अब बारी ‘महाकुंभ’ के सियासी ‘डुबकी’ की...!
66.30 करोड़ सनातनियों की डुबकी लगाने के बाद महाकुंभ का समापन भले ही हो गया, लेकिन उसके नफे-नुकसान की राजनीतिक चर्चाओं का दौर जारी है. एक तरफ महाकुंभ को सनातन धर्मावलंबियों की बड़ी संख्या राजनीति के ’सनातन काल’ की शुरुआत की दुहाई दी जा रही है, तो दुसरी तरफ विपक्ष इसे बीजेपी का इवेंट बताते-बताते मृत्युकंभ तक कहने से गूरेज नहीं कर रही है। खास यह है कि दो-एक सियासी दलों को छोड़ दें तो कांग्रेस व उसके सहयेगी संगठनें श्रीराम जन्मभूमि की तर्ज पर संगम में डुबकी लगाना तो दूर पूरे महाकुंभ पर ही सयवालियां निशान खड़ा कर दी है। भला क्यों नहीं, बिहार व पश्चिम बंगाल में चुनाव जो होने है। खास यह है कि चुनाव की तिथि भले ही अभी दूर हो लेकिन महाकुंभ की गूंज बिहार व बंगाल की आबोहवा में तैरने लगा लगा है. ऐसे में बड़ास सवाल तो यही है क्या महाकुंभ में उमड़ा सनातनियों का हुजूम कुछ ही दिनों बाद बिहार में होने वाले चुनाव सहित 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश के विधसभा चुनावों पर बड़ा असर दिखाने वाला है? इतिहास गवाह है इसी संगम किनारे जब 2013 के धर्म संसद विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन हिन्दू हृदय सम्राट अशोक सिंघल ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद के लिए बिगुल फूंका तो वो आज तीन टर्म के प्रधानमंत्री बन गए। 2001 में सोनिया गांधी ने जब कुंभ स्नान किया तो तीन साल बाद यूपीए की दस साल तक चलने वाली सरकार बनी. 2019 में सीएम योगी ने जब अर्धकुंभ का भव्य एवं दिव्य नजारा पेश की तो न सिर्फ मोदी फिर से पीएम बनें बल्कि 2022 में योगी की भी शानदार वापसी हो गयी। मतलब साफ है संगम किनारे कुंभ से निकली दस्तक आने वाले चुनावी राजनीति में एक बार फिर बड़ी हलचल ला सकती है
सुरेश गांधी
फिरहाल, महाकुंभ में 66.30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्नान किया. इसे हिंदू चेतना का जागरण माना जा रहा है. राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट्स से सनातन धर्म को बढ़ावा मिल रहा है. इस आयोजन में 73 देशों के प्रतिनिधि और 50 लाख से अधिक विदेशी श्रद्धालुओं ने भी हिस्सा लिया. फिल्म स्टार्स, खिलाड़ी और राजनेता भी कुंभ में शामिल हुए. यूएई और बहरीन जैसे इस्लामिक देशों में हिंदू मंदिरों का निर्माण सनातन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है. जहां तक महाकुंभ का सवाल है तो इतने बड़े आयोजन में कई रिकॉर्ड स्थापपित हुए तो चुनौतियां आईं. कभी भगदड़ में हुई श्रद्धालुओं की मौत के आंकड़ों पर सवाल हुआ तो कभी संगम के पानी पर सियासत हुई. इसके बावजूद करोड़ों लोग ममहाकुंभ के दौरान भक्ति-भाव में डूबे नजर आए. महाकुंभ तक पहुंचने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन संगम में डुबकी लगाने के बाद सबके चेहरे पर खुशी झलक रही थी। जातियों के बंधन से इतर हर तबके के मुख से पीएम मोदी व सीएम योगी के व्यवस्था की प्रशंसा ही निकली।
