Monday, 30 April 2018

बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज

बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज
सुबह श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, शाम को बुद्ध मंदिरों में जगमगाएं दीपों की श्रृंखला 
सुरेश गांधी 
शहर हो देहात, सारनाथ हो या बोधगया या कुशीनगर से लेकर सोमवार को दुनियाभर में भगवान गौतम बुद्ध की जयंती धूमधाम से मनाई जा रही
है। हर जगह बुद्धं शरण गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज सुनाई दे रही है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध नारायण के अवतार हैं, उन्होंने 2500 साल पहले धरती पर लोगों को अहिंसा और दया का ज्ञान दिया था। बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसी वजह से हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।सुबह से लेकर देर शाम तक जगह-जगह बुद्ध पूजा व वंदना, संगोष्ठी, भंडारा, दीक्षा समारोह, धम्म सभा व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। धम्म यात्रा निकाली गयी। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की। बुद्ध मंदिरों में सुबह से लेकर देर रात तक रौनक रही। श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। समारोह का मुख्य आकर्षण बुद्ध चित्र प्रदर्शनी, बौद्ध विद्वान व भिक्खुओं का अभिभाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम (बुद्ध एकांकी, नृत्य, कविता, संगीत का भव्य प्रदर्शन) सामूहिक भंडारा रहा। शाम में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत बुद्ध एकांकी, नृत्य, कविता, संगीत का प्रदर्शन किया गया। 
भगवान बुद्ध ने चार आर्यसत्य बताए हैं जिसके माध्यम से मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा दी है। दुख है। दुख का कारण है। दुख का निवारण है। दुख निवारण का उपाय है। महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और संन्यास ले लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुद्ध जयंती के मौके पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इसके बाद कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि मौजूदा वक्त में विश्व को बचाने के लिए बुद्ध का करुणा प्रेम का संदेश काम आ सकता है और इसके लिए बुद्ध को मानने वाली शक्तियों के सक्रिय भूमिका निभानी होगी। पीएम मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध कहते थे कि किसी के दुख को देखकर दुखी होने से ज्यादा बेहतर है कि उस व्यक्ति को उसके दुख को दूर करने के लिए तैयार करो, उसे सशक्त करो। उन्होंने कहा कि इस बात की खुशी है कि हमारी सरकार करुणा और सेवाभाव के उसी रास्ते पर चल रही हैं जिस रास्ते को भगवान बुद्ध ने हमें दिखाया था। सारनाथ और बोधगया में बुद्ध की धरोहर संरक्षित करने वाली संस्थाओं को वैशाख सम्मान मिलने पर पीएम मोदी ने बधाई दी। उन्होंने कहा हम गर्व से कह सकते है कि भारत से निकली हर विचारधारा ने मानवहित को सर्वोपरि रखा। उन्होंने कहा कि बुद्ध के विचारों ने नवचेतना जगाने के साथ-साथ एशिया के कई देशों के राष्ट्रीय चरित्र को बुद्ध के विचार ही परिभाषित कर रहे हैं। बुद्ध का अर्थ बताते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हिंसा के लिए प्रेरित मन को शुद्ध स्थिति में लाना ही बुद्ध है। उन्होंने कहा कि जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर मनुष्य और मनुष्य के भीतर भेद करने का संदेश न भारत का हो सकता है, न बुद्ध का हो सकता है, धरती पर इस विचार के लिए जगह नहीं हो सकती। 

