मां दुर्गा
के
खुले
पंडाल,
भक्तों
को
सजीव
दर्शन
दे
रही
मां,
ढाक
की
थाप
से
गूंज
उठा
शहर
मां दुर्गा के आंगन में उमड़ा आस्था का महाकुंभ, रोशनी और रंगों से नहाई काशी
अब दशमी
तक
श्रद्धालुओं
की
रहेगी
अनवरत
भीड़,
गलियां
और
सड़कें
हुईं
जगमग
कल्पना और
कला
का
अनूठा
आयाम
सुरेश गांधी
वाराणसी. जब बनारस की
गलियां ढाक की थाप,
दीपों की रोशनी और
भक्तों की जयकारों से
गूंज उठती हैं, तो
यही वह पल होता
है जब शहर का
हर कण आस्था में
लीन हो जाता है।
शारदीय नवरात्र के सप्तमी तिथि
पर सोमवार को काशी ऐसी
आभा में नहाई कि
हर गली - कूचे में भक्ति
की अनुगूंज सुनाई पड़ी। शारदीय नवरात्र
की सप्तमी पर मां दुर्गा
का पट खुलते ही
शहर हो या देहात
का हर कोना आस्था
के महाकुंभ में तब्दील हो
गया। ढाक के डंके,
शंखनाद और वैदिक मंत्रोच्चार
के बीच भक्तों की
टोलियां घंटों कतार में लगी
रहीं, और अपनी बारी
आते ही मां के
दर्शन किए। लेकिन उनके
उत्साह की उजास में
कोई कमी न थी। आंकड़ों के मुताबिक, वाराणसी
के विभिन्न पूजा पंडालों में
लगभग 12 लाख श्रद्धालुओं ने
मां के दर्शन किए,
और यह सिलसिला विजयादशमी
तक इसी तरह बहता
रहेगा।
सप्तमी के दिन मां
दुर्गा के साथ-साथ
उनके सातवें स्वरूप माता कालरात्रि की
विधिपूर्वक पूजा, वैदिक मंत्रोंच्चार, हवन और प्राण
प्रतिष्ठा संपन्न हुई। बंगीय शैली
के पंडालों में घट स्थापन,
बोधन, आमंत्रण और अधिवास जैसे
अनुष्ठान श्रद्धालुओं के हृदय में
स्थायी छाप छोड़ गए। अन्य पंडालों में भी दोपहर
बाद माता के पूजन,
हवन और प्राण प्रतिष्ठा
के साथ घट स्थापन,
बोधन और आमंत्रण जैसे
अनुष्ठान संपन्न हुए। जैसे ही
पट खुले, मां के जयकारों
से गलियां गूंज उठीं। देर
शाम रंगीन रोशनी की झालरों ने
सड़कों और पंडालों को
इंद्रधनुषी आभा में बदल
दिया। भक्त जन अपनी
श्रद्धा के साथ मोबाइल
कैमरों में इस अद्भुत
दृश्य को कैद करने
से खुद को रोक
न सके।
काशी के पूजा
पंडाल इस बार भी
अपनी कलात्मक कल्पना से चकित कर
रहे हैं। ईगल परिवार
की ओर से स्थापित
प्रतिमा में मां दुर्गा
ओडिसी नृत्य की त्रिभंग मुद्रा
में दिखाई देती हैं। दसों
हाथों की शास्त्रीय मुद्राएं
न केवल देवी के
शस्त्रों का प्रतीक हैं,
बल्कि उनकी ब्रह्मांडीय शक्ति
को शांति और मातृत्व के
साथ व्यक्त करती हैं। देवी
लक्ष्मी,
सरस्वती,
कार्तिकेय और गणेश भी
इसी नृत्यशैली में प्रदर्शित हैं।
असुर का रूप महिष
की खोपड़ी में नृत्य करता
हुआ दर्शाया गया है,
जो
पौराणिक कथाओं को जीवंत कर
देता है। खास यह
है कि इस वर्ष
पंडालों में कलात्मक और
आधुनिक थीम ने भी
ध्यान खींचा। सनातन धर्म इंटर कॉलेज
में खाटू श्याम मंदिर
के दरबार की भव्य प्रतिकृति
तैयार की गई,
जबकि
अन्य पंडालों में मां दुर्गा
के सात स्वरूपों का
चित्रण और रोशनी का
अद्भुत संगम श्रद्धालुओं को
