Sunday, 5 October 2025

अर्थ से ऊपर अन्न : काशी सिखाती है समृद्धि का असली अर्थ

अर्थ से ऊपर अन्न : काशी सिखाती है समृद्धि का असली अर्थ 

धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक, काशी में जो दृश्य दिखाई देता है, वह किसी स्वर्गिक उत्सव से कम नहीं। चारों दिशाओं से भक्तों का तांता लगता है, महिलाएँ थाल सजाकर, पुरुष दीप जलाकर, और बच्चे कांवड़ जैसी टोकरी में अन्न लेकर माँ के दरबार पहुँचते हैं। अन्नकूट महोत्सव के दिन बाबा विश्वनाथ को माँ अन्नपूर्णा अन्न की भिक्षा देती हैं। माँ की यह झांकी इस बात का प्रतीक है कि भोजन केवल शरीर का आहार नहीं, बल्कि आत्मा का पोषण भी है। काशी में इस दिन कोअन्न दिवसभी कहा जाता है। माँ के दरबार में वितरित हर दाना भक्तों के विश्वास का प्रतीक होता है। खास यह है कि साल में केवल चार दिन खुलता है माँ का दरबार. माँ अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन केवल वर्ष में चार दिनों तक ही संभव होता है। इस वर्ष 18 अक्तूबर की भोर से कपाट खुलेंगे और 22 अक्तूबर की शयन आरती के बाद बंद हो जाएंगे। इन चार दिनों में लाखों श्रद्धालु काशी पहुँचते हैं, कोई अन्न के लिए, कोई धन के लिए, कोई केवल उस दिव्यता को देखने के लिए, जहाँ स्वर्ण में भी स्नेह झलकता है. मंदिर के महंत शंकर पुरी महाराज बताते हैं, “माँ के दर्शन बिना दीपावली अधूरी है। धनतेरस की रात जो माँ का खजाना पाता है, उसके वर्ष भर के द्वार खुल जाते हैं।” 

सुरेश गांधी

काशी! वह नगरी जहाँ जीवन का आरंभ भी आशीर्वाद है और अंत भी मोक्ष। जहाँ भोर गंगा की आरती से शुरू होती है और संध्या विश्वनाथ के शंखध्वनि में विलीन हो जाती है। कहा गया है, “काशी कण-कण शिवमय है”, और इसी शिवमय काशी में माँ अन्नपूर्णा का वह दिव्य मंदिर है, जहाँ स्वयं भोलेनाथ भी याचक बनकर खड़े होते हैं। यही वह आस्था का केंद्र है जहाँ भोजन को केवल अन्न नहीं, बल्कि अन्नपूर्णा का प्रसाद माना जाता है। स्कंद पुराण के काशी खंड में लिखा है, “काश्यां कश्चिद् भूको भवति अन्नपूर्णा प्रसादतः।अर्थात्, काशी में माँ अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भूखा नहीं सोता। इस वर्ष दीपावली पर्व की तिथि को लेकर देशभर में भ्रम की स्थिति थी। कहीं 20 अक्तूबर तो कहीं 21 अक्तूबर का उल्लेख था। इस पर श्री काशी विद्वत परिषद ने धर्मशास्त्र एवं ज्योतिष प्रकोष्ठ की बैठक कर सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि दीपावली का महापर्व 20 अक्तूबर को ही मनाया जाएगा। 

बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पांडेय ने की। उन्होंने बताया किपूर्ण प्रदोष काल व्यापिनी तिथि 20 अक्तूबर को ही प्राप्त हो रही है, अतः वही लक्ष्मी पूजन का शुद्ध दिन होगा।इस प्रकार काशी ने एक बार फिर सम्पूर्ण भारत को धर्म का मार्ग दिखाया, क्योंकि काशी केवल मोक्ष की नगरी नहीं, बल्कि धर्म निर्णय की भूमि भी है। पौराणिक कथानुसार, काशी के राजा देवोदास के शासनकाल में एक बार भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था। जनता अन्न के अभाव में त्रस्त थी। तब राजा, उनके मंत्री और पुरोहित धनंजय ने 17 दिनों तक माता अन्नपूर्णा का व्रत कर अनुष्ठान किया। माँ प्रसन्न हुईं और काशी से दुर्भिक्ष समाप्त हुआ। तभी से यह व्रत और अन्नकूट उत्सव हर वर्ष धनतेरस के अवसर पर आयोजित किया जाता है। यह कथा आज भी हर भक्त को स्मरण कराती है कि, “जहाँ विश्वास है, वहाँ अन्न है। जहाँ अन्न है, वहाँ अन्नपूर्णा हैं।

