धड़कनों में देवी, रग-रग में भक्ति : आस्था और कला के विराट संगम से गूंजा काशी
भारत की सांस्कृतिक परंपरा केवल त्योहारों की श्रृंखला नहीं है, बल्कि वह जीवन के हर पक्ष को जोड़ने वाली आध्यात्मिक डोर है। नवरात्र इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। इन नौ दिनों में देवी आराधना केवल पूजा-पाठ का विधान नहीं रहती, बल्कि यह नारी-शक्ति, लोक-संस्कृति, कला और सामाजिक चेतना का विराट उत्सव बन जाती है।
और
यदि
इस
उत्सव
की
धड़कन
को
महसूस
करना
हो,
तो
काशी
से
बड़ा
उदाहरण
कोई
नहीं।
मतलब
साफ
है
काशी
न
सिर्फ
आस्था,
संस्कृति
और
भक्ति
का
अद्भुत
संगम
है,
बल्कि
शारदीय
नवरात्र
के
अवसर
पर
यह
नगरी
मानो
मां
दुर्गा
के
दिव्य
रूप
में
परिवर्तित
हो
गई
हो।
हर
गली,
हर
चौराहा,
हर
घाट
और
हर
मंदिर
देवी
के
जयकारों
से
गूंज
रहा
है।
पंडालों
की
भव्यता,
कलात्मकता
और
सामाजिक
संदेशों
से
सजे
दृश्य
ने
इस
बार
काशी
को
केवल
पूजा
का
केंद्र
ही
नहीं,
बल्कि
एक
जीवंत
सांस्कृतिक
महाकुंभ
बना
दिया
है
सुरेश गांधी
ढाक और शंख की गूंज, आरती की लौ, और भक्तों का सागर... काशी जैसे खुद मां दुर्गा का मायका बन गया हो। काशी की इस अनोखी दुर्गापूजा को देखकर यह कहना गलत न होगा कि यह केवल स्थानीय परंपरा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक संदेश है। यहां हर आस्था, हर कला और हर संस्कृति मिलकर यह उद्घोष करती है कि भारत की आत्मा उसकी सनातन परंपरा में ही सुरक्षित है। अष्टमी पर उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब यह बताने के लिए काफी है, नवमी को आस्था का यह उत्सव अपने चरम पर पहुंचेगा। दशमी को गंगा के आंचल में जब हजारों दीप प्रवाहित होंगे और दीपों की लौ रौशन होगा, तो यह केवल सिर्फ प्रतिमा विसर्जन नहीं होगा, बल्कि पूरा काशी भाव-विह्वल हो उठेगा.
यह संदेश होगा कि देवी हमारे भीतर ही शक्ति के रूप में विद्यमान हैं।
इस प्रकार काशी का नवरात्र उत्सव केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक धरोहर, नारी शक्ति का उद्घोष और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया है।
यही
वह भाव है, जो
भारत को विश्व में
अद्वितीय बनाता है।
पंडालों में कला और संस्कृति की छटा
महिलाओं ने थामा उत्सव का रंग
भक्ति के साथ सेवा का संगम
मां की आराधना
के बीच सेवा का
भाव भी उतना ही
प्रखर दिखा. या यूं कहें
नवरात्र का यह पर्व
केवल अनुष्ठान तक सीमित नहीं
रहा। अनेक संस्थाओं ने
इस दौरान रक्तदान, स्वास्थ्य शिविर, प्रसाद वितरण और स्वच्छता अभियान
चलाकर सेवा को भक्ति
का ही अंग बना
दिया। गंगा घाटों पर
पर्यावरण चेतना के लिए दीपदान
और हरियाली संदेश दिए गए। यही
भारतीय संस्कृति की विशेषता है
कि पूजा और सेवा
अलग-अलग नहीं, बल्कि
एक-दूसरे के पूरक हैं।
गंगा घाटों पर पर्यावरण संदेश
के साथ ‘हर घर
दीप, हर मन दीप’
अभियान चलाया गया। इस प्रकार
नवरात्र का पर्व काशी
में केवल धार्मिक अनुष्ठान
नहीं रहा, बल्कि यह
आस्था, संस्कृति, कला और सेवा
का विराट संगम बन गया
है, जिसने पूरे नगर को
मां दुर्गा की भक्ति में
सराबोर कर दिया है।
महिलाओं और बच्चों की खास भागीदारी
इस बार दुर्गोत्सव
में महिलाओं की सहभागिता उल्लेखनीय
रही। जगह-जगह महिलाओं
ने गरबा और डांडिया
का आयोजन किया। बच्चों के लिए विशेष
सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं भी हुईं, जिनमें
पौराणिक कथाओं पर आधारित नृत्य-नाटिका ने सबका मन
मोह लिया। या यूं कहे
जगराते, गरबा और डांडिया
ने दुर्गोत्सव को और भव्य
