मर्यादा, प्रेम और आदर्श गृहस्थ परंपरा का अनंत संदेश
दाम्पत्य जीवन को मधुरतम बनाने का दिन: श्रीराम विवाह पंचमी
भारतीय
संस्कृति
में
यदि
आदर्श
दंपति
की
चर्चा
होती
है,
तो
सबसे
पहले
जिन
दो
नामों
का
स्मरण
होता
है,
भगवान
श्रीराम
और
माता
सीता।
मर्यादा
पुरुषोत्तम
राम
केवल
अयोध्या
के
राजा
नहीं
थे,
वे
भारतीय
समाज
की
नैतिकता,
कर्तव्य
और
आदर्श
पुरुष
की
प्रतिमूर्ति
हैं।
उसी
प्रकार
माता
सीता
केवल
एक
रानी
नहीं,
बल्कि
पतिव्रता,
शक्ति,
धैर्य
और
त्याग
का
ऐसा
अनुपम
प्रतीक
हैं,
जिसकी
मिसाल
विश्व
में
कहीं
नहीं
मिलती।
इन्हीं
दोनों
के
शुभ
मिलन
की
तिथि
है.
मार्गशीर्ष
मास
की
शुक्ल
पंचमी,
जिसे
हम
विवाह
पंचमी
कहते
हैं।
सदियों
से
यह
पर्व
केवल
धार्मिक
अनुष्ठान
भर
नहीं,
बल्कि
यह
समाज
को
यह
संदेश
देता
आया
है
कि
दांपत्य
जीवन
की
मूल
जड़ें
विश्वास,
त्याग,
समर्पण
और
आदर्शों
में
होती
हैं।
विवाह
पंचमी
का
पर्व
सुखी
दाम्पत्य
जीवन
का
संस्कार
दिवस
माना
जाता
है.
सुरेश गांधी
राम - सीता का विवाह
भारतीय विवाह-परंपरा की नींव है।
दंपतियों को आशीर्वाद देते
समय आज भी कहा
जाता है, “सीता - राम
के समान एक रहो।”
यह केवल वाक्य नहीं,
एक जीवनदर्शन है, जिसमें शामिल
है समानता, सम्मान, मर्यादा, दांपत्य धर्म की पवित्रता,
सनातन समाज का मानना
है कि सीता और
राम ने विवाह के
बाद तीनों विकार काम, क्रोध और
लोभ को नियंत्रित करने
का आदर्श मार्ग दिखाया। मतलब साफ है
राम का जीवन मर्यादा
का पाठ पढ़ाता है,
सीता का जीवन त्याग
और धैर्य का। दोनों मिलकर
वह पूर्ण गृहस्थ धर्म रचते हैं
जो सनातन परंपरा की रीढ़ है।
विवाह पंचमी हमें यह स्मरण
कराती है कि दांपत्य
में केवल प्रेम नहीं,
बल्कि कर्तव्य, सम्मान और एक - दूसरे
की भावनाओं का संरक्षण भी
आवश्यक है।
मां सीता माता
आज की स्त्री के
लिए, आत्मसम्मान का संदेश, त्याग
के साथ गरिमा, कठिन
परिस्थितियों में धैर्य का
उदाहरण हैं। मिथिला की
पृथ्वी पर जब जनक
हल चला रहे थे,
भूमि फटी और उसमें
से सीता प्रकट हुईं,
इसलिए वे वैदेही और
जनकनंदिनी कहलाती हैं। जब सीता
ने शिवधनुष को सहजता से
देखा, जनक को स्वयं
लगा, “जो इस धनुष
को उठाएगा, वही सीता का
अधिकारी होगा।” फिर आया स्वयंवर
का अद्भुत दिवस। अनगिनत राजा आए पर
कोई धनुष उठाना तो
दूर, छू भी न
सके। और तब... ऋषि
विश्वामित्र ने कहा, “राम!
