अदानी से बिजली खरीद प्रस्ताव पर नियामक आयोग की रोक से बिजली कर्मियों में बढ़ा आक्रोश
निजीकरण का
फैसला
वापस
लें
मुख्यमंत्री,
नहीं
तो
अगले
साल
फिर
चरमराएगी
बिजली
व्यवस्था
: संघर्ष समिति
ग्रांट थॉर्टन
की
भूमिका
पर
सवाल,
बिजली
कर्मियों
ने
निजीकरण
आरएफपी
रद्द
करने
की
रखी
मांग
बिजली निजीकरण
के
खिलाफ
बनारस
में
358वें
दिन
भी
विरोध
जारी
सुरेश गांधी
वाराणसी. उत्तर प्रदेश विद्युत विभाग में निजीकरण को
लेकर उठे विवाद थमने
का नाम नहीं ले
रहे। संघर्ष समिति के आह्वान पर
बनारस के बिजली कर्मी
लगातार 358वें दिन भी
सड़क पर डटे रहे।
विरोध प्रदर्शन में कर्मियों ने
चेतावनी देते हुए कहा
कि यदि निजीकरण का
निर्णय वापस नहीं लिया
गया, तो प्रदेश की
जनता अगले वर्ष भीषण
गर्मी में वही अव्यवस्था
झेलेगी, जिसने इस साल बिजली
व्यवस्था को पूरी तरह
बेपटरी कर दिया था।
कर्मियों का आरोप था
कि “इस बार संविदा
कर्मियों की कमी से
जनता को घोर कष्ट
झेलना पड़ा, और यदि अगली
बार छंटनी हुई तो स्थिति
और खराब होगी। निजीकरण
की तैयारी में जमीनी हकीकत
और प्रदेश की भूगोलिक परिस्थितियों
को नजरअंदाज किया जा रहा
है।” प्रदर्शनकारियों के लिए आज
राहत की बात यह
रही कि उत्तर प्रदेश
राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली
खरीद की लागत में
पाई गई भारी गड़बड़ियों
पर नाराजगी जताते हुए अदानी पावर
से 1500 मेगावाट बिजली खरीद के प्रस्ताव
पर रोक लगा दी
है। संघर्ष समिति ने इसे “फर्जीवाड़े
के शुरुआती खुलासे” के रूप में
पेश किया।
कर्मियों ने कहा “जब
अदानी पावर का कंसल्टेंट
भी ग्रांट थॉर्टन था और निजीकरण
आरएफपी दस्तावेज भी उसी ने
तैयार किए, तो निष्पक्षता
कहां बची? जब बिजली
खरीद करार में भारी
विसंगतियां सामने आ चुकी हैं,
तब निजीकरण की पूरी प्रक्रिया
पर पुनर्विचार आवश्यक है।” संघर्ष समिति
ने मांग की कि
ग्रांट थॉर्टन द्वारा तैयार निजीकरण के पूरे आरएफपी
डॉक्यूमेंट को तत्काल रद्द
किया जाए।
एफजीडीएस संयंत्र पर नया एंगल—लागत बढ़ी पर लगाने की जरूरत नहीं
कर्मियों ने आयोग के
आदेश का हवाला देते
हुए कहा कि केंद्र
सरकार के ताज़ा निर्देशों
के अनुसार भारत के ताप
बिजली घरों में एफजीडीएस
संयंत्र अनिवार्य नहीं है। बावजूद
इसके अदानी पावर के साथ
बिजली खरीद समझौते में
इसकी लागत शामिल कर
ली गई। इस वजह से 55–75 पैसे
प्रति यूनिट अतिरिक्त लागत उपभोक्ताओं से
वसूली जानी तय थी।
उद्योग विशेषज्ञों
के मुताबिक एफजीडीएस पर लगभग 1.2 करोड़
प्रति मेगावाट का खर्च आता
है। संघर्ष समिति ने सवाल उठाया
कि “जब संयंत्र लगना
ही नहीं है तो
फिर यह लागत करार
में क्यों शामिल की गई? इससे
उपभोक्ताओं का सीधा नुकसान
होता।” नियामक आयोग ने पावर
कॉर्पोरेशन को निर्देशित किया
कि अदानी पावर को पक्षकार
बनाते हुए 18 दिसंबर तक नई कीमतों
का प्रस्ताव दाखिल करे, और यह
स्पष्ट करे कि संयंत्र
न लगने पर लागत
कम क्यों नहीं की गई।
फिक्स्ड और वेरिएबल कॉस्ट पर भी आयोग की नाराजगी
कर्मियों ने बताया कि
आयोग ने बिजली खरीद
दरों में फिक्स्ड और
वेरिएबल चार्जेस की गलत गणना
पर भी सवाल उठाए
हैं। एफजीडीएस संयंत्र लगने से फिक्स्ड
कॉस्ट बढ़ती, वेरिएबल कॉस्ट बढ़ती, ऑक्ज़ीलियरी कंजम्प्शन लगभग 1.2% बढ़ जाता है।
इससे बिजली महंगी होती है, लेकिन
संयंत्र न लगने पर
उत्पादन लागत 55–75 पैसे प्रति यूनिट
कम होनी चाहिए थी,
जिसे कॉर्पोरेशन ने गणना में
शामिल ही नहीं किया।
कोयले पर जीएसटी में बदलाव, फिर भी दर कम क्यों नहीं?
