विश्व कल्याण की राह पर काशी शब्दोत्सव-2025
भारतीय संस्कृति
और
ज्ञान
परंपरा
का
वैश्विक
संदेश
संस्कृत विभाग
और
काशी
शब्दोत्सव
समिति
के
संयुक्त
तत्वावधान
में
आयोजित
इस
तीन
दिवसीय
समारोह
में
12 सत्र
होंगे
इनमें भारतीय
ज्ञान
परंपरा,
कौटुंबिक
अवधारणा,
सामाजिक
समरसता,
समाज
प्रबंधन,
लोकतांत्रिक
शुचिता,
भारतीय
साहित्य,
पर्यावरण,
न्यायबोध,
वैदिक
और
पौराणिक
संदर्भ,
भारतीय
चिकित्सा
पद्धति
तथा
शिक्षा
की
भारतीय
अवधारणा
जैसे
विषयों
पर
देश-विदेश
के
विद्वान
विमर्श
करेंगे
उत्सव का
एक
बड़ा
आकर्षण
राष्ट्रीय
पुस्तक
प्रदर्शनी
है
सुरेश गांधी
वाराणसी.
काशी सांस्कृतिक धरती हमेशा से
ज्ञान, साहित्य और अध्यात्म का
केंद्र रही है। अब
इसी काशी में 16 से
18 नवम्बर 2025 तक होने वाला
काशी शब्दोत्सव-2025 इस परंपरा को
नई ऊंचाई देगा। विषय है—“विश्व
कल्याण : भारतीय संस्कृति”। यह केवल
उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय मनीषा का ऐसा संगम
है, जो हमारे अतीत
की गौरवगाथा को वर्तमान के
संवाद से जोड़ता है
और भविष्य के लिए दिशा
देता है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय
के संस्कृत विभाग और काशी शब्दोत्सव
समिति के संयुक्त तत्वावधान
में आयोजित इस तीन दिवसीय
समारोह में 12 सत्र होंगे। इनमें
भारतीय ज्ञान परंपरा, कौटुंबिक अवधारणा, सामाजिक समरसता, समाज प्रबंधन, लोकतांत्रिक
शुचिता, भारतीय साहित्य, पर्यावरण, न्यायबोध, वैदिक और पौराणिक संदर्भ,
भारतीय चिकित्सा पद्धति तथा शिक्षा की
भारतीय अवधारणा जैसे विषयों पर
देश-विदेश के विद्वान विमर्श
करेंगे।
2023 में शुरू हुआ
यह महोत्सव अब राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित
हो चुका है। इसकी
खासियत यह है कि
यह महज़ मंचीय कार्यक्रम
नहीं, बल्कि भारतीयता के गहरे भाव
का उद्घोष है। राष्ट्रधर्म पत्रिका
के निदेशक मनोजकांत के शब्दों में,
“यह भारतीय मन की सृजनात्मक
धारा का ज्योति पुंज
है।” वास्तव में, यह आयोजन
हमारी सभ्यता की जड़ों को
पहचानने और उन्हें विश्व
समुदाय तक पहुँचाने का
प्रयास है।
उत्सव का एक बड़ा
आकर्षण राष्ट्रीय पुस्तक प्रदर्शनी है, जो राष्ट्रीय
पुस्तक न्यास, नई दिल्ली के
सहयोग से लगेगी। साथ
ही हर शाम लोक
और शास्त्रीय संगीत की सांस्कृतिक संध्याएं
काशी की आत्मा को
जीवंत करेंगी। यह शब्दोत्सव हमें
याद दिलाता है कि वैश्विक
चुनौतियों के दौर में
भारतीय संस्कृति सिर्फ अतीत की धरोहर
नहीं, बल्कि वर्तमान का समाधान भी
है। जब समाज वैचारिक
अस्मिता की खोज में
भटक रहा हो, तब
काशी से निकलने वाला
यह सांस्कृतिक संदेश बताता है कि विश्व
कल्याण का मार्ग भारतीय
ज्ञान परंपरा और साझा मानवीय
मूल्यों से होकर जाता
है। यही इस आयोजन
का सबसे बड़ा योगदान
है।

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