कहा जा सकता है यह महाकुम्भ न सिर्फ आध्यात्मिकता की नई ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि भव्यता और दिव्यता के मामले में भी दुनिया भर में एक अनूठा उदाहरण पेश किया। योगी सरकार की मेहनत और केंद्र के सहयोग से प्रयागराज का कायाकल्प हुआ, जिसने इस बार महाकुम्भ को पहले से कहीं अधिक भव्य और दिव्य बना दिया। आम से लेकर खास तक, हर किसी ने इस पवित्र अवसर पर अपनी आस्था को साकार किया। सबसे खास बात ये रही कि महाकुम्भ की शुरुआत से पहले पीएम मोदी और सीएम योगी ने जिस एकता के महाकुम्भ का संकल्प लिया था, वो यहां साकार होता दिखाई दिया। आज तक दुनिया भर में किसी एक आयोजन में इतने बड़े मानव समागम का कोई इतिहास नहीं है। यह संख्या भारत की आबादी का लगभग 50 फीसदी है, जबकि दुनिया के कई देशों की आबादी से कहीं ज्यादा है। वैसे भी संगम नगरी से निकलकर मां गंगा बिहार व पश्चिम बंगाल तक पहुंचती है. बिहार व पश्चिम बंगाल को समृद्ध करती है। खास यह है कि इस महाकुंभ में भी बड़ी संख्या में बिहार व पश्चिम बंगाल के श्रद्धालुओं का सैलाब डुबकी लगाने पहुंचा. बिहार में इसी साल चुनाव हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 2026 में होना है। ऐसे में सनातन के संगम का विहंगम दृश्य दोनों जगहों पर कितना असर दिखायेगा, ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन महाकुंभ को लेकर सियासी चर्चा अभी से होने लगी है।
बता दें, देश में कुल 90 करोड़ मतदाता हैं. संगम में स्नान करने वालों में कुल 20 प्रतिशत बच्चे रहे होंगे तो भी देश के आधे से अधिक मतदाता प्रयागराज पहुंच ही गए। जाहिर है अगर देश की इतनी बड़ी जनसंख्या को कोई राजनीतिक दल इग्नोर करता है तो वह अपने पैर पर कुल्हाड़ी ही मार रहा है. हो सकता है कि कुंभ में स्नान करने वाले में बहुत से बीजेपी के विरोधी हों पर वो थे तो हिंदू ही. अगर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और टीएमसी जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं ने इन श्रद्धालुओं का मजाक बनाया है तो जाहिर है बीजेपी उसे कैश कराने के लिए हर हथकंडे का इस्तेमाल करेगी. अगर कांग्रेस सहित सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने कुंभ में उत्साह से शामिल हुए होते तो कुंभ में हुए हादसे, नई दिल्ली स्टेशन पर हुईं मौतें और भारी दुर्व्यवस्था की होती तो देश की जनता उनकी बातों पर जरूर गौर करती. चूंकि विपक्ष ने पहले ही कुंभ को बीजेपी का आयोजन बना दिया था, इसलिए यूपी सरकार और केंद्र सरकार को घेरने का मौका भी उन्होंने अपने हाथे से जाने दिया. विपक्षी दलों ने केंद्र और यूपी सरकार को प्रयागराज और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई दो भगदड़ों के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिनमें कई लोगों की जान चली गई. विपक्ष के आरोपों में दम है कि आयोजन का बड़े पैमाने पर प्रचार करने के बावजूद सरकार भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए. लेकिन जब विपक्ष ने महाकुंभ पर राजनीति ही गलत तरीके से की तो जनता कैसे उस पर विश्वास करे.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी इस आयोजन को
मृत्यु-कुंभ कहती हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं
कि क्या गंगा में
डुबकी लगाने से गरीबी खत्म
हो जाएगी? क्या इससे आपको
पेट भरने के लिए
खाना मिल जाएगा? आरजेडी
प्रमुख लालू प्रसाद यादव
ने तो कुंभ को
फालतू ही बता दिया.
