सुहागिनों की भक्ति से गूंजे मंगलगीत, शंकर-पार्वती की पूजा से मांगा अखंड सौभाग्य
काशी से
गांव
तक
घाट
व
मंदिरों
किनारे
पंडितों
ने
व्रतियों
को
हरितालिका
कथा
सुनाई
और
शिव-पार्वती
विवाह
प्रसंग
से
व्रत
का
महत्व
बताया
सुबह से
ही
महिलाएं
गंगाजल
लेकर
मंदिरों
की
ओर
उमड़ीं
संकटमोचन मंदिर
में
भजन-कीर्तन
की
गूंज
रही
दुर्गाकुंड मंदिर में आकर्षक फूलों से सजी झांकियों ने भक्तों को आकर्षित किया. काशी विश्वनाथ धाम में शिवलिंग पर जलाभिषेक और बेलपत्र चढ़ाने के लिए लंबी कतारें लगीं
सुरेश गांधी
वाराणसी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला पावन पर्व हरितालिका तीज मंगलवार को काशी नगरी से लेकर ग्रामीण अंचलों तक उल्लास और आस्था के साथ मनाया गया। शहर के शिवालयों में जहां श्रृंगार और झांकियों का नजारा देखने को मिला, वहीं गांवों की चौपालों और आंगनों में सुहागिनें मंगलगीत गातीं नजर आईं। हर जगह सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं ने निर्जला उपवास रखकर सायंकाल सोलहों श्रृंगार में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की और अखंड सौभाग्य की कामना की. खास यह है कि शहर की भव्यता और गांव की सरलता, दोनों ही रूपों में हरितालिका तीज ने यह संदेश दिया कि परंपरा और आस्था ही भारतीय संस्कृति की असली पहचान है। काशी नगरी से लेकर देहात तक तीज का उल्लास नारी शक्ति, तप और समर्पण की अमर कहानी कहता रहा।
प्रातः स्नान-ध्यान के बाद सुहागिनों
ने निर्जला व्रत रखकर भगवान
शिव और माता पार्वती
की पूजा-अर्चना की।
शहर के मंदिरों और
घर-आंगनों में तीज की
रौनक देखते ही बन रही
थी। शिव-पार्वती की
प्रतिमाओं को गंगाजल से
स्नान कराकर श्रृंगार किया गया और
पारंपरिक विधि से पूजन
किया गया। सुहागिनों ने
अपने अखंड सौभाग्य की
कामना करते हुए हरितालिका
व्रत कथा का श्रवण
किया। वहीं, युवतियों ने भी अच्छे
वर की प्राप्ति की
कामना से व्रत रखा।
शाम के समय जगह-जगह गौर माता
की पूजा और हरितालिका
तीज की सामूहिक कथा
का आयोजन हुआ। व्रतियों ने
चूड़ियाँ, मेहंदी, सोलह श्रृंगार और
पारंपरिक वेशभूषा धारण कर तीज
की शोभा बढ़ा दी।
घर-घर में गीत-भजन और मंगलगान
गूंजते रहे। माना जाता
है कि हरितालिका तीज
का व्रत माता पार्वती
ने भगवान शिव को पति
रूप में पाने के
लिए रखा था। तभी
से यह पर्व सौभाग्य,
दांपत्य सुख और पति
की दीर्घायु के लिए स्त्रियों
द्वारा मनाया जाता है। वाराणसी
सहित पूर्वांचल के गाँव-गाँव
और कस्बों में भी महिलाओं
ने मंदिरों में जाकर शिवलिंग
पर जलाभिषेक किया और रात्रि
जागरण कर भजन-कीर्तन
में भाग लिया।
ग्रामीण अंचलों में तीज की परंपरा
वाराणसी के गंगापुर, चिरईगांव,
शिवपुर, मंडुवाडीह और आसपास के
गाँवों में भी हरितालिका
तीज की धूम रही।
गांव की गलियों में
महिलाएं समूह बनाकर मंगलगीत
गा रही थीं। चौपालों
में केले के पत्तों
का मंडप सजाकर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित
की गई। गंगापुर में
महिलाओं ने सामूहिक पूजन
कर अखंड सौभाग्य का
वरदान मांगा। चिरईगांव की चौपाल में
ढोलक की थाप पर
रातभर भजन-कीर्तन चलता
रहा। शिवपुर में युवतियों ने
माता गौरी से मनचाहे
वर की कामना की।
मंडुवाडीह में घर-घर
फुलहरा सजाया गया और पूजा-अर्चना की गई।
श्रृंगार और सांस्कृतिक रौनक