तीनों देवियों का अद्भुत संगम

काशी का अन्नपूर्णा मंदिर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ तीनों देवियाँ, माँ अन्नपूर्णेश्वरी, माँ लक्ष्मी और माँ भूमि देवी कृ एक साथ विराजमान हैं। माँ अन्नपूर्णा अन्न की देवी हैं, माँ लक्ष्मी धन की और माँ भूमि देवी स्थायित्व की। जो व्यक्ति इन तीनों का संयुक्त दर्शन करता है, उसके जीवन में केवल अन्न-धन की वृद्धि होती है, बल्कि सुख, ऐश्वर्य और स्थायित्व का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। माँ के दरबार में आने वाले हर श्रद्धालु के मन में यही भाव होता है, “माँ, मेरे घर में अन्न रहे, पर कोई भूखा लौटे।

काशी : जहाँ धर्म और दर्शन साथ चलते हैं

काशी केवल धार्मिक तीर्थ नहीं, यह दर्शन और जीवन की समग्र अनुभूति है। यहाँ माँ अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ का संगम यह सिखाता है कि मोक्ष और भोजन, दोनों एक ही सनातन यात्रा के दो चरण हैं। एक देह को तृप्त करता है, दूसरा आत्मा को मुक्त करता है। काशी की गलियों में यही भाव गूंजता है, “शिव बिना अन्न अधूरा है, और अन्न बिना शिव मौन है।यही कारण है कि यहाँ पूजा की थाली में दीप और अन्न दोनों साथ रखे जाते हैं।

अन्नपूर्णा और शिव : अद्वैत का प्रतीक

माँ अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ का यह संगम केवल पति-पत्नी का प्रतीक नहीं, बल्कि अद्वैत तत्त्व का दर्शन है। जहाँ शिव त्याग हैं, वहीं अन्नपूर्णा पोषण हैं। जहाँ शिव समाधि हैं, वहीं माँ सहानुभूति। दोनों मिलकर काशी के धर्म, दर्शन और दया का संतुलन बनाते हैं। काशी के संत अक्सर कहा करते हैं, “शिव ने काशी को मोक्ष दिया, पर माँ अन्नपूर्णा ने उसे जीवन दिया।इसीलिए यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति काशी में माँ अन्नपूर्णा का दर्शन कर लेता है, वह केवल समृद्धि नहीं, संतोष भी पा लेता है।

धनतेरस से अन्नकूट तक : काशी का सोने सा उजाला

धनतेरस से शुरू होकर अन्नकूट तक काशी का हर कोना सुनहरी आभा से भर उठता है। माँ अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी स्वरूप की झांकी जब दीपों की रौशनी में नहाती है, तो ऐसा लगता है मानो स्वयं देवी धरती पर उतर आई हों। भक्त घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, कभी थकते नहीं, क्योंकि उन्हें पता है, देवी के एक दर्शन से ही वर्षभर का कल्याण होता है। मंदिर में आरती की ध्वनि, घंटों की टन-टन, औरजय अन्नपूर्णा माताके जयघोष से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहता है। उस क्षण में काशी केवल शहर नहीं रहती, वह एक जीवित प्रार्थना बन जाती है।

काशी में कोई भूखा नहीं सोता

यह वचन केवल शास्त्रों का नहीं, बल्कि काशी का चरित्र है। माँ अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से यहाँ हर घाट, हर आश्रम, हर मंदिर में प्रसाद का अन्न बँटता है। यहाँ भूख का अंत होता है, और तृप्ति की शुरुआत। माँ का यह वचन हर भक्त के जीवन का आधार है, “जो भी मेरी शरण में आएगा, वह अन्न से, धन से और ज्ञान से परिपूर्ण होगा।काशी में यही आस्था सजीव है, जहाँ अन्न है, वहाँ अन्नपूर्णा हैं; जहाँ अन्नपूर्णा हैं, वहाँ शिव हैं; और जहाँ शिव हैं, वहाँ भूख नहीं, केवल शांति और मोक्ष है।

धनतेरस की दिव्य रात्रि और स्वर्णमयी अन्नपूर्णा

धनतेरस का दिन काशी में केवल धन के स्वागत का नहीं, अन्न के आदर का पर्व है। इसी दिन, अर्धरात्रि के समय, माँ अन्नपूर्णेश्वरी की स्वर्णमयी प्रतिमा की महाआरती के साथ मंदिर के कपाट खुलते हैं। भोर होते ही भक्तों की भीड़ उस स्वर्णमयी माँ के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है, जो वर्षभर केवल चार दिनों के लिए ही दर्शन देती हैं। इस वर्ष 18 अक्तूबर से 22 अक्तूबर तक भक्तों के लिए मंदिर के कपाट खुले रहेंगे। धनतेरस की रात माँ के खजाने की पूजा के साथ महाआरती संपन्न होगी और अगले ही क्षण से भक्तों को प्रसादस्वरूप माँ का खजाना बाँटा जाएगा, धान, लावा और पाँच लाख सिक्के। मान्यता है कि जो भी भक्त इसअन्नपूर्णा खजानेको लाल वस्त्र में बाँधकर अपनी तिजोरी में रखता है, उसे वर्षभर कभी अन्न-धन की कमी नहीं होती।

