करवा चौथः चांद की छांव में सुहागिनों का उत्सव और समर्पण
कार्तिक मास की शीतल सांझ, आकाश में टिमटिमाते तारों के बीच करवा चौथ का चांद अपने पूरे सौंदर्य और उजास के साथ सुहागिनों की आंखों में आशीर्वाद बनकर उतरता है। उत्तर भारत के आंगन-आंगन में इस रात का इंतज़ार सिर्फ एक पर्व या धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम, निष्ठा और दांपत्य जीवन की अनंत कामनाओं का उत्सव एवं पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए समर्पण का प्रतीक है। हर वर्ष भारतीय सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं। सोलह श्रृंगार में सजकर, निर्जला व्रत रखती महिलाएं अपने जीवनसाथी की खुशहाली और सौभाग्य के लिए चंद्रमा से प्रार्थना करती हैं। यह वह अदृश्य डोर है जो दो लोगों को जोड़ती है, सात जन्मों तक साथ निभाने की कसम खाने वाली। समय के साथ यह रिश्ता इतना गहरा हो जाता है कि बिना शब्दों के भी एक-दूसरे की भावनाओं और मन की बातों को समझा जा सकता है। यह पर्व याद दिलाता है कि सच्चा प्रेम वही है जो हर कठिनाई में अटूट बने, और जो समय के साथ और भी प्रगाढ़ होता जाएं। हर साल इस पर्व का आगमन प्रेम की प्रतीक्षा को और भी मधुर बना देता है। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात 10 बजकर 54 मिनट से आरंभ होगी और 10 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। व्रत रखने और पूजन का शुभ मुहूर्त प्रातः 5 बजकर 16 मिनट से शाम 6 बजकर 29 मिनट तक रहेगा, जबकि चंद्रोदय का समय रात्रि 7 बजकर 42 मिनट निर्धारित है
सुरेश गांधी

सुबह की पहली
किरण से लेकर चांद
के उदय तक का
यह निर्जला व्रत, सुहागिनों के लिए अखंड
सौभाग्य की कामना का
अद्भुत साधन है। सोलह
श्रृंगार से सुसज्जित महिलाएं
करवा माता, भगवान गणेश और चंद्रदेव
की आराधना करती हैं। करवे
में रखा जल और
गेहूं का दाना, सौभाग्य
और समृद्धि का प्रतीक, संपूर्ण
रात्रि की तपस्या का
साक्षी बनता है। पौराणिक
कथाओं में यह व्रत
पतिव्रता की अडिग शक्ति
का प्रतीक है। सतयुग की
सावित्री ने अपने संकल्प
से यमराज तक को रोक
दिया और अपने पति
सत्यवान को पुनः जीवनदान
दिलाया। महाभारत काल में द्रौपदी
ने वनवास में अर्जुन की
सुरक्षा हेतु यही व्रत
रखा, जिसका उल्लेख भगवान कृष्ण ने स्वयं किया।
शिव-पार्वती की कथा में
भी यह उपवास दांपत्य
प्रेम के अमर बंधन
को पुष्ट करता है। दिल्ली,
पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड की
गलियों में इस दिन
का उत्साह देखते ही बनता है। संध्या बेला में छतों
पर छलकते दीप, छलनी से
झांकता चांद और आरती
की ध्वनि, सब मिलकर आकाश
में प्रेम का एक अनूठा
चित्र रच देते हैं।
यह व्रत केवल पति
की दीर्घायु का संकल्प नहीं,
बल्कि जीवन में परस्पर
विश्वास, समर्पण, अटूट बंधन, सामंजस्य
और प्रेम की उष्मा का
उत्सव बन चुका है।
व्रत का महत्व और कथा
व्रत की विधि और पूजा
सुहाग, श्रद्धा और चंद्रमा की छवि