मंत्रमुग्ध कर रहा था।
सप्तमी के इस उत्सव
ने यह संदेश दिया
कि बनारस केवल एक शहर
नहीं,
बल्कि आस्था,
संस्कृति और सामूहिक उत्सव
का जीवंत प्रतीक है। ढाक की
थाप,
रंग-
बिरंगी जगमगाहट
और भक्तों का अटूट उत्साह
इसे एक अद्वितीय अनुभव
बनाते हैं। यह पर्व
हमें याद दिलाता है
कि आस्था और भक्ति की
शक्ति कितनी विशाल और अनंत होती
है,
और कैसे यह
शहर और उसके लोग
हर वर्ष इसे नए
जोश और श्रद्धा के
साथ जीवित रखते हैं। भारत
सेवाश्रम संघ,
बंगाली टोला
और रामकृष्ण मिशन जैसे प्रमुख
पंडालों में बंगाल की
संस्कृति जीवंत हो उठी। ढाक
की थाप और धुनुची
नृत्य ने वातावरण को
कोलकाता की दुर्गा पूजा
जैसी गरिमा दी। दशाश्वमेध और
खालिसपुरा स्थित दुर्गा पूजा संस्थान शिवम
क्लब के 50
वें वर्ष
पर पूरा इलाका भक्ति
में सराबोर हो उठा। लहुराबीर
स्थित हथुआ मार्केट,
सनातन
धर्म इंटर कॉलेज,
जगतगंज
विजेता स्पोर्टिंग क्लब,
मछोदरी,
सोनारपुरा,
जंगमबाड़ी,
शिवपुर मिनी स्टेडियम,
पांडेयपुर
और अर्दली बाजार,
इन प्रमुख पंडालों
में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़
पड़ा।
कहीं खाटूश्याम मंदिर तो कहीं पुरी क जगन्नाथ मंदिर में विराजी हैं मां
काशी की कलात्मक
दृष्टि हर पंडाल में
अलग कहानी कहती है। पूजा
पंडालों में इस बार
भी विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए
गए हैं। अनेक थीमों
पर बने भव्य पंडालों
में स्थापित मां की प्रतिमाएं
लाइट-
साउंड सिस्टम से भी सुसज्जित
होकर महिषासुर का वध करती
दिख रही हैं। सनातन धर्म
इंटर कालेज में मां की
विशालकाय प्रतिमा जयपुर के खाटू श्याम
मंदिर में तो शिवपुर
के मिनी स्टेडियम की
प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ
मंदिर की अनुकृतियों में
बने पंडाल में विराजी हैं।
इसी तरहबाबा मच्छोदरानाथ दुर्गाेत्सव समिति के पूजा पंडाल
में भक्तिरस और भव्यता का
संगम दिख रहा है
तो यहां मां की
प्रतिमा उड़ीसा की '
किचकेश्वरी काली
मंदिर की बनी अनुकृति
में विराजी हैं।
शक्ति का लोकपर्व
डांडिया की लय पर
थिरकती महिलाएं, महिषासुर वध का जीवंत
चित्रण और लाइट-साउंड
सिस्टम से सुसज्जित प्रतिमाएं...
हर दृश्य इस पर्व को
केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोक और कला
के विराट उत्सव में बदल देता
है। वाराणसी की ये रात्रियां
केवल रोशनी का उत्सव नहीं,
बल्कि उस शक्ति की
वंदना हैं जिसने सृष्टि
को संतुलन दिया। सप्तमी से दशमी तक
चलता यह आस्था पर्व
दिखाता है कि काशी
में दुर्गा पूजा केवल परंपरा
नहीं, बल्कि संस्कृति, कला और भक्ति
का ऐसा संयोग है
जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी
काशी की आत्मा में
स्पंदित होता रहा है,
और आगे भी होता
रहेगा।
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