Tuesday, 21 October 2025

प्रकृति की गोद में झुकती श्रद्धा, महाछठ पर्व का दिव्य आलोक

प्रकृति की गोद में झुकती श्रद्धा, महाछठ पर्व का दिव्य आलोक

जब पूर्व दिशा के क्षितिज पर अरुणिमा फैलती है, और सूर्यदेव के प्रथम किरणें जल में थिरकती हैं, तब लगता है मानो सृष्टि स्वयं अपने आराध्य को प्रणाम कर रही हो। घाटों पर डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देती व्रती महिलाओं की सादगी और श्रद्धा में जो सौंदर्य है, वह केवल धार्मिक नहीं, आध्यात्मिक और पारिस्थितिक दोनों है। यही तो है छठ, प्रकृति के सम्मान का उत्सव, शुद्धता की साधना और लोकभावना का महाकाव्य। छठ, आस्था का वह अद्भुत संगम है जहां प्रकृति, मनुष्य और ईश्वर तीनों एक सूत्र में बंध जाते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और शरीर-मन की शुद्धि का संदेश भी देता है। छठ पर्व कहता हैस्वच्छ रहो, संयमी बनो, प्रकृति का सम्मान करो और भीतर का सूर्य जगाओ।मतलब साफ है छठ महापर्व केवल लोक आस्था का नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति के बीच संवाद का पर्व है। जब जल में डूबकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, तब सृष्टि और साधक, दोनों एक हो जाते हैं

सुरेश गांधी 

छठ केवल पर्व नहीं, यह लोक-जीवन की आत्मा है। प्रकृति के सम्मान का उत्सव है छठ। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन, पर्यावरण और आस्था की संगम स्थली है। जहां दीपावली में घर-आंगन जगमगाते हैं, वहीं छठ में आत्मा के भीतर प्रकाश फैलता है। बिहार की मिट्टी से उपजा यह महापर्व आज विश्व पटल पर अपनी आध्यात्मिक गरिमा और सांस्कृतिक पहचान के साथ प्रतिष्ठित हो चुका है। जो कभी गंगा, कोसी, सोन और सरयू के घाटों पर सीमित था, वह आज भारत ही नहीं सात समुंदर पार अपनी लौकिक उजास बिखेर रहा है। लंदन के टेम्स किनारे, दुबई की खाड़ी में, या न्यूयॉर्क के हडसन तट पर, प्रवासी भारतीय मिट्टी की सूप में गंगाजल भरकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो लगता है कि यह आस्था सीमाओं से परे एक वैश्विक संस्कृति बन चुकी है। छठ महापर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति के सहअस्तित्व की जीवंत अभिव्यक्ति है। सूर्य, जो प्रत्यक्ष देवता हैं, उनके प्रति यह धन्यवाद पर्व है। उनकी ऊर्जा से ही तो धरती पर अन्न उपजता है, जल का चक्र चलता है और जीवन की नाड़ी स्पंदित रहती है।

छठ पर्व केवल आस्था नहीं, जीवन का दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि संयम ही सबसे बड़ा उत्सव है, स्वच्छता ही सबसे बड़ी साधना है, और कृतज्ञता ही सबसे बड़ा धर्म। छठ हमें याद दिलाता है कि जब मनुष्य प्रकृति के प्रति विनम्र होता है, तभी उसका अस्तित्व सुरक्षित रहता है। यह पर्व सिखाता है जीवन का सार पूजा में नहीं, प्रकृति के प्रति आभार में है। छठ पर्व में वह शक्ति है जो समाज को जोड़ती है, परिवारों को मिलाती है, और मनुष्यता को ऊँचा उठाती है। यह पर्व हमें यह एहसास कराता है कि सूर्य की तरह ही हमें भी सबको प्रकाश देना चाहिए, बिना भेदभाव, बिना अपेक्षा। सचमुच, छठ केवल व्रत नहीं, यह प्रकृति, श्रद्धा और विज्ञान का अद्भुत समागम है। यह मनुष्य और सृष्टि के बीच पुल है, जहाँ हर अर्घ्य में आभार है, हर दीप में प्रेम, और हर सूर्य में जीवन का संदेश। छठ केवल व्रत नहीं, यह पृथ्वी को बचाने का संकल्प है।

चार दिनों की तपस्या, शरीर, मन और आत्मा की साधना

छठ पर्व चार दिनों का है, और इन चार दिनों में जीवन की समग्र साधना छिपी है।

पहला दिन नहाय-खाय (25 अक्टूबर) : इस दिन व्रती नदियों में स्नान करते हैं और पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं। लौकी, चने की दाल, और कद्दू की सब्जी के साथ बिना लहसुन-प्याज का भात कृ यह भोजन शरीर को शुद्धता की साधना के लिए तैयार करता है। यह केवल खाना नहीं, संयम का संस्कार है।

