चंद्रग्रहण : आस्था, विज्ञान, परंपरा और काशी का अध्यात्मिक संगम
आकाश में घटित होने वाली खगोलीय घटनाएं सदियों से मानव जीवन को चमत्कृत करती रही हैं। इनमें चंद्रग्रहण का अपना एक विशिष्ट महत्व है। 7 - 8 सितंबर की रात भारत सहित एशिया और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलेगा, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में लगभग एक घंटा 21 मिनट तक ढका रहेगा। यह इस साल का सबसे बड़ा और सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। विज्ञान की दृष्टि से यह पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति का परिणाम है। वहीं भारतीय परंपरा और आस्था में इसे राहु-केतु की छाया माना जाता है। यही कारण है कि यह घटना केवल खगोलीय न होकर आस्था, विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत संगम बन जाती है। खगोलविदों के अनुसार ग्रहण का छाया आरंभ : रात 8ः59 बजे आंशिक होगा. जबकि पूर्ण ग्रहण रात 11ः00 बजे व चरम अवस्था 11ः41 बजे होगी और समापन तड़के 1ः26 बजे होगी। ग्रहण का सूतककाल 7 सितंबर की दोपहर 2ः59 बजे से ही प्रारंभ हो जाएगा। सूतक लगते ही मंदिरों में पूजा-पाठ, भोग और आरती का क्रम बदल दिया जाता है। वाराणसी में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से भी अद्वितीय है। ग्रहण को देखते हुए यहां पूजन-अर्चन का पूरा क्रम परिवर्तित कर दिया गया है। संध्या आरती : शाम 4 से 5 बजे, श्रृंगार-भोग आरती : 5ः30 से 6ः30 बजे, शयन आरती : 7 से 7ः30 बजे, इसके बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाएंगे। ग्रहण उपरांत 8 सितंबर की सुबह विशेष शुद्धिकरण अनुष्ठान होंगे। तभी मंदिर के द्वार पुनः भक्तों के लिए खुलेंगे
सुरेश गांधी
7-8 सितंबर 2025 की रात पूर्ण
चंद्र ग्रहण लगने जा रहा
है. खास बात है
कि यह ग्राहण बिहार
सहित देश भर में
दिखेगा. पटना स्थित मौसम
विज्ञान केंद्र ने टाइमिंग जारी
की है. जिसमें बताया
गया है कि बिहार
के लोग कितने बजे
से कितने बजे तक इस
अद्भुत आकाशीय नजारे को देख सकते
हैं. मतलब साफ है
इस दिन आकाश में
अद्भुत खगोलीय घटना घटित होने
जा रही है। 7 - 8 सितंबर
की रात पूर्ण चंद्रग्रहण
का नजारा होगा। वैज्ञानिक इसे खगोलीय चमत्कार
कहते हैं, वहीं भारतीय
परंपरा में इसे राहु-केतु की छाया
माना गया है। यही
वजह है कि यह
घटना एक साथ आस्था,
विज्ञान और परंपरा का
संगम बन जाती है।
ग्रहण का सूतककाल दोपहर
से ही लागू हो
जाएगा। विश्वनाथ धाम सहित प्रमुख
मंदिरों में आरती-भोग
का क्रम बदल दिया
गया है। ग्रहण उपरांत
विशेष शुद्धिकरण अनुष्ठान होंगे। ज्योतिषाचार्यों का कहना है
कि कुंभ राशि और
शतभिषा नक्षत्र में घटने वाला
यह ग्रहण मेष, तुला, धनु
और मीन राशि के
लिए शुभ है, जबकि
कर्क, सिंह और कन्या
को सावधानी रखनी चाहिए।
काशी में चंद्रग्रहण
का दृश्य केवल खगोल विज्ञान
का नहीं, बल्कि अध्यात्म और संस्कृति का
भी प्रतीक है। किंतु समाज
को यह समझना होगा
कि अंधविश्वास और भय में
जीने के बजाय हमें
प्रकृति की सच्चाई को
वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण करना
चाहिए। आस्था और विज्ञान का
संगम ही भारतीय परंपरा
की असली ताकत है।
यही दृष्टि काशी को अनूठा
और सनातन बनाती है। मतलब साफ
है चंद्रग्रहण को लेकर आस्था
और मान्यता जितनी गहरी है, उतनी
ही वैज्ञानिक व्याख्या भी स्पष्ट है।
यह सही है कि
लोकपरंपराओं ने समाज को
अनुशासन, शुचिता और श्रद्धा की
शिक्षा दी है, किंतु
आज आवश्यकता है कि हम
इन परंपराओं को वैज्ञानिक दृष्टि
से भी समझें। ग्रहण
का कोई दुष्प्रभाव नहीं
होता, बल्कि यह हमें प्रकृति
और ब्रह्मांड की विराटता का
अहसास कराता है। विज्ञान और
परंपरा दोनों को साथ लेकर
ही समाज सही दिशा
में आगे बढ़ सकता
है। चंद्रग्रहण की छाया में
जब काशी जागेगी, तो
यह केवल खगोलीय घटना
नहीं बल्कि अध्यात्म और खगोल का
अद्भुत संगम होगा। गंगा
घाटों पर उमड़ती श्रद्धा
और मंदिरों में गूंजते मंत्र
यही बताएंगे कि काशी की
आत्मा विज्ञान और अध्यात्म को
साथ लेकर चलती है।
गंगा घाटों पर उमड़ेगी आस्था
ग्रहण का सबसे बड़ा
प्रभाव काशी के घाटों
पर देखा जाएगा। गंगा
स्नान और दान-पुण्य
की परंपरा को निभाने के
लिए हजारों श्रद्धालु घाटों पर जुटेंगे। प्रशासन
ने सुरक्षा व्यवस्था, स्नान घाटों पर पुलिस बल
और सफाई व प्रकाश
व्यवस्था के विशेष इंतजाम
किए हैं। ग्रहण के
बाद गंगा में स्नान
कर पितरों का तर्पण करना
और दान-पुण्य करना
विशेष फलकारी माना जाता है।
चूँकि यह ग्रहण पितृपक्ष
की शुरुआत के साथ पड़
रहा है, इसलिए इसकी
महत्ता और भी बढ़
गई है।
किस राशि को लाभ, किसे सतर्कता
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यह
चंद्रग्रहण कुंभ राशि और
शतभिषा नक्षत्र में लग रहा
है। इसका असर राशियों
पर अलग-अलग रूप
से देखने को मिलेगा। लाभकारी
राशियों मेष, मिथुन, तुला,
धनु, कुंभ और मीन
शामिल है, लेकिन कर्क,
सिंह और कन्या राशि
वालों को सतर्क रहना
होगा। जबकि तुला और
कुंभ राशि वालों के
लिए यह ग्रहण जीवन
में बड़े बदलाव और
नए अवसर लेकर आएगा।
ज्योतिषियों का मानना है
कि ग्रहण काल में जप,
ध्यान, दान और स्नान
करने से पितरों की
कृपा और दिव्य आशीर्वाद
प्राप्त होता है।
लोक मान्यताएं और परंपराएं
भारतीय समाज में चंद्रग्रहण
को लेकर अनेक परंपराएं
प्रचलित हैं, सूतक लगते
ही भोजन-पानी का
त्याग और उसमें तुलसी
पत्र डालना। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के
समय बाहर न निकलने
की सलाह। ग्रहण काल में मंत्रोच्चार,
जप-तप और भगवान
का स्मरण। ग्रहण उपरांत स्नान, दान और तर्पण।
इन परंपराओं का उद्देश्य केवल
धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक अनुशासन और शुचिता से
भी जुड़ा है।
विज्ञान का नजरिया
वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण का
संबंध किसी भी प्रकार
के दुष्प्रभाव से नहीं है।
यह केवल पृथ्वी की
छाया में आने पर
चंद्रमा के ढकने का
परिणाम है। पृथ्वी का
वायुमंडल सूर्य की लाल किरणों
को चंद्रमा तक पहुंचाता है,
जिससे चंद्रमा लाल दिखाई देता
है। यही दृश्य ‘ब्लड
मून’ कहलाता है। खगोलविद इसे
अंतरिक्ष अध्ययन और शोध के
लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। यह हमारे
लिए प्रकृति की विराटता और
ब्रह्मांड की कार्यप्रणाली को
समझने का अवसर है।
काशी : खगोल और अध्यात्म का संगम
काशी का हर
पर्व, हर अनुष्ठान खगोल
और अध्यात्म से जुड़ा रहा
है। चंद्रग्रहण भी इसका अपवाद
नहीं है। गंगा घाटों
पर स्नान, मंदिरों में मंत्रोच्चार और
आस्था की भीड़ इस
बात का प्रमाण है
कि यहां आस्था और
विज्ञान एक-दूसरे के
विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। जब
आसमान में लाल चंद्रमा
का दृश्य होगा और उसी
समय गंगा घाट पर
मंत्रों की गूंज सुनाई
देगी, तब काशी एक
बार फिर अपनी सनातन
पहचान को जीवंत करेगी।
ग्रहण काल में क्या करें
मंत्रोच्चार व जप-तप
करें
तुलसी पत्रयुक्त भोजन-पानी ग्रहण
करें
स्नान व दान करें
क्या न करें
मांगलिक कार्य न करें
गर्भवती महिलाएं बाहर न निकलें
ग्रहण के दौरान भोजन
न करें
पितृपक्ष और ग्रहण
ग्रहण पितृपक्ष की शुरुआत के
साथ घटित हो रहा
है। मान्यता है कि इस
काल में किया गया
स्नान-दान और तर्पण
पितरों को विशेष तृप्ति
और जीवितों को आशीर्वाद देता
है।
ग्रहण का समय
उपच्छाया की शुरुआत : रात
8ः59 बजे
आंशिक ग्रहण : 9ः58 बजे
पूर्ण ग्रहण : 11ः00 बजे
चरम अवस्था : 11ः41
बजे
समाप्ति : तड़के 1ः26 बजे
काशी विश्वनाथ मंदिर की तैयारी
काशी में विश्वनाथ
धाम के द्वार ग्रहण
से दो घंटे पूर्व
(7ः57 बजे) ही बंद
हो जाएंगे। संध्या आरती : 4ः00 से 5ः00
बजेत्र श्रृंगार भोग आरती दृ
5ः30 से 6ः30 बजे,
शयन आरती 7ः00 से 7ः30
बजे, ग्रहण उपरांत प्रातः विशेष मौक्ष पूजा और शुद्धिकरण
अनुष्ठान होंगे। इसके बाद ही
भक्तों के लिए दर्शन
खुलेगा।
कब और कितने बजे से दिखेगा ग्रहण
इस ग्रहण की
शुरुआत 7 सितंबर की रात 9 बजकर
57 मिनट पर होगी. जब
चंद्रमा पृथ्वी की प्रच्छाया में
प्रवेश करेगा. ग्रहण का पूर्ण चरण
रात 11 बजे से शुरू
होगा. जो अगले दिन
8 सितंबर की रात 12 बजकर
23 मिनट तक जारी रहेगा.
ग्रहण का समापन 1 बजकर
27 मिनट पर होगा. कुल
मिलाकर. ग्रहण की अवधि 3 घंटे
30 मिनट की रहेगी, जबकि
यह परंपरा 1 घंटा 23 मिनट तक चलेगा.
इस ग्रहण का परिमाण 1.36 करोड़
आंका गया है.
कहां-कहां दिखेगा चंद्र ग्रहण
यह पूर्ण चंद्र
ग्रहण अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, ऑस्ट्रेलेशिया, एशिया, भारत महासागर, यूरोप
और पूर्वी अटलांटिक महासागर से देखा जा
सकेगा. भारत में भीड़इसके
सभी चरण साफ दिखाई
देंगे.
क्यों लगता है चंद्रग्रहण
चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन घटित
होता है. इस समय
पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक
सीधी रेखा में स्थित
हो जाते हैं और
पृथ्वी बीच में आकर
सूर्य की किरणों को
चंद्रमा तक पहुंचने से
रोक देती है. जब
पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में
ढक जाता है तो
इसे पूर्ण चंद्र ग्रहण कहा जाता है,
जबकि यदि चंद्रमा का
केवल कुछ हिस्सा ही
छाया से ढक पाए
तो उसे आंशिक चंद्र
ग्रहण कहा जाता है.
निर्धारित समय अवधि में
यह घटना देखने को
मिलेगी.
