बादलों की ओट में व्रतियों ने दी डूबते सूर्य को अर्घ, उमड़ा आस्था का सागर
हर किरण
में
झलका
विश्वास,
सूर्यदेव
को
नमन
कर
मांगी
सुख-समृद्धि
गोधूलि बेला
में
जब
अस्ताचलगामी
सूर्य
ने
धुंधलके
के
पार
झांका,
तब
पूरे
घाट
“हर-हर
महादेव”
और
“जय
छठी
मइया”
के
उद्घोष
से
गूंज
उठे
आज उगते
सूर्य
को
अर्घ्य
के
साथ
होगा
पारण
सूर्यदेव की
अंतिम
किरणों
में
जो
आशीष
मिली,
वह
अब
उगते
सूरज
की
पहली
किरण
के
साथ
पूर्णता
पाएगी
सुरेश गांधी
अस्सी, दशाश्वमेध, पंचगंगा, राजघाट, नमो घाट, प्रह्लाद
घाट, लाल बहादुर शास्त्री
घाट सहित काशी के
हर घाट पर लोकश्रद्धा
उमड़ आई थी। बच्चों
से लेकर वृद्धों तक,
हर कोई इस क्षण
का साक्षी बनने को आतुर
था। सिर पर दौरी
और पूजन सामग्री से
भरे सूप लिए महिलाएं
छठ के गीत गातीं,
प्रसाद और ठेकुआ से
सजे डलिया थामे घाटों की
ओर बढ़ती रहीं। कई
व्रती दंडवत प्रणाम करते हुए घाट
पहुंचे। शाम चार बजे
से ही घुटने भर
पानी में खड़े होकर
महिलाओं ने दूध, गंगाजल
और पुष्प से सूर्यदेव को
अर्घ्य देना शुरू किया।
हर घाट, हर मन में गूंजा एक ही स्वर, “जय छठी मइया!”
“केलवा के
पात
पर
उगेलन
सुरुज
मल
झांके
ऊंके...”,
“कांच ही
बांस
के
बहंगिया...”,
“छठी मईया, हो
दीनानाथ...”
हर घाट को
गवाक्ष बना रही थी,
जहां से भक्ति की
ध्वनि आकाश तक पहुँच
रही थी। मंगलवार की
सुबह उगते हुए सूर्य
को अर्घ्य अर्पित कर छठ महापर्व
का समापन होगा। प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद व्रतियों
का पारण होगा, जिसमें
ठेकुआ, गन्ना, अदरक और प्रसाद
का वितरण किया जाएगा।
श्रद्धा और अनुशासन का संगम
छठ व्रतियों के
लिए यह केवल पूजा
नहीं, बल्कि तप और संयम
की साधना है। खरना के
बाद से 36 घंटे का निर्जला
व्रत रखने वाली व्रतिनें
बिना जल ग्रहण किए
पूरी निष्ठा से व्रत का
पालन करती हैं। संध्या
अर्घ्य इस तपस्या का
तीसरा पड़ाव होता है,
जब अंधकार के उतरते क्षणों
में सूर्य की अंतिम किरण
को धन्यवाद दिया जाता है,
जीवन देने वाली ऊर्जा
के प्रतीक को, और उस
विश्वास को जो हर
कठिनाई में प्रकाश लाता
है।
घर-घर में भी दिखी पूजा की छटा
नदियों और तालाबों पर
उमड़ी भीड़ के कारण
कई परिवारों ने इस बार
अपने घरों में ही
छठ पूजा का आयोजन
किया। छतों, आंगनों और तालाबनुमा कुंडों
में छोटे-छोटे घाट
बनाए गए, जहां दीपों
और केले के पत्तों
से सजी वेदिका पर
व्रतियों ने सूर्यदेव को
अर्घ्य अर्पित किया। श्रद्धा का वही उत्साह
देखा गया जो गंगा
घाटों पर था। मान्यता
है कि अर्घ्य के
बाद छठ सामग्री घर
लाने से परिवार में
रोग-शोक दूर रहते
हैं। स्वास्थ्य और समृद्धि बनी
रहती है।
सुरक्षा और स्वच्छता पर रही नजर
प्रशासन ने घाटों पर
सुरक्षा और स्वच्छता के
व्यापक इंतजाम किए थे। एनडीआरएफ,
पीएसी और जल पुलिस
के जवान हर घाट
पर तैनात रहे। घाटों पर
पर्याप्त रोशनी, साफ-सफाई और
महिला पुलिस बल की मौजूदगी
ने श्रद्धालुओं को सुरक्षा का
विश्वास दिया। स्वयंसेवी संस्थाओं ने पीने के
पानी और प्राथमिक उपचार
की व्यवस्था भी की।
सूर्य उपासना का आध्यात्मिक अर्थ
वैदिक मत के अनुसार
सूर्य की उपासना तीन
कालों में श्रेष्ठ फल
देती है, प्रातःकाल आरोग्य
का, मध्यान्ह यश का और
सायंकाल सम्पन्नता का प्रतीक है।
सायंकालीन सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा
के साथ रहते हैं,
जिन्हें अर्घ्य देने से तुरंत
फल की प्राप्ति होती
है। इसलिए डूबते सूरज की पूजा
को लोकजीवन में सबसे प्रभावशाली
माना गया है।
छठ व्रतियों का कठिन तप
छठ व्रतियों ने
बुधवार को खरना के
बाद से 36 घंटे का निर्जला
उपवास रखा। वे न
जल ग्रहण करतीं, न अन्न। गुरुवार
की संध्या को डूबते सूर्य
को अर्घ्य देने के बाद
भी यह व्रत अधूरा
रहता है, जो शुक्रवार
प्रातः उगते सूर्य को
अर्घ्य देने के बाद
ही पूर्ण होता है।
आज उगते सूरज को अर्घ्य, होगा पारण
मंगलवार को व्रती उगते
हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित
करेंगे और ठेकुआ व
प्रसाद चढ़ाकर पारण करेंगे। इसके
साथ ही लोक आस्था
का यह चार दिवसीय
व्रत संपन्न होगा। छठ मइया के
गीत, घाटों की रौनक और
सूर्य की अराधना से
काशी ही नहीं, पूरा
पूर्वांचल आस्था के रंग में
रंग गया है।




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