Sunday, 21 December 2025

सहकारिता की शक्ति को जमीन पर उतारने वाले डीएम सत्येन्द्र कुमार को योगी ने किया सम्मानित

वाराणसी से बाराबंकी तक नवाचार और समावेशी विकास की मिसाल

सहकारिता की शक्ति को जमीन पर उतारने वाले डीएम सत्येन्द्र कुमार को योगी ने किया सम्मानित 

युवा सहकार सम्मेलन व यूपी कोआपरेटिव एक्स्पो : 2025 का आयोजन

सुरेश गांधी

वाराणसी. आज युवा सहकार सम्मेलन एवं युवा सहकार सम्मेलन यूपी कोआपरेटिव एक्स्पो : 2025 के मंच से सहकारिता के क्षेत्र में एक ऐसी प्रशासनिक यात्रा को सार्वजनिक सम्मान मिला, जिसने यह साबित किया कि यदि इच्छाशक्ति हो तो सरकारी तंत्र भी नवाचार और समावेशी विकास का वाहक बन सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा जिलाधिकारी सत्येन्द्र कुमार को उनके सेवाकाल के दौरान वाराणसी, महराजगंज और बाराबंकी में सहकारिता के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए सम्मानित किया जाना, केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि सहकार से समृद्धि की सोच का सम्मान है।

वाराणसी में स्वयं सहायता समूहों को स्थानीय बाजार से जोड़ने, ग्रामीण उत्पादों को ब्रांडिंग और विपणन का अवसर देने तथा सहकारी संस्थाओं को तकनीक से जोड़ने की पहल ने परंपरागत सहकारिता को नई ऊर्जा दी। महराजगंज जैसे सीमावर्ती और कृषि प्रधान जिले में सहकारी समितियों को किसान हितों के अनुरूप पुनर्जीवित करना, बीज, खाद और ऋण वितरण को पारदर्शी बनाना तथा महिलाओं की सहभागिता बढ़ाना, समावेशी विकास की ठोस मिसाल रहा। वहीं बाराबंकी में सहकारिता को रोजगार सृजन, डेयरी, कृषि-आधारित उद्योग और युवा उद्यमिता से जोड़ने का प्रयोग दूरगामी परिणामों वाला सिद्ध हुआ।

यह सम्मान इस बात का संकेत है कि सहकारिता केवल सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भर नहीं, बल्कि लोक-भागीदारी और स्थानीय नेतृत्व के जरिए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बन सकती है। युवा सहकार सम्मेलन का मंच इस संदेश को और मजबूत करता है कि आने वाला समय युवाओं, नवाचार और सहकारी मॉडल का है। आज का यह सम्मान प्रशासनिक सेवा में कार्यरत अधिकारियों के लिए प्रेरणा है कि वे नियमों की परिधि में रहकर भी नए रास्ते खोल सकते हैं। सहकारिता की यह सफलता कथा, उत्तर प्रदेश के विकास मॉडल को और अधिक जनोन्मुख, सहभागी और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।  


खादी से आत्मनिर्भरता तकः चौकाघाट में सजी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था

खादी से आत्मनिर्भरता तकः चौकाघाट में सजी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था 

खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी में स्वदेशी की चमक, पहले ही दिन 18 लाख की बिक्री

सुरेश गांधी

वाराणसी. शहर के अर्बन हाट, चौकाघाट में सजी खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की जीवंत अर्थव्यवस्था का सशक्त प्रदर्शन है। उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा आयोजित यह प्रदर्शनी 20 से 29 दिसंबर तक चलेगी, लेकिन इसके शुभारंभ ने ही यह संकेत दे दिया है कि खादी और ग्रामोद्योग अब सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की मजबूत धुरी बन चुके हैं।

प्रदर्शनी का उद्घाटन जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती पूनम मौर्या और महापौर अशोक कुमार तिवारी के कर-कमलों से हुआ। मंच से दिया गया संदेश स्पष्ट था, स्वदेशी अपनाइए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल दीजिए। खादी की सादगी और ग्रामोद्योग की विविधता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में थी। फर्क सिर्फ इतना है कि आज यह आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन का सशक्त माध्यम बन चुकी है।