बना दिया है। देर
रात तक शहर गुलजार
रहा। रोशनियों से नहाए तोरण
द्वार और विद्युत सज्जा
ने माहौल को स्वर्गिक बना
दिया। फूड स्टॉल, खिलौनों
की दुकानें और झूलों पर
लगी भीड़ ने मेले
की रौनक को दोगुना
कर दिया।
युवाओं का उत्साह और सोशल मीडिया की धूम
अर्थव्यवस्था को संजीवनी
पंडालों के आस-पास
लगी दुकानों ने व्यापारियों की
किस्मत चमका दी। फूड
स्टॉल से लेकर खिलौनों
की दुकानों तक हर जगह
भीड़ रही। स्थानीय कारीगरों
और कलाकारों को भी इस
बार दुर्गोत्सव से बड़ा लाभ
मिला।
सामाजिक संदेश देने वाले पंडाल
कुछ पंडालों ने
केवल भव्यता पर ही नहीं,
बल्कि समाज में व्याप्त
समस्याओं पर भी ध्यान
खींचा। पर्यावरण संरक्षण, नारी शिक्षा, नशा
मुक्ति और स्वच्छता पर
आधारित झांकियों ने दर्शकों को
गहरा संदेश दिया।
कला-संस्कृति की झलक
पूजा पंडालों की
सजावट ने इस बार
काशी को कला-संस्कृति
की राजधानी बना दिया। बंगाल
की कारीगरी, मिथिला पेंटिंग और दक्षिण भारतीय
शिल्पकला का अद्भुत संगम
हर पंडाल में दिखाई दिया।
बच्चों और युवाओं ने
इसे न सिर्फ भक्ति,
बल्कि सीखने का अवसर भी
माना।
भक्ति का सैलाब और उमंग का ज्वार
अष्टमी पर मां के दरबार में श्रद्धालुओं की कतारें सुबह से ही लग गईं। दिनभर लोग मां के चरणों में शीश नवाते रहे। रात ढलते ही कृत्रिम प्रकाश से सजे पंडालों ने पूरे शहर को आलोकित कर दिया।
कहीं राक्षसों का वध करती मां दुर्गा की प्रतिमा तो कहीं शिव परिवार संग विराजमान देवी का रूप भक्तों को भावविभोर करता रहा। रोशनी से नहाए पंडाल मानो अलौकिक जगत का दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मेले में बच्चों की खिलखिलाहट, झूलों की गूंज और ढोल-ढाक की थाप ने माहौल को और उल्लासमय बना दिया। हर चेहरे पर भक्ति का उत्साह और आंखों में मां के दर्शन की उत्कंठा साफ झलक रही थी। लोग न केवल मां के दिव्य स्वरूप को निहारते रहे, बल्कि कलाकारों की कल्पनाशीलता और शिल्पकला की दाद भी देते नजर आए। बच्चों के लिए यह शिक्षाप्रद अनुभव भी रहा, जब बुजुर्ग उन्हें कलाकृतियों के अर्थ और सांस्कृतिक महत्ता समझाते रहे।भक्ति में डूबा हर कोना
ढोल-ढाक, करताल
और मंत्रोच्चार से गुंजायमान काशी
का हर कोना देवी
की आराधना में मग्न दिखाई
दिया। धूप-नवेद की
सुगंध से वातावरण पवित्र
हो उठा। सुबह से
लेकर देर रात तक
श्रद्धालुओं का रेला पंडालों
की ओर उमड़ता रहा।
मां के पूजन में
ढोल-ढकी और घंटी
की धुन के बीच
सभी देवी-देवताओं का
आह्वान किया गया। चंडी
पाठ, पुष्पांजलि और आरती से
मां का दरबार गुंजायमान
रहा। खीर और खिचड़ी
के भोग ने भक्तों
की आस्था को और पुख्ता
किया। काशी का दुर्गोत्सव
केवल एक धार्मिक आयोजन
नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और सामाजिक चेतना
का विराट संगम है। यहां
देवी केवल प्रतिमाओं में
नहीं, बल्कि भक्तों की धड़कनों में
विराजमान दिखीं। रोशनी, रौनक और भक्ति
से सराबोर काशी मानो इस
बार स्वयं देवी का ही
जीवंत रूप बन गई
हो।
विंध्यवासिनी धाम और घाटों पर आस्था का सैलाब
सुरक्षा और व्यवस्था
श्रद्धालुओं की भारी भीड़
को देखते हुए पुलिस और
प्रशासन ने सुरक्षा के
व्यापक इंतजाम किए। जगह-जगह
बैरिकेडिंग, ड्रोन कैमरों से निगरानी और
स्वयंसेवकों की तैनाती ने
व्यवस्था को सहज बनाए
रखा। ट्रैफिक पुलिस ने भीड़ को
देखते हुए कई मार्गों
पर डायवर्जन लागू किया।
ऑपरेशन सिंदूर से लेकर धुनुची नृत्य तक, काशी में नवरात्र का अद्भुत रंग
