त्रिपुष्कर योग में तुलसी-विष्णु का विवाह, आज घर-आंगन में गूंजेगा मंगलगीत
जब तुलसी-विष्णु
का
संगम
होता
है,
तब
सृष्टि
मुस्कुराती
है
सुरेश गांधी
वाराणसी. कार्तिक मास का पावन
महीना भक्ति, साधना और शुभ कार्यों
का द्योतक माना गया है।
इसी मास की शुक्ल
पक्ष द्वादशी को तुलसी विवाह
का पावन पर्व मनाया
जाता है। इस वर्ष
यह पर्व त्रिपुष्कर योग
और सर्वार्थसिद्धि योग जैसे दुर्लभ
संयोग में मनाया जा
रहा है। शास्त्रों के
अनुसार, ऐसा संयोग तब
बनता है जब प्रत्येक
कर्म तीन गुना फल
देता है। इसलिए इस
बार तुलसी विवाह का यह अवसर
भक्ति, सौभाग्य और समृद्धि का
त्रिगुण संगम लेकर आया
है।
इस वर्ष के
शुभ योग में जब
तुलसी-विष्णु विवाह होगा, तब हर घर
में दीपों की श्रृंखला जगमगाएगी।
कन्याओं को सौभाग्य, विवाहित
महिलाओं को अखंड सुहाग
और भक्तों को विष्णु का
आशीर्वाद प्राप्त होगा। कहा भी गया
है, “जहां तुलसी विराजे,
वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।” तुलसी
विवाह का यह पर्व
हमें स्मरण कराता है कि आस्था
केवल पूजा नहीं, जीवन
का संस्कार है। जब भक्त
तुलसी मंडप में दीप
जलात ा है, तो
वह केवल देवता को
नहीं, अपने भीतर के
प्रकाश को भी प्रज्वलित
करता है।
इस बार त्रिपुष्कर
योग में तुलसी विवाह
का आयोजन केवल एक धार्मिक
पर्व नहीं, बल्कि दिव्यता के पुनर्जन्म का
उत्सव होगा जहां हर
दीपक कहेगा, “मंगल हो सबके
जीवन में।” देवउठनी एकादशी के बाद जब
देवशक्ति पुनः जाग्रत होती
है, तब कार्तिक शुक्ल
द्वादशी का दिन तुलसी
विवाह के रूप में
भक्ति और सौभाग्य का
उत्सव लेकर आता है।
इस दिन भगवान विष्णु
शालिग्राम स्वरूप में और देवी
तुलसी (वृंदा) वधू के रूप
में विवाह सूत्र में बंधते हैं।
यह विवाह केवल धार्मिक आयोजन
नहीं, बल्कि धरती और आकाश
के प्रेम, समर्पण और धर्म का
अद्भुत संगम है।
जब भक्ति बने विवाह संस्कार
तुलसी विवाह कोई साधारण अनुष्ठान
नहीं, बल्कि सृष्टि की दिव्यता का
उत्सव है। यह वह
क्षण है जब देवी
तुलसी, जो भगवान विष्णु
की परम भक्त वृंदा
का अवतार मानी गईं, अपने
आराध्य शालिग्राम (भगवान विष्णु के स्वरूप) से
वैवाहिक बंधन में बंधती
हैं। घर-आंगन में
तुलसी का मंडप सजता
है, दीप जलते हैं,
और महिलाएं मंगलगीत गाती हैं
“शालिग्राम तुलसी के ब्याहे, मंगलमय सब होय।”
यह विवाह केवल
देवी-देवताओं का नहीं, बल्कि
भक्त और भगवान के
अटूट संबंध का प्रतीक बन
जाता है। इस दिन
हर घर में तुलसी
के पौधे को दुल्हन
की तरह सजाया जाता
है, चूड़ा, चुनरी, सिंदूर और श्रृंगार से
सजी तुलसी माता का रूप
अत्यंत मनमोहक होता है।
शुभ मुहूर्त
पंचांगों के अनुसार, इस
वर्ष तुलसी विवाह 2 नवंबर (रविवार) को मनाया जाएगा।
द्वादशी तिथि प्रारंभः 2 नवंबर,
प्रातः 7ः45 बजे, द्वादशी
तिथि समाप्त : 3 नवंबर, सुबह 5ः10 बजे. त्रिपुष्कर
योग : प्रातः 6ः10 से रात्रि
8ः30 बजे तक. सर्वार्थसिद्धि
योग : दिनभर प्रभावी. पंडितों का मानना है
कि इस योग में
किया गया विवाह, पूजन
या दान तिगुना फल
देता है। इसलिए तुलसी
विवाह का यह संयोग
अत्यंत शुभ माना जा
रहा है।
तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त
ब्रह्म
मुहूर्त 04ः50
- 05ः42
प्रातः
सन्ध्या 05ः16
- 06ः34
अभिजित मुहूर्त 11ः42
- 12ः26
विजय मुहूर्त 01ः55 - 02ः39
गोधूलि मुहूर्त 05ः35
- 06ः01
त्रिपुष्कर योग 07ः31
- 05ः03
सर्वार्थ सिद्धि योग 05ः03 - 06ः34 (3 नवम्बर)
