Wednesday 27 November 2019

डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल को मिले ‘भारतरत्न’ : मनोज


डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल को मिलेभारतरत्न : मनोज
जायसवाल क्लब ने केक काटकर मनाया 138वां जन्मोत्सव, साहित्यकार, पत्रकार सहित कई विभूतियों को किया गया सम्मानित
सुरेश गांधी
वाराणसी। जायसवाल क्लब के तत्वावधान में बुधवार को जगतगंज स्थित क्लब कार्यालय में महान इतिहासकार, कानूनविद, मुद्राशास्त्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पुरातत्व के अर्न्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान जायसवाल समाज के गौरव डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल की 138वां जयंती धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर सिर्फ केक काटा गया, बल्कि साहित्यकारों, पत्रकारों सहित कई महान विभूतियों को सम्मानित करने के साथ ही जायसवाल क्लब की पुस्तिका एवं कैलेंडर का विमोचन भी किया गया। इस दौरान जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने भारत सरकार से मांग की है कि डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल को मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया जाएं।
जन्मोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु के जयकारे के बीच डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि स्वामी ओमप्रकाश जायसवाल ने स्वजातिय बंधुओं को संबोधित करते हुए आह्वान किया कि सिर्फ डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल के आदर्शो को अपनाएं बल्कि उनके जैसे अपने बच्चों को भी बनाने का प्रयास करे। यह तभी संभव हो पायेगा जब सच्चे मन से इस कार्य में लगे। जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने डॉ. काशी जायसवाल के जीवन वृतान्त पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जायसवाल भारतीय इतिहास के ज्योतिर्धर थे। उन्होंने इतिहास लेखन के माध्यम से सामाजिक जीवन में, राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। आपका जन्म 27 नवंबर, 1881 को उप्र की पावन माटी मिर्जापुर में बाबू महादेव प्रसाद जायसवाल के परिवार में हुआ। आपके पिता लाह और चिवड़े के विख्यात व्यापारी थे। आपके पिता का व्यापार बिहार राज्य में भी फैला हुआ था। डॉ. काशी प्रसाद की प्रारम्भिक शिक्षा एक निजी शिक्षक की देख-रेख में घर पर ही हुई।
फिर वे मिर्जापुर के लंदन मिशन हाईस्कूल के छात्र रहे। 1906 में डॉ. जायसवाल जी मात्र 25 वर्ष की अवस्था में वह इंग्लैण्ड रवाना हुए और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला पाया। वहां से उन्होंने डेबिस सकॉलर के रूप में चीनी भाषा का अध्ययन किया। अफसोस है कि ऐसे महान विभूति के इतिहास को दबाकर रखा गया। लेकिन अब समाज जागरुक हो गया है और उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाने के लिए सड़क से संसद तक दिलाने के लिए संघर्ष करेंगे। इसके लिए देश के हर जिले में समाज की ओर से डीएम को ज्ञापन सौपा जायेगा। इसके अलावा आज के दिन को इतिहास दिवस के रुप में घोषित करने, जिलों में उनकी मूर्ति लगाने, राजधानी से लेकर जिलों में उनके नाम पर सड़क का नामकरण करने उनके नाम पर मुद्रा के रुप में क्वाइन जारी करने, स्कूल, कालेज, विश्व विद्यालय खोलने, एनसीआरटी में उनकी जीवनी को पढ़ाने की भी मांग प्रदेश केन्द्र सरकार से करेगा। उन्होने कहा कि आज अगर देश के कोने में जायसवाल समाज का डंका बज रहा है तो यह पहला नाम डाक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ने ही दी थी।
इसके अलावा 29 फरवरी को उनके नाम पर सामूहिक विवाह का आयोजन किया जायेगा। इसमें कम से कम 51 जोड़ों की शादी होगी। इस शादी का पूरा खर्च जायसवाल क्लब वहन करेगा। इस मौके पर सम्मानित होने वालों में बिहार से आएं स्वामी ओमप्रकाश जायसवाल, कोलकाता से आएं गगन जायसवाल, कृष्णकांत जायसवाल, क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल, रमेश जायसवाल, विजय प्रकाश जायसवाल, सीनियर पत्रकार सुरेश गांधी, सीनियर फोटोग्राफर एवं काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष बीडी यादव, प्रिती जायसवाल बबिता जायसवाल को जायसवाल क्लब के स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम, पुस्तिका कैलेंडर सौंप कर सम्मानित किया गया।
इस मौके पर क्लब के प्रदेश नंदलाल जायसवाल ने कहा कि समाज के हर व्यक्ति को अपने समाज के विभुतियों उनके किए गए कार्यो को समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचाने का दायित्व होना चाहिए। जिससे उनके कार्यो को लोग जान सके। इनके विचारों को अंतरआत्मा में उतारने की जरूरत है। आज राष्ट्र अपने गौरवमयी इतिहास के बल पर विश्वगुरु कहलाने की बात करता है लेकिन उसका श्रेय काशी प्रसाद जायसवाल को जाता है। कार्यक्रम का संचालन मुरलीधर अध्यक्षता कांतिलाल जायसवाल ने की। इस मौके पर विजय जायसवाल, धरमेन्द्र जायसवाल, प्रशांत जायसवाल, शरद जायसवाल, अजय जायसवाल, छेदीलाल जायसवाल, लक्ष्मीशंकर जायसवाल, नीरज जायसवाल, प्रदीप जायसवाल, प्रमोद जायसवाल आदि ने डा काशी जायसवाल के जीवन पर प्रकाश डाला।

