श्री काशी
विश्वनाथ
धाम
की
चौथी
वर्षगांठ
शिवरहस्य से दीप्त काशी : भव्यता, आस्था और अद्भुत परिवर्तन का महाउत्सव
गंगा
की
धाराएं
जब
काशी
के
हृदय
से
टकराती
हैं,
तो
ऐसा
प्रतीत
होता
है
मानो
समस्त
ब्रह्मांड
के
स्पंदन
यहां
आकर
थम
गए
हों।
पंचक्रोशी
पथ
की
धूल,
गंगा
तट
की
आह्लादित
हवा,
मणिकर्णिका
की
अनादी
शांत
ज्वाला
और
बाबा
विश्वनाथ
के
दिव्य
त्रिशूल
का
सामूहिक
प्रतिध्वनि,
ये
सब
काशी
को
वह
रूप
देते
हैं,
जो
पृथ्वी
के
किसी
अन्य
स्थल
को
प्राप्त
नहीं।
उसी
काशी
ने
चार
वर्ष
पूर्व
अपने
इतिहास
के
सबसे
भव्य
अध्यायों
में
से
एक
को
जन्म
दिया
था,
श्री
काशी
विश्वनाथ
धाम
कॉरिडोर।
मतलब
साफ
है
वाराणसी,
कालातीत
काशी,
शिव
की
अनन्य
भूमि,
जहां
हर
भोर
गंगा
की
लहरों
पर
सूर्य
का
स्वर्णिम
प्रतिबिंब
उतरता
है
और
शाम
की
आरती
में
आस्था
दीप
बनकर
जगमगाती
है,
वही
काशी
अब
एक
फिर
से
इतिहास
लिख
रही
है।
इस
बार
अध्याय
न
तो
किसी
राजवंश
का
है,
न
किसी
शास्त्रार्थ
का,
बल्कि
सनातन
आस्था
के
विराट
उदात्त
रूप,
श्री
काशी
विश्वनाथ
धाम
के
पुनर्जागरण
का
है,
जिसे
लोकार्पित
हुए
चार
वर्ष
पूरे
हो
रहे
हैं।
आज,
13 दिसंबर
2025 को,
इस
पुनर्निर्मित
धाम
की
चौथी
वर्षगांठ
ऐसी
धूमधाम
से
मनाई
जा
रही
है,
मानो
काशी
स्वयं
अपने
इतिहास
को
नूतन
स्वर्णाक्षरों
में
उकेर
रही
हो।
धाम
की
दीवारें,
गलियारे,
नंदी
दर्शन
पथ
और
गंगा
मार्ग,
सब
उत्सव
के
रंगों
में
रंगे
हैं।
वैदिक
ऋचाएं
वातावरण
में
घुलती
जा
रही
हैं
और
लोग
दूर-दूर
से
आकर
पूछ
रहे
हैं,
“कैसी
अद्भुत
है
यह
काशी!
और
कितनी
बदल
गई
इन
चार
वर्षों
में?“
सुरेश गांधी

13 दिसंबर 2021, यह केवल एक
दीक्षा दिवस भर नहीं
था। यह वह घड़ी
थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने विश्वनाथ धाम
के भव्य नव-परिसर
का उद्घाटन कर काशी को
उसका खोया गौरव लौटा
दिया। धाम की तंग
गलियों को इतिहास बनाकर,
मंदिर परिसर को 50 गुना विस्तृत कर,
गंगा से सीधे विश्वनाथ
के दरबार तक निर्बाध पहुंच
बनाकर जो परिवर्तन हुआ,
वह केवल स्थापत्य का
परिवर्तन नहीं था। वह
था, एक सभ्यता का
पुनर्जन्म, एक आस्था का
उत्थान, और एक पूरी
नगरी की आत्मा का
पुनर्प्रकाश. मोदी द्वारा लोकार्पित
नव्य-भव्य-दिव्य धाम
ने न सिर्फ बाबा
विश्वनाथ मंदिर की सांस्कृतिक गरिमा
को पुनर्स्थापित किया, बल्कि यह साबित किया
कि जब विकास दूरदृष्टि
से संचालित हो तो वह
परंपरा को नया जीवन
देता है, उसे लीलता
नहीं। आज चार वर्ष
बाद ऐसा प्रतीत होता
है मानो उसने काशी
की नियति ही बदल दी
हो। धर्म, संस्कृति, पर्यटन, अर्थव्यवस्था और शहरी विकास,
हर क्षेत्र में काशी नई
ऊंचाइयों को छू रही
है। यह धाम केवल
मंदिर नहीं, बल्कि भारत की अस्मिता,
आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक नेतृत्व
का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
आज चार वर्ष बाद
जब श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों
में जा पहुंची है,
जब धाम की सजावट
विश्व-स्तरीय बन चुकी है,
जब चढ़ावा हर वर्ष नया
रिकॉर्ड बना रहा है
और जब काशी की
अर्थव्यवस्था शिखर छू रही
है, तब यह वर्षगांठ
एक अध्यात्मिक पर्व से कहीं
अधिक हो जाती है।
मतलब साफ है काशी
विश्वनाथ धाम की यह
चार वर्ष की यात्रा
इस बात का प्रमाण
है कि आस्था जब
विकास के साथ जुड़ती
है, तो परिणाम केवल
धार्मिक नहीं, बल्कि सभ्यतागत होते हैं। बाबा
का आशीष और व्यवस्थाओं
का विस्तार, दोनों ने काशी को
वह स्थान दिलाया है जहां अब
दुनिया श्रद्धा के साथ नजरें
उठाकर देख रही है।
काशी सदियों से कहती आई
है, यहाँ हर दिन
नया है, हर पल
शिवमय है। धाम का
चार वर्ष पूरा होना
उसी सनातन संदेश की पुनर्पुष्टि है।
13 से 15 दिसंबर तक होने वाले
उत्सव इस बात का
प्रमाण होंगे कि काशी केवल
शहर नहीं, एक जीवंत चेतना
है। और श्री काशी
विश्वनाथ धाम उसका स्पंदित
हृदय।
वैदिक गूँज से दीप्त हो रहा विश्वनाथ धाम
वर्षगांठ का मुख्य दिवस, 13 दिसंबर की महाशोभा
पुष्पों से सजा पूरा धाम
12 दिसंबर से धाम की
भव्य सजावट शुरू हो गयी
है, गंगा द्वार से
लेकर नंदी दर्शन पथ
तक, गर्भगृह के प्रवेश द्वार
से लेकर मंदिर चौक
तक, वैश्विक अतिथि कक्षों से लेकर गलियारों
तक सैकड़ों प्रकार के देशी-विदेशी
पुष्पों से धाम को
सजाया गया है. इनमें
राजनिगंधा, गुलदाऊदी, ऑर्किड, गुलाब, जरबेरा, कमल और काशी
की पारंपरिक गेंदे की मालाएँ शामिल
हैं। श्रद्धालु इस अलौकिक पुष्पसज्जा
का दर्शन कर धन्य हो
रहे है, जिसे प्रतिवर्ष
किसी “जीवित पुष्प कला संग्रहालय” जैसा
रूप दिया जाता है।
शिवतत्व और ‘तीन’ की आध्यात्मिक व्याख्या
शिव इतने व्यापक
क्यों हैं? क्यों उनके
प्रतीक त्रिविध स्वरूपों में ही अधिक
दिखाई देते हैं? क्यों
धाम की “चौथी वर्षगांठ”
इस वर्षगांठ को विशेष महत्व
देती है? क्योंकि शिव
स्वयं ’त्रित्व’ हैं, त्रिपुण्ड, त्रिशूल,
त्रिपत्र बिल्व, त्रिदेव स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तीन लोक, भू,
भुवः, स्वः, तीन अवस्थाएँ भूत,
वर्तमान, भविष्य, तीन नाड़ियां इड़ा,
पिंगला, सुषुम्ना, सभी मिलकर शिवतत्व
का वह दार्शनिक आधार
बनाते हैं, जो मनुष्य
को, उत्पत्ति, स्थिति, संहार तीनों की अनुभूति कराता
है। काशी धाम का
सम्पूर्ण वास्तु भी इसी त्रिवेणी
संतुलन पर आधारित है।
चार वर्षों में आया अद्भुत परिवर्तन
अब बात उस
परिवर्तन की, जिसने काशी
को “आस्था की राजधानी“ के