अब कब दिखेगा
भारत में दिखने
वाला अगला चंद्र ग्रहण
03 मर्च 2026 को घटित होगा
जो कि पूर्ण चंद्र
ग्रहण होगा. इसके साथ ही
भारत में पिछला चंद्र
ग्रहण 28 अक्टूबर 2023 को घटित हुआ
था जो कि आंशिक
ग्रहण था.
क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह
ग्रहण कुंभ राशि और
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में लग रहा
है, जिसमें राहु चंद्रमा के
निकट युति में रहेगा
और सूर्य-केतु कन्या राशि
में होंगे - यह स्थिति ग्रहों
का अशुभ योग बनाती
है. शास्त्रों के अनुसार ऐसी
स्थिति प्राकृतिक आपदाओं (भूकम्प, तूफान, बादल फटना आदि)
के संकेत हो सकती है.
वैश्विक और राजनीतिक प्रभाव
ज्योतिष के अनुसार इस
चंद्र ग्रहण के प्रभाव के
कारण पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंप की
आशंका बढ़ सकती है.
इसके साथ ही वैश्विक
राजनीति में भी हलचल
भी देखने को मिल सकती
है - जैसे भारत के
साथ अमेरिकी व्यापार दबाव या मध्य-पूर्व में इज़रायल के
संभावित आक्रामक रवैये के चलते तनावों
में इज़ाफ़ा हो सकता है.
कब लगेगा सूतक
सनातन परंपरा के अनुसार किसी
भी ग्रहण से लगभग 9 घंटे
पूर्व सूतक काल प्रारंभ
होता है. इस साल
लगने जा रहे चंद्रग्रहण
वाले दिन दोपहर 12ः57
से यह सूतक लग
जाएगा. ध्यान रहे कि सूतक
की समाप्ति ग्रहण के साथ ही
होती है. हिंदू मान्यता
के अनुसार ग्रहण की अवधि में
पूजा, भोजन, खाने-पीने, धार्लीय
उपकरण (जैसे चाकू, कैंची),
मूर्तियों का स्पर्श आदि
वर्जित होते हैं. गर्भवती
महिलाओं, बुज़ुर्गों, बच्चों को विशेष सावधानी
रखने की आवश्यकता रहती
है. ग्रहण के दौरान घर
से बाहर निकलने और
धारदार औजारों का प्रयोग करने
से बचना चाहिए.
न करें ये काम
ज्योतिष या शास्त्र के
जानकार ग्रहण के दौरान नुकीली
चीजें पास न रखने
की सलाह देते हैं।
इसके लिए ग्रहण के
दिन कोई भी नुकीली
चीजें जैसे चाकू, नेल
कटर, सेफ्टी पिन आदि अपने
पास न रखें। राहु
का प्रभाव बढ़ने के चलते
नकारात्मक शक्ति हावी रहती है।
इसके लिए ग्रहण के
दौरान इन चीजों का
इस्तेमाल न करें। भूलकर
भी देवी-देवताओं की
प्रतिमा को स्पर्श न
करें। साथ ही तुलसी,
पीपल व बरगद के
पेड़ का स्पर्श न
करें। ऐसा करने से
आप दोष के भागी
हो सकते हैं। चंद्र
ग्रहण के दिन या
चंद्र ग्रहण के दौरान नकारात्मक
जगहों पर न जाएं।
इस दिन नकारात्मक शक्तियों
का प्रभाव बढ़ जाता है।
ये बुरी शक्तियां आप
पर हावी हो सकती
हैं। इससे आपके शारीरिक
और मानसिक सेहत पर बुरा
असर पड़ सकता है।
चंद्र ग्रहण के दिन किसी
से बहस या लड़ाई
न करें। ऐसा करना आपको
भारी पड़ सकता है।
अगर गलती से किसी
का दिल दुखा देते
हैं, तो क्षमा याचना
कर लें। इस समय
शोर-गुल भी न
करें। अनदेखी करने से घर
की खुशियों पर ग्रहण लग
जाता है। चंद्र ग्रहण
के दौरान तामिसक चीजों का सेवन न
करें और न ब्रह्मचर्य
नियम को भंग करें।
ऐसा करने से व्यक्ति
पर बुरा प्रभाव पड़ता
है। ऐसा करने से
व्यक्ति को आने वाले
समय में विषम परिस्थिति
से गुजरना पड़ता है। व्यक्ति
को दैवीय कृपा नहीं प्राप्त
होती है।
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