Saturday 16 November 2019

हस्तशिल्प मेला : भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की शानदार झलक


हस्तशिल्प मेला : भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की शानदार झलक
मेले में हर राज्यों की है भागीदारी, राजस्थानी भोजन एवं चाट मचा रहा धूम
उमड़ रही खरीदारों की भीड़, खादी वस्त्र, वूलेन आर्टिफिशियल ज्वेलर्स बने आकर्षण का केंद्र
सुरेश गांधी
वाराणसी। शहर के चौकाघाट स्थित सांस्कृतिक संकुल में गांधी शिल्प बाजार में खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है। दस दिन तक चलने वाले इस बाजार में देश के कोने-कोने से आए शिल्पियों द्वारा मेले में 375 स्टॉल लगाए हैं। इनमें कश्मीर से कन्या कुमारी तक के 18 राज्यों से हस्त शिल्पियों ने भागीदारी की हैं। इनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मणिपुर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर आदि हैं। दोपहर 12 बजे से रात 10 बजे तक गांधी शिल्प बाजार खुला गुलजार है। मेले में बेहतरीन किस्म की हजारों हाथ से बनी कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है।
फूड जोन में राजस्थान से आएंआपणों राजस्थानस्टाल पर राजस्थानी व्यंजनों का अनूठा संगम देखने को मिला। बिक्रेता महेन्द्र सिंह राठौर का कहना है कि 200 रुपये की राजस्थानी वाली भोजन को लोग खूब पसंद कर रहे है। इसके अलावा 150 रुपये की दाल बाटी चूरमा लोगों की पसंद बनी हुई है। 40 रुपये की प्याज कचौड़ी, दाल कचौडी, जोधपुरी मिर्ची बड़ा, 70 रुपये की मूंग दाल पकौड़ी, वेज चाउमिन, बीकानेरी जलेबी, मूंग दाल हलवा, आलू पनीर टिक्की, दही बड़ा, पपड़ी चाट, 80 रुपये की पनीर वाला छोला भटूरा पाव भाजी भी लोग बड़े चाव से खा रहे है।
खास बात यह है कि शिल्पमेले में फर्नीचर, घर सजावट की चीजें, कपड़े, ऑर्गेनिक बॉडी केयर प्रॉडक्ट्स, पत्थर और धातुओं की बनी कलाकृतियां, ऐक्सेसरीज और गिफ्ट आइटम्स जैसी चीजें शामिल है। मेले में केन एवं बंबू, चर्म शिल्प, पटचित्र, मिथिला की पेंटिंग, बीड वर्क, धातु शिल्प, पैचवर्क, इंब्राइडरी, जरी क्राफ्ट, ज्वेलरी, वुड कार्विग, ब्लू आर्ट पाटरी, जूट क्राफ्ट एवं हैंड प्रिंटेड टेक्सटाइल्स, मिट्टी के बर्तन जिनमें मिट्टी के कूकर, तवा, धातु शिल्प, एंब्रायडरी, चमड़े के उत्पाद, जरी-जरदोजी, जूट क्राफ्ट, सिल्क उत्पाद आदि के सामान उपलब्ध हैं। मेला में मुख्य आकर्षण खादी ग्रामोद्योग के वस्त्र, वूलेन सहारनपुर के आर्टिफिशियल ज्वेलर्स हैं, जहां लोगों की अधिक भीड़ उमड़ रही है। मेला में मुख्य रूप से दिल्ली की ब्लॉक प्रिंट कुर्ती, बिना पानी के कूलर, चंदेरी बनारसी साड़ी, एक्यूप्रेशर वास्तु शास्त्र से संबंधित सामान, नागपुरी का कॉटन बैग माइक्रो चूल्हा समेत अन्य दुकानें हैं, जहां लोग सपरिवार खरीदारी कर रहे हैं। ये सभी सामान भारत की हस्तशिल्प और हस्तकलाओं की शानदार परंपरा की झलक दिखाने वाले है। 
