Friday, 21 February 2025

दाम्पत्य जीवन के लिए प्रेरणास्रोत है महाशिवरात्रि

दाम्पत्य जीवन के लिए प्रेरणास्रोत है महाशिवरात्रि 

शिव साधना के लिए महाशिवरात्रि बहुत ही खास होता है. कहते है इस दिन शिवलिंग में शिव वास करते हैं. ये शिव और शक्ति के मिलन का दिन है. महाशिवरात्रि केवल शिव भक्तों के लिए परमपिता शिव का आराधना भर ही नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर समूचे विश्व की कल्याण की भावना समेटे हुए हैं। कहते हैं कि इस तिथि पर महादेव ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था. इस दिन रात में शिवजी और माता पार्वती का विवाह हुआ था. शिव और गौरा का दाम्पत्य जीवन आदर्श दाम्पत्य जीवन के रूप में भी अनुकरणीय है। जीवन की हर स्थिति, कठिनाई और चुनौती के दौरान उन्होंने एक-दूसरे की शक्ति बनकर साथ दिया। साधन सीमित और बेहद सादा जीवन होने के बावजूद शिव और गौरा का जीवन आनंद और प्रेम का परिचायक है। उन्होंने एक दूसरे की भावनाओं और निर्णय का सदैव सम्मान किया और जीवन के उतार चढ़ाव में सच्चे साथी बनकर अडिग रहे। यदि भोलेनाथ और पार्वती के दाम्पत्य जीवन के सूत्रों को हर दम्पति असल जीवन में आत्मसात करे तो केवल उनका जीवन खुशहाल और लम्बा होगा, बल्कि वे एक-दूसरे के सच्चे जीवनसाथी के रूप में हमेशा साथ रहेंगे। उन्हें जीवन की बाधाओं और कठिनाईयों से लड़ने का बल मिलेगा और वे हर समस्या का हल ढूंढने में सक्षम होंगे। भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। इसका अर्थ है- आधा स्त्री और आधा पुरुष। दरअसल, सुखी वैवाहिक जीवन का मूल मंत्र भी यही है कि भले ही पति और पत्नी के दो अलग-अलग शरीर हैं। पर, वह वास्तव में एक ही होते हैं। पति हो या पत्नी को सभी समान अधिकार पाने के पात्र होते हैं। माता पार्वती को भगवान शिव ऐसे ही नहीं मिल गए थे। उन्होंने शंकर भगवान को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। पार्वती जी में धैर्य था, जिसके कारण उन्हें पति के रूप में शिव में मिले। असल वैवाहिक जिंदगी में भी धैर्य बेहद काम आता है। इंसान बड़ी से बड़ी चुनौतियों को यूं पार कर लेता है

सुरेश गांधी 

महादेव की रात्रि शिव पार्वती का दांपत्य सृष्टि का चरम है। तभी तो राजा जनक ने सीता के स्वयंवर के लिए शिव का धनुष रखा था। दूसरी और स्वयंवर उत्सव में सम्मिलित होने के पूर्व सीता मां पार्वती के मंदिर आशीर्वाद लेने गई थी। निश्चय ही पिता जनक ने अपनी पुत्री के लिए शिव पार्वती जैसे दांपत्य जीवन की परिकल्पना की होगी। रामायण हो या रामचरितमानस राम सीता ने दांपत्य के आदर्श शिव पार्वती जैसा ही प्रेम और त्याग के चरमोत्कर्ष को अपने संबंधों में सदैव दर्शाया है। इसका अभिप्राय है अव्यवस्था में भी प्यार ही दांपत्य जीवन का मूल रहस्य है। तभी तो आज भी 16 सोमवार करने की प्रथा प्रासंगिक है। कुंवारी कन्याएं शिव जैसा पति पाने की लालसा से यह व्रत करती हैं। शिव पूर्णत हमारे आपके बीच के देवतायुक्त मानव है। हमारी लोक परंपराएं और लोकगीत इसके उदाहरण माने जा सकते हैं। आज भी विवाह उत्सव में शिव पार्वती लोकगीतों में रचे बसे हैं। मान्यता है इस दिन शिव पूजा करने से समस्त संकट दूर हो जाते हैं. देखा जाएं तो गौरा को शिव ऐसे ही नहीं मिल गए थे। इसके लिए उन्होंने कठिन तपस्या की थी। शिव का वरण किसी भी लिहाज से आसान नहीं था। पार्वती ये जानती थीं कि उनके लिए लक्ष्य प्राप्ति आसान कतई नहीं होगी। लेकिन उन्होंने धैर्य रखा। या यूं कहे भोलेनाथ की आराधना और उनको प्रसन्न करने का मार्ग जितना सहज और सरल है, उतना ही कठिन है उन्हें प्रसन्न कर पा जाना। भोलेनाथ सामान्य जंगली फूलों, कंद-मूल और आराधना से प्रसन्न होते हैं। लेकिन प्रसन्न होकर वे कब आपको मिलेंगे इसके लिए धैर्य रखने की आवश्यकता होती है। पार्वती ने इसी धैर्य से काम लिया। आम वैवाहिक जीवन में भी यह धैर्य काम आता है। यह धैर्य बड़ी से बड़ी चुनौती से पार जाने और लक्ष्य को पाने में मदद करता है। इस बार 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अच्छा जीवनसाथी मिलता है, शीघ्र शादी के योग बनते हैं और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है. ये व्रत स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है. वैसे तो हर महीने मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। लेकिन महाशिवरात्रि का व्रत अमोघ फल देने वाला माना गया है.