पौराणिक काल से ही करवा चौथ व्रत का महत्व रहा है। कहा जाता है कि यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार द्रौपदी ने अपने पतियों के लिए आरंभ किया था। महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय में इस व्रत का विशेष योगदान माना जाता है। करवा चौथ का पर्व केवल सुहागन स्त्रियों का ही नहीं, बल्कि कुंवारी कन्याओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन गौरी पूजन, भगवान शिव और पार्वती, तथा स्वामी कार्तिकेय की भी विधिपूर्वक आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि शैलपुत्री पार्वती ने भी इसी प्रकार के कठिन व्रत के माध्यम से शिव भगवान को प्राप्त किया था। इसलिए यह व्रत ससुराल में सुख, सुहाग और सामंजस्य के लिए, और कुंवारी कन्याओं के लिए सुगम वर प्राप्ति के लिए फलदायी माना गया है। एक कथा के अनुसार, द्वापर युग में अर्जुन वनवास के दौरान नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे।
कई दिनों
तक जब अर्जुन लौटे
नहीं, तो द्रौपदी को
गहरी चिंता हुई। अपनी पीड़ा
से परेशान द्रौपदी ने कृष्ण से
अपनी व्यथा बताई। तब श्रीकृष्ण ने
न केवल करवाचौथ व्रत
रखने की सलाह दी,
बल्कि शिव द्वारा पार्वती
को सुनाई गई करवा चौथ
कथा भी उन्हें सुनाने
को कहा। करवा चौथ
का चंद्रमा पूजन भी अत्यंत
महत्वपूर्ण है। चांद को
मन का स्वामी माना
जाता है, जो दिल
से जुड़े रिश्तों को
स्थिर और मधुर बनाता
है। व्रत के पीछे
एक प्रचलित कथा हैः किसी
बहन को उसके भाईयों
ने स्नेहवश छल कर भोजन
कराया, जिससे उसका व्रत टूट
गया। इसके बाद उसने
पूरे वर्ष चतुर्थी का
व्रत किया। जब पुनः करवा
चौथ आया, उसने विधिपूर्वक
व्रत किया और हाथ
में छलनी लेकर चंद्रमा
के दर्शन किए। यही परंपरा
आज भी निभाई जाती
है। छलनी का रहस्य
यह है कि इससे
कोई भी छल कर
व्रत भंग न कर
सके।
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है प्रथा
उत्तर भारत के हर
प्रांत में करवा चौथ
की पूजा एक ही
भाव से मनाई जाती
है, पति की लंबी
उम्र और घर में
सुख-समृद्धि के लिए, हर
जगह इसकी रीतियों और
रस्मों में अद्भुत वैविध्य
देखने को मिलता है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा,
पंजाब, उत्तर भारत के अन्य
हिस्सों, हर प्रांत में
इस व्रत की पूजा
की संरचना और उत्सव का
रंग अलग-अलग है।
कुछ स्थानों पर दीवारों पर
गेरू और चावल से
या मिट्टी से ‘गौर’ बनाकर
उसकी पूजा की जाती
है, तो कहीं पानी
चिपकाकर चार घड़ी के
चंद्रमा की चौघड़ियां बनाई
जाती हैं। करवा चौथ
का नियम है कि
बचे हुए करवे के
पानी से पति को
छींटे मारकर वही जल ग्रहण
कर व्रत खोला जाता
है। छन्नी में चंद्रमा के
दर्शन करना भी इस
व्रत का एक खास
अंश है, जो पंजाब
में विशेष रूप से प्रचलित
है।
सरगी : मायके की ममता और बहू का उत्सव
पंजाब और हरियाणा में
‘सरगी’ का पर्व करवा
चौथ की पूजा का
अनिवार्य और सबसे हर्षोल्लासपूर्ण
हिस्सा है। सुबह-सुबह
सास नई बहू को
दूध-फेनी, सेवई और श्रृंगार
की सभी सामग्री, साड़ी,
गहने देती है। नारियल
का पानी भी दिया
जाता है ताकि दिन
भर प्यास न लगे। हरियाणा
में पहली करवा चौथ
बहू की मायके में
होती है, जबकि सरगी
का सामान ससुराल से आता है।
पूजा के बाद बायना
यानी भेंट भी ससुराल
जाती है। मालवा में
13 ‘खाजे’ मैदे की मीठी
पूड़ियां बनाई जाती हैं,
वहीं राजस्थान में रमास, चावल,
लपसी
करवे बदलने की रस्म
करवे बदलने की
