Saturday, 4 October 2025

शरद पूर्णिमा : अमृत बरसाती चंद्रमा और सांस्कृतिक जीवन का श्वेत उत्सव

शरद पूर्णिमा : अमृत बरसाती चंद्रमा और सांस्कृतिक जीवन का श्वेत उत्सव

जब शरद की निर्मल रात में चंद्रमा अपनी चांदनी धरती पर बरसाता है, तो वह केवल प्रकाश नहीं देता, आशा देता है, अमृत देता है। यह रात हमें याद दिलाती है कि जिसे हमपूर्णिमाकहते हैं, वह केवल आकाश का नहीं, जीवन का भी रूपक है, जहां अपूर्णता मिटती है और प्रकाश जन्म लेता है। शरद पूर्णिमा की यह रजनी कहती है, “जो जागेगा, वही पाएगा।शरद पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, यह जीवन में संतुलन, शीतलता और शुद्धता का उत्सव है। चंद्रमा हमें सिखाता है, “पूर्णतातभी आती है जब हर कला, हर गुण का संतुलन बना रहे। मां लक्ष्मी का आगमन केवल धन का प्रतीक नहीं, वह सद्गुण, संयम और सृजनशीलता की अधिष्ठात्री हैं। आज की रात आकाश में चंद्रमा केवल चमकता नहीं, अमृत बरसाता है। यही तो वह अद्भुत रात है जब सोलह कलाओं से पूर्ण चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से धरती को नहलाता है। यह शरद पूर्णिमा की रात है, जिसे कहीं रास पूर्णिमा, तो कहीं शरद पूनम कहा जाता है। यह वह क्षण है जब धन और सौंदर्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर पृथ्वी पर अवतरित होती हैं। वह देखती हैं कौन जाग रहा है, कौन श्रम कर रहा है, कौन ध्यान में है, और उसी के द्वार पर समृद्धि बरसाती हैं. पुराणों में कहा गया है, “शरदपूर्णिमायां चन्द्रकिरणोऽमृतायते।अर्थात् इस रात चंद्रमा की किरणें अमृतमयी हो जाती हैं। जो भक्त इस रात चंद्रमा की किरणों में स्नान, ध्यान या खीर का भोग लगाते हैं, उन पर जैसे दिव्य ऊर्जा की वर्षा होती है

सुरेश गांधी

भारतीय संस्कृति में चंद्रमा का विशेष स्थान है। वह केवल आकाशीय पिंड नहीं, बल्कि काव्य का प्रेरणास्रोत, प्रेम का प्रतीक, औषधियों का अधिपति और जीवन का अमृत माना गया है। वर्ष में बारह पूर्णिमाएं आती हैं, लेकिन शरद पूर्णिमा उन सबमें सर्वोपरि मानी जाती है। वैसे भी भारतीय जीवनदर्शन में हर ऋतु, हर पर्व और हर तिथि का अपना गहरा महत्व है। यह वह क्षण है जब आकाश में चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होकर सम्पूर्ण सौंदर्य और आभा बिखेरता है। पुराणों में वर्णित अमृत मंथन की स्मृति से लेकर श्रीकृष्ण के महारास तक, और आयुर्वेद से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, शरद पूर्णिमा का आकर्षण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व श्रद्धा और उत्सव का ऐसा संगम है, जिसमें जागरण, उपवास, खीर, भक्ति और प्रेम सभी शामिल हैं। इस रात को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. मान्यता है कि देवी लक्ष्मी इस दिन रातभर विचरण करती हैं और पूछती हैं, “को जागर्ति?” अर्थात् कौन जाग रहा है? जो भक्त जागरण करता है, देवी उस पर विशेष कृपा करती हैं. इसे रास पूर्णिमा, कौमुदी उत्सव आदि नामों से भी जाना जाता है। 