पहले ही दिन 18 लाख रुपये की बिक्री यह साबित करती है कि आमजन का भरोसा खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों पर लगातार बढ़ रहा है। प्रदर्शनी में खादी वस्त्रों के साथ बनारसी साड़ियां, कश्मीर के शाल, पंजाब की फुलकारी, उत्तराखंड की सदरी, कालीन, हस्तशिल्प, आचार-मुरब्बे और ग्रामीण खाद्य उत्पाद लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं। जिला/परिक्षेत्रीय ग्रामोद्योग अधिकारी वाराणसी यू पी सिंह ने बताया कि कुल 113 स्टालों में 25 स्टाल खादी के एवं शेष 88 स्टाल ग्रामोद्योग के लगे है, जहां ग्रामीण मेहनत, कारीगरी और परंपरा की खुशबू साफ महसूस की जा सकती है।

यह प्रदर्शनी सिर्फ खरीदारी का मंच नहीं, बल्कि ग्रामीण उद्यमियों को बाजार से जोड़ने की गंभीर पहल है। जब गांव का उत्पाद शहर के बाजार में सम्मान पाता है, तभी आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत होती है। ऐसे आयोजन न केवल रोजगार बढ़ाते हैं, बल्कि पलायन रोकने और ग्रामीण जीवन को सशक्त बनाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी यह याद दिलाती है कि विकास की दौड़ में अगर गांव मजबूत हैं, तो देश मजबूत है। स्वदेशी की यह अलख, अगर जन-जन तक पहुंचे, तो खादी केवल कपड़ा नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनकर देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है।

इस अवसर पर एपी जायसवाल सेवानिवृत निदेशक खादी ग्रामोद्योग आयोग, वीके सिंह सेवानिवृत सहायक निदेशक खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, डीएस पाण्डेय ज्येष्ठ लेखा परीक्षक, राकेश मोहन गुप्ता ज्येष्ठ लेखा परीक्षक, विनोद कुमार सिंह जिला ग्रामोद्योग अधिकारी जौनपुर, श्रीमती अमिता श्रीवास्तव जिला ग्रामोद्योग अधिकारी गाजीपुर, गिरजा प्रसाद जिला ग्रामोद्योग अधिकारी चंदौली, अमितेश कुमार सिंह जिला ग्रामोद्योग अधिकारी मिर्जापुर और दूर दराज से आए हुए उद्यमी एवं वाराणसी की जनता उपस्थित रहे। प्रदर्शनी में आज मां मुंडेश्वरी म्यूजिक वाराणसी द्वारा स्वागत संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यूपी सिंह ने सभी आगन्तुकों का आभार प्रकट करते हुए कहा, प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमियों को बाजार उपलब्ध कराने के साथ विपणन में सहायता व बिक्री के लिए प्रोत्साहित किया जाना है।

प्रेम, अनुशासन और मानव निर्माण का उत्सव

प्रेम, अनुशासन और मानव निर्माण का उत्सव 

अस्सी घाट पर श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी का 138वां जन्मोत्सव श्रद्धा और सेवा के साथ सम्पन्न

दीक्षा के पश्चात शिक्षा ही एक स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करती है

सुरेश गांधी

वाराणसी। जब आध्यात्म केवल साधना न रहकर समाज निर्माण का माध्यम बन जाए, तब उसका प्रभाव पीढ़ियों तक दिखाई देता है। अस्सी घाट के निकट अवस्थित छोटा नागपुर वाटिका में परम प्रेममय श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी का 138वां जन्मोत्सव इसी भाव के साथ बड़े श्रद्धा, अनुशासन और सामाजिक चेतना के वातावरण में मनाया गया। यह आयोजन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि विचार, सेवा और संस्कार का जीवंत संगम बनकर उभरा।