रीत में ननद, भावज,
देवरानी-जेठानी, आस-पड़ोस की
महिलाएं आंचल से ढककर
करवे बदलती हैं। क्रम ऐसा
रखा जाता है कि
हर महिला को अपना करवा
अपने पास आता है।
इससे न केवल प्रेम
और सौहार्द्र की भावना प्रबल
होती है, बल्कि रिश्तों
की डोर भी मजबूत
होती है। इसके साथ
ही गीत गाए जाते
हैं, “बींझा बेटी करवा ले,
सात भाइयों की बहन करवा
ले, पीहर पूरी करवा
ले, अध बर खानी
करवा ले, सदा सुहागिन
करवा ले” जो इस
उत्सव की खुशियों को
दोगुना कर देते हैं।
मेहंदी और सोलह श्रृंगार : उत्सव का सौंदर्य
करवा चौथ का
एक और अनिवार्य आकर्षण
है, मेहंदी। पार्लर और घरों में
मेहंदी लगवाने की होड़ सुबह
से ही देखने लायक
होती है। किसी भी
उम्र की स्त्री हाथों
पर मेहंदी रचवाकर उत्साह और आनंद प्रकट
करती है। मेहंदी न
लगाई हो तो व्रत
अधूरा समझा जाता है।
साथ ही, सोलह श्रृंगार,
सौम्यता और समर्पण का
प्रतीक, इस दिन नवविवाहिता
या सुहागिन अपने पति-परमेश्वर
के लिए अपनी आस्था
व्यक्त करती हैं। प्राणनाथ
की सलामती के लिए किए
जाने वाले इस उत्सव
में श्रृंगार केवल सुंदरता नहीं,
बल्कि पवित्रता और प्रेम का
वाहक बन जाता है।
संघर्ष, प्रेम और चांद का आशीर्वाद
चांद की उपस्थिति
में किए जाने वाले
अर्घ्य और व्रत की
भक्ति केवल पति की
लंबी उम्र के लिए
नहीं है, बल्कि घर-परिवार में प्रेम, सौहार्द्र
और खुशहाली का संदेश भी
देती है। करवा चौथ
का पर्व स्त्री शक्ति,
समर्पण और पारिवारिक एकता
का प्रतीक बनकर हर साल
नए उत्साह और उमंग के
साथ मनाया जाता है। इस
प्रकार, करवा चौथ न
केवल एक व्रत है,
बल्कि यह स्त्री की
भक्ति, परिवार में प्रेम और
संस्कृति की जीवंत परंपरा
का अद्भुत संगम है।
पूजा-सामग्री
परंपरा का हर पात्र,
हर सामग्री प्रतीक है और ये
सब कुछ प्रेम और
समर्पण की भाषा बोलते
हैं। मुख्य चीजें हैं : मिट्टी का टोंटीदार करवा
(कुल्हड़) : पानी से भरा;
व्रत का प्रमुख चिह्न।
दीप, रोली, चावल, धूप, फूल, दूब
: पूजा थाली के अनिवार्य
अंग। शिव - पार्वती - गणेश - कार्तिकेय की मिट्टी या
चांदी की मूर्तियां, बालू
सफेद मिट्टी की बेदी। श्रृंगार
की वस्तुएं : साड़ी, चूड़ियाँ, सिंदूर, कंघी, शीशा, रिबन और रुपया
(सुहाग की निशानी)।
रिवाज़ानुसार करवा और लोटा
पाट पर रखकर, करवा
की पानी-पूजा कर
सास को भेंट करना
या मंदिर में अर्पित करना
शुभ माना जाता है।
कई जगह 13 लड्डू, 13 सुहागिनों को भोजन और
रुपये देकर परंपरा निभाई
जाती है, जो दायित्व,
सौभाग्य और समुदायिक मेलजोल
की निशानी है।
महत्वपूर्ण मंत्र
करवा चौथ पर
गायत्री-सी निष्ठा से
जपे जाने वाले कुछ
पारंपरिक महामंत्रों में शामिल हैं
: ऊँ नमो आनंदिनी श्री
वर्धिनी गौर्ये नमः, ऊँ श्री
सर्वसौभाग्यदायिनी सर्वम् पूरण श्री ऊँ
नमः, त्रिचक्रे त्रिरेखं सुरेखे उज्जवले नमः, ऊँ नमो
अष्टभाग्यप्रदे धात्रिदैव्ये नमः, इन मंत्रों
का पाठ भक्ति से
करने पर पारंपरिक मान्यता
के अनुसार पति की दीर्घायु,
परिवार की समृद्धि और
ऐश्वर्य की कामना होती
है।
लोककथाएं : वीरावती, सावित्री व व्रत की पौराणिक जड़ें
करवा चौथ को
जोड़ने वाली कहानियां, जैसे
वीरावती की कथा, सावित्री-सत्यवान की कथा, व्रत
को न केवल वैवाहिक
प्रेम बल्कि स्त्री के अदम्य साहस