भारतीय साहित्य में चंद्रमा को सौंदर्य, प्रेम और शांति का प्रतीक माना गया है। कालिदास ने मेघदूत, ‘ऋतुसंहारऔर रघुवंश में चंद्रमा की आभा का अद्भुत वर्णन किया है।प्राचीमुदेति सुभगा शरदिन्दुबिम्बा।संत कवियों ने शरद पूर्णिमा को भक्ति और प्रेम का उत्सव कहा है। सूरदास के पदों में महारास की झलक मिलती है। तुलसीदास ने भी चंद्रमा को सुख और शांति का प्रतीक बताया है।जैसे शरद निसि चंद चकोरहि, भए प्रेम बस रहहिं होरहि।। मीरा ने कृष्ण रास की स्मृति में गाया : “आज शरद की चांदनी में, नाचो री गोपिका संग श्याम।।इन साहित्यिक संदर्भों से स्पष्ट है कि शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि काव्य, कला और सौंदर्य का भी पर्व है। 

मतलब साफ है यह पर्व हमें बताता है कि पूर्णता का क्षण जीवन में तभी आता है, जब हम संतुलन, जागरण और प्रेम के मार्ग पर चलते हैं। शरद पूर्णिमा केवल आस्था का पर्व नहीं, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन का उत्सव है। यह हमें याद दिलाती है कि, जागरण ही समृद्धि का मार्ग है। प्रेम ही भक्ति का स्वरूप है। संतुलन ही जीवन का आधार है। चंद्रमा की शीतल किरणों में स्नान करते हुए यह रात हमें बताती है कि जीवन में शांति, संतोष और प्रेम ही वास्तविक अमृत हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि भारतीय जीवनदर्शन का दर्पण है, जिसमें प्रकृति, स्वास्थ्य, भक्ति, प्रेम, साहित्य और लोकगीत सब एक साथ समाहित हो जाते हैं। शुभ मुहूर्त  

शरद पूर्णिमा इस वर्ष 6 अक्टूबर, सोमवार को है। पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : 6 अक्टूबर प्रातः 0815 बजे, पूर्णिमा तिथि समाप्ति : 7 अक्टूबर प्रातः 0520 बजे. इस दिन चंद्रमा मीन राशि में और रेवती नक्षत्र में गोचर करेगा। ज्योतिषाचार्यों का मत है कि यह संयोग धन-समृद्धि, सुख और मानसिक शांति का वाहक होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह संयोग धन, शांति और समृद्धि का कारक है। यही कारण है कि शास्त्रों में इस पूर्णिमा कोसर्वसिद्धिदायिनीकहा गया है।

चंद्रमा और अमृत वर्षा का रहस्य

भारतीय लोकविश्वास के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा से अमृत बरसता है। चंद्रमा औषधियों का अधिपति है, और इस रात उसकी किरणें विशेष रूप से स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। इसी विश्वास के कारण इस दिन खीर बनाकर खुले आकाश तले रखी जाती है। रात्रि में वह खीर चंद्रकिरणों से अमृततुल्य हो जाती है। प्रातः इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए शुभ माना जाता है। आयुर्वेद भी मानता है कि शरद ऋतु में चंद्रमा का शीतल और औषधीय प्रभाव शरीर में पित्त दोष को शांत करता है। इसलिए यह पर्व विज्ञान और आस्था के बीच सेतु का कार्य करता है। पौराणिक मान्यताएं

शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति शरद पूर्णिमा की रात जागकर लक्ष्मी माता का पूजन करता है, उसके घर दरिद्रता प्रवेश नहीं करती। देवी इस रात विशेष रूप से जागरण करने वालों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। ब्रजभूमि में इस दिन का नाम है रास पूर्णिमा। मान्यता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना तट पर गोपियों के साथ महारास रचाया था। यह दिव्य रास केवल प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन की अद्वितीय लीला है। संत कवियों ने इसे भक्ति की सर्वोच्च अवस्था बताया है। पुराणों में सोम नामक देवता का संबंध चंद्रमा से बताया गया है। सोम ही जीवन रस है, जो वनस्पतियों और औषधियों में प्रवाहित होता है। शरद पूर्णिमा की रात उस सोम का चरमोत्कर्ष होता है।