मोदी-जिनपिंग के बीच जुगलबंदी तो ठीक सजगता भी जरुरी

मोदी-जिनपिंग के बीच जुगलबंदी तो ठीक सजगता भी जरुरी 
              इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर चीन भारत साथ साथ चले तो न सिर्फ वैश्विक नेतृत्व इनके हाथ में होगा, बल्कि आतंक की फैक्ट्री पाकिस्तान पर नकेल कसी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिवसीय अनौपचारिक वुहान दौरे के बाद से कुछ इसी तरह के कयास लगाएं जा रहे है। माना जा रहा है कि मोदी और जिनपिंग की जुगलबंदी दोनों देशों के बीच नए युग की शुरुआत होती दिख रही है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन एक ऐसा पड़ोसी है जो पाकिस्तान की तरह घिनौनी हरकत तो नहीं करता लेकिन पीठ में छुरा भोकने से भी बाज नहीं आता। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मोदी जिनपिंग की जुगजबंदी भारत-चीन की जनता के साथ पूरी दुनिया के लिए हितकारी तो हैं। पर भरोसा भी आंख मूंद कर नहीं बल्कि सावधानी के बीच तरेरे रहने क जरुरत है  
             सुरेश गांधी 
            बेशक, डोकलाम विवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बता दिया अब 1962 वाला भारत नहीं है। भारत किसी भी संकट या उसे आंखे दिखाने वाले को सबक सिखा सकता है। यही वजह भी है कि चीन ने डोकलाम विवाद को खत्म करने में ही अपनी भलाई समझा और अब भारत से दोश्ताना के लिए दो दो हाथ करने को तैयार है। इसकी झलक दो दिवसीय दौरे के दौरान वुहान में भी देखने को मिला। वुमान में दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत को भी इसी कड़ी से जोड़क देखा जा रहा है। कहा जा सकता है विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत आपसी मतभेदों को दूर करने और सहयोग को बढ़ाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मोदी और जिनपिंग दोनों का ही यह मानना है कि अगर वे आपसी मतभेद को दूर करने और सहयोग को बढ़ाने में कामयाब होते हैं, तो वे दुनिया में अपना प्रभाव स्थापित कर सकते हैं। चीनी राष्ट्रपति का संकेत साफ है कि अब चीन और भारत एशिया में बादशाहत कायम करने की प्रतिद्वंदिता से ऊपर उठकर वैश्विक नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। वहीं, पीएम मोदी भी मानते हैं कि दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या का भला करने का दायित्व चीन और भारत के ऊपर है। 40 प्रतिशत जनसंख्या का भला करने का मतलब विश्व को अनेक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का एक सफल प्रयास है। इस महान उद्देश्य को लेकर दोनों देशों का मिलना, साथ चलना और संकल्पों को पूरा करना अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। 
                 मोदी जिनपिंग की यह सोच दोनों देशों एवं उसके जनता के लिए सही भी है। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी चीन की धोखे और अविश्वास वाली उस मानसिकता को खत्म करने में कामयाब हो पाएंगे जिसके चलते दोनों देशों के संबंध एक कदम आगे बढ़ते हैं तो दो कदम पीछे हट जाते हैं। चीन की इसी मानसिकता के चलते तीस साल के फासले पर भारत और चीन का रिश्ता जस का तस खड़ा है। बातों में भरोसे की कोशिश लेकिन जमीन पर अविश्वास का माहौल हमेशा बना रहता है। हमें हिन्दी चीनी भाई भाई के नारे को भी नहीं भूलना चाहिए। इस नारे का ही तकाजा था कि साल 2017 के अंत तक भारत में चीन का निवेश 532 अरब रुपये का आंकड़ा पार कर गया है। या यू कहें  चीन ने भारत के बाजार पर काफी हद तक कब्जा कर रखा है। या यू कहे चीन के लिए भारत कमाऊ पुत है। इसके बावजूद डोकलाम को लेकर तीन महीने तक दोनों देशों के बीच खींचतान जारी रही। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में चीन के दखल को लेकर विवाद अभी भी जस का तस है। मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की फाइल अभी चीन के चलते ही अटका पड़ा है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या भारत से रिश्तों की कीमत पर वो यहां सड़क और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता रहेगा? आतंकी अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में भारत की कोशिशों का समर्थन करेगा या आगे भी अड़ंगा ही लगाएगा? क्या न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी में भारत की एंट्री को चीन समर्थन के लिए तैयार होगा? क्या उस कारोबारी असंतुलन को मिटाने की है, जिसमें चीन ने तो भारत पर कब्जा रखा है लेकिन भारत का चीन में उसके कारोबार का एक चैथाई भी नहीं हैं? ये ऐसे सवाल है जिसके उत्तर का इंतजार हमेशा रहेगा। 
             फिरहाल, इन सवालों के बीच अगर मोदी जिनपिंग के बीच दोस्ती आगे बढ़ती है तो स्वागतयोग्य है। क्योंकि पिछले साल डोकलाम में 72 दिन तक चले गतिरोध के बाद विश्वास बहाल करने और संबंध सुधारने के भारत और चीन के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है। वैसे भी पड़ोसी और बड़ी ताकतें होने के नाते यह लाजमी है कि दोनों देशों में मतभेद होंगे। लेकिन समय पर विवाद सलट जाएं तो सोने पर सुहागा से भी कम नहीं। ऐसी स्थिति में शांतिपूर्वक और आपसी सम्मान को बनाए रखते हुए उसका निपटारा हो ही जाना चाहिए और इसके लिए कोशिश की जानी चाहिए। सौहार्दपूर्ण रिश्तों के लिए जरूरी है कि दोनों देशों की सीमाओं पर शांति बनी रहे। ऐसे में दोनों देशों को आपसी भरोसे को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करना होगा। यह कोशिश उस वक् देखने को मिली जब चीन जैसी महाशक्ति का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगवनी के लिए एअरपोर्ट पर 52 सेकेंड तक इंतजार किया। फिर 28 सेकेंड तक मोदी से हाथ मिलाए रखा। दोनों शीर्ष नेता कई बार बहुत अच्छे मूड में दिखाई दिए। डोकलाम सीमा विवाद के बाद श्रीलंका, नेपाल और मालदीव में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर मोदी और शी की यह अनौपचारिक वार्ता महत्वपूर्ण है। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच सीमा विवाद सुलझाने समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और संयम बनाए रखने को लेकर सहमति बनी है। दोनों नेता अपनी-अपनी सेनाओं को सामरिक दिशानिर्देश देने और शांति बनाए रखने के लिए जरूरी स्ट्रैटेजिक मेकेनिज्म मजबूत करने पर राजी हुए हैं। जो अच्छे संकेत है। 
              हो सकता है जिनपिंग मोदी से गहरी दोस्ती करके दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहते हो। हो सकता है अब वह एशिया में भारत से प्रतिद्वंदिता की बजाय वैश्विक दबदबा बनाने की कोशिश में हो। लेकिन इसमें भारत का भी हित निहित है। क्योंकि पड़ोसी से दुश्मनी किसी भी दशा में ठीक नहीं है। भारत और चीन के बीच 3,488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। दोनों देशों को जल्द ही हॉटलाइन से भी जोड़ा जा सकता है। दोनों देशों को हॉटलाइन से कनेक्ट करने का सीनियर सैन्य नेतृत्व बेसब्री से इंतजार कर रहा है। हालांकि दोनों देश हॉटलाइन से कब जुड़ेंगे, इसको लेकर अभी विस्तार से जानकारी नहीं मिल पाई है। पीएम मोदी का यह दौरा औपचारिक नहीं था, जिसके मद्देनजर दोनों देशों के बीच कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ। लेकिन दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच जो बातचीत हुई, उसका भविष्य में कई मसलों पर असर दिखने की संभावना है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच इस तरह अनौपचारिक वार्ता हुई  हो। पीएम मोदी ने खुद दुनिया के नेताओं से इस परंपरा को आगे बढ़ाने का आह्वान किया है। हालांकि, इस वार्ता में कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ, लेकिन सीमा विवाद और आतंकवाद जैसे तमाम मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच सकारात्मक बातचीत हुई। भारत और चीन के बीच अफगानिस्तान मसले को लेकर अहम बातचीत हुई। दोनों देश अफगानिस्तान में साथ मिलकर काम करेंगे। अफगान प्रोजेक्ट में दोनों देशों की आर्थिक भागीदारी होगी। दोनों देशों ने अफगानिस्तान में शांति कायम करने और आर्थिक मोर्चे पर मिलकर काम करने पर सहमति जताई है, ताकि यहां से आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जा सके। 
           दोनों नेताओं ने विशेष प्रतिनिधियों द्वारा विवाद का बेहतर हल तलाशने का समर्थन किया। 2005 में जो पैरामीटर थे, उन्हीं के आधार पर सेकेंड स्टेज में बात होगी। साथ ही इस बाबत दोनों नेताओं ने फैसला किया कि वे अपनी-अपनी सेनाओं को सामरिक दिशानिर्देश जारी करेंगे ताकि हालात बेहतर हो सकें और डोकलाम जैसी स्थिति न पैदा हो। इस बात भी सहमति बनी कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच संचार बढ़े और परस्पर विश्वास पैदा हो। कृषि, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और पर्यटन क्षेत्र पर भी बात की। साथ ही मौजूदा संस्थागत तंत्र को भी मजबूत किया जाएगा ताकि सीमाई इलाकों में हालात संभाले जा सकें। दोनों ही देश तेजी से विकसति हो रही अर्थव्यवस्था हैं। चीन और भारत, दोनों का काफी बड़ा घरेलू बाजार है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्था दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए सबसे बेहतर माध्यम है। 1980 में भारत-चीन की अर्थव्यवस्था समान थी, चीन ने लगातार औद्योगिकीकरण पर काम किया, आज उसकी अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना अधिक है। अगर भारत अपने रवैए में सुधार करता है, तो चीन से उसे अधिक उत्पाद, क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर मिल सकता है जो भारतीयों की जरूरत है। ये सवाल इसलिए खड़े हैं कि प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत बुलाया था लेकिन जिस वक्त शी जिनपिंग साबरमती नदी के किनारे झूला झूल रहे थे, उसी वक्त चीनी सैनिक जम्मू और कश्मीर के चुमार में घुस आए थे। 1988 में जिस वक्त राजीव गांधी चीनी राष्ट्रपति डेंग जिओपिंग से मुलाकात कर रहे थे, उस वक्त समडोरोंग में चीन का अतिक्रमण था। दरअसल 1954 में तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन के साथ नए रिश्तों की बुनियाद रखने के मकसद से वहां की यात्रा की थी। लेकिन वो बुनियाद कमजोर निकला क्योंकि भारत के भरोसे के सीमेंट में उसने धोखे की रेत मिला दी.। तब से कोशिशें बहुत हुईं लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब फिर से प्रयास हो रहा है तो उम्मीद रखने में हर्ज क्या है। 