भूख पर विजय की कथाः जब शिव बने याचक

एक बार काशी में भीषण अकाल पड़ा। चारों ओर अन्न का अभाव, लोगों में हाहाकार कृ भूख से व्याकुल जन जब शिव के शरण पहुँचे तो महादेव ने स्वयं समाधि लगाई। समाधान एक ही था कृ माँ अन्नपूर्णा। भगवान शिव स्वयं भिक्षा-पात्र लेकर पार्वती के पास पहुँचे और कहा, “अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे। ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि पार्वतीकृमाँ ने उस क्षण वचन दिया, “अब से मेरी काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा।तभी से काशी को अन्न क्षेत्र कहा जाने लगा। आज भी मंदिर की दीवारों पर वही दृश्य अंकित है, जिसमें माँ अन्नपूर्णा अपने खप्पर से स्वयं शिव को भिक्षा देती दिखती हैं।

काशी की पूर्णता : शिव और अन्नपूर्णा का संगम

कहते हैं शिव बिना शक्ति के अधूरे हैं और काशी बिना माँ अन्नपूर्णा के। जब विवाहोपरांत माँ पार्वती कैलाश पहुँचीं तो हँसते हुए बोलीं, “स्वामी, आप तो मुझे मेरे मायके ही ले आए।तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर काशी की रचना की और कहा, “यह मेरी नगरी होगी, जहाँ मैं मोक्ष दूँगा और तुम अन्न दोगी।यही वह क्षण था जब पार्वती अन्नपूर्णेश्वरी बनीं, अन्न की पूर्ण दात्री, धन की अधिष्ठात्री।

कुबेर का खजाना और प्रसाद का महत्व

धनतेरस के दिन काशी में केवल धनतेरस नहीं मनती, बल्कि कुबेर का खजाना खुलता है। इस खजाने की पूजा के बाद मंदिर के महंत महाआरती करते हैं और फिर माँ का प्रसाद कृ धान, लावा, और सिक्के कृ भक्तों में बाँटे जाते हैं। मान्यता है कि इस प्रसाद को लाल कपड़े में बाँधकर तिजोरी या भंडार में रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह माँ की कृपा का प्रतीक है, जो वर्षभर घर में अन्नपूर्णता बनाए रखती है। भक्त कहते हैं, “माँ का खजाना जिसे मिल गया, उसके घर का चूल्हा कभी ठंडा नहीं पड़ता।

काशी का अद्भुत अन्नकूट महोत्सव

अन्नकूट महोत्सव का आयोजन धनतेरस से दीपावली तक चलता है। मंदिर में सजावट अद्भुत होती है, सोने-चाँदी की झालरों से अलंकृत गर्भगृह, दीपों की कतारें, सुगंधित फूलों की वर्षा, और घंटों की गूंज में गूँजती आरती, “जय अन्नपूर्णे माँ जय जय, तू सबकी पालनहारी।चारों दिन भक्तों की लंबी कतारें गंगा तट तक फैली रहती हैं। लाखों श्रद्धालु भोर से रात्रि तक माता के दर्शन कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। धनतेरस की रात स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन कर भक्त अपने घर लौटते हैं तो ऐसा लगता है मानो माँ स्वयं उनके संग चली आई हों।

शिव-पार्वती का अनंत संवादः भूख और मोक्ष का संगम

काशी का यह दर्शन अनोखा है, जहाँ एक ओर बाबा विश्वनाथ मोक्ष देते हैं, वहीं दूसरी ओर माँ अन्नपूर्णा जीवन का आधार। काशी का दर्शन अधूरा है यदि विश्वनाथ के साथ माँ अन्नपूर्णा के दर्शन किए जाएँ। यहाँ शिव दान का प्रतीक हैं, और अन्नपूर्णा पालन की शक्ति। इसीलिए काशी कोमोक्ष और पोषण की नगरीकहा गया है।

काशी की थाली में समर्पण का स्वाद

धनतेरस की इस पावन रात्रि में जब माँ अन्नपूर्णा के कपाट खुलते हैं, तब केवल मंदिर नहीं, पूरे नगर का हृदय खुल जाता है। हर भक्त दीप जलाकर यही प्रार्थना करता है, “माँ! मेरे द्वार से कोई भूखा लौटे, मेरे घर में अन्न रहे, पर उससे बड़ा दान भाव रहे।काशी में अन्न केवल भोजन नहीं, भक्ति का प्रसाद है। यहाँ माँ अन्नपूर्णा के बिना दीपावली अधूरी है, और अन्नकूट के बिना वर्ष निष्प्राण। क्योंकि यहाँ हर रसोई, हर थाली, हर दाने में माँ का आशीर्वाद छिपा है। सच ही कहा गया है, “माँ अन्नपूर्णा की कृपा से काशी में कोई भूखा नहीं सोता।

No comments:

Post a Comment

सात नवम्बर को काशी आएंगे प्रधानमंत्री मोदी, खजुराहो वंदे भारत को दिखाएंगे हरी झंडी

सात नवम्बर को काशी आएंगे प्रधानमंत्री मोदी , खजुराहो वंदे भारत को दिखाएंगे हरी झंडी  बीएलडब्ल्यू में करेंगे बैठक , भव्य स्व...