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।

शिवलिङ्गतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभ।।

अर्थात - फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन करोड़ो सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे. ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है.

भारतीय संस्कृति के एकमात्र देवता शिव है, जिन्हें बाबा कहा गया है। भगवान शिव कृषि संस्कृति के भी पोषक देवता हैं। धर्म ग्रंथो के अनुसार ईशा से 8000 पूर्व नए वर्ष की शुरुआत माघ महीने से होती थी। नववर्ष के आगमन पर बसंत पंचमी को मां सरस्वती के पूजन के बाद महादेव की पूजा कृषि कार्य के लिए किया जाता रहा है। महादेव के पास जितने साधन है, वह कृषि के लिए अत्यंत जरूरी है। शीश पर गंगाजल कृषि सिंचाई का नदिया वाहक है। त्रिशूल खेत जोतने वाले, बैल हल, गले में सर्प फसलों की रक्षा के लिए प्रयोग में आने वाली कीटनाशक दवा, शीश पर चंद्रमा ऊर्जा के रूप में प्रयोग होने वाले उर्वरक के सूचक हैं। इन पदार्थों की समुचित उपलब्धता से खाद्यान्न के रूप में जो वस्तुएं मिल रही है, यह शक्ति स्वरूपा माता पार्वती हैं। महादेव ही ऐसे देवता है जो जहरीले वस्तुओं को आत्मसात करते हैं। मतलब साफ है उपासक जीवन की विषाक्त को आत्मसात कर कंठ में ही रख ले, उसे हृदय में जाने दे, वरना मन विशाक्त हो जाएगा।

सावधानियां

महाशिवरात्रि पर व्रत रखें तो करें ब्रह्मचर्य का पालन, उपवास के दौरान इन गलतियों से बचें। दिन में बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए। इसके अलावा पूजा के दौरान कभी भी शिवलिंग पर रोली, सिंदूर या चंदन का तिलक नहीं लगाना चाहिए। कई लोग महाशिवरात्रि पर निर्जला व्रत रखते हैं या सिर्फ फलाहार ही लेते हैं। इस दौरान सेंधा नमक का सेवन करना चाहिए। सामान्य नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। दो दिन पहले से ही मांस-मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। मन को शांत रखने के लिए ध्यान आदि में मन लगाएं।

शीघ्र बनेंगे विवाह के योग

अगर आपके विवाह में देरी हो रही है, इसके लिए महाशिवरात्रि के दिन ये उपाय कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले एक बेलपत्र लें और उसे शिवलिंग के उस स्थान पर रखें जहां अशोक सुन्दरी विराजमान होती हैं। ( माता अशोक सुंदरी का स्थान जलाधारी के बिल्कुल बीचों-बीच है) इसके बाद शिवलिंग पर जल अर्पित करें और बेल पत्र को उसी स्थान पर रखा रहने दें। ऐसा करने से आपके विवाह के योग जल्दी बनने लगते हैं। यदि किसी जातक के विवाह में बाधा रही है, तो ऐसे में महाशिवरात्रि पर ये उपाय कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले महाशिवरात्रि के दिन स्नानादि से निवितृ होकर पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के दौरान उन्हें गेंदे के फूलों की माला चढ़ानी चाहिए। फिर ऊँ गौरी शंकराय नमः मंत्र का जाप करें। इस उपाय को करने से विवाह में रही अड़चने दूर हो सकती हैं।

मिलेगा सुयोग्य जीवनसाथी

शिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक जरूर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति के सभी काम बनने लगते हैं। इसके साथ ही आपको सुयोग्य जीवनसाथी की भी प्राप्ति होती है।

माता गौरी को अर्पित करें ये सामग्री

शिवरात्रि पर भगवान शिव के साथ-साथ माता गौरी की भी पूजा का विधान है। ऐसे में यदि आप महाशिवरात्रि पर पूजा के दौरान माता गौरी को शृंगार की सामग्री और लाल चुनरी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद सच्चे मन से माता गौरी की पूजा करें। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बीतता है।

अर्द्धनारिश्वर

शिव कल्याणकारी हैं। क्योंकि यह शब्द ही कल्याण का वाचक है। कल्याण पूर्णतः सात्विकता है, इससे किसी की हानि संभव ही नहीं। परंतु केवल सत्व गुण से सृष्टि चल नहीं सकती। सत्व, रज एवं तम इन तीनों के योग के बिना कुछ भी संभव नहीं, इसलिए कमोबेश ये सबमें रहते ही हैं। तीनों के मिश्रण से ही सृष्टि की विविधता भी है। ये गुण भगवती के ही हैं, जो भगवान के साथ सदा अग्नि-ज्वाला, चंद्र-ज्योत्स्ना दूध की धवलता की तरह अभिन्न हैं। शिव भी इनके बिना शव ही हो जायेंगे। इसीलिए लिंगरूप हो या बेर (मूर्ति) रूप, दोनों में यह अकेले नहीं। दोनों का योग ही संसार है। इसीलिए तो कालिदास वंदना करते कहते हैं -

वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ-प्रतिपत्तये।

जगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ।।

अर्थात् जैसे शब्द के अर्थ का बोध कराने के लिए शब्दार्थ-संयोग रहता है, वैसे ही संसार की समग्रता के लिए एकाकार अर्धनारीश्वर में व्यक्त जगत् के माता-पिता भवानी-शंकर की मैं वंदना करता हूं। प्रकृति-पुरुष की समन्विति ही सृष्टि है। प्रकृति को स्त्रीत्व, सोमतत्व, माया, आद्या शक्ति, अविद्या आदि नामों से जाना गया है, तो पुरुष को अग्नितत्व, ब्रह्म, ईश्वर, मायापति आदि नामों से. दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, काली आदि जहां आदिमाता प्रकृति के पुरुषयुक्त व्यावहारिक रूप हैं, वहीं शिव, विष्णु, सूर्य, गणेश आदि प्रकृतियुक्त पुरुष के. स्पष्ट है कि दोनों एक-दूसरे से जुदा नहीं हैं, दोनों एक-दूसरे में समाहित हैं। इसीलिए कहा गया है -

मायां तु प्रकृतिं विद्यात् मायिनं तु महेश्वरः।

तस्यावयव-भूतैः तु व्याप्तं सर्वमिदं जगत्।।

अर्थात् माया को प्रकृति और मायापति को महेश्वर समझना चाहिए. इन्हीं दोनों के एकत्व के कार्य-कारण भाव से यह संसार व्याप्त है। दीया के बिना बाती का और बाती के बिना दीये का क्या वजूद? ठंडे तार के बगैर गरम तार और गरम तार के बगैर ठंडे तार से क्या विद्युत धारा प्रवाहित होकर रोशनी फैला सकती है? बायें हाथ के बिना दायां हाथ और दायें हाथ के बिना बायां हाथ कितना कर सकता है? दिल के बिना दिमाग रोबोट मात्र हो जायेगा, तो दिमाग के बिना दिल मूढ़ हो जायेगा। समाज में भी किसी को कम आंकना बेमानी होगी। इसलिए ईश्वर ने नर बनाया, तो नारी भी बनायी। दोनों को मूल्य दिया, महत्ता दी। इसलिए तो सृष्टि दो की देन है। इसी को अविनाभाव भी कहते हैं।

शक्तिश्च शक्तिमद्-रूपाद् व्यतिरेकं वांछति।

तादात्म्यम् अनयोः नित्यं वह्नि-दाहिकयोःइव।।

अर्थात् जिस तरह अग्नि और उसकी दाहिका शक्ति दोनों में अभेद है, उसी तरह शक्ति-शक्तिधर में एकत्व है, भेद नहीं है। ब्रह्म के साथ माया, जिसे प्रकृति भी कहते हैं, अनपायिनी (अनश्वर) है। महेश्वर का अर्द्धनारीश्वर रूप में अवतार इस ऐक्य का निदर्शन है। इसी तरह तुलसीदास कागिरा अरथ जल-बीचि सम, कहियत भिन्न भिन्नमें सीता तथा राम के दो होने पर भीसीताराममें अभिन्नता है, एकात्मकता है। इसलिए लक्ष्मी-नारायण, उमा-महेश्वर, वाणी-हिरण्यगर्भ, शची-पुरन्दर, माता-पिता आदि युग्मों में भी अद्वैतावस्था देखी गयी है।

त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमरुक्षीय माùमृतात्।।

इस महामंत्र के अंतिम अक्षर माùमृतात को सर्वाधिक सावधानी से पढ़ना चाहिए। जैसा अर्थ में भी स्पष्ट है- यह माùमृतात केवल उसी स्थिति में पढ़ा जाएगा, जब मोक्ष नहीं मिल रहा हो। प्राण नहीं छूट रहे हों। आयु लगभग पूर्ण हो गई हो। मृत्यु की कामना निषेध है। जीवन की कामना करना अमृत है। लेकिन ऐसे भी क्षण आते हैं, जब आदमी मृत्युशैया पर पड़ा होता है, लेकिन परमात्मा से बुलावा नहीं आता। तब यह महामंत्र 33-33 बार तीन बार पढ़ा जाता है। जीवन में अमृत प्राप्ति, कष्टों रोगों से मुक्ति और जीवन में धन-यश-सुख-शांति के लिए इसे माùमृतात ( मा अमृतात) पढ़ा जाता है। जाप संख्या 108 है। इस महामंत्र में 32 शब्द हैं। इसेत्रयस्त्रिशाक्षरीया तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। मुनि वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियां परिभाषित की हैं। इस मंत्र में आठ वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य और एक वट हैं। महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या जरूरत के समय प्रयोग में लाएं

 

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