Sunday, 29 April 2018

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम 
          वैशाख मास की एकादशी हो या अमावस्या, सभी तिथियां खास है। लेकिन इनमें वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है। क्योंकि इस दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बोध गया में पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध ने गोरखपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित कुशीनगर में महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था। दुनियाभर के बौद्ध गौतम बुद्ध की जयंती को धूमधाम से मनाते हैं...
            सुरेश गांधी 
            इस बार वैशाख पूर्णिमा 30 अप्रैल सोमवार को है। सोमवार को पूर्णिमा का योग होने से सोमवती पूर्णिमा का योग बन रहा है। खास यह है कि इस बार वैशाख पूर्णिमा पर 3 साल बाद सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है। अब यह संयोग वर्ष 2022 में बनेगा। इस दिन स्वाति नक्षत्र और तुला राशि का चंद्रमा समृद्धि व वैभव प्रदान करेगा। यह योग कैरियर और कारोबार में सफलता के साथ साथ दान से लेकर खरीदारी तक के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सत्य विनायक व्रत रखने का विशेष विधान है। मान्यता है कि इस दिन यह व्रत रखने से व्रती की दरिद्रता दूर होती है। उसके बिगड़े काम बनते हैं। इस शुभ योग में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। वैशाख पूर्णिमा को ‘सत्य विनायक पूर्णिमा‘ के तौर पर भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने उनसे मिलने पहुंचे उनके मित्र सुदामा को सत्य विनायक व्रत करने की सलाह दी थी, जिसके प्रभाव से उनकी दरिद्रता समाप्त हो सकी। इसके अलावा इस दिन ‘धर्मराज‘ की पूजा का भी विधान है। धर्मराज की इस दिन पूजा-उपासना से साधक को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। इसे सोमवती पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरू का विशाखा नक्षत्र भी है। इस दिन भगवान बुद्ध की जयंती भी है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान भी मिला था इसी दिन भगवान बुद्ध ने अपनी देह का त्याग भी किया था। 
          वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। इस दिन भगवान बुद्ध का ध्यान करना विशेष लाभदायक होता है। दुनिया भर में इस दिन भगवान बुद्ध की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस दिन को दैवीयता का दिन भी माना जाता है। इस दिन ब्रह्म देव ने काले और सफेद तिलों का निर्माण भी किया था। अतः इस दिन तिलों का प्रयोग जरूर करना चाहिए। इस दिन बृहस्पति चंद्र का अद्भुत योग भी होगा। स्वास्थ्य और जीवन का कारक सूर्य अपनी उच्च राशि में होगा। इसके अलावा सुख को बढ़ाने वाला ग्रह शुक्र भी स्वगृही होगा। इस पूर्णिमा को स्नान और दान करने से चन्द्रमा की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। साथ ही साथ आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती जाएगी। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के पिछले कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप जलाते हैं। रंगीन पताकाओं से सजावट की जाती है और बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन भक्त भगवान महावीर पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती और मोमबत्तियां जलाते हैं तथा भगवान बुद्ध के पैर छूकर शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं। बौद्ध और हिंदू दोनों ही धर्मों के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। 
चंद्रमा करेगा धन की अमृत वर्षा  
            शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की पूजा करने से चारो तरफ से सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। सिद्धि योग और सोमवार के चलते यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। कहते है पूर्णिमा पर ज्योतिष में बताए उपायों को विधि विधान से करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का अंत हो जाता है। चंद्रमा को सफेद रंग और शीतलता का प्रतीक माना गया है। इसलिए इस योग में दूध और शहद के उपाय से धन, मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। पूर्णिमा की तिथि पर सुबह स्नान के बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजन करने के बाद दिनभर अपने मन में ऊं सोम सोमाय नमः के मंत्र का जप करना चाहिए। पूर्णिमा की रात को कच्चे दूध में पूजा के उपयोग में लाने वाले शहद और चंदन को मिलाकर उसमें अपनी छाया देखें फिर चंद्रमा को अघ्र्य दें। इस तिथि को चन्द्रमा सम्पूर्ण होता है। या यूं कहें सूर्य और चन्द्रमा समसप्तक होते हैं। इस तिथि पर जल और वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है। चन्द्रमा इस तिथि के स्वामी होते हैं। अतः इस दिन हर तरह की मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन स्नान, दान और ध्यान विशेष फलदायी होता है। इस दिन सत्यनारायण देव या शिव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। भविष्य पुराण और आदित्य पुराण के अनुसार बैशाख पूर्णिमा अत्यन्त पवित्र और फलदायिनी बताई गयी है। इस दिन महीने भर से चले आ रहे बैशाख स्नान और महीने भर से चले आ रहे धार्मिक अनुष्ठान आदि की पूर्णाहुति होती है। स्वाति नक्षत्र 27 नक्षत्रों में दान में पुण्य प्रदान करने वाला है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। इसी तरह सिद्धि योग के अधिपति गणेश है जो कि हर प्रकार के कार्य में सिद्धि प्रदान करने वाले हैं। तुला के चंद्रमा से वैभव में वृद्धि होगी। कहते है नक्षत्रों में स्वाति ऐसा नक्षत्र है जिसमें दान करने से पुण्य होता है जिसपर वायुदेव का आधिपत्य है। बता दें कि सिद्धी योग के स्वामी गणपति हैं जो अपने भक्तों को हर तरह की सिद्धी प्रदान करते हैं। तुला का चंद्रमा राज प्रताप देने वाला है। इसलिए भी इस दिन का खास महत्व है। इस दिन लक्ष्मी मां की भी खासकर पूजा की जाती है।  
पूजन विधि 
        प्रातः काल स्नान के पूर्व संकल्प लें। पहले जल को सर पर लगाकर प्रणाम करें। फिर स्नान करना आरम्भ करें। स्नान करने के बाद सूर्य को अघ्र्य दें। साफ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करें, फिर मंत्र जाप करें। मंत्र जाप के पश्चात सफेद वस्तुओं और जल का दान करें। चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं। इस दिन खासकर अगर लक्ष्मी मां को प्रसन्न
करना चाहते हैं तो पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीया जलाएं। पीपल के पेड़ पर इस दिन जल चढ़ाने से आपकी शनि की साढ़ेसाती कम हो सकती है। कुंवारी कन्याओं को खाना खिलाएं और उपहार दें। इससे कुछ अच्छा होगा। इस दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्रती को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस दिन विशेष तौर से सूर्योदय से पूर्व उठकर घर में साफ-सफाई जरूर करें। पूजा के दौरान गाय के घी का दीपक जलाएं। धूप करें और कपूर जलाएं। मां लक्ष्मी को मखाने की खीर, साबू दाने की खीर या किसी सफेद मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के बाद सभी में प्रसाद बाटें. ध्यान रखें कि इस दिन घर में कलह का माहौल बिल्कुल न हो। इस दिन व्रती को जल से भरे घड़े सहित पकवान आदि भी किसी जरूरतमंद को दान करने चाहिये। स्वर्णदान का भी इस दिन काफी महत्व माना जाता है।
महात्मा बुद्ध का ज्ञान
         महात्मा बुद्ध ने हमेशा मनुष्य को भविष्य की चिंता से निकलकर वर्तमान में खड़े रहने की शिक्षा दी। उन्होंने दुनिया को बताया आप अभी अपनी जिंदगी को जिएं, भविष्य के बारे में सोचकर समय बर्बाद ना करें। बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनके ज्ञान की रौशनी पूरी दुनिया में फैली। महात्मा बुद्ध का एक मूल सवाल है। जीवन का सत्य क्या है? भविष्य को हम जानते नहीं है। अतीत पर या तो हम गर्व करते हैं या उसे याद करके पछताते हैं। भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं। दोनों दुखदायी हैं। बुद्ध के जीवन में दो स्त्रियां बहुत अहम स्थान रखती हैं। एक तो उनकी मौसी महापजापति गौतमी और दूसरी सुजाता जो उनके आत्मिक जन्म का निमित्त बनी। बुद्ध की जन्मदात्री मां उनके जन्म के बाद मर गईं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। उसके लिए गौतमी ने अपने नवजात पुत्र को किसी और दाई को सौंपा और वह खुद बालक सिद्धार्थ का पालन करने लगी। गौतमी ने आगे चलकर बुद्ध से दीक्षा लेने की जिद की, उसके कारण संघ में स्त्री का प्रवेश हुआ, और वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुई। दूसरी घटना है कि बुद्ध दिन रात बिना रुके ध्यान करते थे, इस वजह से उनका शरीर उपवास और तपस्या से क्षीण, अस्थिपंजर हो गया था। लेकिन एक पूर्णिमा के दिन उन्होंने सारे नियम तोड़ने का निश्चय किया और सहज स्वीकार भाव में बैठ गए। भोर के समय सुजाता नाम की स्त्री अपनी मन्नत पूरी करने के लिए खीर बनाकर ले आई। बुद्ध को देख कर उसे लगा, वृक्ष देवता प्रगट हुए हैं। उसने उन्हीं को भोग लगाया और खीर खाने की बिनती करने लगी। बुद्ध ने उसकी बिनती स्वीकार की और सुजाता के हाथ की खीर खाई। उसी दिन उन्हें बुद्धत्व की उपलब्धि हुई। उस दिन सुजाता उन्हें खीर नहीं खिलाती तो उनका शरीर नष्ट हो सकता था। बुद्ध की मां उनके जन्म के बाद नहीं रहीं थीं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। महामानव वो होते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ताउम्र कुछ ऐसी मिसाल कायम की, जिसके कारण उनको भगवान का दर्जा दिया गया। और वह अंत में देवत्व को प्राप्त होकर लोगों के पूज्य हो जाते हैं। उनके नाम पर एक विशेष धर्म जन्म लेता है। जो उस व्यक्ति के विचारों को आगे ले जाने के लिए अपने अनुयायियों को बढ़ाते हुए लोगों के अंदर नई शक्ति और नई चेतना का संचार करता है। इन्हीं में से एक थे भगवान बुद्ध, जिन्हें बौद्ध धर्म का निर्माता भी कहा जाता है। भगवान बुद्ध समय की महत्ता को बेहद अच्छी तरह से जानते थे। वह अपना हर क्षण कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला, तथागत आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है? और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है? प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। तथागत बेतुकी चर्चा में नहीं उलझना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘अरे भाई! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुख क्यों होता है?‘ और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गवाएं ऐसा करने पर आपको दुःख नहीं आएगा। यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है? भाई उस तीर से लगने पर उसका उपचार जरूरी है न की निरर्थक की बातों में समय गंवाना। कई लोग, कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं बहते पानी को तो फिर भी सुरक्षित किया जा सकता है लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापिस कभी नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय को सोच समझ कर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है।
बुरे समय को ऐसे टालिए 
       शाम का समय था। महात्मा बुद्ध एक शिला पर बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक देख रहे थे। तभी उनका शिष्य आया और आया और गुस्से में बोला, गुरुजी ‘रामजी‘ नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें, उसे उसकी मूर्खता का सबक सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, ‘प्रिय तुम बौद्ध हो, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। तुम इस प्रसंग को भुलाने की कोशिश करो। जब प्रसंग को भुला दोगे, तो अपमान कहां बचेगा?‘। लेकिन तथागत, उस धूर्त ने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया है। आपको चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस, मैं संतुष्ट हो जाउंगा। महात्मा बुद्ध समझ गए कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए वह बोले, अच्छा वत्स! यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलूंगा, और उसे समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा, हम सुबह चलेंगे। सुबह हुई, बात आई-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ न कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा- प्रियवर! आज रामजी के पास चलोगे न?‘ नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपने कृत्य पर भारी पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं। तथागत ने हंसते हुए कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो अब अवश्य ही हमें रामजी महोदय के पास चलना होगा। अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे।‘ 
गौतम बुद्ध के कुछ प्रमुख सूत्र
         गौतम बुद्ध प्रज्ञा पुरुष थे। उन्होंने धर्म को पारंपरिक स्वरूप से मुक्त कराकर उसे ज्ञान की तलाश से जोड़ा। उन्होंने विवेक को धर्म के मूल में रखा और तमाम रुढ़ियों को खारिज किया। उन्होंने ज्ञान को सर्वोच्च महत्व दिया और उनके इन विचारों की प्रासंगिकता आज भी है।पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैलती है। तीन चीजों को लम्बी अवधि तक छुपाया नहीं जा सकता, सूर्य, चन्द्रमा और सत्य। हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें, अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे। हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं, हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं। जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है। हजारों दीपों को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किए जलाया जा सकता है। खुशी बांटने से कभी कम नहीं होती। अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं। अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है। परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो। आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से ईष्र्या करें। वे लोग जो दूसरों से ईष्र्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती। अतीत पर ध्यान केंद्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करो। आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ लें या बोल लें, लेकिन जब तक उन पर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है। इच्छा ही सब दुःखों का मूल है। जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। चतुराई से जीने वाले लोगों को मौत से भी डरने की जरुरत नहीं है। वह व्यक्ति जो 50 लोगों को प्यार करता है, 50 दुखों से घिरा होता है, जो किसी से भी प्यार नहीं करता है उसे कोई संकट नहीं है।