और निष्ठा का प्रतीक बनाती
हैं। वीरावती की तीव्र भक्ति
और सावित्री की स्टैंड-लेन
वाली दृढ़ता ने यमराज तक
को झुकने पर मजबूर किया,
यही करवा चौथ की
नायकत्व की परंपरा है।
करवा चौथ पर न भूलें ये 16 चीजें
इस दिन सुहागिन
स्त्रियों के लिए कुछ
विशेष वस्तुएं और परंपराएं बेहद
महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
माना जाता है कि
करवा चौथ के दिन
यदि स्त्रियां इन 16 चीज़ों का विशेष ध्यान
रखें, तो उनके पति
का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और
घर में प्रेम व
सुख-समृद्धि बनी रहती है।
1. बिंदी : सुहागिन स्त्रियों के लिए कुमकुम
या सिंदूर से लाल बिंदी
लगाना अनिवार्य है। इसे घर
की समृद्धि और सौभाग्य का
प्रतीक माना जाता है।
2. कंगन और
चूडियां
: ससुराल में पहली बार
आने पर सास द्वारा
दी गई कंगन की
परंपरा सदियों से चली आ
रही है। पारंपरिक रूप
से सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडियों
से भरी रहनी चाहिए।
3. सिंदूर : सिंदूर सुहाग का सबसे बड़ा
प्रतीक है। विवाह के
बाद हर रोज मांग
में सिंदूर भरना पति की
लंबी उम्र और वैवाहिक
सौभाग्य का संकेत है।
4. काजल : आंखों के श्रृंगार के
लिए काजल जरूरी है।
यह न केवल आंखों
की सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि बुरी
नजर से भी सुरक्षा
करता है।
5. मेहंदी : हाथों और पैरों में
मेहंदी लगाना सौभाग्य का प्रतीक है।
इसके अलावा यह त्वचा के
लिए भी लाभकारी है।
6. लाल कपड़े : लाल रंग के
कपड़े पहनना शुभ माना जाता
है। शादी के बाद
भी कोई भी विशेष
अवसर या त्योहार हो,
सुहागिन स्त्रियों के लिए लाल
पोशाक शुभ संकेत देती
है।
7. गजरा : सुहागिन स्त्रियों द्वारा सुबह नहा कर
गजरा पहनना और पूजा करना
घर में लक्ष्मी का
स्थिर निवास लाता है।
8. मांग टीका
: मांग के बीचों बीच
पहना जाने वाला मांग
टीका सौभाग्य और स्त्री की
सुंदरता का प्रतीक है।
9. नथ या कांटा
: शादी के बाद नथ
या कांटा पहनना शुभ माना जाता
है। इसे सुहाग और
सौभाग्य का प्रतीक माना
जाता है।
10. कान के
गहने
: कान के आभूषण विवाहित
स्त्रियों के लिए शुभता
का प्रतीक हैं। कान छेदन
से कई बीमारियों से
भी बचाव होता है।
11. हार या
मंगलसूत्र
: गले में पहना जाने
वाला हार या मंगलसूत्र
पति के प्रति वचनबद्धता
का प्रतीक है। यह वैवाहिक
जीवन में सौभाग्य और
सुरक्षा का संकेत देता
है।
12. बाजूबंद : बाजूबंद बांहों में पहना जाने
वाला आभूषण है, जिसे शुभता
और वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक माना
जाता है।
13. अंगूठी : अंगूठी पति-पत्नी के
आपसी प्यार और विश्वास का
प्रतीक है। शादी के
बाद इसे पहनना भी
शुभ माना जाता है।
14. कमरबंद : कमरबंद कमर की सुंदरता
बढ़ाने के साथ-साथ
स्त्री की घर में
स्वामिनी होने का प्रतीक
है। इसे शुभ अवसरों
पर पहनना लाभदायक माना जाता है।
15. बिछुआ : पैर की अंगुलियों
में पहना जाने वाला
बिछुआ सौभाग्य और वैवाहिक जीवन
में सुख का प्रतीक
है।
16. पायल : पायल की मधुर
ध्वनि घर में सकारात्मक
ऊर्जा और समृद्धि लाती
है। हर सुहागिन स्त्री
को इसे पहनना चाहिए।









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