सिद्धिविनायक मंदिर : जहां दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है हर मनोकामना
समंदर की लहरें जैसे ही जगाती हैं सपनों की नगरी को, जिंदगी निकल पड़ती है अपनी यात्रा पर..। यात्रा के उन्हीं रास्तों में एक राह जाती है उस परम शक्ति की ओर जो रक्षा करती है अपने दर पर आने जाने वाले हर भक्त की। जिसके बिना किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत अधूरी मानी जाती है। फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों ना हो। वह दरबार है प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश का, जो विराजमान है सिद्धिविनायक गणपति मंदिर, जो मुंबई के दादर-प्रभादेवी में काकासाहेब गाडगिल मार्ग और एसके बोले मार्ग के कोने पर स्थित है। जी हां, दो सौ साल पुराना है मुंबई का यह मंदिर, जहां दर्शनमात्र से पूरी हो जाती है हर मनोकामनाएं, मिल जाता है धन-संपत्ति व कृर्ति का वरदान
सुरेश गांधी
सिद्धिविनायक मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि विश्वास, भक्ति, समृद्धि और आधुनिक प्रबंधन का संगम है। यहां आने वाला हर भक्त अपनी आत्मा में दिव्यता का अनुभव करता है और यही है बाप्पा की महिमा—जो हर मनोकामना को पूर्ण करती है। सिद्धिविनायक मंदिर का दरबार हर किसी के लिए खुला है—चाहे अमीर हो या गरीब, बॉलीवुड की हस्तियां हों या आमजन, सब यहां मत्था टेकने आते हैं। यही वजह है कि मुंबई की आर्थिक और सामाजिक हलचल के बीच यह मंदिर एक ऐसा तीर्थ है, जहां भक्ति और विश्वास के सिवाय कुछ भी मायने नहीं रखता। मराठी में बाप्पा को “नवसाला पावणारा गणपति” कहा जाता है—अर्थात् जब कोई भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करता है, तो बाप्पा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। मुंबई जैसे तेज़-रफ्तार शहर में सिद्धिविनायक मंदिर आस्था और शांति का वह धाम है, जहां हर भक्त खुद को बाप्पा की शरण में पाकर नतमस्तक हो जाता है। मंदिर में भगवान श्री गणेश के साथ उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि अगल-बगल है। यही वजह है कि इस मंदिर को सिद्धि विनायक गणपति कहा जाता है।
कहते है दुखहर्ता
भगवान श्री गणेशजी के
साथ ही इन दोनों
की आराधना से न सिर्फ
शुचिता, सफलता, धन, सिद्धि और
समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि
दर्शन मात्र से पूरी हो
जाती है हर तरह
की मनोकामनाएं। जो यहां आता
है वो अपना अस्तित्व
भूल जाता है और
भगवान सिद्धि विनायक गणपति की महिमा के
सामने नतमस्तक होता चला जाता
है। किसी मुसीबत से
निजात पानी हो या
फिर शुरू करना हो
कोई भी शुभ काम,
भक्त सबसे पहले विनायक
के दरबार में आकर शीश
झुकाना नहीं भूलते। मुंबई
के प्रभादेवी क्षेत्र में कदम रखते
ही दूर से ही
सिद्धि विनायक मंदिर का कलश नजर
आने लगता है और
उसके साथ दिखाई देने
लगता है वो पवित्र
ध्वज जो किसी प्रहरी
की तरह अपनी ओर
आने वाले हर श्रद्धालु
की अगवानी करता है। ये
ध्वज मानो बखान कर
रहा हो उस परम
शक्ति का जिसकी आराधना
के बिना किसी भी
शुभ काम का आरंभ
नहीं होता।
अद्भुत स्वरूप
भगवान गणेश का जैसा
मनोरम और अद्भुत रूप
यहां देखने के मिलता है
वैसा और कहीं नहीं
देखने को मिलता। भव्य
सिंहासन पर स्थापित ढाई
फुट ऊंची और दो
फुट चौड़ी प्रतिमा एक
ही पत्थर की बनी है।
चार भुजाधारी रूप में बाप्पा
के एक हाथ में
कमल, दूसरे में फरसा, तीसरे
में जपमाला और चौथे में
मोदक है। यज्ञोपवीत यानी
जनेऊ की तरह बाएं
कंधे से होते हुए
उदर पर लिपटा सांप
है और माथे पर
एक आंख ठीक उसी
तरह सुशोभित है, जैसे शिव
की तीसरी आंख। सिद्धिविनायक रूप
में विराजमान भगवान श्रीगणेश की सबसे बड़ी
विशेषता है इस मूर्ति
में बाप्पा की सूंड, जो
दुर्लभ मुद्रा में है। आमतौर
पर गणपति की सूंड बायीं
तरफ मुड़ी होती है
लेकिन भगवान सिद्धिविनायक की सूंड दायीं
तरफ मुड़ी होने से
उन्हें नवसाचा गणपति यानी मन्नत पूरी
करने वाले महा गणपति
कहा जाता है। गणपति
के दोनों ओर रिद्धि और
सिद्धि की प्रतिमाएं कुछ
इस तरह है जैसे
व हपह उन्हीं को
निहारती दिखाई देती है। मान्यता
है कि यह दृश्य
इस बात का प्रतीक
हैं कि भगवान श्रीगणेश
बुद्धि और पराक्रम देते
हैं जबकि रिद्धि-सिद्धि
सुख और समृद्धि। भगवान
सिद्धिविनायक के पास ही
मौजूद है उनके प्रिय
वाहन मूषकराज। ऐसी मान्यता है
कि अपनी मनोकामना मूषकराज
के कान में कह
देने से वो जल्द
पूरी होती है। भगवान
सिद्धिविनायक के मंडप में
हनुमान जी भी विराजमान
हैं। ऐसा माना जाता
है कि कोई अगर
हनुमान जी के दर्शन
किए बिना चला जाए,
को भगवान सिद्धिविनायक की आराधना का
पुण्य नहीं मिलता। यही
वजह है कि भगवान
सिद्धिविनायक के साथ हनुमान
जी की आराधना का
महत्व.