दूसरा दिन खरना (26 अक्टूबर) : संध्या समय गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनता है। व्रती इस प्रसाद को पहले छठी मैया को अर्पित करते हैं, फिर ग्रहण करते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ होता है। यह व्रत केवल भूखा रहना नहीं कृ मन की समस्त कामनाओं का दमन है।

तीसरा दिन संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) : सूर्यास्त के समय घाटों पर दीपों की पंक्तियां जगमगाती हैं। व्रती महिलाएं कमर तक जल में डूबकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं, यह उस ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता है जिसने दिन भर संसार को आलोकित किया।

चौथा दिन उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) : प्रातःकाल उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती पारण करती हैं। यह नई शुरुआत का प्रतीक है, अंधकार से प्रकाश, निराशा से आशा, मृत्यु से जीवन की यात्रा।  यही तो छठ का दार्शनिक अर्थ है, संध्या और उषा के संग मिलकर मनुष्य अपने भीतर के सूर्य को जागृत करता है।

लोकगीतों में बहती श्रद्धा की सरिता

छठ के गीतों में केवल लोकधुन है, बल्कि लोकसंस्कार का संगीत भी। हर घर, हर घाट पर गूंजता है,

केलवा जे फरेला घवद से धनुसरा...”

उग हो सूर्य देव भइली अरघ के बेर...”

इन गीतों में मां-बहनों की ममता, दुलार, आस्था और पर्यावरण का संदेश एक साथ बहता है। लोकसंगीत की यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि सांस्कृतिक उत्तराधिकार भी। छठ के गीत पीढ़ियों के बीच सेतु हैं, जहां नयी पीढ़ी पुरानी परंपरा को महसूस करती है। हर घाट, हर तालाब पर लोगों की श्रद्धा का सागर उमड़ता है। यह पर्व जाति, वर्ग और भाषा की सीमाओं से परे जाकर सबको जोड़ता है। बेटियां मायके आती हैं, दामाद स्वागत करते हैं, घर में अपनत्व और स्नेह का अनोखा वात्सल्य छा जाता है। यही तो भारतीय संस्कृति का सौंदर्य है कृ जहाँ पर्व सिर्फ पूजा नहीं, परिवार का पुनर्मिलन भी होते हैं।

प्रकृति की प्रतिष्ठा : धर्म और विज्ञान का संगम

छठ केवल पूजा नहीं, प्रकृति का पर्यावरणीय अनुबंध है। सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया में छिपा है गहन वैज्ञानिक सत्य। प्रिज्म सिद्धांत के अनुसार, जब सूर्य की किरणें जल पर पड़ती हैं तो वे सात रंगों में विभाजित होती हैं। इन रंगों की तरंगें शरीर के स्नायुतंत्र और मस्तिष्क पर प्रभाव डालती हैं, जिससे मानसिक शांति, स्थिरता और ऊर्जावान चेतना प्राप्त होती है। साथ ही यह विटामिन-डी का प्राकृतिक स्रोत भी है, जो हड्डियों, मांसपेशियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त करता है। पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने से शरीर का टॉक्सिफिकेशन होता है, जो आधुनिक चिकित्सा की दृष्टि से नेचुरल डिटॉक्स थेरपी के समान है। इस प्रकार छठ एक ऐसा अनुष्ठान है जहाँ धर्म, विज्ञान और स्वास्थ्य तीनों एक साथ जुड़ते हैं। यह मनुष्य को प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का सबसे सुंदर माध्यम है।

छठ मैया : मातृत्व और ममता की देवी

छठ मैया को षष्ठी देवी कहा गया है, जो ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। वे संतान सुख की दायिनी और मातृत्व की रक्षिका हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने संतान की प्राप्ति के लिए इनकी आराधना की थी, और छठी मैया के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। छठ मैया का स्वरूप अद्भुत है, वे धरणी की धीरज, गंगा की निर्मलता और मातृत्व की करुणा का प्रतीक हैं। उनकी पूजा में कोई आडंबर नहीं, सादगी ही उनकी आराधना है। मिट्टी की सूप, बाँस की टोकरी, केले का पत्ता, और गन्ने का डंडा, यही उनके पूजन का भव्य वैभव है।

