नारी शक्ति की अमरकथा : निर्मल महागौरी से वीर महिषासुरमर्दिनी तक
नवरात्र का आठवां दिन केवल एक तिथि नहीं, बल्कि सनातन साधना की गहराई में उतरने का निमंत्रण है। इस दिन मां दुर्गा का महागौरी स्वरूप पूजित होता है, श्वेत वस्त्रों में आभामंडित, निर्मल चित्त और पूर्ण वैभव का प्रतीक। किंतु यही अष्टमी हमें देवी के अद्वितीय शौर्य की भी याद दिलाती है, जब वही मातृशक्ति महिषासुरमर्दिनी बनकर अन्याय और अत्याचार का संहार करती हैं। इस दिन की उपासना हमें यह विश्वास दिलाती है कि पवित्रता और पराक्रम, दोनों ही जीवन के आवश्यक आयाम हैं। यही वह द्वंद्व है जिसमें से मानवता बार-बार अपनी दिशा पाती है, श्वेत आभा की शांति और सिंहहृदय साहस का अद्भुत संगम। सौंदर्य और साहस का यह अद्वितीय संगम ही नवरात्रि का मर्म है। मतलब साफ है नवरात्र केवल आराधना का समय नहीं, बल्कि आत्मशक्ति को जागृत करने का अवसर है। महागौरी हमें निर्मलता और शांति का मार्ग दिखाती हैं, जबकि महिषासुरमर्दिनी यह स्मरण कराती हैं कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना ही धर्म है। आज के दौर में जब मानवीय मूल्य और पर्यावरण दोनों चुनौतियों से घिरे हैं, नवरात्रि का संदेश और भी प्रासंगिक हो उठता है, अपने भीतर की शक्ति को पहचानो, साहस और संयम से जीवन जियो, और प्रकृति व समाज के संतुलन को साधो
सुरेश गांधी
नवरात्रि केवल देवी की आराधना भर नहीं, बल्कि मानव जीवन में साहस, संयम और आत्मजागरण का उत्सव है। मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना इसी संदेश को पुष्ट करती है। उज्ज्वल गौरवर्णा महागौरी सुख, शांति, धन और वैभव की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। पुराणों में वर्णित है कि महागौरी शेर पर आरूढ़ रहती हैं। यह शेर केवल वाहन नहीं, बल्कि शौर्य, वीरता और अदम्य साहस का प्रतीक है। जब मनुष्य विषय-भोगों और मोह-माया में उलझा हो, वासनाओं के अंधकार में डूबा हो, तब साधना का मार्ग चुनना किसी रणभूमि में उतरने से कम नहीं। साधक को अपने भीतर के ‘शेर’, दृढ़ संकल्प, निर्भीकता और आत्मबल, को जाग्रत करना होता है। देवी की कृपा तभी प्राप्त होती है, जब अंतःकरण में यह साहस जन्म ले। अपने भीतर के देवत्व को पहचानने और बंधनों को तोड़ने का यही प्रथम चरण है।
देशभर में इन दिनों नवरात्रि की अलौकिक छटा बिखरी हुई है। नगर-नगर में भव्य पंडालों की रौनक है। सप्तमी के साथ ही देवी के कपाट खुलते हैं और श्रद्धालु मां के विविध स्वरूपों के दर्शन करते हैं। विजयदशमी की कथा भी इस साहसिक ऊर्जा का स्मरण कराती है, इसी दिन एक ओर प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था, तो दूसरी ओर मां दुर्गा ने असुरों के अत्याचार से त्रस्त लोकों को मुक्त कराते हुए महिषासुर का संहार किया। महिषासुर की कथा शक्ति और अहंकार की पराकाष्ठा का दर्पण है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार, असुरराज रंभ की तपस्या से अग्निदेव ने वरदानस्वरूप उसे पुत्र प्रदान किया। मनुष्य और भैंस के संयोग से जन्मा यह पुत्र महिषासुर था, जिसमें इच्छानुसार मानव या भैंस का रूप धारण करने की शक्ति थी।
ब्रह्माजी के
वरदान ने उसे लगभग
अजेय बना दिया था।
इसी गर्व और अभिमान
से प्रेरित होकर महिषासुर ने
स्वर्गलोक पर चढ़ाई की
