे पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि कुंभ का कोई मतलब नहीं है. कुंभ फालतू है. तो सपा के अखिलेश यादव ने भी लालू, ममता के बयानों को सही बताते हुए लगातार महाकुंभ पर सवालिया निशान लगा रहे है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो दावा किया कि कुंभ में हजारों लोग मारे गए हैं. समाजवादी पार्टी नेत्री जया बच्चन ने कहा कि भगदड़ में मारे गए लोगों के शवों को गंगा में बहा दिया गया है. इससे पानी प्रदूषित हुआ है और इसी में लोग स्नान कर रहे हैं. लेकिन ममता के बयान ने भाजपा सहित साधु-संतों के अलावा आम सनातनियों में भुचाल ला दिया है। उनके इस बयान को हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया जा रहा है.

मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा प्रयागराज महाकुंभ अमृत पर्व है, जिसकी दिव्यव्यता और भव्यता पूरी दुनिया ने देखी है. उन्हें महाकुंभ के नाम के साथ ऐसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. पश्चिम बंगाल हिंदू सनातनियों के लिए मृत्यु प्रदेश बनता जा रहा है. हजारों सनातनियों का नरसंहार किया जा रहा है और चुनाव के समय लाखों हिंदुओं को पलायन करना पड़ रहा है. उन्हें अपने राज्य की चिंता करनी चाहिए, उत्तर प्रदेश की नहीं. महाकुंभ के शानदार आयोजन के लिए पूरे विश्व से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ मिली है. उन्होंने भव्य आयोजन के साथ एक नया इतिहास रचा है. महाकुंभ आस्था, श्रद्धा और विश्वास का कुंभ होता है. ऐसे में दुखद घटनाओं पर इस तरह की टिप्पणी करना हिंदू धर्म का अपमान है और उनकी मानसिकता को दर्शाता है. ममता बनर्जी ने महाकुंभ को लेकर बेहद घटिया भाषा का इस्तेमाल किया है. यही कारण है कि लोगों का उनके जैसे संगठनों पर से विश्वास उठ रहा है.

आरएसएस यानी संघ की मानें तो मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए ममता स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं। लेकिन ये छद्म धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं पर थोपी जाती है। दरअसल भीतर ही भीतर पश्चिम बंगाल का इस्लामीकरण हो रहा है और इसकी नायिका ममता बनर्जी हैं। ममता के शासनकाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। हाल के दिनों में ममता ने हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगता है कि अपने ही देश के भीतर बहुसंख्यकों को अपनी पूजा-पद्धति और संस्कार बचाने के लाले पड़ गए हैं। आलम यह है कि मुस्लिम प्रेम में ममता ने हाईकोर्ट तक के आदेश को धता बता दिया। उनका मुस्लिम प्रेम इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी गयी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर आदेश दिया कि मोहर्रम के जुलूसों के दौरान दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहेगी।

दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार में मुसलमानों को तो दामाद की तरह रखा जा रहा है, लेकिन हिंदू अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं। 10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है। ममता बनर्जी के राज में बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया। गांव के लोग जगह-जगह फरियाद करके थक गए, लेकिन लगातार चौथे साल भी यहां दुर्गा पूजा नहीं हुई।लेक टाउन रामनवमी पूजा समितिने पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन एंटी हिन्दू एजेंडा चला रही राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी। लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जज न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।