मान्यता और दर्शन
भक्त मोदक, नारियल
और पुष्प अर्पित करना नहीं भूलते।
सुबह से ही मंदिर
परिसर में ढोल-नगाड़ों
की गूंज और भजन-कीर्तन की ध्वनि से
वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
मंदिर के मंडप में हनुमान
जी की प्रतिमा भी
है। श्रद्धालुओं का विश्वास है
कि हनुमान जी के दर्शन
किए बिना सिद्धिविनायक की
पूजा अधूरी मानी जाती है।
मान्यता है कि इस मंदिर के निर्माण में लगने वाली धनराशि एक निःसंतान कृषक महिला ने
दी थी, ताकि सिद्धिविनायक के आशीर्वाद से जीवन में कोई भी महिला बांझ न हो और सभी को
संतानसुख की प्राप्ति हो.
पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि जब सृष्टि की रचना करते
समय भगवान विष्णु को नींद आ गई, तब भगवान विष्णु के कानों से दो दैत्य मधु व कैटभ बाहर
आ गए। ये दोनों दैत्यों बाहर आते ही उत्पात मचाने लगे और देवताओं को परेशान करने लगे।
दैत्यों के आंतक से मुक्ति पाने हेतु देवताओं ने श्रीविष्णु की शरण ली। तब विष्णु शयन
से जागे और दैत्यों को मारने की कोशिश की लेकिन वह इस कार्य में असफल रहे। तब भगवान
विष्णु ने श्री गणेश का आह्वान किया, जिससे गणेश जी प्रसन्न हुए और दैत्यों का संहार
हुआ। इस कार्य के उपरांत भगवान विष्णु ने पर्वत के शिखर पर मंदिर का निर्माण किया तथा
भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की। तभी से यह स्थल सिद्धटेक नाम से जाना जाता है। इस
मंदिर की स्थापना 19 नवंबर
1801 को श्री लक्ष्मण विट्ठू
और दियोभाई पाटिल ने की थी।
आरंभ में यह मात्र
140 वर्गफीट का छोटा सा
मंदिर था। 1952 में एल्फिंस्टन रोड
के पास खुदाई में
हनुमान जी की प्रतिमा
मिलने और यहां स्थापित
होने से मंदिर का
महत्व और बढ़ा। 1965 में
वास्तुशास्त्र के अनुकूल हुए
पुनर्निर्माण से मंदिर की
ख्याति और बढ़ी और
इसके बाद भक्तों की
लंबी कतारें लगनी शुरू हो
गईं।
वास्तु और भव्यता
मंदिर विदिशा भूखंड पर बना है।
भगवान गणेश पूर्वमुखी होकर विराजमान हैं।
गर्भगृह का चबूतरा चांदी के मंडप और
स्वर्ण शिखर से अलंकृत
है। गर्भगृह के लकड़ी के
दरवाजों पर अष्टविनायक की
झलक और अंदर की
छतों पर सोने की
परत मंदिर की भव्यता बढ़ा
देती है। मंदिर की ऊंचाई लगभग
71 फीट है और चौथे
माले पर गणपति की
प्रतिमा की प्रतिकृति भी
स्थापित है।
भारत के अमीर मंदिरों में शामिल
मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर
महाराष्ट्र का दूसरा सबसे
अमीर मंदिर है। सालाना आय
लगभग 46 करोड़ रुपये है। 125 करोड़ रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट
राशि जमा है। हर साल
करीब 50 करोड़ रुपये का चढ़ावा आता
है। 3.5 किलो वजनी सोने
का छत्र प्रतिमा को
अलंकृत करता है। ट्रस्ट ने
जनकल्याण में भी महत्वपूर्ण
योगदान दिया है। विशेष
रूप से सूखा पीड़ितों
की सहायता हेतु 34 करोड़ रुपये का दान किया
गया।
भीड़ और भक्ति का संगम
प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में
भक्तों की भारी भीड़
उमड़ती है। कतारें रात
से ही लग जाती
हैं। गणेशोत्सव, संकष्ठी चतुर्थी और अंगारकी चतुर्थी
के अवसर पर तो
मंदिर परिसर का नजारा भक्ति
और उत्साह से ओतप्रोत हो
जाता है। राजनीति, फिल्म और खेल जगत
की हस्तियां—जैसे बाल ठाकरे,
अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर—अक्सर
यहां दर्शन करते नजर आते
हैं।
आधुनिक सुविधा – क्यूआर कोड बुकिंग
श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या
को देखते हुए मंदिर ट्रस्ट
ने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया
है। अब दर्शन के
लिए क्यूआर कोड आधारित प्री-बुकिंग आवश्यक है। 10 साल से कम
उम्र के बच्चों, गर्भवती
महिलाओं और 65 वर्ष से ऊपर
के बुजुर्गों को प्रवेश नहीं
दिया जाता। बुकिंग मंदिर ट्रस्ट के मोबाइल ऐप
से की जा सकती
है।
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