और देवताओं को पराजित कर
दिया। त्रस्त देवताओं की प्रार्थना पर
त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की
संयुक्त ऊर्जा से आदिशक्ति का
प्राकट्य हुआ। यही शक्ति
मां दुर्गा के रूप में
प्रकट हुईं। उन्होंने नौ रातों तक
महिषासुर से युद्ध किया
और दसवें दिन उसका वध
कर लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त
किया।
मां दुर्गा का
यह महिषासुरमर्दिनी रूप केवल पौराणिक
कथा नहीं, बल्कि यह संदेश है
कि अन्याय और अत्याचार चाहे
कितना भी प्रबल क्यों
न हो, अंततः धर्म
और सत्य की विजय
निश्चित है। यह भी
कि अहंकार से उपजा सामर्थ्य
नष्ट होता है, जबकि
संयम और साहस से
उपजा बल अमर रहता
है। आज जब हम
महागौरी की पूजा करते
हैं, तो उनके श्वेत
तेज से अपने अंतर्मन
को उज्ज्वल करने का संकल्प
भी लें। यह केवल
आडंबर या अनुष्ठान नहीं,
बल्कि आत्मशक्ति की साधना है।
भीतर का भय मिटे,
साहस जागे, तभी महागौरी की
कृपा साकार होती है। नवरात्रि
का यह पर्व हमें
बताता है कि महिषासुर
केवल बाहरी राक्षस नहीं, वह हमारे भीतर
का अहं, क्रोध और
वासना भी है। मां
दुर्गा का स्मरण हमें
अपने भीतर छिपे उन
अंधकारों पर विजय पाने
का आह्वान करता है। शौर्य
और करुणा का यही दिव्य
संगम नवरात्रि का सार है,
जहां मां का वैभव,
महागौरी की शांति और
महिषासुरमर्दिनी का अदम्य पराक्रम,
मानवता को आत्मबल और
प्रकाश की ओर ले
जाता है।
अष्टमी की उज्ज्वल आराधना
देवताओं का लोक जब असुरों के आतंक से कांप उठा, चारों दिशाओं में भय का कुहासा छा गया, तब देवसमूह ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण ली। महिषासुर का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सम्मुख समस्त देवगण ने करुण पुकार की “हे त्रिदेव! हमें इस दैत्य से मुक्ति दिलाइये।” देवताओं की यह आर्त्त पुकार सुन ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तेजस्वी ऊर्जाएं एकाकार हुईं। इसी संगम से उत्पन्न हुईं शक्तिरूपा आदिशक्तिकृमां दुर्गा। वह सौंदर्य और पराक्रम की ऐसी अनूठी प्रतिमूर्ति बनीं, जिनका तेज असुरों की सभी सेनाओं को परास्त करने में समर्थ था। नौ रातों और दस दिनों तक महिषासुर और मां दुर्गा का महायुद्ध चला। अंततः विजयादशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया। तभी से वे महिषासुरमर्दिनी कहलायीं, साहस, शक्ति और अदम्य वीरता का शाश्वत प्रतीक।
यह कथा केवल युद्ध का आख्यान नहीं, बल्कि यह संदेश है कि जब भी अधर्म और अहंकार बढ़ेगा, दिव्य शक्ति स्वयं उसका अंत करेगी। नवरात्रि की अष्टमी इस दिव्य विजय का स्मरण कराती है और मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना का दिन है। महागौरी सुख, शांति, धन और वैभव की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। कहा जाता है कि मां के प्राकट्य के समय उनकी आयु आठ वर्ष थी, इसलिए अष्टमी को उनका विशेष पूजन किया जाता है। जो श्रद्धापूर्वक उनका स्मरण करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में उजास भर उठता है।महागौरी का कनखल शक्ति पीठ