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः 5 बजे वेदमांगलिकी के साथ हुआ। इसके पश्चात बाल भोग निवेदन, समवेत प्रातःकालीन प्रार्थना, भजन-कीर्तन, धर्मसभा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, मातृ सम्मेलन और युवा सम्मेलन का क्रमबद्ध आयोजन हुआ। पूरा दिन ठाकुरजी के विचारों, आदर्शों और जीवन दर्शन को आत्मसात करने का सजीव अवसर बना। कार्यक्रम का समापन सायंकालीन प्रार्थना के साथ हुआ।

जौनपुर, प्रयागराज, गाजीपुर, आजमगढ़ सहित बिहार के सासाराम और छपरा से आए सहप्रतिऋत्विकों और भक्तों की सहभागिता ने आयोजन को अखिल क्षेत्रीय स्वरूप प्रदान किया। मतलब साफ है यह जन्मोत्सव यह संदेश देता है कि जब आध्यात्म सेवा, अनुशासन और विचार के साथ जुड़ता है, तब वह समाज को दिशा देता है, और यही श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी की स्थायी विरासत है।

विचारों की प्रासंगिकता पर मंथन

धर्मसभा में वक्ताओं ने आज के समय में श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी के विचारों की मानव निर्माण में प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। वक्ताओं ने कहा कि ठाकुरजी का संदेश केवल आध्यात्मिक उत्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि वह व्यक्ति के चरित्र, परिवार की संरचना और समाज की दिशा तय करता है। इस अवसर पर विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया गया कि दीक्षा के पश्चात शिक्षा ही एक स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करती है। यह विचार आज के भौतिक और भ्रमित समय में और अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जहां मूल्य और अनुशासन की कमी समाज की बड़ी चुनौती बनती जा रही है। 

आदर्श विवाह नीति और सामाजिक संतुलन

वक्ताओं ने ठाकुरजी की आदर्श विवाह नीति पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि विवाह केवल सामाजिक औपचारिकता नहीं, बल्कि संस्कार, जिम्मेदारी और जीवन भर के सहयोग का संकल्प है। ठाकुरजी की विवाह नीति परिवार को सुदृढ़ करती है और सामाजिक असंतुलन को रोकने में सहायक है।

सेवा का जीवंत उदाहरण : चिकित्सा शिविर

जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजित बृहद चिकित्सा शिविर ने कार्यक्रम को सामाजिक सेवा की मजबूत आधारशिला प्रदान की। इस शिविर में करीब 750 लोगों ने निशुल्क स्वास्थ्य जांच, परामर्श और दवा वितरण का लाभ उठाया। ब्रॉड और सुपर स्पेशियलिटी विभागों के चिकित्सकों ने अपनी सेवाएं प्रदान कर यह सिद्ध किया कि ठाकुरजी का प्रेम और सेवा का संदेश केवल मंच तक सीमित नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरकर समाज की पीड़ा को समझने का माध्यम है।

38वीं कनिष्कदेव गोरावाला स्मृति मीडिया क्रिकेट से सजेगा खेल उत्सव

38वीं कनिष्कदेव गोरावाला स्मृति मीडिया क्रिकेट से सजेगा खेल उत्सव

कलम से क्रीज़ तक : काशी के पत्रकार फिर मैदान में 

प्रतियोगिता 24 से, छह टीमों के बीच होगा मुकाबला, 31 दिसंबर को फाइनल

सुरेश गांधी

वाराणसी। खबरों की आपाधापी, डेडलाइन का दबाव और समाज के हर सवाल से जूझने वाले पत्रकार जब मैदान में उतरते हैं, तो खेल सिर्फ खेल नहीं रहता, वह आपसी सौहार्द, स्मृतियों और संघर्षों का उत्सव बन जाता है। इसी भावना के साथ काशी पत्रकार संघ से संचालित वाराणसी प्रेस क्लब के तत्वावधान में 38वीं कनिष्कदेव गोरावाला स्मृति मीडिया क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन 24 दिसंबर से डॉ. संपूर्णानंद स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में होने जा रहा है। यह प्रतियोगिता आनंद चंदोला खेल महोत्सव के अंतर्गत आयोजित की जा रही है और काशी की पत्रकारिता परंपरा में इसका विशेष स्थान है। यह आयोजन न केवल दिवंगत पत्रकार कनिष्कदेव गोरावाला की स्मृति को नमन है, बल्कि पत्रकारों के बीच खेल भावना, एकजुटता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी मजबूत करता है।