मेले में लखनवी चिकन टॉप, कुरते काफी पसंद रहे है। ग्राहकों को मेले में कश्मीरी शॉल, साहरनपुर फर्नीचर, भदोही कारपेट, मेरठ का खादी शर्ट, बनारसी साड़ी, राजस्थानी मोजड़ी, बॉम्बे ज्वेलरी के अलावा अचार, बेडशीट, कलकत्ता साड़ी, गुजरात बेडशीट, कुशन कवर , दिल्ली टाप, ट्रेन्डी बैग, कर्नाटका अगरबत्ती, हर्बल तेल, गैस सिगड़ी, रोटी मेकर, इन्डक्शन आदि सामान लोगों के मन को भा रहे है। शिल्प मेले में शिल्पीगण चर्मशिल्प, मधुबनी पेन्टिंग, बीड वर्क, धातुशिल्प, पैचवर्क, इम्ब्रायडरी, जरी क्राफ्ट, ज्वैलरी, वुड कार्विग, ब्लू आर्ट पाटरी, जूट क्राफ्ट, हैण्ड प्रिन्टेड टेक्सटाइल्स आदि का प्रदर्शन किया।
बता दें, काशी की शिल्प कला दुनिया में प्रसिद्ध है। गांधी शिल्प बाजार का देश के अन्य राज्यों के शिल्पियों को भी इंतजार रहता है और बनारस सहित आसपास के जिलों के लोग भी यहां खरीदारी करना पसंद करते हैं। गांधी शिल्प बाजार में पिछले साल दस करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार हुआ था। इस साल इससे अधिक कारोबार होने की उम्मीद है। आयोजकों के मुताबिक भारतीय हस्तकला और हस्तशिल्प उद्योग में एक नई जान फूंकना। जो चाहता है आनेवाली पीढ़ियों के लिए पारंपरिक कलाओं की कभी खत्म होने वाली विरासत तैयार करना। यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को और मजबूत करने की बहुत बड़ी पहल का ही एक हिस्सा है। भारत की हस्तकलाओं की परंपरा जितनी पुरानी है उतनी ही विविधताओं से भरी हुई है। शिल्प बाजार में देश  के सभी प्रान्तों के उत्कृष्ट शिल्पकारों, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय शिल्पकारों को आमंत्रित किया जाता है। पिछले साल 22 प्रान्तों के उत्कृष्ट शिल्पकारों ने भाग लिया था। गंगा महोत्सव के अन्तर्गत गांधी शिल्प बाजार का आयोजन भारतवर्ष की पारम्परिक हस्तशिल्प को वाराणसी एवं आसपास के नागरिकों, क्रेताओं, विक्रेताओं, निर्माताओं से सीधे सम्पर्क करने का एक अवसर प्रदान करना एवं विदेशी पर्यटकों, भ्रमणकारियों एवं आयातकों को शिल्पियों से मिलाना एवं उनके उत्पाद का सीधे बिक्री कराना एवं भविष्य के लिए निर्यात आदेश मिलने के लिए अवसर प्रदान करना तथा भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देना है। उनका कहना है कि अनेकता में एकता का प्रतीक है गांधी शिल्प बाजार। इस बाजार में देश के कोने-कोने की संस्कृति एवं विरासत तो देखने का मिलती ही है। वहां कि शिल्पकारों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प सामग्री भी सहजता के साथ गांधी शिल्प बाजार में स्थानीय जनमानस को सुगमता से उपलब्ध हो जाता हैं।

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