Sunday, 26 October 2025

सरदार पटेल : जिनकी मुट्ठी में समा गया बिखरा हुआ भारत

सरदार पटेल : जिनकी मुट्ठी में समा गया बिखरा हुआ भारत 

वह समय था जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, और हर दिशा में निराशा का कुहासा फैला हुआ था। तभी गुजरात की धरती पर एक बालक जन्म लेता है, जो आगे चलकर राष्ट्र की एकता का प्रतीक बनता है। वही बालक था वल्लभभाई झवेरभाई पटेल, जिसे आज दुनिया लौह पुरुष के नाम से जानती है। गुजरात के नडियाद में 31 अक्तूबर 1875 को एक कुर्मी किसान परिवार में जन्मे पटेल के भीतर साहस जैसे स्वभाव में रचा-बसा था। उनके पिता 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही रहे, और माँ की श्रद्धा ने उनमें देशप्रेम के बीज बो दिए। बचपन में ही वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने लगे। स्कूल में जब अध्यापक छात्रों को अपनी पुस्तकें खरीदने पर विवश करते थे, तो वल्लभभाई ने विद्यार्थियों को संगठित कर विरोध किया, और शिक्षक को झुकना पड़ा। यह बाल आंदोलन एक संकेत था कि यह बालक भविष्य में सत्ता के अन्याय के विरुद्ध भी अडिग रहेगा। इंग्लैंड में पढ़ाई के दिनों में वे दिनभर पुस्तकालय में डूबे रहते, कई-कई बार 17 घंटे तक। लौटकर जब वे वकालत करने लगे तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें उच्च पद का प्रस्ताव दिया, किंतु उन्होंने ठुकरा दिया, क्योंकि वह जानते थे कि विदेशी सत्ता का हिस्सा बनना अपने देश से विश्वासघात है। महात्मा गांधी के सान्निध्य ने उनकी दिशा बदल दी। 1918 के खेड़ा सत्याग्रह में उन्होंने किसानों को कर देने के लिए प्रेरित किया, और अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। वहीं से उनका जननेता के रूप में उदय हुआ। बाद में बारदोली सत्याग्रह में महिलाओं ने उन्हें स्नेह से पुकारा, “सरदार”, और यह संबोधन उनके जीवन का स्थायी अलंकरण बन गया

सुरेश गांधी

भारत के इतिहास में यदि किसी व्यक्ति ने अखंडता, दृढ़ता और राष्ट्रनिर्माण के शिलालेख पर अपना नाम अमिट अक्षरों में अंकित किया है, तो वह हैं सरदार वल्लभभाई पटेल, भारत के आयरन मैन, लौह पुरुष, और राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार। उन्होंने केवल अपनी चट्टान जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति, राजनीतिक विद्वता कठोर परिश्रम से भारत के राजनीतिक एकीकरण का अद्भुत कार्य किया, बल्कि प्रशासनिक ढांचे को ऐसा स्वरूप दिया, जो आज भी लोकतांत्रिक शासन की रीढ़ है। आजादी के बाद जब भारत सैकड़ों रियासतों में बंटा था, तो उसी सरदार ने अपनी लौह इच्छाशक्ति से उन्हें एक सूत्र में पिरो दिया। 562 रियासतों का भारत में विलय कर उन्होंने इस राष्ट्र की आत्मा को एक देह दी। यह केवल राजनीति नहीं, एक तपस्वी की तपस्या थी, जहां शक्ति और नीति दोनों ने हाथ मिलाया।