छह टीमों का रोमांच, दो ग्रुप में मुकाबला

खेल आयोजन समिति के संयोजक कृष्ण बहादुर रावत के अनुसार इस वर्ष प्रतियोगिता में छह मीडिया टीमें हिस्सा ले रही हैं, जिन्हें दो ग्रुपों में बांटा गया है। ग्रुप ‘ए में पराड़कर एकादश, विद्या भास्कर एकादश और ईश्वर देव मिश्र एकादश शामिल हैं, जबकि ग्रुप ‘बी में गर्दे एकादश, लालजी एकादश और हृदय प्रकाश एकादश अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगी। यह संरचना प्रतियोगिता को और अधिक रोचक बनाती है, जहां हर मैच फाइनल की दौड़ को नई दिशा देगा।

24 दिसंबर से क्रिकेट का शंखनाद

प्रतियोगिता का उद्घाटन मुकाबला 24 दिसंबर को सुबह 10 बजे विद्या भास्कर एकादश और पराड़कर एकादश के बीच खेला जाएगा। इसके बाद 25 से 30 दिसंबर तक लगातार लीग मुकाबले होंगे। क्रिकेट प्रेमियों के लिए खास बात यह है कि हर दिन एक मुकाबला खेला जाएगा, जिससे खिलाड़ियों के साथ-साथ दर्शकों का उत्साह भी बना रहेगा।

31 दिसंबर को फाइनल, साल का खेलीला विदा

दोनों ग्रुपों की शीर्ष टीमें 31 दिसंबर को फाइनल मुकाबले में आमने-सामने होंगी। यह मैच न सिर्फ ट्रॉफी के लिए होगा, बल्कि पूरे वर्ष की पत्रकारिता यात्रा को खेल के मैदान से विदाई देने का प्रतीक भी बनेगा।

खेल से संवाद, संवाद से सौहार्द

यह प्रतियोगिता पत्रकारों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां कलम लोकतंत्र की प्रहरी है, वहीं खेल पत्रकारों को ऊर्जा, अनुशासन और टीमवर्क का पाठ पढ़ाता है। कनिष्कदेव गोरावाला स्मृति मीडिया क्रिकेट प्रतियोगिता वर्षों से यह संदेश देती आई है कि पत्रकार सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मकता और भाईचारे के वाहक भी हैं। काशी की इस परंपरा में एक बार फिर बल्ले और गेंद के साथ यादें, रिश्ते और पत्रकारिता की आत्मा मैदान में उतरने को तैयार है। आयोजन समिति के अनुसार प्रतियोगिता के सफल संचालन के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और पत्रकार खिलाड़ियों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है।


काशी में क्रिसमस का संदेश : शांति, एकता और प्रेम से रोशन होगा नववर्ष 2026

काशी में क्रिसमस का संदेश : शांति, एकता

और प्रेम से रोशन होगा नववर्ष 2026 

वाराणसी के कैथोलिक धर्मप्रांत का आह्वान, घृणा नहीं, करुणा बने समाज की पहचान

सुरेश गांधी

वाराणसी। शांति रहे, एकता रहे, भाईचारा बना रहे और हर मन में प्रेम का प्रातःकाल हो, इसी सार्वभौमिक संदेश के साथ वाराणसी का कैथोलिक धर्मप्रांत प्रभु यीशु मसीह के जन्मोत्सव (क्रिसमस) और आने वाले नववर्ष 2026 का स्वागत कर रहा है। 

धर्मप्रांत की ओर से काशीवासियों सहित समस्त देशवासियों को आशा, शांति और सौहार्द से भरे नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं दी गईं। कैथोलिक डिओसस ऑफ वाराणसी के बिशप एवं धर्मप्रांत यूजीन जोसेफ ने अपने हाउस में पत्रकारों से कहा कि प्रभु यीशु का जन्म यह स्मरण कराता है कि परमेश्वर हर मनुष्य के निकट है, विशेषकर उन लोगों के, जो कमजोर, वंचित और संघर्षरत हैं। 

