गंगा दशहरा : केवल नदी नहीं, संस्कृति की साँसें हैं मां गंगा!
गंगे तव दर्शनात मुक्तिः! यानी गंगा मां के दर्शन से मुक्ति मिलती है। मतलब साफ है गंगा भारत की न केवल सबसे लंबी नदी है, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था, इतिहास और जीवन का आधार भी है। वह केवल जल की धारा नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि, मोक्ष की आशा और भावनाओं की अविरल गूंज है। गंगा दशहरा, उस शुभ दिन की स्मृति है जब मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं और मानव जाति को मोक्ष की राह दिखाई। इसी दिन गायत्री मंत्र भी प्रकट हुआ था. गंगा दशहरा हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा में डूबकी लगाने व दान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. खास यह है कि इस साल गंगा दशहर पर दुर्लभ योग बन रहे हैं. या यूं कहे इस दिन रवि योग, दग्ध योग, राजयोग और सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग भी बनेगा. इस साल ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 4 जून बुधवार की रात 11ः 34 मिनट पर होगी और समापन 5 जून गुरुवार की रात 02ः56 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार गंगा दशहरा 5 जून को होगा. गंगा दशहरा के दिन स्नान करने का ब्रह्म मुहूर्त 5 जून की सुबह 05ः12 मिनट से लेकर सुबह 08ः42 मिनट तक रहेगा. जबकि 9 बजकर 14 मिनट तक सिद्धि योग भी रहेगा
सुरेश गांधी
भारत की सांस्कृतिक आत्मा में नदियां केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि जीवनदायिनी माताएं हैं। उनमें भी गंगा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गंगा न केवल एक नदी है, वह भारतीय सभ्यता की रीढ़ है, जो भक्ति, मुक्ति और पवित्रता की प्रतीक मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर के 60,000 पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे। उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए राजा भागीरथ ने वर्षों तक कठिन तप किया। भगवान ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वचन दिया, लेकिन उसकी तेज धारा को रोकने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उसे समाहित कर लिया और फिर धीरे-धीरे पृथ्वी पर प्रवाहित किया। जिस दिन गंगा का प्रथम स्पर्श पृथ्वी से हुआ, वही गंगा दशहरा कहलाया। यानी गंगा दशहरा, गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का दिन है. यह पर्व धर्म, संस्कृति, और पर्यावरण संरक्षण के गहरे संदेश के साथ मनाया जाता है।
गंगा अवतरण की
दिव्य स्मृति और जीवन को
निर्मल करने वाला उत्सव
है। इस दिन पुण्य,
प्रकृति और परंपरा का
संगम झलकता है. या यूं
कहें गंगा दशहरा केवल
धार्मिक पर्व नहीं, प्राकृतिक
चेतना का भी प्रतीक
है। गंगा के प्रति
श्रद्धा तभी सार्थक होगी
जब हम उसे स्वच्छ,
अविरल और प्रदूषण मुक्त
बनाएं। यह पर्व हमें
याद दिलाता है कि गंगा
केवल नदी नहीं, हमारी
संस्कृति की सांसें हैं,
और सांसों को जिंदा रखने
की जिम्मेदारी हमारी है। गंगा दशहरा
हमें केवल पूजा नहीं
सिखाता, वह हमें जीवन
के प्रति संवेदनशीलता और संवेदनशील कर्म
की सीख देता है।
गंगा की स्वच्छता, उसकी
धाराओं की अविरलता और
उसके तटों का सम्मान,
यही सच्ची गंगा भक्ति है।
‘दशहरा’ शब्द संस्कृत के
‘दश’ (दस) $ ‘हरा’ (हर्ता) से बना है,
जिसका अर्थ है दृ
दस पापों का नाश। ये
दस पाप दो श्रेणियों
में विभाजित हैंः शारीरिक पापः
हिंसा, चोरी, परस्त्रीगमन, झूठ, शराब सेवन.