गृहमंत्री के रूप में उन्होंने आई.सी.एस. को भारतीय रूप देकर आई..एस. बनाया और कहा, “नौकरशाही को राजभक्ति नहीं, देशभक्ति सिखानी होगी।प्रधानमंत्री पद पर उनका सर्वसम्मति से चयन हुआ था, पर गांधीजी की इच्छा पर उन्होंने सहज भाव से नेहरू का नाम स्वीकार कर लिया। यह त्याग नहीं, बल्कि राष्ट्र सर्वोपरि भावना का उदाहरण था। सरदार पटेल ने अपने कर्म से बताया कि देशभक्ति भाषणों में नहीं, निर्णायक कर्म में होती है। उनके जाने के बाद भी उनका विचार जीवित है, भारत एक ध्वज, एक संविधान और एक राष्ट्र के रूप में रहेगा। आज जब हमएक भारत, श्रेष्ठ भारतका नारा दोहराते हैं, तो वह दरअसल उसी लौह पुरुष की प्रतिध्वनि है, जिसने अपने संकल्प से बिखरे भारत को एक कर दिया। उनकी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी केवल मूर्ति नहीं, बल्कि एक चेतना है, जो हर भारतीय को यह स्मरण कराती है कियदि इरादे अटूट हों, तो इतिहास झुकता है।

किसान पुत्र से लौह पुरुष बनने की यात्रा

31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक कुर्मी परिवार में जन्मे वल्लभभाई पटेल के पिता झवेरभाई पटेल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा थे। वीरता, परिश्रम और सादगी उनके संस्कार में जन्म से ही थे। बचपन से ही अन्याय और असत्य के प्रति उनमें बेचैनी थी। नडियाद के विद्यालय में ही उन्होंने अन्याय के विरुद्ध पहला आंदोलन किया, जब एक शिक्षक छात्रों पर अपनी पुस्तकों को खरीदने का दबाव डालते थे, तो उन्होंने छात्रों को संगठित कर विरोध किया। विद्यालय कई दिनों तक बंद रहा और अंततः शिक्षक को झुकना पड़ा। बालक वल्लभभाई ने तभी बता दिया था कि वे किसी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाने वाले हैं।

अद्भुत संयम और दृढ़ता

वल्लभभाई की दृढ़ता का उदाहरण उनके जीवन के हर मोड़ पर मिलता है। वकालत के दौरान एक बार जब अदालत में जिरह करते हुए उन्हें अपनी पत्नी झवेरबाई के निधन का तार मिला, तब भी उन्होंने मुकदमा पूरा किया और फिर शांत भाव से अपने जीवन के सबसे बड़े दुःख को स्वीकार किया। यह उनका व्यक्तिगत नहीं, बल्कि कर्तव्यनिष्ठा का चरम उदाहरण था।

17 घंटे पढ़ने वाला विद्यार्थी

विदेश में अध्ययन के दौरान वे दिन में 17 घंटे तक पुस्तकालय में अध्ययन करते। इस परिश्रम का फल उन्हें तब मिला जब उन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और ब्रिटिश अध्यापकों ने उन्हेंअसाधारण मेधा का छात्रकहा। इंग्लैंड में रहकर भी उन्होंने कभी अपने देश और उसकी पीड़ा को नहीं भुलाया।

अहिंसक योद्धा का उदय

भारत लौटने के बाद उनका संपर्क महात्मा गांधी से हुआ। गांधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों ने पटेल के भीतर छिपे राष्ट्रसेवक को जागृत किया। 1918 का खेड़ा सत्याग्रह उनके सार्वजनिक जीवन की पहली बड़ी परीक्षा थी। भयंकर सूखे से त्रस्त किसानों ने कर माफी की मांग की थी, पर अंग्रेज सरकार ने इंकार कर दिया। तब पटेल ने किसानों से कहा, “कर मत दो, यह अन्याय है। जब तक राहत नहीं मिलेगी, तुम कर नहीं दोगे।उनकी यह पुकार आंदोलन बन गई और अंततः ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। यह पटेल की पहली बड़ी विजय थी, जिसने उन्हें जनता के बीचसरदारबना दिया। 