अतिरिक्त “विश्वस्तरीय सांस्कृतिक केंद्र“ बना दिया। चार
साल : 26 करोड़ 23 लाख श्रद्धालु, 4500 करोड़
से ऊपर का कारोबार...यह बताने के
लिए काफी है, श्री
काशी विश्वनाथ धाम... जहां आस्था बढ़ी,
काशी निखरी और सनातन जाग
उठा है. यह आंकड़ा
न केवल रिकॉर्ड है,
बल्कि यह सनातन आस्था
के विश्वव्यापी पुनरुत्थान की कथा भी
कहता है। खास यह
है कि इसी अवधि
में चढ़ावा लगभग 175 करोड़ से अधिक
का रहा, जबकि धाम
और पर्यटन से जुड़े सेक्टरों
में लगभग 4500 करोड़ रुपये से
अधिक की आर्थिक गतिविधियां
दर्ज की गईं। यह
आंकड़े काशी को न
सिर्फ धार्मिक राजधानी बनाते हैं, बल्कि तेजी
से उभरते आर्थिक केंद्र के रूप में
स्थापित करते हैं। मतलब
साफ है ये चार
वर्ष केवल किसी संरचनात्मक
विस्तार के नहीं, बल्कि
एतिहासिक रूप से पुनर्जीवित
उस आध्यात्मिक चेतना के भी साक्षी
हैं, जिसने काशी को एक
बार फिर विश्व धार्मिक
पर्यटन के केंद्र में
प्रतिष्ठित कर दिया है।
धाम का पुनरुद्धार केवल
वास्तु विस्तार नहीं, बल्कि एक ऐसे धार्मिक-सांस्कृतिक परिसर का निर्माण है
जिसमें भक्तों के लिए सुगमता
सर्वोपरि है। धाम के
मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र बताते
हैं, “सावन हो या
चिलचिलाती गर्मी, हर मौसम में
भक्तों के लिए छाया,
कूलिंग, ड्रिंकिंग वाटर, मैट, ओआरएस, प्राथमिक
चिकित्सा, गोल्फ कार्ट, व्हीलचेयर और जर्मन हैंगर
जैसी व्यवस्थाएँ मंदिर न्यास की प्राथमिकता में
हैं।” धाम पहुंचने वाला
हर शिवभक्त यह अनुभव करता
है कि सुविधा और
व्यवस्था की यह परिकल्पना
आधुनिक भारत के धार्मिक
आधारभूत ढांचे का नया मानक
है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की
निरंतर उपस्थिति और समीक्षा ने
काशी के इस परिवर्तन
को गति दी है।
शहर की कनेक्टिविटी, फ्लाईओवरों
का जाल, मल्टी-लेवल
पार्किंग, चौड़ी सड़कें, घाटों
का सौंदर्यीकरण, गंगा पथ, इन
सभी ने मिलकर बनारस
को एक आधुनिक धार्मिक
पर्यटन नगर के रूप
में विकसित किया है, जहां
परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चलती हैं।
यही वजह है कि
विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ी
है और काशी अब
‘वैश्विक संस्कृति एवं आस्था राजधानी’
के रूप में उभर
रही है।
3,000 वर्गफुट से 5 लाख वर्गफुट
तक... धाम का विराट विस्तार
पहले जहां मंदिर
परिसर महज 3,000 वर्गफुट में सिमटा था,
वहीं आज यह करीब
पाँच लाख वर्गफुट में
फैला है, एक ऐसा
विस्तार जिसे देखकर पहली
बार आने वाला हर
श्रद्धालु विस्मित हो उठता है।
मां गंगा के निकट
तक बना विशाल कॉरिडोर,
सुव्यवस्थित प्रवेश मार्ग, खुली हवा वाला
परिक्रमा क्षेत्र, ये सभी बाबा
के भक्तों के लिए आध्यात्मिक
अनुभव को और गहन
