राम के आदर्शों व संघर्षों को अपनाने से जीवन बनेगा स्वर्ग...!
राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। जी हां, भगवान श्रीराम ने जिस चरित्र का पालन किया, जिस मर्यादा का पालन किया, उनके चरित्र का, उनके द्वारा बनाई हुई मर्यादा का पालन मनुष्य को निरंतर करते रहना चाहिए। भगवान राम का जीवन न सिर्फ अनुकरणीय है, बल्कि उनके पूरे जीवन के आदर्शों व संघर्षों पर चलने या यूं कहे अपनाने वाला प्राणी का जीवन स्वर्ग बन सकता है। या यूं कहे मानव स्वरूप धारण करने से कोई मानव नहीं बन जाता। हम मानव जरूर हैं, लेकिन हममें मानवता नहीं है। सही अर्थों में मानव को मानव बनने के लिए प्रभु श्रीराम जैसा चरित्र अपनाना होगा, क्योंकि रावण को केवल मानव के हाथों ही मरना था, इसलिए प्रभु श्री राम ने मानव स्वरूप धारण कर रावण का वध किया। रामायण में आदर्श आचार संहिता है जो जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन करती हैं। माता-पिता के साथ बच्चे का, भाई के साथ भाई, पत्नी के साथ पति, शिष्य के साथ शिक्षक, मित्र के साथ मित्र, जनता के साथ शासक और प्रकृति के साथ मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए, इन सभी आयामों पर रामायण में उपलब्ध आचार संहिता, हमारा मार्गदर्शन करता है. मतलब साफ है देश की वर्तमान स्थिति में चाहे कोई किसी भी पूजा पद्धति का अनुसरण करता हो लेकिन भारत माता सभी के लिए समान रूप से पूज्यनीय हैं। सर्वविदित है कि उनके समान पुत्र, शिष्य, भाई, पति, सखा, मित्र, एवं राजा आज तक न कोई हुआ है एवं न ही हो सकता है. क्योंकि आदर्श के जो कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किये हैं. उन तक लेशमात्र भी पहुंचना किसी मनुष्य के जीवन को धन्य कर सकता है
सुरेश गांधी
फिरहाल, भारत की संस्कृति से लेकर जीवनगाथा तक श्रीराम ही हमारी परंपरा के आधार है। भारत के हरेक नर-नारी को अपने चरित्र के नायक-नायिका के रूप में देखने के लिए राम और सीता पर्याप्त हैं। अर्थात श्रीराम ही सनातन के साक्षात विग्रह हैं। राम हरेक मानव को हर दशा में प्रभावित करते हैं। राम का यह प्रभाव किसी के कथन पर नहीं बल्कि उनके जीवन के सत्य पर आधारित है। श्रीराम के चरित की यह विशेषता है कि वे एक ही बात बोलते हैं। एक ही बाण से शत्रुओं का नाश करते हैं और एकपत्नी व्रत धारण करते हैं। कैकेयी जब उन्हें कहती है कि राम, तुम निश्चित ही वन चले जाओगे ना? तो वे माता कैकेयी से कहते हैं, राम दो बात नहीं बोलता माता। मैंने वन में जाने का जो वचन दिया, उसे मैं अवश्य ही पूरा करूंगा।
कैकेई भलीभांति इस बात से परिचित थीं कि यदि राम को भगवान राम बनाना है तो ये तभी संभव है जब श्री राम समाज में बैठे अंतिम व्यक्ति के पास जाकर उसके दुखों का हरण करेंगे. तभी तो श्री राम आदिवासियों, वनवासियों के बीच जाकर उनके दुखों का हरण करते हैं और सामाजिक सद्भाव की अलख जगाने के लिए निषाद और केवट के प्रेम को स्वीकार करते हैं। भीलनी के जूठे बेर खाते हैं। उनका चरित्र अगाध गुणों का समुद्र है, जिसमें सारे ऋषि-योगी व भक्त-संत हंसरूप में विचरण करते हुए मोती चुनते हैं। राम मर्यादा, धर्म, उपकार, सत्य, दृढ प्रतिज्ञा तथा चरित्र शुचिता के अनुपम प्रतिमान हैं। वे इतिहास के सबसे अधिक प्रकाशित तेजोमय महानक्षत्र, जिनके प्रकाश से सारे चर और अचर चमक रहे हैं। असल में राम भारत की चेतना का शाश्वत आधार है। ठीक वैसे ही जैसे दही में नवनीत समाहित है। जिस अंतिम छोर तक राम लोगों को प्रेरित करते है वही राम की वास्तविक अक्षुण्य शक्ति भी है।