हरिद्वार के समीप कनखल स्थित प्रसिद्ध शक्ति पीठ में महागौरी का पूजन अत्यंत फलदायी माना जाता है। श्वेत चांदनी के समान गोरे शरीर और उज्ज्वल आभा से युक्त मां महागौरी को श्वेताम्बरधरा कहा जाता है। चार भुजाओं वाली यह दिव्य मातृशक्ति एक हाथ में डमरु और दूसरे में त्रिशूल धारण करती हैं, शेष दो हाथों से वर और अभय का आशीर्वाद देती हैं। उनका वाहन पवित्रता का प्रतीक गाय है। महागौरी के नाम की कथा भी उतनी ही अद्भुत है। पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव को पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तप किया। वर्षों तक कठिन साधना के कारण उनका रंग गहरा और शरीर क्षीण हो गया।

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दध्यान् महादेवप्रमोददा।।
शास्त्रों में वर्णित यह
मंगलाचरण नवरात्रि की अष्टमी का
सार कह देता है।
श्वेत वस्त्रों में अलंकृत, श्वेत
वृष पर आरूढ़ महागौरी,
जिनका स्पर्श ही शांति, सौभाग्य
और वैभव का आशीष
देता है। नवरात्र की
आठवीं तिथि का यह
पावन दिन, महागौरी की
उज्ज्वल कृपा का पर्व
है। पराक्रम की पराकाष्ठा का
प्रतीक है मां दुर्गा
का महिषासुरमर्दिनी रूप। देवताओं को
आतंकित करने वाले महिषासुर
को ब्रह्मा के वरदान ने
अभेद्य बना दिया था।
जब उसका अत्याचार असहनीय
हो उठा, तब ब्रह्मा,
विष्णु और महेश की
संयुक्त शक्तियों से आदिशक्ति प्रकट
हुईं। सिंहवाहिनी देवी ने महिषासुर
के विरुद्ध दीर्घ युद्ध किया और अंततः
उसका वध कर देवताओं
को निर्भय कर दिया। यही
विजयदशमी का भी मूल
संदेश है, असत्य पर
सत्य और अधर्म पर
धर्म की जीत। जिस
प्रकार श्रीराम ने रावण का
संहार किया, उसी दिन मां
दुर्गा ने महिषासुर का
अंत कर ब्रह्मांड में
न्याय की स्थापना की।
ऋषि-मुनियों ने रात्रि को
साधना का सर्वोत्तम काल
बताया है। दिन में
सूर्यकिरणों का विकिरण मंत्र-जाप और विचार-तरंगों की गति को
बाधित करता है, जबकि
रात्रि का शांत वातावरण
उन्हें दूर तक पहुंचने
देता है। यही कारण
है कि नवरात्र में
रात्रि जागरण को विशेष फलदायी
माना गया है। मंदिरों
में शंख और घंटियों
की ध्वनि से उत्पन्न कंपन
वातावरण को कीटाणुरहित करता
है। नवरात्रि का समय वर्ष
की दो प्रमुख ऋतु-संधियों में आता है,
जब रोगाणु आक्रमण की संभावना बढ़ती
है। उपवास, हवन और रात्रि
साधना शरीर-मन को
शुद्ध करने का वैज्ञानिक
उपाय है। हमारे पूर्वज
इस गहन प्राकृतिक सत्य
को जानते थे, इसलिए नवरात्र
को केवल धार्मिक अनुष्ठान
नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक शांति
का पर्व माना गया।
कन्या पूजन का आध्यात्मिक रहस्य
अष्टमी और नवमी पर
कन्या पूजन का विधान
नवरात्रि का सबसे जीवंत
प्रतीक है। नवदुर्गा के
नौ रूपों को नौ कन्याओं
में देखा जाता है।
पूजन के समय कन्याओं
के चरण धोकर, माथे
पर रोली-बिंदी लगाकर,
उन्हें हलवा-पूरी-चना
का प्रसाद दिया जाता है
और उपहार भेंट किए जाते
हैं। यह केवल अनुष्ठान
नहीं, बल्कि समाज में नारी
शक्ति के प्रति आदर
और श्रद्धा का संदेश है।
मान्यता है कि कन्या
पूजन के बिना नवरात्रि
का व्रत अधूरा है।
यह पूजन केवल अनुष्ठान
नहीं, बल्कि देवी के नौ
स्वरूपों में निहित स्त्री-शक्ति का सम्मान है।
अष्टमी या नवमी, इनमें
से किसी एक दिन
नौ कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ
माना गया है। श्रद्धालु
उन्हें देवी का ही
प्रतीक मानकर आमंत्रित करते हैं, उनके
चरण पखारते हैं, भोजन कराते
हैं और उपहार अर्पित
करते हैं। यह प्रथा