बारदोली सेसरदारबनने तक

1928 का बारदोली सत्याग्रह उनके नेतृत्व का दूसरा नाम बन गया। जब अंग्रेजों ने किसानों पर कर बढ़ाने की नीति थोपी, तो पटेल ने जनसंगठन की ऐसी मिसाल पेश की, जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। वहां की महिलाओं ने उन्हें संबोधित किया, “सरदार, आप हमारे प्रहरी हैं।यही संबोधन आगे चलकर उनके नाम के साथ स्थायी हो गया, सरदार पटेल। खेड़ा और बारदोली सत्याग्रहों ने पटेल को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित कर दिया। वे गांधीजी के निकटतम सहयोगियों में शामिल हो गए। असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन, हर संघर्ष में पटेल अग्रिम पंक्ति में रहे। 1931 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और गांधी-इरविन समझौते की प्रक्रिया में उनका निर्णायक योगदान रहा। अंग्रेजी कारावास की दीवारें भी उनके इरादों को नहीं झुका सकीं। उनकी आवाज किसान की थी, पर दृष्टि राष्ट्र की।

अद्भुत साहस और सेवा का उदाहरण

1917 में जब अहमदाबाद में प्लेग फैला, तो लोग अपने घर छोड़ भाग गए। लेकिन सरदार नगर में डटे रहे, स्वयं सफाई कर्मियों के साथ सड़कों और मुहल्लों की सफाई की। इस कर्मठता से उन्होंने जनता को बताया कि सच्चा नेता वही है जो संकट में सबसे आगे खड़ा हो। लौह पुरुष का सबसे बड़ा कार्य, भारत का एकीकरण. आजादी के बाद भारत का मानचित्र सैकड़ों टुकड़ों में बंटा था, 562 देसी रियासतें, जिनमें से कुछ स्वतंत्र रहना चाहती थीं। प्रधानमंत्री नेहरू और महात्मा गांधी के विश्वासपात्र के रूप में सरदार पटेल को यह कठिन जिम्मेदारी सौंपी गई। उनकी सूझबूझ, दृढ़ता और वीपी मेनन के सहयोग अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता, कूटनीति और अदम्य इच्छाशक्ति से यह कर दिखाया। कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद जैसे राज्यों ने जब भारत में शामिल होने से इंकार किया, तो पटेल ने कूटनीति, संवाद और आवश्यकता पड़ने पर शक्ति, तीनों का प्रयोग किया। खास यह है कि हैदराबाद का निजाम स्वतंत्र रहना चाहता था, जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान का साथ लिया और भोपाल के नवाब ने शर्तें रखीं। परंतु सरदार झुके नहीं। उन्होंने दृढ़तापूर्वक निर्णय लिया, “भारत की एकता किसी की दया पर नहीं, हमारे संकल्प पर टिकेगी।हैदराबाद में उन्होंने सेना भेजी, और निजाम को आत्मसमर्पण करना पड़ा। जूनागढ़ में जनता के विद्रोह ने नवाब को भागने पर मजबूर किया। अंततः, भोपाल के नवाब ने भी पटेल के दृढ़ निश्चय के सामने हथियार डाल दिए। अंततः सभी रियासतें भारत का अंग बन गईं। यह केवल राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि एक अखंड भारत की आत्मा का पुनर्जन्म था। इसी कार्य के कारण उन्हें इतिहास नेलौह पुरुषकहा। राजा-महाराजाओं की रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित करने के उनके प्रयासों को इतिहास सदैव स्वर्णाक्षरों में याद करेगा।

प्रशासनिक दृष्टा : आधुनिक भारत की नींव

गृहमंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) का भारतीयकरण कर आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) की नींव रखी। उनके विचार मेंएक सशक्त और ईमानदार प्रशासन ही राष्ट्र की स्थिरता का आधार है।यही कारण है कि उन्हें भारत केबिस्मार्कके रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने कहा था, “नौकरशाही को राजभक्ति नहीं, देशभक्ति सिखानी होगी।यह विचार आज भी प्रशासनिक सेवा की आत्मा माना जाता है।