वैसे भी सनातन संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है, लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को आज भी माना है। मानवता के उद्धार के लिए भगवान श्रीराम वन गए थे।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का पावन जीवन चरित्र समूची मानवता के लिए दिग्दर्शन है, प्रेरणा एवं प्रकाश है। उनके जीवन से हम सबको विषम परिस्थितियों में जूझने की प्रेरणा मिलती है। हमारे मनीषियों ने माना है कि श्रीराम ही साक्षात धर्म हैं अर्थात श्रीराम ही सबकुछ हैं। राम मानवता की सबसे बड़ी निधि है। वे संसार में अद्वितीय प्रेरणापुंज है। वे शाश्वत धरोहर है मानवीय सभ्यता, संस्कृति और लोकजीवन के। राम जीवन के ऐसे आदर्श है जो हर युग मे सामयिकता के ज्वलन्त सूर्य की तरह प्रदीप्त है। मर्यादा, शील, संयम, त्याग, लोकतंत्र, राजनय, सामरिक शास्त्र, वैश्विक जबाबदेही, सामाजिक लोकाचार, परिवार प्रबोधन, आदर्श राज्य और राजनीति से लेकर करारोपण तक लोकजीवन के हर पक्ष हमें राम के चरित्र में प्रतिबिंबित औऱ प्रतिध्वनित होते है।
हमें बस राम की व्याप्ति को समझने की आवश्यकता है। भारत के सभी क्षेत्रों में शायद ही कोई और नाम इतना प्रचलित और स्वीकृत हुआ हो जितना राम नाम है। खासकर तब जब एक अदने आदमी से लेकर उच्चश्रेणी तक के मानव की दिनचर्या की शुरुवात राम से होते है और विस्तर पर जाने तक राम ही उसके जुबान पर होते है। अर्थात भारतीयों परिवारों के लिए राम नाम स्थायी अंश बना चुका हैं।
प्रणाम आशीर्वाद जैसे सामान्य शिष्टाचार
में राम का नाम
लेकर किया जाता है।
भक्ति और भजन में
ही नहीं दुःख, दर्द,
पीड़ा, आश्वासन, आश्चर्य आदि सामान्य मनोभावों
की अभिव्यक्ति के लिए उठते,
बैठते, चलते-फिरते राम-राम, हरे राम,
जय-जय राम, जय-राम जी की,
सीताराम और जय श्रीराम-
जैसी अभिव्यक्ति बरबस जबान पर
आ जाती है। ऐसा
होना सहज सामान्य बात
है। या यूं कहे
राम का नाम जीवन
के आधार के रूप
में जन मन ने
अपना लिया है। राम
नाम का जप एक
आम बात है। निश्चय
ही कोटि-कोटि जनों
के लिए राम नाम
का आकर्षण भारतीय संस्कृति की एक असाधारण
घटना है।
लोकमंगल के लिए ही नर शरीर धारण कर राम, राम बनते हैं। राम ऐसे हैं कि सहज में ही सबसे रिश्ता जोड़ लेते हैं। सत्य, त्याग, शौर्य जैसे गुणों के साथ वे परदुःखकातर हैं और किसी का भी दुःख नहीं देख सकते। वे जीवन भर दूसरों का दुःख हरते रहे हैं। राम का भाव भारतीय मानस और प्रज्ञा की कभी न चुकने वाली ऐसी अक्षय निधि और उद्भावना है जो सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, युद्ध-शांति और विरक्ति-आसक्ति जैसे द्वंद्वों की स्थितियों में हमारे लिए प्राण वायु की तरह जीने का आधार प्रदान करती है। आज भी जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत यज्ञ-प्रयोजन समेत सारे कार्य राम के नाम के साथ जुड़ चुके हैं। जन्म का सोहर, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले के मंगलद्योतक लोक -गीतों के नायक के रूप में राम बार-बार आते हैं।