बताती है कि मातृशक्ति
की आराधना केवल मंदिरों तक
सीमित नहीं, जीवंत समाज में नारी
के रूप में विराजमान
है।
आदिकाल से चली आ रही नवदुर्गा की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार नवरात्र
का व्रत अनादिकाल से
शक्ति-उपासना का पर्व है।
श्रीराम ने भी समुद्र
तट पर शारदीय नवरात्रि
का व्रत कर देवी
का आशीर्वाद प्राप्त किया और दशमी
के दिन लंका विजय
को प्रस्थान किया। तभी से दशहरा
असत्य पर सत्य की
जीत का उत्सव बन
गया। नवरात्रि केवल नौ दिनों
का व्रत नहीं, बल्कि
नौ शक्तियों की नवधा भक्ति
है। देवताओं ने भी कठिन
काल में इसी भक्ति
का सहारा लिया। कथा है कि
दुर्गम नामक राक्षस ने
कठोर तप कर ब्रह्माजी
को प्रसन्न किया और वेद-पुराणों को छिपा दिया।
वेदों के लुप्त होते
ही संसार में वैदिक कर्म
ठहर गए, वर्षा थम
गई, जीवन सूख गया।
तब देवताओं ने नौ दिन
तक माता जगदंबा की
आराधना की और उनकी
कृपा से जगत का
संतुलन पुनः स्थापित हुआ।
इस युद्ध में देवी ने
दुर्गम का वध कर
सृष्टि को विनाश से
बचाया। यहीं से नवदुर्गा
और नवरात्र व्रत की परंपरा
प्रारंभ हुई।
भक्ति और विज्ञान का संगम
नवरात्रि में रात्रि जागरण
को अत्यंत फलदायी माना गया है।
ऋषि-मुनियों ने रात्रि की
महत्ता केवल धार्मिक नहीं,
बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रतिपादित
की। रात के समय
वायुमंडल में शांति रहती
है, सूर्य की किरणें न
होने से ध्वनि-तरंगें
और विचार-तरंगें अधिक दूर तक
जाती हैं। जिस प्रकार
सूर्यास्त के बाद दूरस्थ
रेडियो स्टेशन का प्रसारण स्पष्ट
सुनाई देता है, उसी
प्रकार रात्रिकाल में किए गए
मंत्रजाप और ध्यान की
ऊर्जा भी अवरोध रहित
विश्व में प्रसारित होती
है। मंदिरों में बजते घंटे
और शंख की ध्वनि
से उत्पन्न कंपन वातावरण को
शुद्ध कर रोगाणुओं का
नाश करते हैं। हमारे
ऋषि इस रहस्य को
हजारों वर्ष पहले ही
जान चुके थे। यही
कारण है कि नवरात्रि
में रात्रि जागरण को आत्मशक्ति और
मनोकामना सिद्धि का सर्वोत्तम साधन
बताया गया है।
स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन का सामंजस्य
पृथ्वी जब सूर्य की
परिक्रमा में मार्च और
सितंबर की संधि पर
होती है, तब ऋतु
परिवर्तन का समय होता
है। इस समय शरीर
में रोगाणुओं का प्रकोप बढ़ता
है। प्राचीन ऋषियों ने इसी काल
में उपवास और शुद्धाहार का
विधान किया, ताकि तन-मन
दोनों को शुद्धता और
सामर्थ्य मिले। नवरात्रि का व्रत इस
वैज्ञानिक तथ्य का जीवंत
उदाहरण हैकृआध्यात्मिक साधना और शारीरिक शुद्धि
का अद्भुत संगम।
अंतःकरण को प्रकाशित करने का अवसर
नवरात्रि हमें बताती है कि देवी की आराधना केवल दीप, धूप और मंत्र तक सीमित नहीं। यह आत्मसंयम, नारी-सम्मान और प्रकृति-सम्मान का उत्सव है। जब हम रात्रि के सन्नाटे में मंत्रोच्चार करते हैं, तो अपनी विचार-तरंगों को ब्रह्मांड में भेजते हैं। यही तरंगें हमारे संकल्प को सिद्ध करती हैं। महागौरी की यह अष्टमी हमें याद दिलाती है कि भक्ति और विज्ञान, दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। रात्रि जागरण की आध्यात्मिक ऊर्जा और वैज्ञानिक आधार हमें यह सिखाते हैं कि सत्य और शांति की खोज केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हमारे जाग्रत अंतःकरण में भी है.







No comments:
Post a Comment