बनाते हैं।
चार वर्षों में बढ़ता सैलाब : वर्षवार आंकड़ों में धाम की बुलंदी
वर्ष श्रद्धालुओं
की
संख्या
2021 (13 से 31 दिसंबर) 48,42,716
2022 7,11,47,210
2023 5,73,10,104
2024 6,23,90,302
2025 (12 दिसंबर तक) 6,76,68,512
यह आंकड़ा केवल
बढ़ती संख्या नहीं, बल्कि विश्वास की वह धारा
है जिसमें हर दिन करोड़ों
लोग डुबकी लगा रहे हैं।
पर्यटन का ‘कुम्भ’ दैनिक डेढ़ लाख श्रद्धालु तक पहुंचे
कवि-कल्पना नहीं,
आंकड़े खुद बताते हैं
कि विश्वनाथ धाम के पुनर्विकास
ने काशी में धार्मिक
पर्यटन को विश्व स्तर
पर नई पहचान दी
है। मंदिर ट्रस्ट के मुताबिक धाम
में औसतन रोजाना 1 से
1.5 लाख श्रद्दालु दर्शन-पूजन के लिए
आते हैं। सावन, माघ
और प्रमुख पर्वों पर यह संख्या
कई गुना बढ़ जाती
है।
महाकुंभ में भी रिकॉर्ड तोड़ भीड़
महाकुंभ 2025 के दौरान काशी
में आस्था का अभूतपूर्व प्रवाह
देखने को मिला। केवल
45 दिनों में 2 करोड़ 67 लाख 13 हजार 004 श्रद्धालुओं ने धाम में
दर्शन कर नया रिकॉर्ड
बनाया। 1 जनवरी से 28 फरवरी के बीच कुल
2 करोड़ 87 लाख 11 हजार 233 श्रद्धालु काशी पहुंचे। औसतन
हर दिन 6.5 लाख से अधिक
दर्शनार्थियों ने बाबा विश्वनाथ
के दरबार में हाजिरी लगाई।
इंफ्रास्ट्रक्चर - आस्था : पर्यटन का नया पैमाना
काशी के विकास
मॉडल का सबसे बड़ा
आधार है, धर्म, संस्कृति
और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर का संगम। साथ
ही कनेक्टिविटी और शहरी ढांचा
इस तरह विकसित हुआ
कि दुनिया के किसी भी
कोने से आने वाला
यात्री खुद को सहज
महसूस करे। इन्हीं सुधारों
ने काशी को विश्व
के धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर शीर्ष पर
पहुंचाया, गंगा क्रूज, विश्वप्रसिद्ध
गंगा आरती, घाटों का कायाकल्प, वाराणसी
की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक परंपराएं, बनारसी बुनकरों की कला, गुलाबी
मीनाकारी और स्थानीय शिल्प,
सुरक्षित, स्वच्छ और स्मार्ट मार्गदर्शन
व यातायात.
4500 करोड़ का आर्थिक इकोसिस्टम,
काशी को मिला ‘डबल इंजन’ का लाभ
विश्वनाथ धाम के उद्घाटन
के बाद काशी का
पर्यटन आधारित कारोबार ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच
गया। चढ़ावा, होटल-टूरिज्म, ट्रांसपोर्ट,
फूड एंड क्राफ्ट मार्केट,
रियल एस्टेटकृसभी सेक्टरों में उछाल दिखा।
रोजगार वृद्धि
(अनुमानित
औसत)
पर्यटन
क्षेत्र : 45 फीसदी वृद्धि
घाट
प्रबंधन : बढ़ा रोजगार
होटल
मालिकों की आय : 75 फीसदी
तक वृद्धि
दुकानदारों
की आय : 50 फीसदी वृद्धि
ई-रिक्शा चालकों की आय : 35 फीसदी
वृद्धि
टैक्सी
ऑपरेटर : 25 फीसदी तक वृद्धि
नाविक,
पूजन सामग्री, साड़ी व्यवसायी, मीनाकारी,
कारीगर : 55 फीसदी आय वृद्धि.