अब जो लोग तमाम
परेशानियां झेलकर महाकुंभ पहुंच रहे थे क्या
इन नेताओं की बातें उन्हें
पसंद आई होगी. जब
पहले ही दिमाग में
ये बैठ गया कि
विपक्षी महाकुंभ का मजाक उड़ा
रहे है तो आम
जनता का पहला परसेप्शन
यही बनता है कि
विपक्ष नहीं चाहता है
कि यह आयोजन सफल
हो. इस परसेप्शन के
बाद विपक्ष कोई भी सवाल
उठाए उसका मतलब आम
लोगों के लिए कुछ
भी नहीं रह जाता
है. खास यह है
कि जिस पश्चिम बंगाल
के गंगा सागर में
जाकर गंगा समाहित होती
है, उसी बंगाल तक
महाकुंभ वाला संगम जल
कलश के साथ पहुंच
रहा है. बिहार में
भी कुछ ऐसा ही
हो रहा है। और
तब इस सियासी दस्तक
को ध्यान से समझने की
जरूरत है कि क्या
जिस महाकुंभ में 45 दिन में 66 करोड़
30 लाख लोगों ने स्नान किया
है, उस महाकुंभ का
असर 2025 में बिहार, 2026 में
पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश
के विधानसभा चुनाव समेत 2029 के लोकसभा चुनाव
तक बड़ा असर दिखाने
वाला है? बता दें,
2024 के लोकसभा चुनाव में 80 दिन के भीतर
कुल 64 करोड़ 40 लाख लोगों ने
मतदान किया. वहीं 2025 में 45 दिन के भीतर
66 करोड़ 30 लाख लोगों ने
आकर महाकुंभ में स्नान किया
है. यानी मतदान से
ज्यादा कुंभ स्नान. और
इतिहास गवाह है कि
कुंभ से निकली दस्तक
से हलचल हर बार
बड़ी निकली है.
2013 के प्रयाग कुंभ
में 7 फरवरी धर्म संसद में
नरेंद्र मोदी के नाम
को लेकर संतों ने
समर्थन किया था और
2014 में वह प्रधानमंत्री बने.
12 साल पहले नरेंद्र मोदी
तब कुंभ स्नान करने
तो नहीं पहुंच पाए
थे. लेकिन 2019 के अर्धकुंभ में
प्रधानमंत्री ने संगम स्नान
तब किया था, जब
लोकसभा चुनाव का ऐलान होने
में 15 दिन बाकी थे.
तब 42 साल बाद किसी
प्रधानमंत्री ने संगम में
स्नान किया था. कारण,
नरेंद्र मोदी से पहले
इंदिरा गांधी 25 जनवरी 1966 को पीएम बनने
के अगले ही दिन
कुंभ मे संगम पहुंची
थीं. इंदिरा गांधी दूसरी बार कुंभ तब
पहुंचीं जब 1977 में इमरजेंसी के
दौरान लोकसभा भंग करने का
ऐलान किया था. संतों
का विरोध इंदिरा गांधी को देखना पड़ा
था. तब 1977 में कुंभ के
बाद देश में पहली
गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी. फरवरी
1989 में, कुंभ के दौरान
ही संतों के सम्मेलन में
ये ऐलान हुआ कि
9 महीने बाद राम मंदिर
शिलान्यास किया जाएगा. 2001 में
सोनिया गांधी प्रयाग कुंभ में संगम
स्नान करने पहुंची थीं.
जबकि 1999 के चुनाव में
सोनिया गांधी के विदेशी मूल
का मुद्दा उठा था. 2001 के
कुंभ के दौरान ही
अयोध्या में प्रस्तावित राम
मंदिर का मॉडल वीएचपी
ने सबके सामने रखा
था. इतिहास ये याद दिलाने
के लिए कि दशकों
से कुंभ से निकला
संदेश सियासत में लंबी दूरी
तक पहुंचता है. तब क्या
प्रयागराज में चले 45 दिन
के महाकुंभ से भी राजनीति
में खेला हो सकता
है. जिसकी बेचैनी 14 महीने बाद चुनावी मैदान
में आने वाले राज्य
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी में दिखने लगी
है. अभी चुनाव बिहार
में होने वाला है.