मानसिक पापः काम, क्रोध,
लोभ, मोह, ईर्ष्या. गंगा
दशहरा पर गंगा स्नान
व पूजा से इन
दसों पापों से मुक्ति मिलने
की मान्यता है।
इस दिन गंगा
स्नान और पूजा के
साथ दीपदान का विशेष महत्व
है. इस दिन कोई
भी व्यक्ति गंगा के पवित्र
जल में स्नान करता
है या गंगाजल का
सेवन करता है उसके
पापों के साथ-साथ
रोग और दोष भी
दूर हो जाते हैं।
इस दिन मां गंगा
स्नान व पूजा के
बाद किसी जरूरतमंद को
अन्न करने से घर
में सुख-समृद्धि आती
है। घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता
है. इस दस पापों
में तीन पाप कायिक,
चार पाप वाचिक और
तीन पाप मानसिक होते
हैं। इन सभी से
व्यक्ति को मुक्ति मिलती
है। इस दिन ऊं
नमः शिवाय नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा मंत्रों द्वारा गंगा का पूजन
करने से जीव को
मृत्युलोक में बार-बार
भटकना नहीं पड़ता। निष्कपट
भाव से गंगा मां
के दर्शन करने मात्र से
जीव को कष्ट से
मुक्ति मिल जाती है।
गंगा दशहरा को बाबा रामेश्वर
महादेव की प्राण प्रतिष्ठा
का दिन भी माना
जाता है। स्कंद पुराण
के अनुसार
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे प्राप्य प्रतिपदं तिथिम्।
दशाश्वमेधिके स्नात्वा मुच्यते जन्मपातकैः।।
ज्येष्ठे शुक्लद्वितीयायां स्नात्वा रुद्रसरोवरे।
जन्मद्वयकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।
महत्व
गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। वहीं इस दिन मोक्षदायिनी गंगा का पूजन-अर्चना भी किया जाता है।
मां गंगा धरती पर ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को धरती पर पहाड़ों से उतर कर हरिद्वार ब्रह्मकुंङ में आईं थी, जिसके फलस्वरूप ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र, बृषभ राशिगत सूर्य एवं कन्या राशिगत चन्द्र की यात्रा के मध्य गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ। इनकी महिमा का गुणगान करते हुए भगवान महादेव श्रीविष्णु से कहते हैं- हे हरे! ब्राह्मण की शापाग्नि से दग्ध होकर भारी दुर्गति में पड़े हुए जीवों को गंगा के सिवा दूसरा कौन स्वर्गलोक में पहुंचा सकता है, क्योंकि गंगा शुद्ध, विद्यास्वरूपा, इच्छा ज्ञान एवं क्रियारूप, दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों को शमन करने वाली, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थो को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं। इसीलिए इन आनंदमयी, शुद्ध धर्मस्वरूपिणी, जगत्धात्री, ब्रह्मस्वरूपिणी अखिल विश्व की रक्षा करने वाली गंगा को मैं अपने मस्तक पर धारण करता हूं। कलियुग में काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर, ईष्या आदि अनेकानेक विकारों का समूल नाश करने में गंगा के समान कोई और नहीं है। विधिहीन, धर्महीन, आचरणहीन मनुष्यों को भी गंगा का सान्निध्य मिल जाए तो वे मोह एवं अज्ञान के भव सागर से पार हो जाते हैं।पूजन विधि
संकल्प
गंगा कथा
इस दिन सुबह स्नान, दान तथा पूजन के उपरांत कथा भी सुनी जाती है जो इस प्रकार से है-प्राचीनकाल में अयोध्या के राजा सगर थे। महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। एक बार सगर महाराज ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची और अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को छोड़ दिया। राजा इन्द्र यह यज्ञ असफल करना चाहते थे और उन्होंने अश्वमेघ का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया। राजा सगर के साठ हजार पुत्र इस घोड़े को ढूंढते हुए आश्रम में पहुंचे और घोड़े को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे। इससे महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सगर के साठ हजार पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा। सभी जलकर भस्म हो गये। राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की
मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें किन्तु सफल नहीं हो पाए और अपने प्राण त्याग दिए। गंगा को इसलिए लाना पड़ रहा था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पुर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी। महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और एक दिन ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही जिससे वह अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति कर सकें। ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हारी मदद करेगें। अब भगीरथ भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर करते हैं। भगवान शिव भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं। गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड. देते हैं। इस प्रकार से गंगा के पानी से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल होता है।दशाश्वमेध में स्नान से गर्भदशा से मिलती है मुक्ति
तीर्थ शिरोमणि दशाश्वमेध तीर्थ पर स्नान के
बाद दशाश्वमेधेश्वर के दर्शन से
जीवन के समस्त पाप
नष्ट हो जाते हैं।
दशाश्वमेध तीर्थ पर ब्रह्मदेव ने
भगवान शिव के दशाश्वमेधेश्वर
स्वरूप को स्थापित किया
था। गंगा स्नान की
अपनी अलग महिमा है।
वहीं, दशाश्वमेध तीर्थ पर स्नान से
इसका महत्व बढ़ जाता है।
दशाश्वमेध तीर्थ पर मां पार्वती
माता शीतला के स्वरूप में
और भगवान विश्वेश्वर दशहरेश्वर के रूप में
भक्तों का कल्याण करते
हैं। मान्यता है कि गंगा
के पश्चिम तट पर विराजमान
दशहरेश्वर को प्रणाम करने
से व्यक्ति कभी दुर्दशा में
नहीं पड़ सकता है।
दशाश्वमेधेश्वर महादेव का विग्रह दशाश्वमेध
घाट पर बड़ी शीतला
माता मंदिर के प्रांगण में
है। काशी महात्म्य के
अनुसार ब्रह्मा जी ने दशाश्वमेध
तीर्थ स्थान पर दिवोदस का
अश्वमेघ यज्ञ किया था
और मां गंगा के
आने से पूर्व यह
क्षेत्र रुद्रवास तीर्थ स्थान के नाम से
विख्यात था। शीतला घाट
नाम तो मनुष्यों ने
रखा है। वास्तव में
यही असली दशाश्वमेध तीर्थ
या रुद्रवास तीर्थ है। ज्येष्ठ शुक्ल
पक्ष की दशमी की
प्रत्येक तिथियों में क्रम से
स्नान करने वाला व्यक्ति
हर जन्म के पापों
से मुक्त हो जाता है।
प्रमुख तीर्थस्थल जहाँ गंगा दशहरा की भव्यता दिखती है
हरिद्वार : हर की पौड़ी
पर
भव्य
आरती
और
लाखों
श्रद्धालुओं
का
स्नान
वाराणसी
: गंगा घाटों पर
दिव्य
आरती,
दीपदान
और
विशेष
पूजन
प्रयागराज
: संगम में स्नान, हवन
और
गंगा
पूजन
का
आयोजन
गंगोत्री
: गंगा के उद्गम स्थल
पर
विशेष
पूजा
और
दर्शन
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