Friday, 27 April 2018

आरबीआई द्वारा ओवरड्यूज चार्ज वसूले जाने पर भड़के निर्यातक

आरबीआई द्वारा ओवरड्यूज चार्ज वसूले जाने पर भड़के निर्यातक 
भेजे गए शिपमेंट का भुगतान तीन माह की अवधि में न मिलने पर बैंके दो प्रतिशत अधिक वसूल रही है बिलंब ब्याज 
बैंकों के इस रवैये से निर्यातकों की नींद हराम 
वित्त मंत्री, कपड़ा मंत्री, सीइपीसी एवं एकमा को पत्र भेंजकर निर्यातकों के हित में आवश्वयक कार्रवाई करने की मांग 
           सुरेश गांधी 
          भदोही। जीएसटी रिफंड व जीएसटी ई वे बिल की समस्या से कालीन निर्यातक अभी उबर भी नहीं पाएं कि अब आरबीआई ने नई गाइडलाइन जारी कर मुश्किलें और बढ़ा दी है। निर्यातकों के मुताबिक आरबीआई के नए गाइडलाइन के तहत अब बैंके भेजे गए शिपमेंट का भुगतान तीन माह की अवधि में न मिलने पर दो प्रतिशत अधिक विलंब ब्याज वसूल रही है। बैंकों के इस रवैये से निर्यातकों की नींद हराम हो गयी है। काजीपुर के कालीन निर्यातक मुश्ताक अंसारी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी समेत कालीन निर्यात संवर्धन परिषद एवं अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के पदाधिकारियों को पत्र भेंजकर निर्यातकों के हित में आवश्वयक कार्रवाई करने की मांग की है। साथ में चेतावनी भी दी है कि यदि इसे तत्काल नहीं रोका गया तो निर्यातक सड़क पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। 
           

श्री मुश्ताक अंसारी ने बताया कि कारपेट विदेशों में इक्स्पोर्ट होता है। अधिकांश आयातक अनुबंध के दौरान 6 से 12 महीने तक की उधारी की शर्त पर आर्डर देते हैं। इससे भेजे गए शिपमेंट का भुगतान कभी तीन चार माह में हो जाता है तो कभी कभी सालभर तक लटका देते हैं। ऐसे में भुगतान आने में अक्सर बिलंब हो जाता है। लेकिन अब बैंकों का फरमान है कि अगर भुगतान मिलने में तीन माह से अधिक बिलंब होगा तो दो प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज लेंगे। बता दें, हाल के दिनों में भदोही समेत पूर्वांचल के कालीन निर्यातकों के तकरीबन पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक जीएसटी रिफंड में फंसा पड़ा है। तमाम प्रयास के बाद भी उन्हें रिफंड नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में कुल लागत का बड़ी पूंजी रिफंड के रूप में फंसने से निर्यातकों का काम प्रभावित हो रहा है। छोटे निर्यातकों की कमर ही टूट ही गई हैं। ऐसे में आरबीआई का यह नया फरमान निर्यातकों के लिए काल बन गया है। श्री मुश्ताक अंसारी ने बताया कि सभी दस्तावेज पूरे होने के बाद भी हमें जीएसटी रिफंड के तहत अपना पैसा लेने में दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। सालभर से रिफंड न मिलने से कारोबार प्रभावित हो रहा है। वित्त मंत्रालय में शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है। गौरतलब है कि भदोही से हर साल करीब पांच हजार करोड़ रुपये की कालीन निर्यात होती है। कालीन निर्यातकों का कहना है कि 12 फीसदी जीएसटी अदा करने के बाद कालीन निर्यात किया जाता है। इस लिहाज से अब तक करीब 500 करोड़ रुपये रिफंड मद में जमा हो चुका है। 


