महाकुंभ : ‘जातिवाद’ से इतर बुलंद हो रहा
‘सनातन’ का झंडा
प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ में आस्थावानों का त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने का अंतःहीन सिलसिला जारी है। महाकुंभ के 7वें दिन भी संगम पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ है. अब तक महाकुंभ 2025 में 8 करोड़ से अधिक श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं। खास यह है कि हजारों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में कहीं भी कोई भेदभाव, क्षेत्रवाद व जातिवाद नहीं दिखा। दिखा तो सिर्फ और सिर्फ सनातन का प्रेम, आदर व सद्भाव। कुंभ में गरीब-अमीर सब एक होकर पूण्य का भागीदार बन रहे हैं। मतलब साफ है इस ’महाकुंभ’ में सिर्फ और सिर्फ सामाजिक मेल-जोल, सद्भाव व एकता रुपी सनातन का बोलबाला हैं। उसमें भारी-भरकम युवाओं की मौजूदगी इस बात का अहसास करा रही है कि आगे भी सनातन का झंडा बुलंद रहने वाला है। युवा पीढ़ी चीख-चीख कर बता रही है उन्हें भी अपने सनातन सभ्यता गर्व हैं। तीर्थराज में संगम तट पर सनातन आस्था और संस्कृति का समागम दिख रहा है। महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन जीवंत रुप प्रस्तुत कर रहा है। मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत दिखाई दे रहा है। जहां देश के कोने-कोने से अलग-अलग भाषा, जाति, पंथ, संप्रदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ पवित्र त्रिवेणी में पुण्य डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु साधु-संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं। मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भंडारों में प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं
सुरेश गांधी
फिरहाल, महाकुंभ के इस आध्यात्मिक
पर्व में पहुंचे नाना
प्रकार के रूप-रंग
व वेशभूषाधारी संन्यासियों का जमावड़ा है।
महाकुंभ में उमड़ रही
आस्थावानों की भीड़ यह
बताने के लिए काफी
है कि किस तरह
हजारों साल बाद भी
लोगों का विश्वास सनातन
से जुड़ा है। या
यूं कहे एकता, समता,
समरसता का महाकुंभ सनातन
संस्कृति के उद्दात मूल्यों
का सबसे बड़ा प्लेटफार्म
बनकर उभरा है। महाकुंभ
भारत की सांस्कृतिक विविधता
में समाई हुई एकता
और समता के मूल्यों
का सबसे बड़ा प्रदर्शन
बन गया है। कैसे
अलग-अलग भाषा-भाषी,
रहन-सहन, रीति-रिवाज
को मानने वाले एकता के
सूत्र में बंधे संगम
में सनातन रुपी आस्था की
डुबकी लगरा रहे हैं।
साधु-संतों के अखाड़े हों
या तीर्थराज के मंदिर और
घाट बिना रोक टोक
श्रद्धालु दर्शन, पूजन कर रहे
हैं। संगम क्षेत्र में
चल रहे अनेकों अन्न
भंडार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं
के लिए दिनरात खुले
हैं। जहां सभी लोग
एक साथ पंगत में
बैठ कर प्रसाद और
भोजन ग्रहण कर रहे हैं।
आतंकवाद के खात्मा के लिए हवन
प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही रुद्राक्ष को
धारण मनोकामनाओं की पूर्ति करता है
मौनी बाबा का कहना है कि रुद्राक्ष एक मूर्ति की तरह होता है जिसकी प्राण प्रतिष्ठा होती है और बिना प्राण प्रतिष्ठा के रुद्राक्ष पहना नहीं जा सकता। प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही रुद्राक्ष मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। पूरी तरह से रुद्राक्ष से बनी छह शिवलिंग दक्षिण और छह उत्तर की ओर उन्मुख हैं. उनके मुताबिक पूरी दुनिया में एकमात्र दक्षिण मुखी शिवलिंग महाकाल शिवलिंग है. हालांकि एक मुखी और दो मुखी रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ हैं. तीन मुखी सफेद रुद्राक्ष कहीं-कहीं मिल जते हैं, जबकि चार मुखी रुद्राक्ष पुरुषार्थ से जुड़ा होता है. पांच और छह मुखी रुद्राक्ष गृहस्थों के लिए होते हैं, जबकि सात मुखी रुद्राक्ष विद्यार्थियोंके लिए श्रेष्ठ माना