Wednesday, 29 October 2025

जागेंगे सृष्टि के पालनहार, गूंजेगी शहनाई, दुर्लभ योग में खुलेंगे मंगल द्वार

जागेंगे सृष्टि के पालनहार, गूंजेगी शहनाई, दुर्लभ योग में खुलेंगे मंगल द्वार

कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वह दिव्य क्षण है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। यह दिन केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक जीवन में भी मांगलिक कार्यों के पुनरारंभ का संकेत माना जाता है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर, बुधवार को है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन, तुलसी विवाह और व्रत-उपवास का विशेष महत्व है. पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 0620 से 0845 बजे तक रहेगा। साथ ही विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का प्रारंभ होंगे। ज्योतिषीय दृष्टि से इस वर्ष बृहस्पति स्वगृही, शुक्र उच्च और मंगल शुभ भाव में रहेंगे, जो विवाह के लिए अत्यंत शुभ माने गए हैं। नवंबर से दिसंबर के मध्य तक 24 विवाह योग्य तिथियां बन रही हैं, जिनमें गजकेसरी योग, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, सौभाग्य योग, अमृतसिद्धि योग जैसे मंगलकारी संयोग मिलेंगे. मतलब साफ है 115 दिनों की देव-निद्रा के बाद जब सृष्टि का पालनहार जागता है, तो धरती पर मंगल की ध्वनि गूंज उठती है। दीपक की लौ में आस्था झिलमिलाती है, तुलसी के मंडप में विवाह गीत गूंजते हैं और हर मन में नवप्रेरणा का संचार होता है। वास्तव में देवउठनी एकादशी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नवजीवन, नवआशा और नवसंस्कार का उत्सव है। जब देव जागते हैं, तब सृष्टि ही नहीं, हृदय भी जग उठता है, और तभी सचमुचजग में शहनाई बज उठती है...” 

सुरेश गांधी

कार्तिक शुक्ल एकादशी का दिन देवजागरण का प्रतीक है। सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु चार महीने की योगनिद्रा पूर्ण कर जब जागते हैं, तो धरती पर फिर से मांगलिकता का संचार होता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू हुआ चातुर्मास, व्रत, उपवास और संयम का काल, जब समाप्त होता है, तब देवताओं की निद्रा भंग के साथ शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। इस वर्ष यह पावन क्षण 1 नवंबर, शनिवार को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि सुबह 9 बजकर 11 मिनट से आरंभ होकर 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को ही मनाई जाएगी। इस दिन सायंकाल 7 बजे से पूजन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा, जब देवता शयनावस्था से जाग्रत होंगे। पद्मपुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि में प्राणों की नवचेतना लौट आती है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर वे शेषशायी होकर क्षीरसागर में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठते हैं। इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश और यज्ञोपवीत जैसे सभी मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। देवउठनी के साथ ही ये शुभ संस्कार पुनः आरंभ होते हैं। इसीलिए इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी कहा गया है।

देवउठनी एकादशी के दिन शालिग्राम जी और तुलसी माता का विवाह कराया जाता है। इस पवित्र विवाह में भक्त मंडप बनाकर गन्ना, चना, बेर, आँवला, सिंघाड़ा आदि मौसमी वस्तुएं अर्पित करते हैं। तुलसी विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ी आस्था का उत्सव है, जो दर्शाता है कि धर्म और जीवन के प्रत्येक चरण में स्त्री-पुरुष के सम्मिलन का भाव कितना पवित्र है। इस काल में गन्ने की फसल पक चुकी होती है। गन्ने को समृद्धि का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। विवाह मण्डपों में गन्ने के स्तंभ लगाए जाते हैं, जो उपज, स्थायित्व और जीवन के पुनर्जागरण का प्रतीक हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन किया गया व्रत और दान करोड़ों गुना फलदायी होता है। श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं, “देवउठनी एकादशी की रात्रि में जो जागरण कर पूजा करता है, उसके दस पीढ़ियों तक पितर विष्णुलोक को प्राप्त करते हैं।व्रती के सभी पाप नष्ट होकर उसे मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है। मतलब साफ है देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, यह आध्यात्मिक पुनर्जागरण का पर्व है। जब श्रीहरि के नेत्र खुलते हैं, तो यह हमें भी अपने भीतर सोए हुए सत्कर्म, श्रद्धा और सृजनशीलता को जगाने का आह्वान करता है। यह दिन बताता है कि जब भगवान जागते हैं, तब संपूर्ण सृष्टि में नवजीवन और मंगल ध्वनि गूंज उठती है। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय....