Thursday, 26 April 2018

व्यवस्था के ‘ढ़ाचा परिवर्तन‘ की सबक है आसाराम की सजा

व्यवस्था के ‘ढ़ाचा परिवर्तन की सबक है आसाराम की सजा 
                कानून का पालन करने वाले निष्पक्ष व निर्भिक होकर काम करें तो कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी जीत सकता है। स्वयंभू आसाराम जैसे प्रभावशाली, शक्तिशाली और वैभवशाली दुष्कर्म आरोपी को मृत्यु पर्यन्त सींखचों के पीछे डालने का फैसला न सिर्फ यही संदेश देता है, बल्कि ब्रतानियां हुकूमत की तर्ज पर कार्य कर रहे एवं अवैध वसूली में लिप्त उन पुलिसकर्मियों को सबक है, जिनकी तफतीश में न्याय नहीं पैसा ही सिर चढ़कर बोलता है। मतलब साफ है प्रत्येक पुलिस वाले को इस फैसले से प्रेरणा लेने की जरुरत है। क्योंकि सजा के पीछे पुलिस की निष्पक्षता एवं पीड़ित बच्ची और उसके परिवार की दृढ़ता ही सबसे अहम् कड़ी है। अदालत का फैसला इस बात का नजीर बनेगा कि अध्यात्म को व्यभिचार का व्यवसाय बनाने वाले बाबाओं के ‘भक्तों‘ की भीड़ के उन्माद का उस पर कोई असर नहीं होता। यह फैसला साबित करता है कि अदालतो व पुलिसिया कानून में न्याय मिलता है भले ही बहुतों को लगे कि वह देर से होता है  
        सुरेश गांधी 
                  जी हां, देशभर में पुलिसकर्मियों की जो छबि है वह ब्रतानियां हुकूमत के पुलिसकर्मियों के तौर तरीकों को भी मात देने वाली है। मानवता से इतर एवं वसूली संस्कृति के मकड़जाल में फंसी वर्तमान पुलिस की क्रूरता कुछ इस कदर बढ़ गयी है कि नाम सुनते ही लोगों के जेहन में महिषासुर जैसे राक्षस का खौफनाक मंजर घर जाता है। यह अलग बात है कि टीवी धारावाहिक ‘क्राइम पेट्रोल‘ ‘सीआईडी‘ और ‘सावधान इंडिया‘ में पुलिस की छबि व काम करने के तरीके की जितनी भी तारीफ किया जाय कम है। कहा जा सकता है जोधपुर पुलिस ने इन्हीं धारावाहिकों की तर्ज पर कुछ ऐसा ही किया, जिससे देश के अन्य पुलिसकर्मियों को सबक लेने की जरुरत है। उनके सामने एक-दो नहीं कई बाधाएं आईं। तीन-तीन गवाहों की हत्या हो गई। किन्तु पुलिस व अभियोजन ने मूल साक्ष्य मिटने न दिए। मतलब साफ है पुलिस के कर्तव्य विमुख होने के कारनामों से भरा पड़ा भारतीय इतिहास, आसाराम प्रकरण में जोधपुर पुलिस एवं न्यायालय की अच्छी भूमिका देश एक नई नजीर के लिए को याद रखेगा। खासकर यह फैसला उस वक्त आया है जब समूचा राष्ट्र बच्चियों-महिलाओं की गरिमा पर हो रहे पाश्विक हमलों से आहत और उद्वेलित है। असुरक्षा और अविश्वास का वातावरण बन गया है। आसाराम जैसे लोग भारतीय संत परंपरा और लोगों में उनकी प्रति आस्था का फायदा उठाते हैं। अभियोजन का उत्साहवर्धन होना चाहिए कि न्यायालय में क्या मान्य होगा, कैसे मान्य होगा - सबकुछ उन्हीं पर है। क्योंकि आसाराम जैसे लोगों को बेड़ियों में जकड़ा जाना ही अविश्वसनीय था। एक नन्हीं मासूम का उत्पीड़न कर, असंख्य अनुयायियों की आस्था का आपराधिक दुरुपयोग कर, स्वयंभू आसाराम कानून का मखौल उड़ा रहा था। किन्तु विशेष अजा-जजा न्यायालय ने आसाराम को सजा कर एक नई आशा जगा दी है। वे सफेद चोले के पीछे वे अपने आपराधिक कृत्यों को ही नहीं छिपाते हैं, बल्कि अपनी पैशाचिक वृत्तियों का पोषण भी करते हैं। कहा जा सकता है यह फैसला न सिर्फ अभूतपूर्व है, बल्कि प्रेरक भी है। 
                 न्यायालय ने जर्जर बूढ़ी हो चुकी उस रहम की अपील को खारिज कर बहुत अच्छा किया जिसमें आसाराम की वृद्धावस्था का भावुक उल्लेख किया गया था। राम रहीम भी ऐसे ही अपने सामाजिक कार्यों के कवच को दया का भिक्षा-पात्र बनाकर कोर्ट में लाया था। आशा है, कम उम्र के दुष्कर्मियों की इससे रूह कांप उठेगी। अब राष्ट्र का न्याय में नए सिरे से विश्वास जगा है। इसे बनाए रखने की चुनौती है। प्रश्न केवल इतना है कि कहीं यह केवल आसाराम तक सीमित न रह जाए। आसाराम जैसे हजारों दुष्कर्मी चारों ओर स्वच्छंद फैले हैं। देश में भोली-भाली बालिकाएं और महिलाएं धार्मिक प्रवृत्ति की अधिक होती है। किसी सच और तर्क को नहीं मानती और ऐसे बहुरुपियों के चंगुल में आसानी से फंस जाती है। वे अपने शोषण के बारे में लोकलाज के कारण किसी से आपबीती भी नहीं कहती है। जब से ऐसे अपराधी पकड़े जाने लगे है और उन पर कानून का शिकंजा कसने लगा है तब से महिलाएं हौसले के साथ सामने आने लगी है, जो अच्छा संकेत हैं। सर्वोच्च प्रशंसा की जानी चाहिए न्यायालय की। जज मधुसूदन शर्मा ने इस न्याय से समूचे दुष्कर्म-विरोधी माहौल को कानूनी मजबूती प्रदान की है। जो इसलिए आवश्यक है, चूंकि लोगों की आशाओं का अंतिम केंद्र कोर्ट ही है। न्याय का मार्ग दुरूह, लम्बा और संताप भरा होता है। बस, चलने वाला चाहिए। इस बार सभी दृढ़ता से चले, आगे भी चलते रहे। और जैसे दुष्कर्म की नई परिभाषा नए कानून में लिखी गई वैसे ही न्यायालय, न्याय की ऐसी ही सुस्पष्ट परिभाषा लिखते रहेंगे। इसके लिए पीड़ित बालिका और उसके परिजनों की भी प्रशंसा की जानी चाहिए जो जबर्दस्त दबावों के बावजूद अटल रहे इसीलिए इस ढ़ोंगी संत पर अपराध साबित हो सका। ऐसे बाबाओं के पीछे भक्तों की भीड़ वो शक्तियां इकठ्ठा करती है जो आस्था और धर्म का व्यवसाय करके फलती-फूलती हैं। पकड़े जाने के पहले तक जब ऐसे बाबा अपनी लोकप्रियती की चमक में इतराते हैं, तब हमारे राजनेता भी उनके चरणों मूें गिरते दिखते हैं और उन्हें सत्ता का वैभव प्रदान करते हैं। इसी के बल पर दुनियाभर में करोड़ों लोगों को अपने संजाल में फांस लेते है। 