बाजारों में सुबह से
ही पूजन-सामग्री, फल-फूल और मिठाई
की खरीदारी को लेकर चहल-पहल रही। महिलाओं
ने सोलह श्रृंगार धारण
कर मंदिरों और घरों में
पूजा की। कहीं श्रृंगार
पेटिका पंडितों को दान दी
गई, तो कहीं सुहागिनों
ने चूड़ी, बिंदी और आलता अर्पित
कर माता गौरी का
आशीर्वाद लिया।
ग्रामीण अंचल की तीज की झलक
गंगापुर, महिलाओं का सामूहिक पूजन,
अखंड सौभाग्य की कामना।
चिरईगांव, रातभर चला भजन-कीर्तन
और मंगलगीत।
शिवपुर, युवतियों ने सुयोग्य वर
की इच्छा से रखा व्रत।
मंडुवाडीह, घर-घर सजा
फुलहरा और परिवारिक पूजा।
अखंड सौभाग्य और परिवार की मंगल कामना
सुहागिनों ने पति की
लंबी उम्र, बच्चों सहित पूरे परिवार
की सुख-समृद्धि और
संपन्नता के लिए व्रत
रखा। साथ ही में
विवाहित महिलाओं ने पुत्र रत्न
प्राप्ति का वरदान मांगा,
जबकि कुंवारी कन्याओं ने सुयोग्य, सुशील
और स्वस्थ जीवनसाथी की कामना से
माता गौरी की आराधना
की। मान्यता है कि हरितालिका
तीज का व्रत करने
वाली स्त्री को मनचाहा वर
और अखंड सौभाग्य प्राप्त
होता है।
श्रृंगार और पूजा का उल्लास
सुबह से ही
स्नान-ध्यान कर महिलाएं व्रत
की तैयारी में जुट गईं।
कहीं मेहंदी रचाई जा रही
थी तो कहीं श्रृंगार
पेटिका सजी थी। बाजारों
में पूजन-सामग्री, फल-फूल और मिठाई
की खरीदारी को लेकर खूब
चहल-पहल रही। शाम
को प्रदोष काल में महिलाएं
सोलह श्रृंगार से सुसज्जित होकर
मंदिरों में पहुंचीं। केले
के पत्तों का मंडप बनाकर
उसमें भगवान शिव और माता
पार्वती के साथ पूरे
परिवार की प्राण-प्रतिष्ठा
की गई। पूजा में
चूड़ी, बिंदी, आलता और श्रृंगार
सामग्री अर्पित की गई। गंगाजल,
दही, दूध, शहद से
स्नान कराकर शिव-पार्वती को
पूड़ी-पकवान और मौसमी फलों
का भोग लगाया गया।
रात्रि जागरण और मंगल गीत
पूजा-अर्चना के
बाद सुहागिनों ने अखंड सौभाग्य
की कामना से पंडितों को
श्रृंगार पेटिका, फल-फूल और
दक्षिणा समर्पित की। मंदिरों में
पुरोहितों ने भगवान शिव-पार्वती के विवाह प्रसंग
का वर्णन कर व्रतियों को
व्रत का महत्व बताया।
रात्रि में ढोलक की
थाप पर मंगल गीत
गूंजते रहे। घर-घर
में भजन-कीर्तन और
आरती हुई। व्रतियों ने
फुलहरा बनाकर अपने घरों को
सजाया और विधिपूर्वक शंकर-पार्वती की आराधना की।
पौराणिक प्रसंग और प्रेरणा
माता पार्वती ने
भगवान शिव को पति
रूप में पाने के
लिए सखियों संग जंगल में
जाकर कठोर तपस्या की
थी। उसी तप और
निष्ठा की स्मृति में
यह व्रत आज भी
जीवित है। यह व्रत
नारी के तप, त्याग
और समर्पण का अद्भुत उदाहरण
है।
सांस्कृतिक महत्व
हरितालिका तीज केवल धार्मिक
व्रत नहीं, बल्कि नारी जीवन का
उत्सव भी है। इसमें
श्रृंगार, गीत, भक्ति और
परिवार के प्रति समर्पण
का अद्भुत समन्वय झलकता है। यह स्त्री
शक्ति, त्याग और समर्पण का
संदेश देता है। माता
पार्वती के तप की
स्मृति हमें यह प्रेरणा
देती है कि संकल्प
और श्रद्धा से जीवन में
हर लक्ष्य को पाया जा
सकता है। यह पर्व
बदलते समय में भी
भारतीय संस्कृति की जीवंत परंपरा
बनकर नई पीढ़ी को
अपनी जड़ों से जोड़े
हुए है। काशी में
हरितालिका तीज की धूम
ने यह स्पष्ट कर
दिया कि भले ही
समय कितना भी बदल जाए,
लेकिन भारतीय समाज की जड़ें
अपनी संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म से
जुड़ी हुई हैं।
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