राम के जीवन का स्मरण करते हुए उसके साथ अपना तारतम्य बिठाना किसी के लिए भी सहज होता है। आज जब ईर्ष्या, द्वेष, हानि, प्रवंचना, अपयश की भावनाओं, आग्रहों, दुराग्रहों, बाधाओं का रावण हिलोरें ले रहा है श्रीराम से जुड़ कर आम जन ऊर्जा पाता है। उसी के आलोक में उसके सारे रिश्ते अर्थ पाते हैं। राम से जुड़ कर सत्य, पराक्रम, धैर्य और त्याग के मूल्यों का अर्थ समझ में आता है और यह भी कि धर्म के मार्ग पर चल कर ही मानव जीवन को सार्थक किया जा सकता है। रावण पर राम की विजय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा और अन्याय से मुक्ति के लिए समर्पण का आवाहन है।देखा जाएं तो श्रीराम को कुछ पाना या देना नहीं था। उनके जन्म कर्म तो लोकानु ग्रह के लिए थे। धर्म सास्त्र में गृहस्थ जीवन को सर्वश्रेष्ठ धर्म कहा गया है। श्रीराम का जीवन और उनके आदर्श वास्तव में लोक कल्याण और धर्म की स्थापना के लिए थे। श्रीराम ने अपने जीवन में जो आदर्श प्रस्तुत किए, वे हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। चाहे वह पारिवारिक संबंधों की मर्यादा हो, कर्तव्यपरायणता हो, या फिर धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष। हर पहलू में श्रीराम हमें एक दिशा दिखाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने राम के चरित्र सन्देश की व्याप्ति को स्थाई बनाने का भागीरथी काम किया है। वैसे तो दुनियां में बीसियों रामायण प्रचलित है लेकिन लोकभाषा में राम को घर घर पहुंचाने का काम तुलसीकृत रामचरितमानस ने ही किया है। वस्तुतःराम तो मानवता के सर्वोच्च और सर्वोत्तम आदर्श है। उन्हें विष्णु के सर्वश्रेष्ठ अवतारों में एक कहा जाता है। तुलसी ने राम के दोनों अक्षर ’रा’ और ’म’ की तुलना ताली से निकलने वाले ध्वनि सन्देश से की है। जो हमें जीवन के सभी संदेह से दूर ले जाकर मर्यादा और शील के प्रति आस्थावान बनाता है।
राम उत्तर से दक्षिण सब दिशाओं में समान रूप से समाज के उर्जापुंज है। राम सभी दृष्टियों से परिपूर्ण पुरुष है. उन्होंने अपने जीवन में जो सांसारिक लीला की है, वो हर काल की हर मांग को सामयिकता का धरातल देता है। एक पुत्र का पिता के प्रति आज्ञा और आदरभाव, भाइयों के प्रति समभाव, पति के रूप में निष्ठावान अनुरागी चरित्र, प्रजापालक, दुष्टसंहारक अपराजेय योद्धा, मित्र, आदर्श राजा, लोकनीति और राजनीति के अधिष्ठाता से लेकर आज के आधुनिक जीवन की हर परिघटना और समस्या के आदर्श निदान के लिए राम के सिवाय कोई दूसरा विकल्प हमें नजर नही आता है। राम ने सत्ता के लिए साधन औऱ साध्य की जो मिसाल प्रस्तुत की है वह आज भी अपेक्षित है।वनवासियों, दलितों के साथ पहली शाही सेना बनाने का श्रेय भी हम राम को दे सकते है। राम के मन में ऊंच नीच का भाव होता तो क्यों केवट, निषाद, सबरी, वनवासी सुग्रीव औऱ हनुमान के साथ खुद को इतनी आत्मीयता से सयुंक्त करते। असल में वनवासी राम तो लोकचेतना का पुनर्जागरण करने वाले प्रथम प्रतिनिधि भी है। गांधी जी ने राम के इस मंत्र को स्वाधीनता आंदोलन का आधार बनाकर ही गोरी हुकूमत को घुटनो पर लाने में सफलता हासिल की थी। राम वंचितों, दलितों, सताए हुए लोगों के प्रथम सरंक्षक भी है। वे उनमें स्वाभिमान और संभावनाओं के पैगम्बर भी है। वे निष्ठा, समर्पण और साहस