त्याग, विनम्रता और राष्ट्र सर्वोपरि भावना

कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे अधिक समर्थन सरदार पटेल को प्राप्त था, पर गांधीजी की इच्छा पर उन्होंने स्वयं पीछे हटकर नेहरू के नाम का समर्थन किया। यह राजनीतिक नहीं, नैतिक त्याग था। राजगोपालाचारी ने लिखा था, “यदि पटेल प्रधानमंत्री होते, तो देश की दिशा और दृढ़ होती।पर सरदार के लिए देश, पद से बड़ा था।

सरदार पटेल : आज के भारत की प्रेरणा

आज जब भारतएक भारत, श्रेष्ठ भारतकी संकल्पना के साथ आगे बढ़ रहा है, तब पटेल की एकता की दृष्टि पहले से अधिक प्रासंगिक हो उठी है। उनकी 182 मीटर ऊँचीस्टैच्यू ऑफ यूनिटीकेवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक है, जो हमें याद दिलाती है कि जब नेतृत्व में निष्ठा, साहस और संकल्प होता है, तो असंभव भी संभव बन जाता है। सरदार पटेल ने कहा था, “यह देश केवल एक झंडे, एक संविधान और एक राष्ट्र के रूप में रहेगा, नहीं तो यह टूट जाएगा।आज यह वाक्य हर भारतीय के लिए संकल्प है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र निर्माण त्याग, सेवा और अनुशासन से होता है, सत्ता से नहीं, संकल्प से होता है। सरदार पटेल की जयंती पर यह स्मरण केवल इतिहास का पुनर्पाठ नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का पुनर्स्मरण है, हर भारतीय के भीतर एक लौह पुरुष जागे, जो अपने देश, अपने धर्म और अपनी मातृभूमि के लिए अडिग रहे।

रन फॉर यूनिटी और श्रद्धांजलि

हर वर्ष 31 अक्टूबर को उनके जन्मदिवस पर देशभर मेंराष्ट्रीय एकता दिवसमनाया जाता है।रन फॉर यूनिटीजैसे कार्यक्रम उनके उस अमर संदेश को जीवंत करते हैं कि राष्ट्र की शक्ति उसकी सामूहिकता में निहित है। अंततः सरदार पटेल केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण के महान अभियंता थे। उनकी दृढ़ता, निष्ठा और संगठन कौशल ने भारत को एक नई पहचान दी। आज जब हम आधुनिक भारत की राह पर अग्रसर हैं, तब यह स्मरण आवश्यक है कि जिसने भारत को जोड़ा, उसी लौह पुरुष के रन फॉर यूनिटी सच्ची श्रद्धांजलि है. बता दें, 31 अक्तूबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का लोकार्पण किया, 182 मीटर ऊंची, विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा। नर्मदा नदी के तट पर यह प्रतिमा केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है, जो बताती है किएक व्यक्ति की अडिग इच्छाशक्ति पूरे राष्ट्र की नियति बदल सकती है।” 2020 में इसे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के आठ अजूबों में शामिल किया गया, यह भारत के सम्मान और पटेल की वैश्विक पहचान का प्रमाण है।

संविधान सभा में भूमिका

संविधान सभा में पटेल मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक और जनजातीय क्षेत्रों पर सलाहकार समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने संविधान में समावेशिता, समानता और एकता की भावना को स्थायी रूप दिया। उनका दृष्टिकोण यह था कि भारत की विविधता उसकी शक्ति है, विभाजन नहीं। उन्होंने कहा था, “हमारा भारत तो हिंदू भारत है, मुस्लिम भारत, यह उन सबका भारत है, जो इसे अपना मानते हैं।