क्रिसमस हमें यह भी सिखाता है कि इमैनुएल, ईश्वर हमारे साथ, मानव जीवन में प्रवेश कर चुका है और उसने मानव पीड़ा, आशाओं और संघर्षों को स्वयं अपनाया है। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया विस्थापन, आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक तनाव से जूझ रही है। ऐसे समय में क्रिसमस का पर्व समाज को निराशा से ऊपर उठने, घृणा को अस्वीकार करने और सभी धर्मों समुदायों के बीच करुणा, संवाद और मेलजोल को मजबूत करने का संदेश देता है। काशी, जो सदियों से आध्यात्मिक समरसता की भूमि रही है, आज फिर उसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।

24 दिसंबर को सेंट मैरी चर्च में मुख्य नाइट मास

वाराणसी की कलीसिया विश्वभर के ईसाई समुदायों के साथ मिलकर प्रार्थना, सादगी और सामाजिक उत्तरदायित्व के भाव से क्रिसमस की तैयारी कर रही है। इस अवसर पर मुख्य नाइट मास 24 दिसंबर 2025 को रात 1030 बजे सेंट मैरी कैथोलिक चर्च में आयोजित की जाएगी। इसमें देश और पवित्र काशी नगरी में शांति, न्याय और सद्भाव के लिए विशेष प्रार्थनाएँ होंगी। 25, 26 और 27 दिसंबर को भी विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जबकि क्रिसमस पर्व का समापन परंपरानुसार 2 जनवरी को होगा।

सेवा ही सच्ची आस्था की पहचान

यूजीन ने स्पष्ट किया कि उसकी आस्था केवल उपासना तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा कार्यों में प्रकट होती है। गरीबों, वंचितों और जरूरतमंदों की सेवा के मार्ग पर विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु मित्रता और सहयोग के साथ चल सकते हैं। यही क्रिसमस का सच्चा संदेश है, मानवता सबसे बड़ा धर्म। जोसेफ ने कहा कि क्रिसमस हमें करुणा, सत्य और जिम्मेदारी का मार्ग दिखाता है। काशी की विविधता उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। हम प्रार्थना करते हैं कि आने वाला वर्ष 2026 शांति, न्याय और भाईचारे का वर्ष बने, जहाँ हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन, सभी धर्मों के लोग सम्मान और प्रेम के साथ एक-दूसरे का हाथ थामकर आगे बढ़ें। धर्मप्रांत ने पत्रकारों और मीडिया कर्मियों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि आज के समय में पत्रकारिता समाज को दिशा देने वाली अपरिहार्य शक्ति है। इसके माध्यम से ही शांति, एकता और सत्य का संदेश जन-जन तक पहुँचता है।

क्रिसमस : जब सर्द रातों में जलती है इंसानियत की लौ

क्रिसमस : जब सर्द रातों में जलती है इंसानियत की लौ 

दिसंबर की सर्द हवा, कोहरे में लिपटी सुबहें और शहर, शहर जगमगाती रोशनियां, क्रिसमस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता की सामूहिक अनुभूति है। चर्चों की घंटियों से लेकर बच्चों की हंसी तक, सैंटा क्लॉज़ की कल्पना से लेकर सेवा और करुणा के वास्तविक कर्म तक, यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अंधकार चाहे जितना गहरा हो, प्रेम की एक लौ उसे चीर सकती है. क्रिसमस 2025 ऐसे दौर में आया है जब दुनिया युद्ध, तनाव, महंगाई और सामाजिक विभाजन से गुजर रही है। ऐसे समय में ईसा मसीह का जन्म-संदेश, त्याग, क्षमा और पड़ोसी से प्रेम, और अधिक प्रासंगिक हो उठता है। भारत में यह पर्व केवल चर्चों तक सीमित नहीं, बल्कि बाजारों की रौनक, सामाजिक सेवा, सांस्कृतिक सौहार्द और साझा उत्सव के रूप में सामने आता है। क्रिसमस यह पर्व आज भी उम्मीद जगाता है, समाज को जोड़ता है और याद दिलाता है कि सच्चा उत्सव वही है, जिसमें सबके लिए जगह हो 

