खादी की बुनावट में भरोसे की वापसी, अर्बन हॉट में उमड़ी खरीदारों की भीड़
खादी ग्रामोद्योग
प्रदर्शनी
में
छह
दिन
में
1.13 करोड़
की
बिक्री,
स्वदेशी
और
स्वरोजगार
को
मिला
नया
संबल
सुरेश गांधी
वाराणसी। आज जब बाजार
में ब्रांड और मशीन से
बने कपड़ों का बोलबाला है,
ऐसे दौर में खादी
ने एक बार फिर
साबित कर दिया है
कि भरोसा, सादगी और स्वदेशी की
ताकत कभी कम नहीं
होती। अर्बन हॉट प्रांगण, चौकाघाट
में आयोजित खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी-2025
न सिर्फ खरीदारों की पहली पसंद
बन रही है, बल्कि
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्वरोजगार की
उम्मीदों को भी मजबूती
दे रही है।
उप्र खादी तथा
ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा 20 से 29 दिसंबर तक आयोजित इस
दस दिवसीय प्रदर्शनी में खादी और
ग्रामोद्योग उत्पादों को देखने व
खरीदने के लिए रोज़
बड़ी संख्या में लोग पहुंच
रहे हैं। परिक्षेत्रीय ग्रामोद्योग
अधिकारी यूपी सिंह के
अनुसार, प्रदर्शनी के पहले छह
दिनों में ही बिक्री
1.13 करोड़ रुपये के पार पहुंच
चुकी है, जो खादी
एवं ग्रामोद्योग परिवार के लिए उत्साहवर्धक
संकेत है।
खादी केवल एक
वस्त्र नहीं, बल्कि आज़ादी के आंदोलन से
जुड़ा विचार है। कपास, रेशम
और ऊन के हाथ
कते सूत से हथकरघे
पर बुना गया यह
कपड़ा मौसम के अनुकूल
होता है, गर्मी में
ठंडक और सर्दी में
गर्माहट देता है। कभी
साधारण माने जाने वाले
खादी वस्त्र आज फैशन का
हिस्सा बन चुके हैं।
युवा हों या बुजुर्ग,
हर उम्र के लोग
खादी को अपनाते नजर
आ रहे हैं।
प्रदर्शनी का मूल उद्देश्य
केवल बिक्री नहीं, बल्कि स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देकर
लोगों को स्वरोजगार के
लिए प्रेरित करना है। ताकि
गांवों में उत्पादन बढ़े,
हाथों को काम मिले
और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। इसी सोच
के साथ प्रदर्शनी में
वाराणसी समेत उत्तराखंड और
प्रदेश के विभिन्न जनपदों
:- प्रतापगढ़, मीरजापुर, कुशीनगर, प्रयागराज आदि की पंजीकृत
इकाइयों ने भाग लिया
है।
कुल 125 स्टॉलों में 22 खादी और 103 ग्रामोद्योग
स्टॉल लगाए गए हैं,
जहां वस्त्रों के साथ-साथ
हस्तशिल्प, घरेलू उपयोग के स्वदेशी उत्पाद
और पारंपरिक वस्तुएं लोगों को आकर्षित कर
रही हैं। बढ़ती भीड़
और बिक्री के आंकड़े यह
साफ संकेत दे रहे हैं
कि खादी सिर्फ अतीत
की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की जरूरत भी
है। अर्बन हॉट की यह
प्रदर्शनी बताती है कि अगर
स्वदेशी को सही मंच
और भरोसा मिले, तो वह बाजार
में किसी भी ब्रांड
से पीछे नहीं रहता।
खादी की यह चमक
सिर्फ कपड़ों की नहीं, बल्कि
आत्मनिर्भर भारत के विचार
की भी है।

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