नेहरू और पटेलः दो विचार, एक लक्ष्य

स्वतंत्र भारत के दो महायोद्धा, नेहरू और पटेल। विचारों में मतभेद थे, पर राष्ट्र के प्रति समर्पण समान था। नेहरू पश्चिमी समाजवादी दृष्टिकोण के हिमायती थे, जबकि पटेल पारंपरिक भारतीय मूल्यों और आर्थिक व्यावहारिकता में विश्वास रखते थे। नेहरू का दृष्टिकोण वैश्विक था, तो पटेल का ग्रामीण और राष्ट्रीय। फिर भी, जब राष्ट्रहित का प्रश्न आया, दोनों एक स्वर में बोले। नेहरू ने कहा था, “अगर सरदार होते, तो यह भारत आज इस रूप में अस्तित्व में होता।

महात्मा गांधी के विश्वस्त सहयोगी

महात्मा गांधी के साथ पटेल का संबंध गुरु-शिष्य से भी अधिक आत्मीय था। गांधी ने उन्हेंअपने कंधों का सहाराकहा था। गांधी की हत्या के बाद पटेल का हृदय टूट गया। उन्होंने लिखा, “बापू, आपने हमें अनाथ छोड़ दिया। अब भारत को संभालना कठिन हो गया है।गांधीजी के साथ उनका संबंध एक दूसरे के पूरक का था, गांधी ने भारत को आत्मा दी, पटेल ने उसे शरीर दिया।

अदम्य इच्छाशक्ति और अनुशासन के प्रतीक

पटेल निर्णय लेने में कभी डगमगाए नहीं। वह मानते थे, “कठोर निर्णय ही स्थायी समाधान होते हैं।उनकी कार्यशैली सख्त थी, पर न्यायपूर्ण। वे प्रशासन से लेकर संगठन तक अनुशासन के पक्षधर थे। उनकी दृढ़ता, स्पष्टता और नेतृत्व कौशल ने उन्हें हर नेता से अलग बनाया।

15 दिसंबर 1950 : एक युग का अवसान

15 दिसंबर 1950 की रात, मुंबई में सरदार पटेल ने अंतिम सांस ली। मणिबेन ने उन्हें गंगाजल पिलाया और उन्होंने शांत भाव से विदा ली। उनकी मृत्यु पर देश स्तब्ध था, मानो किसी ने राष्ट्र की रीढ़ तोड़ दी हो। नेहरू ने कहा, “सरदार अब नहीं रहे, पर उनके जैसा कोई दूसरा जन्म नहीं लेगा।मतलब साफ है सरदार पटेल ने केवल राजनीतिक भारत नहीं जोड़ा, बल्कि राष्ट्र भावना का ताना-बाना बुना। उन्होंने सिखाया कि एकता कोई नारा नहीं, जीवन का सिद्धांत है। उनकी स्मृति में 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है, जो हमें याद दिलाता है कि भारत की विविधता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।

लौह पुरुषकी लौ आज भी जल रही है

सरदार पटेल केवल इतिहास नहीं, वर्तमान की दिशा हैं। उन्होंने भारत को जोड़ा, और हमें सिखाया कि देशभक्ति केवल शब्द नहीं, कर्म है। उनकी दृढ़ता में राष्ट्र की आत्मा बसती है, उनकी दृष्टि में भारत का भविष्य झलकता है। आज जब हर 31 अक्तूबर को भारतरन फॉर यूनिटीदौड़ता है, तो वह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक शपथ होती है, हम उस भारत की एकता को बनाए रखेंगे, जो लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने अदम्य साहस से गढ़ी थी।

एक राष्ट्र, एक संकल्प

सरदार पटेल का जीवन यह सिखाता है कि राष्ट्र का निर्माण केवल संविधान या सीमाओं से नहीं होता, बल्कि विश्वास, एकता और त्याग से होता है। आज जब भारत नए युग में प्रवेश कर रहा है, तो पटेल की प्रेरणा हमें बताती है, “भारत तब तक अमर रहेगा, जब तक उसकी एकता अटूट रहेगी।लौह पुरुष की यह लौ बुझी नहीं, वह हर भारतीय के हृदय में आज भी जल रही है। जय एकता, जय भारत। सरदार पटेल अमर रहें। याद रखना हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। 

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