                   कई भक्त तो आसाराम व राम रहीम जैसे बाबाओं को साक्षात ईश्वर का प्रतिरूप मानने लगते हैं। इसी का परिणाम था कि घमंड में चूर आसाराम ने निर्भया केस में कहा था, ‘वह अपराधियों को भाई कहकर पुकार सकती थी। इससे उसकी इज्जत और जान दोनों बच सकती थीं। क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता।’ आसाराम ने मीडिया की भी काफी आलोचना की थी। उन्होंने खुद को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए कहा-‘हाथी चलता है तो कुत्ते भौकते हैं, इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं है। ’हमने अक्सर देखा है ऐसे कानूनों का दुरुपयोग हुआ। दहेज संबंधी कानून इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। होली के दिन आसाराम ने सूरत में हजारों लीटर पानी बर्बाद कर डाला। इस पर सवाल उठे तो कहा, ‘मैं किसी के बाप का पानी खर्च नहीं करता। पानी भगवान का है, सरकार का नहीं है। उस पर लोगों को भरोसा था। उसने संकट में भक्त की रक्षा की बजाय यौन हमला किया। लोगों की इन्हीं भावनाओं का दोहन कर ऐसे स्वघोषित बाबा करोड़ों करोड़ रुपये का भक्ति साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं। यह अलग बात है कि एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के मामले में राम रहीम की भी करोड़ों अरबों का साम्राज्य व प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई। ऐसे स्वघोषित संतो ंके अनुयायी कानून अपने हाथ में लेने से भी नहीं कतराते। अधिकांश दो-दो बार ऐसा पाप कर चुके हैं। वे बचे क्यों रहते हैं? इस पर भी मनन करने की जरुरत है। देशभर से महिलाओं और बालिकाओं पर दुराचार संबंधी बढ़ती खबरों के बीच ऐसे ही मामले में आसाराम बापू को अदालत से उम्रकैद की सजा मिलने से कानून और न्याय व्यवस्था में भरोसा और मजबूत होगा। 
                   इसके बावजूद ऐसा लगता नहीं कि देश में ऐसे बाबाओं के प्रति जनसाधारण का जुनून कुछ कम हुआ हो। दरअसल, इसकी जड़ंे कहीं ओर हैं। भारत के आर्थिक विकास की कितनी ही बात की जाए पर लगता नहीं कि यह आर्थिक तरक्की आमजन को सामाजिक न्याय व समानता देने में सफल रही है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि शासन के अधिकृत संस्थान अपनी जिम्मेदारियां निभाने में नाकाम रहे हैं। इसके कारण एक तरफ ऐसे बाबाओं को कानून से ऊपर अपनी सत्ता चलाने का मौका मिलता है तो दूसरी तरफ न्याय व राहत की तलाश में जनसाधारण इनकी ओर आकर्षित होते हैं। जितना देश समृद्ध होता जा रहा है। उसी अनुपात में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जिन्हें महसूस होता है कि वे पीछे छूट गए हैं। ऐसे लोगों को आसाराम जैसे पाखंडी बाबाओं में ही अपनी सारी समस्याओं का समाधान नजर आता है। सामाजिक विषमता के अलावा यह प्रवृत्ति शिक्षा की कमजोर गुणवत्ता की ओर भी इशारा करती है। वरना आमजन के साथ उच्चशिक्षित और समृद्ध तबका भी क्यों ऐसे बाबाओं के पीछे भागता। हमारी शिक्षा व्यवस्था समाज में अंधविश्वास व कुरीतियों के खिलाफ एक वैज्ञानिक सोच का वातावरण बनाने में नाकाम रही है, क्योंकि इसे अच्छा नागरिक बनाने की बजाय अच्छा कॅरिअर बनाने की दिशा में मोड़ दिया गया है। आप अगर गौर से देखेंगे तो ऐसे बाबाओं के पास आध्यात्मिक ज्ञान पाने के लिए जाने वाले बहुत ही कम होंगे, अधिसंख्य लोग आर्थिक व सेहत संबंधी समस्याओं और अंधविश्वास के कारण जाते हैं। जाहिर है इसका संबंध आर्थिक विषमता व स्वास्थ्य व शिक्षा की कमजोर व्यवस्था है। इन्हें मजबूत बनाकर ही हम ऐसी स्वस्थ व वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां ऐसे बाबाओं के लिए कोई स्थान नहीं होगा। 
                  यह ऐसे सभी पीड़ितों की जीत और सारे अपराधियों को संदेश है कि वह कानून की नजर से बच नहीं सकेंगे। हाल के दिनों में अदालतों ने बहुत से बाबाओं के ढोंग खोले हैं। यह बताता है कि हमारी न्याय प्रक्रिया में ताकतवर लोगों को दंड देने की कैसी क्षमता है। भले ही आसाराम को उम्रकैद की सजा निचली अदालत से हुई और वह मन के किसी कोने में ऊपरी अदालत से राहत की कोई उम्मीद लगाए बैठे हों, लेकिन जिस तरह बीते पांच साल में उनकी ढिठाई के कसबल अदालत की सख्ती से टूटे हैं, वह देश की कानून-व्यवस्था पर भरोसा बढ़ाने वाला है। यह बताता है कि धर्म और अध्यात्म को गंदा धंधा बना देने वाले फर्जी बाबाओं के दिन अब लद चुके हैं। अब समाज को ऐसे फर्जी बाबाओं का मूल चरित्र समझकर इनसे तौबा करने की जरूरत है। अभी कुछ बाबा कानून की जद में आए हैं। कई अब भी अपने-अपने तरीके से जनता को बरगला रहे होंगे। यह फैसला उनके लिए भी संभल जाने का संदेश है। फर्जी बाबाओं का साम्राज्य रातोंरात तो खड़ा नहीं होता। पूरा घटनाक्रम साबित कर रहा है कि हमारा समाज किस तरह बाबाओं के सामने घुटनों पर बैठा हुआ है। हाल के दिनों में अदालतों की सख्ती ने इनके कुछ ढोंग खोले हैं। अदालत सख्त न होती, तो यह मामला भी शायद इस अंजाम तक तो नहीं ही पहुंचता। 

Sunday, 22 April 2018

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब?

