राजघाट पर 7 सेमी प्रति घंटा की रफ्तार से बढ़ रहा है जलस्तर, प्रशासन अलर्ट
फिर रौद्र हुईं गंगा, खतरे के करीब पहुंची लहरें
चेतावनी स्तर
की
ओर
बढ़ते
हालात
से
सहमें
कछारवासी
सुरेश गांधी
वाराणसी. गंगा एक बार
फिर अपने रौद्र रूप
में दिख रही हैं।
या यूं कहे गंगा
का जलस्तर लगातार चढ़ाव पर है
और घाट किनारे की
बस्तियों के लिए अब
खतरे की घंटी बजने
लगी है। केंद्रीय जल
आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुसार मंगलवार
शाम 4 बजे तक गंगा
का जलस्तर 69.52 मीटर दर्ज किया
गया। जलस्तर में लगातार 7 सेंटीमीटर
प्रति घंटे की वृद्धि
दर्ज की जा रही
है। आयोग के मुताबिक
चेतावनी स्तर : 70.262 मीटर है, खतरे
का स्तर : 71.262 मीटर है। जबकि
अब तक का उच्चतम
स्तर (एचएफएल) : 73.901 मीटर है। वर्तमान
में गंगा खतरे के
निशान से महज 71 सेंटीमीटर
नीचे बह रही हैं।
जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी
ने घाटों व निचले इलाकों
के लोगों की चिंता बढ़ा
दी है।
विशेषज्ञों का कहना है
कि यदि यही रफ्तार
बनी रही तो गंगा
अगले 12 से 18 घंटों में चेतावनी स्तर
को पार कर सकती
हैं। ऐसे में निचले
क्षेत्रों के कछारवासियों को
सतर्क रहने की आवश्यकता
है। प्रशासन ने पहले से
ही निगरानी बढ़ा दी है।
मतलब साफ है, गंगा
एक बार फिर रौद्र
हो उठीं हैं और
जलस्तर खतरे के करीब
पहुंच चुका है। राजघाट,
पंचगंगा, मच्छोदरी और अस्सी घाट
की सीढ़ियां डूबने लगी हैं। घाटों
पर पूजा-पाठ और
धार्मिक गतिविधियां प्रभावित हो चुकी हैं।
नाविक और घाट किनारे
दुकानदारों की रोजी-रोटी
पर संकट मंडरा रहा
है। नाव संचालन पहले
से बंद है। आदमपुर,
सरैया, नागवा और बलुआघाट जैसे
इलाकों में लोग अपने
घरों को खाली कर
सुरक्षित स्थानों की ओर जा
रहे हैं।
ग्रामीण अंचलों में भी गांव-गांव में चर्चा
है कि गंगा इस
बार भी जुलाई की
तरह विकराल रूप धारण कर
सकती है। जिला प्रशासन
ने अलर्ट जारी कर दिया
है। साथ ही संवेदनशील
बस्तियों, आदमपुर, सरैया, बलुआघाट, नागवा और मड़ुवाडीह के
लोगों को सतर्क रहने
की हिदायत दी है। राहत
व बचाव कार्य के
लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की
टीमें सक्रिय हैं। स्वास्थ्य विभाग
ने मोबाइल मेडिकल यूनिट तैयार की हैं। नगर
निगम ने बाढ़ग्रस्त इलाकों
में राहत शिविर और
साफ-सफाई के इंतजाम
शुरू कर दिए हैं।
कुल मिलाकर, गंगा का यह
नया उफान न केवल
काशी के कछारवासियों के
लिए चुनौती है बल्कि प्रशासन
की परीक्षा भी। जुलाई की
बाढ़ का ताजा अनुभव
सबके सामने है, इसलिए इस
बार गंगा का हर
सेंटीमीटर वाराणसीवासियों की धड़कनें तेज
कर रहा है।
लोगों में भय का माहौल
गंगा के बढ़ते
पानी ने पुरानी बस्तियों
में रहने वालों की
धड़कनें तेज कर दी
हैं। कंहैयालाल नाविक (राजघाट) ने बताया कि