यह वृद्धि केवल
व्यावसायिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आस्था और सुविधाओं के
अनुकूलन का परिणाम है,
सुगम दर्शन से 99 फीसदी श्रद्धालु संतुष्ट पाए गए।
काशी बदल रही है भारत का पर्यटन भूगोल
चार वर्षों के
भीतर काशी विश्वनाथ धाम
ने आगरा और मथुरा
जैसे शहरों को पीछे छोड़
दिया है। पर्यटकों की
संख्या के मामले में
काशी देश की सबसे
अधिक विजिटेड धार्मिक नगरी बन चुकी
है। धार्मिक पर्यटन के इस उभार
से काशी के छोटे
दुकानदारों से लेकर होटलियर,
चालक, नाविक, बुनकर और कारीगर तककृहर
किसी की आर्थिक स्थिति
में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। कभी
संकरे मार्गों में सिमटी काशी,
आज विशाल प्रांगणों में सांस लेती
है। गंगा की धारा
मंदिर तक पहुँचती है।
धाम में ठहरने पर
अनुभूति होती है कि
“शिव स्वयं इस धरा पर
विचरण कर रहे हों।”
काशी का पुनर्जन्म और विश्वनाथ का अनंत वैभव
धाम की चौथी
वर्षगांठ केवल एक आयोजन
का नाम नहीं, यह
काशी की उस अद्भुत
यात्रा का उत्सव है
जिसने अतीत को सम्मान
दिया, वर्तमान को भव्य बनाया,
और भविष्य के लिए आध्यात्मिक
धरोहर का अमिट मार्ग
तैयार किया। आज जब लाखों
दीप काशी की देहरी
पर जगमगा रहे हैं, तब
हर भक्त की आँखों
में एक ही भाव
है, “जहाँ शिव हैं,
वहीं मोक्ष है। और जहाँ
काशी है, वहाँ शिव
सदा विराजते हैं।”
दो तिथियाँ, एक उत्सव, दोगुना उल्लास
इस वर्ष एक
रोचक संयोग बना है, ग्रेगोरियन
कैलेंडर के अनुसार धाम
का लोकार्पण 13 दिसंबर को हुआ था।
हिंदू पंचांग के अनुसार लोकार्पण
की तिथि मार्गशीर्ष शुक्ल
दशमी है, जो इस
वर्ष 14 दिसंबर को पड़ रही
है। अतः धाम प्रशासन
ने निर्णय लिया है कि
13 और 14 दिसंबर दोनों दिन विशेष कार्यक्रम,
और 12 से 15 दिसंबर तक चार दिन
का पुष्पोत्सव मनाया जाएगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र बताते हैं धाम की
वर्षगांठ केवल उत्सव नहीं,
बल्कि सनातन संस्कृति के उस नवोन्मेष
का प्रदर्शन है जिसने काशी
को विश्व-मानचित्र पर पुनः प्रतिष्ठित
किया है।
धाम, अब पूरे देश के मंदिरों के लिए ‘मॉडल’
धाम में भीड़
नियंत्रण, सफाई, सुरक्षा, प्लास्टिक-मुक्त परिसर, वैदिक-अनुष्ठान और तकनीक आधारित
सुविधाओं को देखते हुए
अन्य प्रमुख मंदिरों, मथुरा, रामेश्वरम, अयोध्या, उज्जैन, पुरी ने भी
प्रबंधन सीखने में रुचि दिखाई
है। धाम की एसओपी
देश के कई मंदिरों
के लिए मार्गदर्शक के
रूप में काम करेगी।
चार वर्षों में धाम की
लोकप्रियता में बढ़ोतरी के
पीछे अनेक कारण हैं,
भक्त-सुविधाएँ विश्वस्तरीय
जर्मन हैंगर, गोल्फ कार्ट, निःशुल्क व्हीलचेयर, गर्मी में पैरों के
लिए मैट, कूलर, पीने
का स्वच्छ जल, कैनोपी, ओआरएस,
24×7 मेडिकल सुविधा, तकनीक का व्यापक उपयोग
ऑनलाइन दर्शन, डिजिटल टिकट, लाइव दर्शन, स्मार्ट
भीड़ प्रबंधन, शिकायत निवारण प्रणाली, काशी के लोगों
के लिए अलग प्रवेश,
एक मानवीय व्यवस्था, काशीवासियों के स्वयं के
मंदिर में सहज प्रवेश
को प्राथमिकता दी गई है।




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