नियामक आयोग ने कोयले
पर जीएसटी की संशोधित दरों
के बाद बिजली की
लागत में कमी के
सवाल पर भी रिपोर्ट
मांगी है। संघर्ष समिति
का आरोप है कि
पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन, अदानी पावर और ग्रांट
थॉर्टन—तीनों की मिलीभगत से
उपभोक्ताओं पर महंगी बिजली
थोपने की योजना बनाई
गई। इस फर्जीवाड़े की
पूरी जिम्मेदारी इन्हीं पर आती है।
मुख्यमंत्री से निजीकरण निरस्त करने की अपील
प्रदर्शनकारी बिजलीकर्मी बार-बार दोहरा
रहे हैं कि निजीकरण
की प्रक्रिया का जमीनी आधार
नहीं, केवल सलाहकार कंपनियों
और भारी कमीशन के
सहारे विभाग को “ठेका मॉडल”
पर चलाने का प्रयास किया
जा रहा है। यदि यही
क्रम जारी रहा तो
अगले वर्ष भीषण गर्मी
में बिजली व्यवस्था फिर से धराशायी
होगी। संघर्ष समिति ने साफ कहा
मुख्यमंत्री जी स्वयं बिजली
मंत्रालय को अपने अधीन
लेकर निजीकरण का निर्णय रद्द
करें। इससे जनता और
कर्मियों दोनों की सुरक्षा होगी।
सभा में रखी गईं प्रमुख बातें
सभा को संबोधित
करने वाले प्रमुख वक्ता
ई. मायाशंकर तिवारी, आर.के. वाही,
राजेन्द्र सिंह, ओ.पी. सिंह,
ई. एस.के. सिंह,
अंकुर पांडेय, राजेश सिंह, पंकज यादव, मनोज
यादव, योगेंद्र कुमार, सुशांत कुमार, अरुण कुमार, कमलेश
यादव, सुनील कुमार ने एक स्वर
में कहा कि निजीकरण
से न तो तकनीकी
सुधार होगा और न
ही उपभोक्ता राहत पाएंगे। यूपी
की भौगोलिक और जनसंख्या संरचना
निजीकरण मॉडल के अनुकूल
नहीं है। बिजली कर्मियों
की छंटनी जनता के लिए
बड़ा खतरा बन सकती
है।
पूरे विवाद का
सार यही है कि
यूपी की बिजली व्यवस्था
आज जिस मोड़ पर
खड़ी है, उसमें सुधार
के लिए वैज्ञानिक और
पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत है।
यदि लागत गणना में
गड़बड़ी और सलाहकार कंपनियों
की भूमिका पर सवाल उठ
रहे हैं, तो सरकार
को निष्पक्ष जांच और सुधार
दोनों पर गंभीरता से
कदम उठाने होंगे। साथ ही यह
भी स्पष्ट है कि निजीकरण
का फैसला यदि जनभावनाओं और
जमीनी जरूरतों के उलट हुआ,
तो आने वाले वर्षों
में बिजली संकट गहरा सकता
है।


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