ग्रह-नक्षत्रों का शुभ संयोग

इस बार देवउठनी एकादशी पर शतभिषा नक्षत्र और ध्रुव योग बन रहा है। यह संयोग अत्यंत मंगलकारी माना गया है। विष्णु पूजा से संबंधित व्रत और जागरण का विशेष पुण्य प्राप्त होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन जो व्यक्तिऊँ नमो नारायणाय”, “ऊँ विष्णवे नमःऔरऊँ घृणी सूर्याय आदित्याय नमःमंत्रों का जप करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

देवोत्थानं हि कार्तिक्यां कुर्यात् भुक्तिं मोक्षदम्।

यस्मिन जागरणं कुर्यात् तस्मिन् नास्त्येव दुर्लभम्।।

अर्थात, कार्तिक शुक्ल एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है। इस दिन विष्णुजी की पूजा एवं जागरण करने वाले के लिए कोई वरदान दुर्लभ नहीं रहता। ज्योतिष के अनुसार विष्णु शयन से लेकर देवउठनी तक 115 दिन का चातुर्मास होता है। यह अवधि ऋतु परिवर्तन, शारीरिक संयम और आत्मसंयम का काल मानी गई है। इस अवधि के बाद जब भगवान विष्णु जगते हैं, तो सृष्टि में पुनः गति आती है। इसीलिए विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण, अन्नप्राशन जैसे सभी मांगलिक कार्य इसी तिथि से पुनः प्रारंभ होते हैं। देवउठनी की रात मंदिरों में दीपमालाएं सजाई जाती हैं। शंख-घंटों की ध्वनि, मंत्रोच्चार और तुलसी-विवाह के मंगल गीतों से आकाश गूंज उठता है। हर घर में मानो शहनाई बज उठती है, क्योंकि इस दिन से जीवन के नए अध्याय की शुरुआत का मार्ग खुलता है। देवउठनी एकादशी के साथ ही विवाह का शुभ काल आरंभ हो जाता है। इस वर्ष नवंबर से दिसंबर 2025 तक कुल 24 शुभ विवाह मुहूर्त बन रहे हैं।

नवंबर 2025 के विवाह मुहूर्त

6, 7, 8, 10, 12, 15, 17, 18, 19, 22, 23, 25, 27 और 30 नवंबर, ये तिथियाँ विवाह योग्य हैं। इन दिनों गजकेसरी योग, सौभाग्य योग, अमृत सिद्धि योग और रवि-शुक्र के शुभ संयोग बन रहे हैं।

दिसंबर 2025 के विवाह मुहूर्त

1, 2, 4, 5, 7, 8, 9, 11, 12 और 14 दिसंबर तक विवाह के योग बनेंगे। इसके बाद 15 दिसंबर से खरमास आरंभ हो जाएगा, जिसके कारण सभी मांगलिक कार्य स्थगित रहेंगे। इस प्रकार देवउठनी से लेकर 14 दिसंबर तक का समय सर्वश्रेष्ठ वैवाहिक काल है।

तुलसी-विवाह की कथा और महिमा

ब्राह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, तुलसी देवी असुर शंखचूड़ की पत्नी थीं। जब शंखचूड़ का वध भगवान विष्णु ने छलपूर्वक किया, तो तुलसी ने क्रोधित होकर विष्णु को शाप दिया, “तुम पाषाण बनो!” विष्णु ने कहातुम पृथ्वी पर तुलसी बनोगी, और तुम्हारे बिना मेरी पूजा अधूरी रहेगी।तभी से शालिग्राम और तुलसी का विवाह देवउठनी एकादशी के दिन होता है। यह विवाह पुरुष-स्त्री के दिव्य संयोग और भक्ति-प्रकृति के मिलन का प्रतीक है। तुलसी-विवाह का लोकप्रसिद्ध गीत आज भी गूंजता है,