जाता है. आठ और नौ मुखी रुद्राक्ष सिद्ध हो जाने पर देवी लक्ष्मी कभी घर से बाहर नहीं जाती हैं. दस और ग्यारह मुखी रुद्राक्ष व्यक्ति के करियर को आगे बढ़ाते हैं. रुद्राक्ष की मालाओं से बने ये 12 ज्योतिर्लिंग श्रद्धालुओं को खूब भा रहे है। मौनी बाबा का कहना है कि रुद्राक्ष कभी भी खरीदकर नहीं पहनना चाहिए, बल्कि किसी और के दिए जाने पर ही पहनना चाहिए. इस बात को श्रद्धालुओं में भी बताया जा रहा है। खासकर रुद्राक्ष से जुड़ी भ्रांतियों को दूर किया जा रहा है. इसके अलावा उनका संकल्प है कि जिस तरीके से अयोध्या में राम मंदिर का भव्य निर्माण हुआ है। उसी तरीके से काशी और मथुरा में भी मंदिर का निर्माण हो। इसके लिए वह अपने शिविर में हर शाम 6 बजे अनोखी पूजा में लीन रहते हैं। इस दौरान वह माघी पूर्णिमा तक दो लाख से अधिक दीप दान भी करेंगे। वह चाहते है कि देश में आतंकी हमला ना हो, देश में शांति बनी रहे, देश की अर्थव्यवस्था दुरुस्त रहे और महंगाई और वैश्विक महामारी न फैले इसके लिए वह धार्मिक अनुष्ठानों के जरिए लगातार प्रयासरत हैं। हर रोज मौनी बाबा पूजा के दौरान अनोखे अंदाज से पूरे शिविर की परिक्रमा खास पूजा और लेट करके करते हैं। शिविर में 108 कुंड भी बनाए गए हैं।
जहां पर मौनी बाबा हर दिन हवन पूजा के बीच 125 आहुंतियां भी डालते हैं। इस दौरान हर रोज भारी संख्या में कल्पवासी या कहें कि श्रद्धालु उनकी इस साधना के गवाह भी बनते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि मौनी बाबा द्वारा की जा रही इस अनोखी साधना या कहें कि पूजा पाठ से सभी काफी प्रभावित हैं। अपनी अनोखी पूजा करने के बाद मौनी बाबा अपने शिविर से लेट करके गंगा स्नान के लिए जाते हैं। गंगा स्नान करने के बाद ही उनकी पूजा पूरी तरीके से समाप्त होती है। मौनी बाबा का मानना है कि जितनी कठिन तपस्या होगी उतना ही अच्छा परिणाम होगा। बता दें मौनी बाबा पिछले 35 सालों से संगम तट पर लगने वाले माघ मेले में आ रहे हैं। देश में सुख शांति के लिए हमेशा ही अनोखी पूजा पाठ में लगे रहते हैं। बता दें, मौनी बाबा शिव के परम भक्त हैं। उन्होंने अपने शरीर पर 45 किलो रुद्राक्ष की माला धारण की हुई है और 14 घंटे तक इसे धारण करते हैं। उनकी साधना का हर पल “ओम नमः शिवाय“ के जप में व्यतीत होता है। इस दौरान वो श्रद्धालुओं को आशीर्वाद भी देते हैं। पौष पूर्णिमा से आरंभ हुई यह साधना महाशिवरात्रि तक चलेगी।विदेशियों का है जमघट
जापान से महामंडलेश्वर योग
माता कैलादेवी (पूर्व नाम कैको आइकावा)
के करीब 150 जापानी शिष्य 26 जनवरी को महाकुंभ में
आकर गंगा में डुबकी
लगाएंगे. जापान मूल की कैको
आइकावा को कैलादेवी नाम
जूना अखाड़ा ने दिया था
और वह ब्रह्मलीन पायलट
बाबा की गुरु बहन
हैं. जूना अखाड़ा के
महामंडलेश्वर शैलेशानंद गिरि महाराज ने
बताया, ‘‘जापान से करीब 150 लोगों
का प्रतिनिधिमंडल महाकुंभ में स्नान और
माता जी के सानिध्य
में योग साधना करने
के लिए 26 जनवरी को पायलट बाबा
शिविर में पहुंचेगा.’’ उन्होंने
बताया कि जापानी प्रतिनिधियों
के लिए शिविर में
विशेष भोजनशाला तैयार की जा रही
है जहां पूर्ण शाकाहार
वैदिक भोजन तैयार किया
जाएगा. भोजन, जापान के लोगों के
निर्देशन में यहीं के
लोग तैयार करेंगे.
विश्व शांति के लिए देंगे आहुति
शैलेशानंद गिरि ने बताया,
‘‘योग माता 24 जनवरी को जापान से
इस शिविर में पहुंच जाएंगी
और कितने लोगों को वह दीक्षा
देंगी, इस पर वह
स्वयं निर्णय करेंगी. चूंकि इस महाकुंभ में
बाबा जी स्थूल रूप
से उपस्थित ना होकर सूक्ष्म
रूप से उपस्थित हैं,
इसलिए इस बार शिविर
में श्रद्धांजलि का माहौल है.’’
उन्होंने बताया कि शिविर में
शिवशक्ति यज्ञशाला का निर्माण किया
जा रहा है जिसमें
25 से 30 देशों के लोग विश्व
शांति के लिए आहुति
देंगे. उन्होंने बताया कि बाबा जी
के ज्यादातर शिष्य रूस और यूक्रेन
के हैं, जो इस
यज्ञ में आहुति देंगे.