शारदीय नवरात्र में काशी की गलियां, चौक-चौराहे और मैदान इस बार दिव्यता और भव्यता से भर उठे हैं। हर ओर देवी स्वरूप की छटा बिखरी है और पंडालों की झांकियां न केवल धार्मिक भावना को प्रबल कर रही हैं बल्कि संस्कृति, लोककला और समकालीन संदेशों का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत कर रही हैं। हर गली, हर घाट और हर चौक मां दुर्गा की आराधना में रंगा है। कहीं घंटियों की गूंज है तो कहीं ढोल-ढाक की थाप। कहीं पंडालों की झिलमिलाती रोशनी है तो कहीं भक्तों का सैलाब। शारदीय नवरात्र ने इस बार काशी को ऐसा दिव्य रूप दिया है कि शहर का हर कोना मानो जगजननी के आशीष से आलोकित हो उठा है। खासकर नवरात्र व अष्टमी ने काशी को एक अद्भुत दृश्य दिया। गंगा घाटों से लेकर संकरी गलियों तक मां दुर्गा की भक्ति का ऐसा संगम उमड़ा कि हर ओर श्रद्धा का सागर लहराने लगा। मां के पट खुलते ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी, ढाक की थाप और शंखध्वनि से पूरा शहर गूंजने लगा। संध्या ढलते ही शहर की गलियां, पंडाल और चौक-चौराहे रंग-बिरंगी रोशनियों से सुसज्जित हो उठे। नियोन लाइटों और सजावटी झालरों से ऐसा प्रतीत हुआ मानो काशी स्वयं मां दुर्गा के स्वागत में सजी हो। गंगा घाटों पर भक्ति का सैलाब, गलियों में सजावट, और पंडालों में सजीव झांकियां, यह सब मिलकर एक ऐसा अनुभव बना, जिसे शब्दों में बांधना कठिन है। इस वर्ष का सबसे बड़ा आकर्षण हथुआ मार्केट का पंडाल है, जिसकी ऊंचाई 110 फीट है। कर्नाटक के मुरुदेश्वर मंदिर की भांति सजे इस पंडाल में 18 हाथों वाली मां दुर्गा विराजमान हैं। उनके साथ 40 देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां आस्था में डूबकर दर्शन कर रही है। नई सड़क स्थित सनातन धर्म इंटर कॉलेज में खाटू श्याम थीम पर पंडाल सजा है। यहां लाइट एंड साउंड शो के जरिये मां महिषासुरमर्दिनी के अद्भुत रूप का सजीव चित्रण किया गया है। वहीं शिवपुर के मिनी स्टेडियम में पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति सजाई गई है, जिसमें मां दुर्गा शांति और सद्भाव का संदेश देती हुई नजर आ रही हैं। लाल कुआं का पंडाल बालाजी मंदिर की तर्ज पर है, जहां मां वैष्णवी बालरूप में विराजमान हैं। मच्छोदरानाथ में उड़ीसा के किचकेश्वरी काली मंदिर की थीम पर पंडाल बना है। अर्दली बाजार का पंडाल नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का स्वरूप लिए हुए है, जहां मां दुर्गा और भगवान महादेव दोनों विराजमान हैं। अर्दली बाजार का एक अन्य पंडाल जय माता सपोर्टिंग क्लब ने ऑपरेशन सिंदूर थीम पर सजाया है। इसमें मां काली को आतंकवादियों का संहार करते दिखाया गया है। इलेक्ट्रॉनिक शो के जरिए आतंकवादी मसूद अजहर के वध की झांकी देख श्रद्धालु रोमांचित हो उठे। चेतगंज के पंडाल में मां को बच्चों को गोद में लिए दिखाया गया है, जो मातृत्व और करुणा का प्रतीक है। लहरतारा का पंडाल आतंकवादियों के वध की झांकी के कारण चर्चा में रहा। बंगीय पूजा समितियों में सप्तमी की संध्या विशेष पूजा और अनुष्ठानों से गूंज उठी। ढाक की गूंज और आदिवासी नृत्य ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। महिलाओं ने धुनुची नृत्य कर मां की आराधना की। सिगरा स्थित भारत सेवाश्रम संघ में पुष्पांजलि के बाद महाआरती, वाद्ययंत्रों की संगत और लाठी-तलवार के कौशल प्रदर्शन ने श्रद्धालुओं को मोहित कर लिया। बंगाली टोला में शंख बजाने की प्रतियोगिता हुई, जिसमें महिलाओं और बच्चों ने पूरे उत्साह से भाग लिया.












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