तुलसी के संग विष्णु बियाहे,

मंगल घरी आज आयी रे।

पौराणिक कथानुसार, एक राजा ने एकादशी व्रत का पालन दृढ़ता से किया। विष्णुजी ने उसकी परीक्षा लेने हेतु सुंदरी का रूप धारण किया। जब राजा धर्म और व्रत के प्रति अडिग रहा, तब श्रीहरि ने प्रकट होकर कहा कृतुम परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, वर मांगो।राजा ने कहामुझे मोक्ष दो।तब विष्णु बोले, “तुम्हारे व्रत पालन से तुम्हारी दस पीढ़ियां भी विष्णुलोक जाएंगी।अर्थात व्रत और संयम जीवन में आत्मबल और मुक्ति दोनों का साधन हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि

देवउठनी एकादशी केवल धार्मिक नहीं, बल्कि प्रकृति-वैज्ञानिक दृष्टि से भी सार्थक है। वैदिक साहित्य में विष्णु को सूर्य का पर्याय माना गया है, “हरिः सूर्यरूपः।वर्षा ऋतु में सूर्य की किरणें बादलों में छिप जाती हैं, जिससे जीवन में जड़ता आती है। चार महीने बाद जब सूर्य (विष्णु) पुनः प्रखर होते हैं, तो यह देव जागरण का संकेत है. अर्थात् जीवन में ऊर्जा का पुनरुत्थान। यही कारण है कि यह पर्व शरीर, प्रकृति और आत्मा तीनों के संतुलन का प्रतीक है।

पूजा-विधान और मंत्र

देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। मंदिर या घर में गन्नों से मंडप बनाकर विष्णु-लक्ष्मी का पूजन करें। तुलसी-दल, फल, पुष्प, सिंघाड़ा, बेर, आँवला, नारियल आदि अर्पित करें। आरती करते समय यह प्रार्थना करें,

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना।।

फिर इस मंत्र से पुष्प अर्पित करें, “यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।इसके पश्चात् तुलसी-विवाह के मंगल गीत गाएं और प्रसाद वितरित करें। देवउठनी एकादशी केवल देवता के जागने का पर्व नहीं, बल्कि मानव चेतना के जागरण का प्रतीक है। जैसे विष्णु निद्रा से उठकर सृष्टि में गति भरते हैं, वैसे ही यह दिन व्यक्ति को अपने भीतर सोई भक्ति, श्रद्धा और कर्मशीलता को जगाने का सन्देश देता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वह क्षण होता है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) से जागते हैं। यह जागरण केवल धार्मिक अनुष्ठानों के पुनरारंभ का संकेत नहीं होता, बल्कि यह संपूर्ण मांगलिक कार्यों कृ विवाह, गृहप्रवेश, उपनयन, नामकरण और यज्ञादि कृ की शुभ शुरुआत का प्रतीक भी होता है।

विवाह संस्कार की पवित्रता और भारतीय परंपरा

भारतीय संस्कृति में विवाह केवल दो व्यक्तियों का सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन है।धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष”, इन चार पुरुषार्थों में से गृहस्थ आश्रम को जीवन की धुरी माना गया है। इसी से सृष्टि की निरंतरता बनी रहती है। मनुस्मृति, गारुड़ पुराण, विवाह सूक्त और वेदों में विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व बताया गया है। कहा गया है कि ग्रहों का सामंजस्य, नक्षत्रों की शुभता और लग्न का संतुलन ही जीवनभर की सामंजस्यता और सुख-संपन्नता का आधार बनता है। इस दृष्टि से नवंबर और दिसंबर 2025 विशेष हैं, क्योंकि इनमें लगातार शुभ ग्रह-योग बन रहे हैं, गुरु वक्री नहीं होंगे, बृहस्पति स्वगृही रहेंगे, शुक्र उच्च के और मंगल शुभ भाव में रहेंगे। यही कारण है कि इन दो महीनों में विवाह के लिए अनेक शुभ मुहूर्त बन रहे हैं।

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