सुरेश गांधी

दिसंबर की सर्द हवा जब शहरों और कस्बों की गलियों में ठिठुरन घोलती है, तभी कहीं दूर से चर्च की घंटियों की मधुर ध्वनि सुनाई देती है। यह केवल एक पर्व की आहट नहीं, बल्कि मानवता के जागरण का संकेत है। क्रिसमस हर वर्ष हमें याद दिलाता है कि अंधेरे समय में भी प्रेम, करुणा और आशा की रोशनी बुझती नहीं, बस उसे जलाए रखने का साहस चाहिए। साधारण गौशाला में हुआ। यह तथ्य ही क्रिसमस का सबसे बड़ा दर्शन है, ईश्वर का अवतरण वैभव में नहीं, विनम्रता में। यीशु का जीवन प्रेम, त्याग और सेवा की मिसाल है। उन्होंने कहाअपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो।आज, दो हजार वर्षों बाद भी, यह वाक्य उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था। जब दुनिया नफरत की भाषा बोलने लगे, तब क्रिसमस हमें प्रेम की व्याकरण सिखाता है। आज, जब दुनिया युद्ध, आर्थिक अनिश्चितता, सामाजिक तनाव और वैचारिक विभाजन से जूझ रही है, तब यीशु का संदेश और अधिक प्रासंगिक हो उठता है, अपने पड़ोसी से प्रेम करो, कमजोर का साथ दो, और क्षमा को जीवन का आधार बनाओ। 

भारत में क्रिसमस केवल ईसाई समाज का पर्व नहीं रहा। यह अब साझी संस्कृति और सौहार्द का उत्सव है। चर्चों की सजावट के साथ बाजारों की रौनक, प्रार्थनाओं के साथ सेवा-कार्य और सैंटा क्लॉज़ के साथ बच्चों की मुस्कान, सब मिलकर यह बताते हैं कि क्रिसमस हमें जोड़ता है, तोड़ता नहीं। क्रिसमस 2025 ऐसे समय आया है, जब ठिठुरती रातों में इंसानियत की सबसे ज्यादा जरूरत है, और यही इस पर्व का असली संदेश है। मतलब साफ है दिसंबर की ठिठुरती रातें, कोहरे में लिपटी सड़कें, चर्चों से आती घंटियों की मधुर ध्वनि, घरों और बाजारों में सजी रंगीन रोशनियां, क्रिसमस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता की साझा धड़कन है। यह वह दिन है जब सीमाएं, धर्म, भाषा और राष्ट्र पीछे छूट जाते हैं और आगे आता है प्रेम, क्षमा और करुणा का सार्वभौमिक संदेश।

भारत में क्रिसमस एक धार्मिक पर्व से कहीं आगे बढ़ चुका है। यह अब एक सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें हर धर्म, हर वर्ग और हर समुदाय की भागीदारी दिखाई देती है। काशी से कोच्चि तक, दिल्ली से दीमापुर तक, गोवा और केरल में समुद्र किनारे चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में ऐतिहासिक गिरिजाघरों में मध्यरात्रि मास, उत्तर प्रदेश, खासकर वाराणसी में चर्चों के साथ-साथ स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं में सामूहिक उत्सव, पूर्वोत्तर भारत में क्रिसमस पूरे एक सप्ताह तक चलने वाला लोकपव, चर्चों में तैयारी और सुरक्षा व्यवस्थाः श्रद्धा के साथ सतर्कता. क्रिसमस केवल धार्मिक या सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था का उत्सव भी है। क्रिसमस ट्री और सजावटी सामान, केक, प्लम केक, कुकीज, सैंटा क्लॉज़ की पोशाकें, गिफ्ट आइटम और हस्तशिल्प, छोटे दुकानदारों, बेकरी संचालकों और घरेलू उद्यमियों के लिए क्रिसमस कमाई का सुनहरा अवसर बन गया है।