की प्रतिमूर्ति हैं। महिलाएं इन सभी रूपों में आदर्श आचरण करते हुए श्री राम ने एक पति के रूप में भी सीता जी के प्रति समर्पण में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। सीता जी के अपहरण के पश्चात किस तरह से उन्होंने उन तक पहुंचने का उद्यम किया व रावण के साम्राज्य का अंत करके उन्हें वापस लाए। यहां यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि उन्होंने सामाजिक मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए सीता जी की अग्नि परीक्षा भी ली परन्तु उनके हृदय में सीता जी के अतिरिक्त अन्य किसी स्त्री के प्रति आसक्ति न जगी एवं श्री राम देवताओं व राजाओं का एकमात्र ऐसा उदाहरण हैं जिन्होंने पूर्ण मर्यादा के साथ एक पत्नी व्रत का नियमपूर्वक पालन किया। उस काल का ये भी एक सर्वोच्च उदाहरण है।
श्री राम एक
राजा के रूप में
इतने अधिक आदर्शवादी थे
कि उनके राजकीय काल
को रामराज्य के नाम से
जाना जाता है। इससे
सुंदर शाशनकाल का कोई उदाहरण
न उसके पूर्व का
मिलता है न पश्चात
का, रामराज्य ही सर्वोत्तम राज
काज का एक मात्र
उदाहरण है। राम हमारी
आस्था से जुड़े हुए
हैं आज भी प्रत्येक
माता श्री राम जैसा
पुत्र चाहती है तो भाई
उनके जैसे भाई की
कामना करता है, स्त्री
पति रूप में राम
का ही अंश चाहती
हैं तो गुरु भी
श्री राम जैसा शिष्य
। कोई मित्र व
किसी भी प्रकार से
हीन मनुष्य जब कोई सहारा
ढूढ़ता है तो उसे
भी श्री राम ही
चाहिये क्योंकि उन्होंने ही अस्पृश्यता का
भेद भी मिटाया था
माता शबरी के आश्रम
जाना व उनका उद्धार
करना इसका सर्वोच्च उदाहरण
है । एक संतान
अपने जीवन को निर्देशित
करने के लिए पिता
के रूप में जिस
आदर्श की परिकल्पना करती
है वो श्री राम
ही हैं । श्री
राम एक ऐसा व्यक्तित्व
हैं जो शत्रुता का
भी सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं क्योंकि युद्ध
भी उन्होंने मर्यादा के साथ ही
लड़ा था एवं विजय
भी प्राप्त की थी ।
श्री राम हमें जीवन
जीने की कला सिखाते
हैं, वो हमें बताते
हैं कि यदि हम
चाहें तो बिना किसी
अवरोध के हम अपना
जीवन मर्यादित रूप से जी
सकते हैं, श्री राम
हमारी प्रेरणा हैं, हमारा मार्गदर्शन
हैं, हमारे आराध्य हैं व सबसे
बड़ी बात हमारे आदर्श
हैं। संस्कृत भाषा में ‘राम’
शब्द की निष्पत्ति रम्
धातु से हुई बताई
जाती है जिसका शाब्दिक
अर्थ होता है सुहावना,
हर्षजनक, आनंददायक, प्रिय और मनोहर आदि।
आस्थावानों के लिए दीन
बंधु दीनानाथ श्रीराम का नाम सुखदायी
है, दुखों को दूर करने
वाला है और पापों
का शमन करने वाला
है। कलियुग में उदारमना श्रीराम
के नाम का प्रताप
आम जनों के लिए
अभी भी जीवन के
लिए एक बड़े आधार
का काम करता है।
भक्तों के लिए भव-भय से पार
ले जाने वाले श्रीराम
सगुण ईश्वर हैं और जाने
कितनों का अपने पारस
स्पर्श से उद्धार किया।
श्रीराम मानवीय आचरण, जीवन-मूल्य और
आत्म-बल के मानदंड
बन गए ऐसे कि
उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में
स्वीकार किया गया। आज
भारतीय समाज और संस्कृति
में श्रीराम की अनिवार्य उपस्थिति
कुछ ऐसे ही है
जैसे जीने के लिए
जल, अन्न और वायु
हैं। ये सभी धरती
पर जीवन के पर्याय
हैं और उसी तरह
श्रीराम भक्तों के जीवन स्रोत
हैं।
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