उठो और जनक का
संताप मिटाओ।” राम उठे, धनुष
हाथ में लिया, प्रत्यंचा
चढ़ाई, और भयावह ध्वनि
के साथ धनुष टूट
गया। सीता के मन
में आनंद छा गया।
फूल बरसे, बाजे बजे, देवताओं
ने आशीर्षों की वर्षा की।
तुलसीदास ने इस प्रसंग
की दिव्यता को यूँ लिखा,
“जनि जनक सुतहि
देखि
करि,
भावाकुल
तब
राम।
धनुष
टूटे
मगन
भए,
चरना
परे
नचाम।।”
सभी भाइयों का
विवाह एक साथ हुआ,
और यह दिन हिंदू
परंपरा में अभूतपूर्व मंगल
तिथि बन गया। विवाह
पंचमी केवल एक धार्मिक
तिथि नहीं, यह है हमारे
दांपत्य को मधुर, स्थाई,
पवित्र और आदर्श बनाने
का अवसर। इस दिन अगर
हर दंपति राम - सीता की मर्यादा,
त्याग और प्रेम का
संकल्प ले, तो संसार
में कोई भी शक्ति
उनके संबंध को डिगा नहीं
सकती। आज आवश्यकता है
हम विवाह पंचमी को केवल पूजा
का दिन न मानें,
बल्कि अपने वैवाहिक जीवन
के आत्ममंथन का दिवस बनाएं।
मर्यादा, विश्वास, त्याग और प्रेम इन
चार स्तंभों पर टिका विवाह
संपूर्ण जीवन को सुखमय
बना देता है। ज्योतिषीय
दृष्टि से यह दिन
शुभ योगों से परिपूर्ण है,
जो दांपत्य सुख और परिवार
में समृद्धि लाने वाला माना
जाता है. शास्त्रों के
अनुसार, इस तिथि में
विवाह संस्कार, वैवाहिक पूजन या दांपत्य
सुख से जुड़े संकल्प
लेना अत्यंत शुभ माना गया
है. यह वही दिव्य
दिन माना जाता है,
जब भगवान श्रीराम और माता सीता
का पवित्र विवाह वैदिक परंपराओं के अनुसार संपन्न
हुआ था. इसलिए, इस
तिथि को ''दिव्य वैवाहिक
सिद्धि दिवस'' भी कहा जाता
है. इस दिन श्रीराम
और माता सीता विवाह
की कथा सुनना, उनका
स्मरण करना, पूजा-अर्चना करना
जीवन में शुभ विवाह
योग, दांपत्य में स्थिरता, और
परिवार में सौहार्द और
समृद्धि को बढ़ाने वाला
माना गया है.
शुभ मुहूर्त
इस वर्ष विवाह
पंचमी की तिथि 24 नवंबर
को रात 9.22 से प्रारंभ और
25 नवंबर को रात 10.56 पर
समाप्त होगी। उदया तिथि मान
के अनुसार, पर्व 25 नवंबर को मनाया जाएगा।
खास यह है कि
इस दिन बन रहे
तीन शुभ योग, ध्रुव
योग यानी स्थिरता का
प्रतीक, सर्वार्थ सिद्धि योग यानी हर
कार्य में सफलता, शिव
वास योग यानी कल्याण,
सौभाग्य और शुभत्व. यह
संयोग विवाह पंचमी को और भी
अधिक पवित्र और शक्तिशाली बनाता
है। ज्योतिषियों के अनुसार, विवाह
पंचमी का दिन बहुत
ही खास माना जा
रहा है. क्योंकि इस
दिन बहुत ही खास
संयोग बन रहे हैं.
इस दिन पंचमी तिथि
दिन और रात्रि, दोनों
समय पूर्ण रूप से व्याप्त
रहेगी. नक्षत्र रहेगा उत्तराषाढ़ा और योग रहेगा
गंड योग, जिसके उपरांत
वृद्धि योग की शुरुआत
होगी. इन शुभ योगों
में भगवान विष्णु- माता लक्ष्मी की
उपासना विशेष रूप से फलदायी
मानी जाती है. शास्त्रों
के अनुसार, इस तिथि में
विवाह संस्कार, वैवाहिक पूजन या दांपत्य
सुख से जुड़े संकल्प
लेना अत्यंत शुभ माना गया
है.
सुबह स्नान कर
के, मंदिर और घर की
शुद्धि, भगवान राम - सीता की मूर्ति
स्थापना, सुंदर वस्त्र और आभूषण, देसी
घी का दीपक, विवाह
कथा का पाठ, तुलसी
पत्र व नैवेद्य, पूजा
के अंत में भजन,
कीर्तन, प्रसाद वितरण, दांपत्य जीवन में खुशियों
का संचार करते हैं। माना
जाता है कि इस
दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने से
व्यक्ति के जीवन में
प्रेम, सामंजस्य और समृद्धि आती
है। जो लोग विवाह
योग्य हैं, उन्हें इस
दिन विशेष लाभ प्राप्त होता
है। इस तिथि पर
अन्न, वस्त्र या धन का
दान करना अत्यंत शुभ
माना गया है। श्री
सीताराम विवाह कथा का पाठ
करें और मंत्र है-
''जय सियावर रामचन्द्र की जय, सीताराम
चरण रति मोहि अनुदिन
हो''. रात्रि में श्रीराम विवाह
की आरती करें और
भक्ति भाव से विवाहोत्सव
मनाएं. कई मंदिरों में
इस दिन श्री राम-
माता सीता विवाह की
झांकी सजाई जाती है,
बारात निकाली जाती है और
भक्त ''शुभ विवाह'' के
जयघोष करते हैं. ऐसा
करने से घर में
सदैव लक्ष्मी का वास रहता
है और जीवन में
किसी प्रकार की कमी नहीं
आती।
विवाह पंचमी पर विवाह क्यों नहीं होते?