सांस्कृतिक और लोक परंपराएं

शरद पूर्णिमा केवल पूजा और उपवास का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय लोकजीवन का भी हिस्सा है। ग्रामीण अंचलों में स्त्रियां कजरी गीत गाती हैं और चंद्रमा की आभा में समूह बनाकर नृत्य करती हैं। बंगाल में यह रात कोजागरी लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाई जाती है। महाराष्ट्र और गुजरात में लोग जागरण करते हैं, ढोल-नगाड़ों के साथ लोकगीत गाए जाते हैं। काशी में लोग गंगा घाटों पर दीपदान करते हैं और चंद्रमा की पूजा करते हैं। इस प्रकार यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जीवन का भी महत्वपूर्ण अंग है। ब्रजभाषा में एक कजरी : “आयो रे शरद पूनम कातिक, गगन घरे पूरन चंदा। सखियन संग रस बरसावै, श्याम करत नैया वंदा।। इन गीतों में लोकजीवन का उल्लास और भक्ति दोनों झलकते हैं।

ऋतु परिवर्तन और स्वास्थ्य की दृष्टि

शरद ऋतु वर्षा के बाद का शुद्ध काल है। आकाश निर्मल हो जाता है, हवा में ताजगी जाती है और चंद्रमा की शीतलता तन-मन को स्फूर्ति देती है। इस समय पित्त रोग अधिक बढ़ जाते हैं। चंद्रकिरणों से संचित खीर का सेवन पित्त दोष को शांत करता है। यही कारण है कि आयुर्वेद और लोकविश्वास दोनों में इसका विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा हमें याद दिलाती है कि आकाश, प्रकृति और ऋतुचक्र हमारे जीवन का हिस्सा हैं। जब हम चंद्रमा की ओर देखते हैं, तो हमें यह भी सोचना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ आकाश और शुद्ध वातावरण कैसे बचाया जाए।

मानसिक स्वास्थ्य

आज के युग में तनाव और अवसाद सबसे बड़ी समस्या हैं। शरद पूर्णिमा की चांदनी में बैठना, ध्यान करना और परिवार संग समय बिताना मानसिक शांति देता है। यह पर्व हमें आत्मचिंतन और आंतरिक संतुलन की ओर ले जाता है।

व्रत और उपासना विधि

इस दिन व्रत रखा जाता है और रात्रि को चंद्रमा का पूजन किया जाता है। दूध, खीर और चावल का विशेष महत्व है। दीपदान करना पुण्यकारी माना गया है। लक्ष्मी-पूजन, मंत्रजप और जागरण रातभर चलता है।

महारास की रात : जब आत्मा परमात्मा से मिली

भागवत महापुराण कहता है कि यही वह रात थी जब भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महारास किया। यह नृत्य केवल देह का नहीं, आत्मा का थाकृजहां गोपियाँ आत्माएँ थीं और कृष्ण स्वयं परमात्मा। पूर्ण चंद्र के नीचे ब्रह्मांड झूम उठा था। इसलिए इसेरास पूर्णिमाभी कहा जाता है। यह प्रेम की पराकाष्ठा थी, जहां कोई अपेक्षा नहीं थी, केवल समर्पण था।

विज्ञान की दृष्टि से चंद्रमा की ऊर्जा

विज्ञान भी मानता है कि चंद्रमा की रोशनी में अल्ट्रावायलेट और बायोफोटॉनिक ऊर्जा होती है, जो शरीर की जैविक लय को संतुलित करती है। रात का यह समय, जब वायुमंडल में नमी कम और पारदर्शिता अधिक होती है, मानव शरीर के लिए मानसिक शांति और रोग-प्रतिरोधक शक्ति का अद्भुत संयोजन बनाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा की चांदनी में बैठना, ध्यान करना, या भोजन रखना एक प्रकार की प्राकृतिक चिकित्सा भी है।

पौराणिक कथा : साहूकार की दो बेटियां

कथा है कि एक साहूकार की दो बेटियां थीं, बड़ी ने श्रद्धा से लक्ष्मी व्रत किया, छोटी ने उपेक्षा की। फलस्वरूप बड़ी समृद्ध हुई, छोटी निर्धन। यह कथा बताती है कि संपन्नता केवल धन से नहीं, श्रद्धा से आती है।

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