सैंटा क्लॉज़ केवल एक पात्र नहीं, बल्कि बचपन की मुस्कान है। लाल पोशाक, सफेद दाढ़ी और उपहारों से भरी थैली, यह छवि बच्चों के मन में उदारता और दान का भाव भरती है। आज भी अनगिनत स्वयंसेवी संगठन सैंटा बनकर, झुग्गियों में बच्चों को उपहार, अस्पतालों में बीमार बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास कर रहे हैं। गरीबों को कंबल और गर्म कपड़े, सामुदायिक भोज, रक्तदान शिविर, नशा मुक्ति और शिक्षा अभियान, यह साबित करता है कि क्रिसमस का असली अर्थ उपहार लेना नहीं, बल्कि देना है। इस वर्ष क्रिसमस ऐसे समय में है जब, कई देशों में युद्ध जारी हैं, शरणार्थी संकट गहराया है, जलवायु परिवर्तन चिंता बढ़ा रहा है, ऐसे में चर्चों और समुदायों में विश्व शांति के लिए विशेष प्रार्थनाएं की जा रही हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि शांति कोई सपना नहीं, बल्कि साझा जिम्मेदारी है।

क्रिसमस तकनीक से भी जुड़ा है, ऑनलाइन प्रार्थनाएं, डिजिटल ग्रीटिंग कार्ड, सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं, वर्चुअल फैमिली गेदरिंग, तकनीक ने दूरी कम की है, लेकिन क्रिसमस हमें याद दिलाता है कि दिलों की दूरी मिटाना सबसे जरूरी है। आज जब समाज में वैचारिक ध्रुवीकरण, धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक तनाव देखने को मिलते हैं, तब क्रिसमस का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह पर्व सिखाता है, अलग-अलग होते हुए भी एक साथ कैसे जिया जाएं, कमजोर के साथ खड़ा कैसे हुआ जाए, क्षमा और संवाद से कैसे पुल बनाया जाए. मतलब साफ है क्रिसमस केवल 25 दिसंबर तक सीमित नहीं होना चाहिए। यदि हम साल भर करुणा रखें, जरूरतमंद को देखें, नफरत की जगह संवाद चुनें तो हर दिन क्रिसमस बन सकता है। जब चर्च की घंटियां शांत हो जाएं, रोशनियां उतर जाएं और केक खत्म हो जाए, तब भी यदि दिल में प्रेम जीवित है, तो समझिए क्रिसमस सफल है।

प्रभु यीशु का जन्म यह स्मरण कराता है कि परमेश्वर हर मनुष्य के निकट है, विशेषकर उन लोगों के, जो कमजोर, वंचित और संघर्षरत हैं। क्रिसमस हमें यह भी सिखाता है कि इमैनुएल, ईश्वर हमारे साथ, मानव जीवन में प्रवेश कर चुका है और उसने मानव पीड़ा, आशाओं और संघर्षों को स्वयं अपनाया है। उसकी आस्था केवल उपासना तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा कार्यों में प्रकट होती है। 

गरीबों, वंचितों और जरूरतमंदों की सेवा के मार्ग पर विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु मित्रता और सहयोग के साथ चल सकते हैं। यही क्रिसमस का सच्चा संदेश है, मानवता सबसे बड़ा धर्म। क्रिसमस हमें करुणा, सत्य और जिम्मेदारी का मार्ग दिखाता है। आज की दुनिया विस्थापन, आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक तनाव से जूझ रही है। ऐसे समय में क्रिसमस का पर्व समाज को निराशा से ऊपर उठने, घृणा को अस्वीकार करने और सभी धर्मों समुदायों के बीच करुणा, संवाद और मेलजोल को मजबूत करने का संदेश देता है।

सहकारिता की शक्ति को जमीन पर उतारने वाले डीएम सत्येन्द्र कुमार को योगी ने किया सम्मानित

वाराणसी से बाराबंकी तक नवाचार और समावेशी विकास की मिसाल सहकारिता की शक्ति को जमीन पर उतारने वाले डीएम सत्येन्द्र कुमार को योगी ने किया सम्...