यह तथ्य रोचक
भी है और गंभीर
भी, मिथिला सहित कई क्षेत्रों
में विवाह पंचमी पर विवाह नहीं
किए जाते। क्योंकि राम - सीता विवाह के
तुरंत बाद शुरू हुआ
वनवास, संघर्ष, सीता हरण, युद्ध,
अग्नि परीक्षा... लोग मानते हैं
कि, “इस दिन विवाह
करने से दांपत्य को
अधिक कष्ट मिलते हैं।”
यही कारण है कि
इस दिन विवाह नहीं
होते. रामचरितमानस का पाठ विवाह
प्रसंग तक ही किया
जाता है. सीता के
बाद का ‘दुःख प्रसंग’
आगे नहीं पढ़ा जाता.
यह मान्यता लोक-विश्वास का
हिस्सा है, हालांकि भृगु
संहिता इसे अबूझ मुहूर्त
भी मानती है।
सीता: रावण के अंत का कारण बनने वाली शक्ति
वाल्मीकि रामायण में वर्णन है
कि कभी रावण ने
जिस तपस्विनी वेदवती का अपमान किया
था, उसने श्राप दिया,
“तेरा अंत एक स्त्री
के कारण होगा।” वही
वेदवती अगले जन्म में
सीता बनकर आईं। सीता
का जीवन ही रावण
के विनाश का कारण बना।
इसलिए कहा गया, राम
विवाह केवल प्रेम कथा
नहीं, एक दिव्य उद्देश्य
की शुरुआत है।
विवाह में ‘अहंकार’ का टूटना आवश्यक
राम ने धनुष
तोड़ा, यह घटना केवल
एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश
है। जब दो लोग
विवाह बंधन में बंधते
हैं, तो सबसे पहले
अहंकार टूटना चाहिए। विवाह एक प्रतियोगिता नहीं,
एक संयमित साझेदारी है। राम ने
धनुष तोड़ा और समाज
को बताया, दांपत्य जीवन तभी मधुर
होगा जब अहंकार टूटे,
कर्तव्य स्वीकार हो, प्रेम को
वरना हो, एक-दूसरे
की गरिमा बनी रहे.
विवाह पंचमी: दांपत्य समस्याओं का समाधान
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, इस
दिन व्रत और पूजा
से विवाह में आ रही
रुकावटें दूर होती हैं,
संतान सुख मिलता है.
पारिवारिक कलह का अंत
होता है. प्रेम और
सामंजस्य बढ़ता है. युवक-युवतियों को श्रीराम रक्षा
स्तोत्र का पाठ करने
से विवाह का मार्ग सहज
होता है। दांपत्य जीवन
में समस्याएँ हो तो, विवाह
पंचमी पर सीता - राम
का पूजन, सुहाग सामग्री का दान, तुलसी
पत्र अर्पण विशेष लाभ देता है।
विवाह पंचमी: सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव
मिथिला, जनकपुर, अयोध्या, काशी, मथुरा और देशभर में
इस दिन राम - सीता
विवाह के झांकी, भजन-कीर्तन, ‘रामदृसीता विवाह’ का नाट्य आयोजन,
मानस पाठ होता है।
विशेष रूप से मिथिला
में सीता की जन्मस्थली
होने के कारण बहुत
भव्य आयोजन होते हैं। विवाह
पंचमी का पर्व आध्यात्मिक,
सांस्कृतिक और सामाजिक तीनों
आयामों को समेटे हुए
है। धार्मिक दृष्टि से यह तिथि
सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि यह
तिथि राम - सीता मिलन की
दिव्य ऊर्जा का दिन है.
पुण्य का संचय कई
गुना बढ़ जाता है.
व्रत-पूजन से घर
में शांति, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता
ह. विवाह के मूल तत्व
विश्वास, प्रेम और संयम, इस
दिन विशेष रूप से जागृत
होते हैं. आज के
समय में, जब दांपत्य
संबंध तनाव, अहंकार और टकराव से
जूझ रहे हैं, विवाह
पंचमी हमें पुनः यह
स्मरण कराती है कि विवाह
केवल संग-साथ नहीं,
बल्कि एक-दूसरे के
लिए जिम्मेदारी है। राम - सीता
के जीवन से सीखते
हुए पति को मर्यादा
निभानी चाहिए. पत्नी को आत्मसम्मान और
धैर्य बनाए रखना चाहिए.
दोनों को एक-दूसरे
का सम्मान करना चाहिए. परिवार
और समाज के प्रति
कर्तव्य भी उतने ही
आवश्यक हैं.