पर्यावरण चेतना का पर्व

छठ उस समय की स्मृति है जब मानव और प्रकृति के बीच संबंध सहज था। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति की सेवा ही पूजा है। घाटों की सफाई, नदियों की पवित्रता और पर्यावरण की शुद्धता, ये सभी इस पर्व के अभिन्न अंग हैं। छठ की तैयारी में गाँव-शहर हर जगह सामूहिकता का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। लोग मिलकर घाटों की सफाई करते हैं, जलाशयों को सजाते हैं, पौधों को नष्ट नहीं करते, बल्कि पूजन सामग्री में प्राकृतिक तत्वों का ही प्रयोग करते हैं। आज जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्रकृति पर संकट मंडरा रहा है, छठ हमें सिखाता है कि स्वच्छता और शुद्धता ही पर्यावरण की रक्षा का प्रथम सूत्र है।

प्रसाद में छिपा है स्वास्थ्य का विज्ञान

छठ का प्रसाद स्वयं में आयुर्वेदिक औषधि है। ठेकुआ : गेहूँ के आटे, गुड़ और घी से बना, कैल्शियम और आयरन का प्राकृतिक स्रोत है। गन्ने का रस और गुड़ से बनी खीर शरीर में ग्लूकोज़ की कमी पूरी करती है। लौकी, मूली, अदरक, केले, नारियल, ये सभी प्रसाद सामग्री विटामिन और मिनरल्स से भरपूर हैं। यह व्रत केवल आत्मसंयम सिखाता है बल्कि शरीर को विषम मौसम में अनुकूल बनाए रखने का उपाय भी देता है। कह सकते हैं, छठ का प्रसाद सांस्कृतिक आयुर्वेद है, जो केवल स्वाद देता है, बल्कि स्वास्थ्य भी।

सूर्य : जीवन का शाश्वत स्रोत

छठ पर्व हमें सूर्य की अनिवार्यता का स्मरण कराता है। फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया से लेकर मानव शरीर की हर कोशिका तक, सूर्य ऊर्जा का प्रवाह ही जीवन का आधार है। बिना सूर्य के तो पेड़-पौधे हरे रह सकते हैं, जीव-जंतु जीवित। छठ में जब व्रती महिलाएँ जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तो वह केवल देवता की नहीं, बल्कि जीवन के स्रोत की उपासना करती हैं। सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, जो देखे भी जाते हैं और महसूस भी।

सामूहिकता, संस्कृति और स्नेह का संगम

छठ पर्व की एक और विशेषता है, उसकी सामूहिकता। यह पर्व किसी एक जाति का है, किसी एक वर्ग का। यह सबका पर्व है, गाँव का, शहर का, अमीर का, गरीब का, और हर उस व्यक्ति का जो जीवन में शुद्धता चाहता है। छठ के दिनों में बेटियाँ अपने मायके आती हैं, दामादों का स्वागत होता है, परिवार का पुनर्मिलन होता है। यह पर्व रिश्तों की गरिमा और घरों की गर्माहट को फिर से जीवित कर देता है। जहाँ दीपावली में रोशनी बाहर जगमगाती है, वहाँ छठ में प्रेम की रोशनी भीतर जगती है।

विश्व पटल पर छठ का विस्तार

आज छठ केवल बिहार या पूर्वांचल का पर्व नहीं रहा। यह विश्व भर में बसे भारतीयों की पहचान बन चुका है। अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, मॉरिशस, नेपाल, फिजी, और खाड़ी देशों में अब छठ घाट बनाए जाते हैं। प्रवासी भारतीय अपनी मिट्टी की खुशबू और आस्था को विदेशों तक ले गए हैं। यह बताता है कि भारतीय संस्कृति कहीं भी जाए, अपने संस्कारों की जड़ें साथ लेकर चलती है।

छठः जीवन दर्शन की ज्योति

छठ सूर्योपासना का पर्व है। सनातन मान्यता है कि सूर्य ही जीवन का आधार हैं। उनके बिना पृथ्वी पर तो अन्न उपज सकता है, जीवन टिक सकता है। सूर्य की किरणें शरीर को विटामिन-डी प्रदान करती हैं, मनोबल को ऊँचा करती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। यही कारण है कि यह पर्व वर्ष के उस समय मनाया जाता है जब सूर्य की ऊष्मा और पराबैंगनी किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर संतुलित होता है। इस दृष्टि से छठ पूजा वैज्ञानिक दृष्टि से भी पूर्णतः तर्कसंगत है। छठ पर्व हमारी संस्कृति का वह उज्ज्वल अध्याय है जो बताता है कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार, मातृत्व की ममता और समाज की सामूहिकता का उत्सव है। निस्संदेह कहा जा सकता है, छठ महापर्व नहीं, प्रकृति और मानवता के सहअस्तित्व का अनुष्ठान है।

प्रकृति की गोद में झुकती श्रद्धा, महाछठ पर्व का दिव्य आलोक

प्रकृति की गोद में झुकती श्रद्धा , महाछठ पर्व का दिव्य आलोक जब पूर्व दिशा के क्षितिज पर अरुणिमा फैलती है , और सूर्यदेव ...