अगले साल अप्रैल में
पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव
होना है. उससे पहले
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता
में बीजेपी नेता नारायण चट्टोपाध्याय
कलश में कुंभ से
संगम जल लेकर बीजेपी
दफ्तर पहुंचे. बीजेपी के नेता अगर
कुंभ का जल लाकर
कोलकाता में शुद्धि इसलिए
करना चाहते हैं क्योंकि ममता
बनर्जी ने महाकुंभ को
मृत्युकुंभ कहा तो ममता
भी ये बात समझने
लगी हैं कि इस
बार बीजेपी कुंभ का चक्रव्यूह
रच सकती है. ये
ममता बनर्जी का आत्मविश्वास है
या फिर ममता आशंकित
हैं. जहां मृत्युकुंभ कहे
जाने के बाद से
ही ममता को घेरने
के लिए बीजेपी रणनीति
बनाने लगी. वहीं ममता
अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहती हैं
कि चिंता मत करो खेला
होगा. ये खेला की
बात अभी से ममता
के कहने के पीछे
जो सियासत है, उसको समझने
की जरूरत है. कारण, पश्चिम
बंगाल में 70 फीसदी आबादी हिंदू है जबकि 30 फीसदी
आबादी मुस्लिम है.
सर्वे रिर्पोटों के मुताबिक 2019 के
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को
पश्चिम बंगाल में कुल हिंदू
वोट का 57 फीसदी हिस्सा एक साथ मिला.
जबकि ममता बनर्जी को
कुल मुस्लिम वोट का 70 फीसदी
हिस्सा एक साथ 2019 में
मिला. 2019 में 2014 के मुकाबले 36 फीसदी
ज्यादा हिंदू वोट बीजेपी को
मिले, इसलिए पार्टी 18 सीट तक पहुंची.
लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं 2014 के मुकाबले 30 फीसदी
ज्यादा मुस्लिम वोट 2019 में पाने के
कारण बीजेपी से 4 सीट ज्यादा
यानी 22 सीट टीएमसी पश्चिम
बंगाल में जीत पाई
है. 2024 के लोकसभा चुनाव
में ममता बनर्जी ने
वापस कमबैक किया है. 42 में
से 9 सीटों पर जीत दर्ज
की. बीजेपी को 6 सीटों का
नुकसान हुआ और वह
12 सीटों पर सिमट गई.
लेकिन अब दो तथ्य
सियासत में देखे जा
रहे हैं. पहला केवल
मुस्लिम वोटएकमुश्त मिलना जीत की गारंटी
नहीं. और दूसरी बात
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी
का हिंदू वोट घट रहा
है. तब सवाल उठता
है कि महाकुंभ से
निकला हिंदू एकता संदश और
ममता के कुंभ पर
उठाए सवालों के साथ चुनाव
जब होंगे तब 16 साल के लगातार
शासन के खिलाफ सत्ता
विरोधी हवा थोड़ी भी
हुई तो क्या बंगाल
पहली बार बीजेपी जीत
सकती है? वहीं लोकसभा
चुनाव की बात करें
तो 2024 के लोकसभा चुनाव
में बीजेपी ऐतिहासिक जीत के बावजूद
भी अगर अपने दम
पर अकेले बहुमत वाली सीट इस
बार नहीं पाई तो
इसकी वजह हिंदू वोट
है. क्योंकि मुस्लिम वोट लगातार विपक्षी
दलों को 10 में 9 तक मिलता है
लेकिन जिस हिंदू वोट
को बीजेपी ने बड़े स्तर
पर 2014 से जोड़ा वो
बाद में बंटने लगा.