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब? 
           बेशक, रेप बेहद घिनौना व दरिंदगी वाला कृत्य है। बढ़ती घटनाओं पर सख्ती बरतते हुए केन्द्र सरकार ने फांसी तक की सजा का प्राविधान करने की कोशिश में हैं। उम्मीद है कैबिनेट के बाद सदन में भी यह बिल पास हो जायेगा। इसके लिए हर तबका पीएम मोदी की सराहना भी कर रहा है। लेकिन सच यह भी है कि इस तरह के घृणित कार्य की आड़ में कुछ दूषित मानसिकता के लोग अपनी निजी दुश्मनी को साधने के लिए धन, बल व सत्ता की धौंस दिखाकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराने से भी बाज नहीं आते। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या फर्जी मुकदमें दर्ज कराने वालों या अपने बाहुबल व धबल के बूते बच निकलने वालों की भी फांसी होगी? क्योंकि एक-दो नहीं सैकड़ों मुकदमें ऐसे है जो ले देकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराएं गए है या गवाह व सबूतों को खरीदकर बच निकले है 
              सुरेश गांधी 
            रेप पर सबसे सख्त कानून लागू हो गया है। अब 12 साल से कम उम्र की नाबालिगों से रेप पर मौत की सजा मिलेगी। नए कानून के मुताबिक, नाबालिगों से रेप के मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की व्यवस्था की जाएगी। फॉरेंसिक जांच के जरिए सबूतों को जुटाने की व्यवस्था को और मजबूत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। इतना ही नहीं दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। अगर अपील दायर होती है तो 6 महीने में निपटारा करना होगा। नाबालिग के साथ बलात्कार के केस को कुल 10 महीने में खत्म करना होगा। मतलब साफ है इस नए कानून से नाबालिग से रेप की बढ़ती घटनाओं पर लगाम जरुर लगेगा, ऐसी कर कोई उम्मीद के साथ पीएम मोदी तारीफ भी कर रहा है। लेकिन इस नए कानून का कहीं दुरुपयोग नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? क्योंकि व्यवस्था तंत्र तो वही है जो ले देकर कभी रपट ही नहीं लिख्ती और कभी हकीकत से परे बिना किसी इंवेस्टीगेशन के ही फर्जी मुकदमें दर्ज कर देती है। 
          खासकर अगर किसी पीड़िता के दबाव में मुकदमा दर्ज भी पुलिस कर लेती है तो आरोपी को बचाने व सबूत मिटाने में पूरी ताकत झोक देती है। पीड़िता की मदद करने वालों पर ही फर्जी मुकदमें ठोक देती है। ऐसे में सवाल तो यही है क्या फर्जीगिरी के मास्टरमाइंड पुलिसकर्मियों को भी फांसी दिए जाने का प्राविधान होगा? क्योंकि अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके है जिसमें पुलिस ने पहले तो रपट दर्ज नहीं की। अगर दर्ज भी किया तो आरोपी को बचाने में हरहथकंडे अपनाती रही है? ताजा मामला उन्नाव, कठुआ से लेकर एटा, बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के मामले है। मतलब साफ है रेप जैसी घिनौने वारदात को रोकने के लिए एक ओर जहां यह आवश्यक है कि कानून कठोर हों वहीं यह भी कि उन पर सही तरह अमल भी हो और उनका दुरुपयोग न होने पाए। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश को हिला देने वाले निर्भया कांड के बाद भी यौन हिंसा रोधी कानून कठोर किए गए थे, लेकिन स्थिति में तनिक भी बदलाव देखने को नहीं मिला। ऐसा इसीलिए हुआ कि हम सख्त सजा का कोई उदाहरण पेश नहीं कर सके। किसी को बताना चाहिए कि आखिर निर्भया के हत्यारों को अभी तक उनके किए की सजा क्यों नहीं मिली? 
              यौन हिंसा के मामले में यह भी देखना होगा कि विकृत सोच इसलिए तो नहीं पनप रही कि समाज को बनाने-संवारने का एजेंडा किसी के पास नहीं रह गया है? कठुआ में एक मासूम बच्ची के साथ कई दिन तक दुष्कर्म होता रहा। अंत में हत्या भी कर दी गयी। लेकिन जब पुलिस रपट दर्ज कर कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, तो लोग आरोपितों के पक्ष में सड़कों पर उतर आएं। एटा में विवाह समारोह में सात वर्षीय बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। अगर पीड़ित अथवा पीड़क, दोनों का संप्रदाय एक न होता, तो इस त्रासदी को भी कुछ लोग कठुआ जैसी कुतार्किक जंग में तब्दील कर देते। पता नहीं ऐसे कुकर्मी यह क्यों भूल जाते हैं कि इस देश में हर रोज 100 से ज्यादा बलात्कार होते हैं। हर घंटे में करीब पांच बच्चे शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। यह अच्छा हुआ कि केंद्रीय कैबिनेट ने उस अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की जो एक ओर जहां 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए मौत की सजा तय करेगा वहीं दूसरी ओर दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की अवधि को बढ़ाकर दस वर्ष या फिर आजीवन कारावास में तब्दील करेगा। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि दुष्कर्म के अपराधियों के लिए कठोर सजा के प्रबंध किए जा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच और फिर ट्रायल को एक तय अवधि में पूरा करना होगा। ऐसा वास्तव में हो और दुष्कर्म के अपराधियों को समय रहते उनके किए की सख्त सजा मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और अदालती तंत्र को कहीं अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। इसके लिए तंत्र में सुधार भी करना होगा, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि दुष्कर्म के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत ही कम है। स्पष्ट है कि पुलिस को कमर कसने की सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति हो, यह राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना होगा। 
             नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़े नाबालिग से रेप पर मौत की सजा पर सवाल उठाते हैं। पॉक्सो एक्ट के तहत साल 2016 में कोर्ट के सामने 64,138 रेप केस सामने आए, इन में से सिर्फ 1869 मालमों में ही सजा सुनाई जा सकी। महिलाओं और बच्चों से रेप के जो मामले में पुलिस के सामने दर्ज करवाए गए उनमें से 96 प्रतिशत ऐसे केस थे जिनमें आरोपी परिवार का ही कोई सदस्या था, या दोस्त, पड़ोसी या परिचित था। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि नाबालिग से रेप पर फांसी की सजा से इस तरह के मामलों में गिरावट आएगी इसे लेकर संशय है। फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान आने से ऐसे केस रिपोर्ट होने का आंकड़ा भी गिर जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? ये जानते हुए कि आरोपी परिचित को मौत की सजा होगी पीड़िता पर शिकायत नहीं करने को लेकर और दबाव बनाया जाएगा। उसे धमकाया जाएगा। इससे पीड़िता अलग-थलग पड़ जाएगी। शिकायत के बाद की जाने वाली कार्रवाई, कोर्ट की कार्रवाई में तेजी और अदालत के भीतर व बाहर सक्षम वातावरण बनाने के बगैर सजा को कड़ा किया जाना किसी मतलब का नहीं है। यदि कार्रवाई में ही लंबा समय लगेगा तो फांसी की सजा भी आरोपियों में डर पैदा करने और अपराध घटाने में मददगार साबित नहीं होगा। साल 2016 में ही पॉक्सो एक्ट जिसके तहत मामलों का निपटारा एक साल के भीतर करने का प्रावधान था, करीब 89 प्रतिशत मामले लंबित रहे। यहां तक कि निर्भया कांड में नाबालिग आरोपी को छोड़ बाकी सभी आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद भी गैंगरेप की घटना रुकी नहीं है। सरकार का कहना है कि तमाम उपायो को तीन महीने में अमली जामान पहनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही ये भी तय हुआ है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में यौन अपराधियों का प्रोफाइल तैयार किया जाएगा और तमाम राज्य आपस में इस जानकारी को साझा करेंगे। वैसे भी दुष्कर्म के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना रहे अपराधी तत्व बेलगाम हो गए हैं। उनकी घिनौनी हरकतें समाज को शर्मिदा करने के साथ देश की छवि को भी खराब करने का काम कर रही हैं। ऐसे तत्वों के साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे तत्वों को सबक सिखाने और उनके मन में खौफ पैदा करने की जरूरत है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि आज दुष्कर्मी तत्व बेलगाम हैं और समाज खौफ में है। यह स्थिति सभ्य समाज के विपरीत है। आखिर आज के युग में ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग कैसे हो सकते हैं कि छोटी-छोटी बच्चियों को निशाना बनाएं? यह तो हैवानियत की पराकाष्ठा के अलावा और कुछ नहीं कि साल-दो साल की बच्चियां भी दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। 