शैलेशानंद गिरि ने बताया
कि इसी तरह, जापान,
कोरिया, इंडोनेशिया और बाली के
लोग भी आहुति देंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘बाह्य जगत में हम
देखते हैं कि युद्ध
का माहौल है, लेकिन वास्तविक
जीवन में जननी जन्मभूमि
की परिकल्पना में लोगों को
आप यहां (इस शिविर में)
मैत्री भाव में देखेंगे.
बाबा की ओर से
दिए गए प्रेम, विश्वास
और शांति के त्रिगुणात्मक सूत्र
को हम यहां क्रियान्वित
होते देखेंगे.’ बता दें, ‘‘कैको
आइकावा पहले से ही
सफल महिला रही हैं और
जापान में उनके 50 से
अधिक योग केंद्र चलते
थे. 70 के दशक में
उन्होंने भारत की कई
बार यात्राएं कीं. उस दौरान
जापान में भारत से
पहुंचे एक योगी को
समाधि लेते देख वह
बेहद प्रभावित हुईं और बाबा
से उनके संपर्क बढ़े
और बाबा के गुरु
हरि बाबा से उन्होंने
दीक्षा और उनसे समाधि
लेनी सीखी.’
महाकुंभ में जीवंत संविधान की प्रस्तुति
डिजिटल महाकुंभ में इस बार
धर्म, संस्कृति के साथ ही
भारतीय संविधान को भी डिजिटल
रूप में प्रस्तुत किया
जा रहा है। यहां
बनाई गई डिजिटल गैलरी
संविधान की यात्रा को
जीवंत कर रही है।
स्क्रीन टच करने पर
संविधान की किताब के
पन्ने खुल रहे हैं
तो इंटरैक्टिव वॉल संविधान के
बनने से लेकर उसके
लागू होने तक के
समय काल से जुड़े
हर ऐतिहासिक लम्हों से लोगों को
रूबरू करा रही है।
संसदीय कार्य विभाग की ओर से
त्रिवेणी मार्ग पर यह गैलरी
लगाई गई है। इसमें
संविधान के हर पहलुओं
से तकनीक के माध्यम से
परिचित होने का अनूठा
अनुभव लोगों को प्राप्त हो
रहा है। गैलरी में
अलग-अलग कॉर्नर बनाए
गए हैं, जिसमें संविधान,
उसके निर्माताओं व ऐतिहासिक प्रसंगों
की प्रस्तुति दी गई है।
यहां एक डिजिटल स्क्रीन
लगाई गई है, जिस
पर एक टच से
आप संविधान के पन्ने पलट
सकते हैं। इसके साथ
ही टाइमलाइन ऑप्शन के जरिये संविधान
की यात्रा के महत्वपूर्ण कालखंडों
को चंद सेकेंडों में
वर्षवार देख सकते हैं।
एक इंटरैक्टिव वॉल भी है
जिस पर संविधान के
निर्माण के क्रम में
संविधान सभा के सदस्यों
के अथक प्रयासों को
चित्रों के जरिये तो
दर्शाया ही गया है।
इसके साथ ही यहां
वीआर हेडसेट के जरिये उन
गौरवशाली पलों को महसूस
करने की भी सुविधा
उपलब्ध कराई जा रही
है। इसके अलावा एक
ऑडियो-वीडियो वॉल के जरिये
संविधान सभा के अध्यक्ष
डॉ. राजेंद्र प्रसाद व प्रारूप समिति
के अध्यक्ष डॉ. बीआर आंबेडकर
के भाषण को देखा
व सुना भी जा
सकता है। इसके अलावा
गैलरी के एंट्री प्वाइंट
पर टच स्क्रीन सेल्फी
प्वाइंट भी बनाया गया
है। जहां आप एक
टच पर राष्ट्रीय चिह्न
अशोक स्तंभ के साथ सेल्फी
ले सकते हैं। राष्ट्रगान
’जन गण मन’ को
लेकर किस तरह एक
बार भ्रम की स्थिति
उत्पन्न हुई और फिर
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने
कैसे इसे लेकर स्थिति
स्पष्ट की, ऐसे कई
रोचक प्रसंगों का भी विवरण
यहां दिया गया है।
इसके अलावा संविधान के सभी भागों
में उल्लेखित चित्रों और उनका वर्णन
भी अलग-अलग एलईडी
डिस्प्ले वॉल के जरिये
आकर्षक ढंग से किया
गया है। गैलरी की
परिकल्पना से लेकर व्यवस्थापन
तक का कार्य देख
रहे प्रतीक श्रीवास्तव ने बताया कि
लोग आसानी व कम समय
में संविधान की विशेषताओं से
न सिर्फ रूबरू हो सकें, बल्कि
डिजिटल तकनीक के जरिये महसूस
भी कर सकें, यही
इस गैलरी लगाने का उद्देश्य है।
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