याद करिए फिर
दो नारे आए. एक
नारा- बंटेंगे तो कटेंगे. दूसरा
नारा- एक हैं तो
सेफ हैं. इनका जिक्र
महाराष्ट्र व दिल्ली चुनाव
तक हुआ लेकिन अब
उसमें महाकुंभ ने अब वो
लकीर खींच दी है,
जहां सवाल उठाने वाले
एक तरफ आस्था से
डुबकी लगाने वाले दूसरी तरफ
हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव
में बीजेपी को मुस्लिमों का
केवल 8 फीसदी वोट मिला. इंडि
गठबंधन को 65 फीसदी। बड़े राज्यों में
देखें तो यूपी में
गठबंधन को 92 फीसदी मुस्लिम वोट मिला. बीजेपी
को 8 फीसदी. कर्नाटक में 92 फीसदी कांग्रेस गठबंधन मुस्लिम वोट पाया और
8 फीसदी बीजेपी. मध्य प्रदेश में
मुस्लिम वोट 86 फीसदी कांग्रेस के साथ गया,
6 फीसदी बीजेपी को. बिहार में
इंडिया गठबंधन 87 फीसदी पाया. एनडीए 12 फीसदी मुस्लिम वोट पाया. राजस्थान
में इंडि को 70 फीसदी
मुस्लिम वोट मिला था.
बीजेपी को 14 फीसदी पश्चिम बंगाल में 73 फीसदी वोट टीएमसी पाई.
यानी हिंदू वोट बंटता है.
मुस्लिम वोट एकजुट पड़ता
है. नतीजा बीजेपी जानती है कि उसे
हिंदुत्व के संगम से
ही वोट मिलेगा तो
जीत मिलेगी. यही वजह है
कि बीजेपी महाकुंभ में उमड़े आस्थावानों
पर विशेष फोकस करेगी। वैसे
भी यह डिजिटल युग
का पहला महाकुंभ है,
जहां करोड़ों लोगों ने सोशल मीडिया
पर महाकुंभ से जुड़ी अपनी
फोटो शेयर करते हुए
मानव इतिहास का सबसे बड़ा
अद्भूत, अकल्पनीय व अविश्वनीय आयोजन
बताया है। पहले दिन
से शुरू हुआ पवित्र
डुबकी लगाने का सिलसिला आज
तक बदस्तूर वैसे ही जारी
है, श्रद्धालुओं में वैसा ही
उत्साह और उमंग आज
भी देखने को मिल रहा
है. हालांकि, बीते 45 दिनों में कई ऐसी
चीजें देखने को मिलीं, जो
भक्तों के दिलों में
लंबे समय तक ताजी
रहेंगी। फिर चाहे वह
शाही स्नानों के बावजूद प्रयागराज
में हर दिन करोड़ों
लोगों के जुटने और
इसके चलते जाम की
स्थिति पैदा होने की
घटनाएं हों या महाकुंभ
में एक के बाद
एक बाबाओं के वायरल होने
की. जहां तक भीड़
के रिकार्ड का सवाल है
तो प्रयागराज अर्धकुंभ 2019 में 24 करोड़, प्रयागराज महाकुंभ 2013 में 12 करोड़, हरिद्वार कुंभ 2010 में 7 करोड़ रहा। मतलब
साफ है देश में
दो दशक में सांस्कृतिक
उत्थान को बल मिला
है। हिन्दुत्व एकता की तस्वीर
का नतीजा अयोध्या में श्रीरामलला मंदिर
का निर्माण, वाराणसी काशी विश्वनाथ कॉरीडोर
के साथ काशी के
बदले हालात व प्रयागराज में
उमड़ी करोड़ों की आस्था सबसे
बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है
कि जो सनातन पर
बखेड़ा करेगा, उसे ऐसे ही
जवाब मिलते रहेंगे.
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