पूजा विधि और विधान
तुलसी विवाह की तैयारी एक
दिन पूर्व से ही आरंभ
हो जाती है। तुलसी
के पौधे को स्नान
कराकर नए वस्त्र पहनाए
जाते हैं, मंडप को
आम, केले या फूलों
से सजाया जाता है। भगवान
शालिग्राम या विष्णु की
प्रतिमा को तुलसी के
समीप रखकर वर-वधू
के समान पूजन किया
जाता है। विवाह के
समय मंगलगीत गाते हुए “ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र के
साथ तुलसी और शालिग्राम का
कन्यादान किया जाता है।
तुलसी जी के चरणों
में अक्षत, पुष्प, हल्दी, सिंदूर अर्पित करें, यही उनके प्रति
हमारा सच्चा प्रणाम है। पूजन के
बाद प्रसाद में मेवा, मिष्ठान,
पंचामृत और तुलसी पत्र
बांटे जाते हैं।
पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है
कि वृंदा नामक परम सती
स्त्री, जो जलंधर असुर
की पत्नी थीं, भगवान विष्णु
की अनन्य भक्त थीं। जब
जलंधर ने अपनी शक्ति
से देवताओं को पराजित किया,
तब उसके विनाश के
लिए विष्णु ने छल से
वृंदा का सतीत्व भंग
किया। क्रोधित होकर वृंदा ने
विष्णु को शाप दिया,
“तुम भी शिला बनोगे।”
यही शिला शालिग्राम के
रूप में प्रतिष्ठित हुई।
वृंदा ने अपने प्राण
त्याग दिए और उनके
शरीर से तुलसी पौधे
का जन्म हुआ। तब
विष्णु ने वचन दिया
कि “हे वृंदा! मैं
सदा तुम्हारे संग विवाह करूंगा।”
तब से प्रत्येक वर्ष
कार्तिक द्वादशी को तुलसी-विष्णु
विवाह मनाया जाता है।
विवाह का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भारतीय संस्कृति में तुलसी विवाह
न केवल धार्मिक अनुष्ठान
है, बल्कि यह विवाह संस्कार
के सामाजिक आरंभ का प्रतीक
भी है। इस दिन
से ही विवाहों का
शुभ मुहूर्त प्रारंभ माना जाता है।
गांव-गांव में स्त्रियां
गीत गाती हैं, “तुलसी
मइया ब्याह करे विष्णु भगवान,
मंगल हो सबके जीवन
में, बरसे शुभ वरदान।”
कहीं मंडपों में भक्ति संगीत
की स्वर लहरियां उठती
हैं, तो कहीं तुलसी
चौरा के पास दीपों
की कतारें जगमगाती हैं। वाराणसी, मथुरा,
अयोध्या और वृंदावन में
विशेष पूजा-अर्चना होती
है।
भक्ति और पर्यावरण का संगम
तुलसी केवल धार्मिक प्रतीक
नहीं, बल्कि पर्यावरण की आराध्या भी
हैं। घर में तुलसी
का होना वायु को
शुद्ध रखता है और
मन में शांति भरता
है। तुलसी विवाह इस तथ्य को
भी दोहराता है कि धर्म
और प्रकृति एक-दूसरे के
पूरक हैं। आज जब
संसार प्रदूषण और असंतुलन से
जूझ रहा है, तुलसी
विवाह हमें सिखाता है
कि हर आस्था का
केंद्र प्रकृति ही है।
जब तुलसी-विष्णु का संगम होता है, तब सृष्टि मुस्कुराती है
तुलसी विवाह हमें यह सिखाता
है कि भक्ति और
प्रेम का मिलन ही
सृष्टि की सबसे बड़ी
साधना है। यह पर्व
केवल पूजा नहीं कृ
यह समर्पण, क्षमा और पुनर्जन्म का
प्रतीक है। कार्तिक मास के इस
शुभ अवसर पर हर
भक्त यही प्रार्थना करता
है “हे तुलसी माता,
हे शालिग्राम भगवान, हमारे जीवन में भी
ऐसा ही स्नेह, सौभाग्य
और धर्म का संगम
बना रहे।”
तुलसी विवाह से जुड़े 5 रोचक तथ्य
तुलसी विवाह के साथ ही
विवाह-मुहूर्तों की शुरुआत मानी
जाती है।
तुलसी विवाह में सात परिक्रमा
विष्णु और तुलसी के
सप्तपदी फेरे का प्रतीक
है।
तुलसी विवाह करने वाला व्यक्ति
अपने पूर्वजों के 21 पीढ़ियों तक का उद्धार
करता है।
तुलसी विवाह के दिन घर
में तुलसी पर दीपदान करने
से धन और सौभाग्य
की वृद्धि होती है।
जिन कन्याओं के
विवाह में विलंब होता
है, वे तुलसी विवाह
में भाग लेकर शीघ्र
विवाह का आशीर्वाद प्राप्त
करती हैं।