11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। लेकिन धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए। ममता बनर्जी ने 6 अप्रैल, 2017 को बयान दिया कि भगवान राम ने दुर्गा की पूजा फूलों के साथ की थी, तलवारों के साथ नहीं। राम ने रावण को मारने के लिए दंगे नहीं किए। अगर कोई नेता या कार्यकर्ता हथियारों के साथ जुलूस में शामिल होता है तो कानून अपना काम करेगा। चाहे वह कोई भी क्यों ना हो। सभी बराबर हैं। ममता हथियारों के साथ मुहर्रम के मौके पर जुलूस निकलने पर ऐसा कोई बयान नहीं देती और ही पुलिस कभी किसी को गैर जमानती धारा में इस वजह से गिरफ्तार करती है। ममता सरकार का इशारा मिलते ही पुलिस ने एक्शन शुरू कर दिया। हनुमान जयंती जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं। धूलागढ़ दंगे में भी ममता सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में रही। इस दंगे में हिन्दू परिवारों पर आक्रमण हुए। उनके घर जलाए गये, उन्हें मारा-पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए। लेकिन ममता सरकार ने हिन्दुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया। 11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस को सरकारी पुस्तकालयों में भी मनाया जाएगा। बंगाल सरकार के इस नये नियम के हिसाब से राज्य के सभी 2480 से ज्यादा सरकारी पुस्तकालयों में साल के दूसरे प्रस्तावित कार्यक्रम की तरह नबी दिवस मानने की भी बात कही गई। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई। इस आदेश में 51 इवेंट्स की सूची जारी की गई है। जिसमें ईद-उद-मिलाद-उन-नबी जो की मोहम्मद पैगंबर की जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, भी शामिल है।

एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए। तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल दिया गया है। उसेरंगधनुकर दिया है। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया। दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। . बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए . बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं। पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।

खास यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ के पास अकबर के किले को सौंपने को लेकर अखिलेश यादव को घेरा है. मुख्यमंत्री ने कहा, उन्हें पता ही नहीं है कि वहां सरस्वती नदी नहीं है, बल्कि सरस्वती कूप है. अक्षयवट की इन्हें जानकारी ही नहीं है. बुजुर्गों-बच्चों और महिलाओं के स्नान को लेकर भ्रांतियां फैलाई गई हैं कि उन्हें संगम में डुबकी लगाने की सुविधा नहीं है. महाकुंभ को लेकर जिस अभद्र भाषा का इस्तेमाल समाजवादी पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल से किया गया. उससे इनके संस्कार पता चल जाएंगे. इनकी नीयत और प्रवृत्ति और सनातन विरोधी छवि का पता चल जाएगा. मुसलमानों को कुंभ स्नान से रोकने के आरोपों पर सीएम योगी ने कहा, क्रिकेटर मोहम्मद शमी समेत तमाम हस्तियों ने यहां स्नान किया है. मैं यह कहना चाहता हूं कि संक्रमित बीमारी का तो इलाज है, संक्रमित सोच का उपचार नहीं हो सकता है. जब भी कोई सफल आयोजन होता है तो पहले उपहास, फिर विरोध और फिर स्वीकृति देखने को मिलती है. यही वजह है कि विरोध किया और चुपके से संगम स्नान करके इनके नेता गए. अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं द्वारा कुंभ स्नान में वीआईपी सुविधाओं के सवाल पर कहा, ये वीआईपी संस्कृति की बात करते हैं, जो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं. राजनीति में थोड़ा-बहुत प्रहसन चलता है, लेकिन इसे ही राजनीति मत बनाइए.सपा ने पहले कहा कि सरकार श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है. फिर ये कहने लगे कि सरकार श्रद्धालुओं की संख्या कम बता रही है. यही उनका दोहरा चरित्र है. योगी ने कहा, विपक्ष सरकार पर सवाल उठाए, लेकिन महाकुंभ पर आप सवाल नहीं खड़ा कर सकते. सपा ने पहले भीड़ को लेकर सवाल उठाए, उसे देखने के लिये संगम पहुंच गए, भीड़ देखी तो कहने लगे आयोजन की तारीख बढ़ा दीजिए. ये समाजवादी पार्टी दोहरे चरित्र के लोग हैं. महाकुंभ सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गौरव है. विपक्ष की भाषा सभ्य समाज के अनुकूल नहीं है.संक्रमित व्यक्ति का उपचार संभव है, लेकिन संक्रमित सोच का इलाज नहीं हो सकता. सनातन धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं है. विपक्ष ने महाकुंभ को बदनाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. भाजपा से लड़ते लड़ते अखिलेश यादव भारत से लड़ने लगे. कहते हैं कि कभी विकसित भारत नहीं बन सकता. विपक्ष अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए भारत को और सनातन धर्म को बदनाम करे.

 

 

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