Friday, 20 April 2018

‘कांग्रेस’ का महाभियोग सिर्फ और ‘आडंबर’

‘कांग्रेस’ का महाभियोग सिर्फ और सिर्फ ‘आडंबर’  
क्योंकि कांग्रेस के पास पर्याप्त ना ही संख्याबल है और ना ही आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सका है  
                  सुरेश गांधी
              एक के बाद एक हाथ से छिनते राज्य, राज्य सभा में घटती संख्या, तरह-तरह के आरोपों के निराधार होने सहित जस्टीस लोया के नाम पर छोड़ा गया ब्रह्मास्त्र भी टाॅय-टाॅय फिस्स हो जाना, से कांग्रेस की बौखलाहट तो समझ में आती है। लेकिन कांग्रेस शायद भूल गयी कि जिस हडबड़ाहट में वह जस्टिस दीपक के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश  में है उसे एकबार फिर मुंह की खानी पड़ेगी। क्योंकि उसके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं हैं। माना कि नोटिस स्वीकार हो जाने के बाद राज्यसभा में सफल हो जायेगी। पर जब तक लोकसभा में प्रस्ताव पारित नहीं होगा, कोई फायदा नहीं हैं। मतलब साफ है कांग्रेस इस प्रस्ताव के जरिए सिर्फ और सिर्फ हौउवा खड़ा करना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर चल रहा है। फिरहाल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस एवं उसके समर्थित दलों ने महाभियोग लाने का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंपा है। महाभियोग प्रस्ताव कांग्रेस उस वक्त लायी है जब जज लोया की मौत से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान जज ने पाया कि न्यायालय को गुमराह करने के मकसद से याचिका दायर की गयी है। याचिका में पर्याप्त सबूत भी नहीं हैं। इस फैसले के बाद ही कांग्रेस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। समस्त विपक्षीजनों को एकजुट किया जाने लगा। यह अलग बात है कि उसके इस प्रस्ताव से मनमोहन सिंह, सलमान खुर्शीद सहित कई विपक्षी दलों ने भी किनारा कर लिया। वह समझते है कि उनका यह अभियान सिवाय नौटंकी के कुछ भी साबित नहीं सकता। 
         इसके बावजूद मोदी के विजयरथ को रोकने में लगातार असफल हो रहे राहुल गांधी कपिल सिब्बल के झांसे में आ गए। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है, क्या लगातार विफलताओं से कांग्रेस सहम गयी है? क्या अब कांग्रेस के पास सियवाय धमकी के कोई चारा नहीं बचा है? क्योंकि थक हार चुकी कांग्रेस जिस महाभियोग प्रस्ताव के सहारे मोदी को पटकनी देना चाह रही है, वह सिर्फ और सिर्फ नौटंकी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस के पास वर्तमान में दोनो सदनों में पर्याप्त संख्या नहीं है? माना कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ आर्डर करते वक्त यह भूल गई कि सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ में मौत का मामला भारतीय विधिशास्त्र को चुनौती दे रहा है। ताकतवर लोगों के दबावों के चलते इस मामले में इंसाफ नहीं मिल पा रहा है। 
       न्यायमूर्ति चेलमेश्वर और पूर्व न्यायमूर्ति अभय एम थिम्से को प्रेस कांफ्रेस कर यह न कहना पड़ता कि निचली ही नहीं ऊंची अदालतों में भी भ्रष्टाचार है। देश का संविधान ऐसी स्थिति को अकल्पनीय नहीं मानता और उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों के जजों पर भ्रष्ट आचरण के आरोप में महाभियोग चलाकर हटाने की व्यवस्था देता है। और फिर भ्रष्टाचार पैसो के लेनदेन तक ही सीमित नहीं होता। और भी कारण हो सकते है। जहां तक जजों के ईमानदारी का सवाल है उस पर टिप्पणी करना बिल्कुल गलत है। क्योंकि इससे न सिर्फ देश के सर्वोच्च न्यायालय पर लाखों लोगों की आस्था पर ठेस लगेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी छबि धूमिल होगी। लेकिन हमें महाभारत व रामायण के प्रसंगों को भी नहीं भूलना चाहिए कि युधिष्ठिर विषम परिस्थितियों में भी झूठ नहीं बोलते थे। उन्हें इसके लिए जाना भी जाता है। लेकिन द्रोणाचार्य ने उनके ही बातों पर विश्वास कर लिया था कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। जबकि यह सच नहीं था, उनका पुत्र जीवित था। लेकिन उनके भाई अर्जुन द्वारा युद्ध जीतने के लिए युधिष्ठिर को झूठ बोलना जरुरी था। कुछ ऐसा ही सूरवीर बालि के साथ हुआ। करोड़ों लोगों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को छुपकर बालि को मारना पड़ा। 
कहा जा सकता है जज है तो संदेह नहीं करना चाहिए लेकिन ऐसी स्थिति आ ही गई तो जांच से घबराना भी नहीं चाहिए। 
        शायद कांग्रेस इसीलिए चार जजेज के बयानों को आधार बनाकर महाभियोग की बात कर रही है। महाभियोग स्वीकार हो या पराजित हो यह बाद की बात है लेकिन, यह नौबत ही लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। इसलिए अगर सुप्रीम कोर्ट जज लोया की मृत्यु को संदेहास्पद मानता तो गंभीर किस्म का टकराव पैदा होता लेकिन, अदालत ने याचिका को खारिज करके अपने को संदेह के दायरे में ला दिया है। कोर्ट ने न सिर्फ उस याचिका को खारिज किया है बल्कि जनहित याचिका करने वालों को फटकारते हुए कठोर टिप्पणियां भी की हैं। अदालत चाहती है कि राजनीतिक विवाद को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मंच का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि उसके लिए संसद जैसी संस्था है। इसी बात को लेकर कांग्रेस नाराज भी है। लेकिन कांग्रेस भूल रही है कि जेएसआई के  खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। 
         हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। कांग्रेस के अनुसार इसपर 71 सांसदों के साइन हैं। इनमें से 7 सांसद रिटायर हो चुके हैं। जबकि राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पास करने के लिए कुल 245 सांसदों में दो तिहाई बहुमत यानी 164 सांसदों के वोट की जरूरत होगी। यह आकड़ा सिर्फ एनडीए के पास ही है। राज्यसभा में एनडीए के पास 86 सांसद हैं। इनमें से 68 बीजेपी के सांसद हैं। यानी इस सदन में कांग्रेस समर्थित इस प्रस्ताव के पास होने की संभावना नहीं है। लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 है। दो तिहाई बहुमत के लिए 364 सांसदों के वोटों की जरूरत पड़ेगी। यहां विपक्ष बिना बीजेपी के समर्थन के ये संख्या हासिल नहीं कर सकता क्योंकि लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 274 सांसद हैं। इतना सबकुछ जानने, सुनने, समझने के बाद भी अगर कांग्रेस महाभियोग का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौंपा है तो इसे महानौटंकी नहीं तो और क्या कहेंगे? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या जज लोया के केस में कांग्रेस का झूठ साबित होने के बाद बदला लेने के लिए महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया है? या फिर जजों को डराने धमकाने की कोशिश हैै।

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