पानी हर घंटे ऊपर
चढ़ रहा है। नाव
घाट से बंधी रह
गई हैं। रोज़ी-रोटी
ठप हो गई। पता
नहीं कब तक घर
से बाहर रहना पड़ेगा।
ज्वाला देवी (मच्छोदरी निवासी) का कहना है
कि पिछली बार की बाढ़
का डर अभी निकला
भी नहीं था कि
फिर से वही हालत
बन रहे हैं। बच्चों
को लेकर कहां जाएं,
यही सोचकर दहशत में हैं।
संजीव गुप्ता (घाट किनारे फूल
बेचने वाले) ने बताया कि
पूजा-पाठ रुक गया
है, दुकानदारी बंद हो गई
है। अगर पानी और
बढ़ा तो घर भी
खाली करना पड़ेगा। नाजिमा
(आदमपुर निवासी) ने बताया कि
गली-गली में पानी
भरने लगा है। बच्चे
बीमार हो रहे हैं,
खाना बनाने तक की दिक्कत
है। पिछली बाढ़ की तरह
अब फिर डर सताने
लगा है। गीता देवी
(बलुआघाट निवासी) का कहना है
कि हर बार सबसे
पहले गरीबों की बस्ती डूबती
है। हम लोग हमेशा
की तरह सबसे ज्यादा
संकट में हैं। गोविंद
दास (पंचगंगा घाट) निवासी पुरुषोत्तम
का कहना है कि
गंगा की लहरें सीढ़ियों
पर चढ़ चुकी हैं।
दुकान बंद करनी पड़ी
है। कमाई का सहारा
खत्म हो गया।
प्रशासन अलर्ट
जिला प्रशासन ने
संवेदनशील इलाकों में अलर्ट जारी
किया है। राहत दल,
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की
टीमों को सक्रिय किया
गया है। नगर निगम
ने बाढ़ प्रभावित बस्तियों
में पीने के पानी
और अस्थायी आश्रय स्थल की व्यवस्था
शुरू की है। मोबाइल
मेडिकल यूनिट्स, बिजली सुरक्षा, और राहत सामग्री
तैनात की जा रही
है।
कछारवासियों का दर्द
कछार में रहने
वाले परिवार झोपड़ियों और कच्चे मकानों
में रहते हैं। गंगा
चढ़ते ही सबसे पहले
इन्हीं की बस्तियां जलमग्न
हो जाती हैं। पशुधन
और घर-गृहस्थी को
बचाने की जद्दोजहद शुरू
हो गई है। नाव
बंद होने से नाविकों
की रोज़ी-रोटी चौपट
हो गई। महिलाओं को
चूल्हा-चौका चलाने और
बच्चों को सुरक्षित रखने
की सबसे बड़ी चिंता।
प्रशासन द्वारा बनाए जा रहे
अस्थायी राहत शिविर ही
इनका एकमात्र सहारा हैं।
अब और पहले
वर्तमान (जुलाई 2025) 15 जुलाई
2025 ्68.43
मीटर सभी
84 घाट डूब गए थे,
नाव सेवा बंद, धार्मिक
गतिविधियां बाधित हुईं
1978 का महाबाढ़ सितंबर
1978 ्73.90
मीटर गंगा चेतावनी से
्2 मीटर ऊपर बह
रही थी, नंगवा, संकटमोचन,
अस्सी आदि इलाकों में
बाढ़, बीएचयू तक कट गया
था
1978 की बाढ़
इतिहास की सबसे भीषण
रही, लगभग 2 मीटर ज़्यादा पानी
बहा था।
जुलाई
2025 की घटना अपेक्षाकृत कम
गंभीर थी, लेकिन धार्मिक
आयोजनों और पर्यटन पर
प्रभाव पड़ा।
वर्तमान
(26 अगस्त) का जलस्तर अभी
भी चेतावनी से नीचे है,
मगर तेजी से बढ़ने
वाला पानी हमें 1978 जैसी
विपत्ति की ओर ले
जा सकता है।
हिदायत
संकट की इस
घड़ी में सावधानी अत्यंत
आवश्यक है; अफ़वाहों पर
भरोसा न करें, प्रशासन
और राहत एजेंसियों के
निर्देशों का पालन करें।
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