धनतेरस : आरोग्य, आराधना और आर्य परंपरा का प्रथम दीप
भारत के प्रत्येक पर्व के भीतर कोई न कोई गूढ़ दार्शनिक संदेश छिपा होता है। दीपावली महोत्सव की यह प्रथम संध्या, धनतेरस - केवल धन के अर्जन का प्रतीक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संतुलन और शुभारंभ का प्रतीक है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला यह दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि, धन की देवी लक्ष्मी और धन के रक्षक कुबेर की संयुक्त आराधना का पर्व है। “धनं मूलं आरोग्यस्य” अर्थात स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है। यह दिन केवल खरीदारी नहीं, बल्कि एक संस्कार है, जब हर दीपक यह संदेश देता है कि प्रकाश ही जीवन है। खासकर काशी की गलियों में जब यह दीपोत्सव उतरता है, तो लगता है जैसे गंगा की लहरें स्वयं मंत्र जप रही हों, “दीपो भव”. मतलब साफ है धनतेरस हमें यह सिखाती है कि प्रकाश जब भीतर उतरता है, तभी संसार उजला होता है. मतलब साफ है दीप केवल जलता नहीं, बल्कि जीवन को आलोकित करता है
सुरेश गांधी
भारत में पर्व केवल दिन नहीं होते, वे ऋतुओं के परिवर्तन और मानव जीवन के भावों के संगम हैं। दीपावली का यह पंचदिवसीय महापर्व जब आरंभ होता है, तो उसकी पहली किरण “धनतेरस” के रूप में धरती को आलोकित करती है। यह वह दिन है जब मनुष्य अपनी बाहरी समृद्धि और आंतरिक स्वास्थ्य, दोनों का संतुलन साधता है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने
वाला यह पर्व, धन
और तेरस, दो शब्दों का
सुंदर संयोग है, जिसका अर्थ
केवल धन अर्जन नहीं,
बल्कि जीवन में शुभारंभ
का प्रतीक है। धनतेरस के
दिन जब संध्या ढलती
है, और घरों के
बाहर दीपों की कतारें जलती
हैं, तब लगता है
जैसे हर लौ यह
कह रही हो, “जहाँ
प्रकाश है, वहीं जीवन
है।”
धन
से अधिक ‘धन्य’ बनना। जब दीप भीतर
जलता है, तभी बाहर
का उजास सार्थक होता
है। भारतीय जीवन में पर्व
केवल उत्सव नहीं, संस्कारों की गांठें हैं। जैसे गन्ने में रस उसकी
गांठों में होता है,
वैसे ही जीवन में
मिठास इन पर्वों के
कारण रहती है। दीपावली
का प्रत्येक दिवस, धनतेरस (धन-आरोग्य), नरक
चतुर्दशी (स्वच्छता और आत्मशुद्धि), दीपावली
(प्रकाश और लक्ष्मी पूजन),
गोवर्धन पूजा (प्रकृति और गौसंवर्धन), यमद्वितीया
(भाई-बहन के प्रेम),
इन सबमें भारतीय जीवनदर्शन का पूर्ण चक्र
समाहित है। लक्ष्मी पूजन
का तात्त्विक अर्थ केवल धन
नहीं, माया की सकारात्मक
शक्ति का आवाहन है।
श्रीसूक्त का मंत्र, ॐ
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।। यह
स्मरण दिलाता है कि लक्ष्मी
केवल मुद्रा नहीं, बल्कि मन की दरिद्रता
दूर करने वाली ऊर्जा
हैं।
दीपोत्सव का अर्थ है, अंधकार से प्रकाश की ओर, निराशा से आशा की ओर, और रोग से आरोग्य की ओर यात्रा। यही धनतेरस का सबसे गहरा संदेश है। धनतेरस हमें यह स्मरण कराता है कि “धन” केवल तिजोरी में नहीं, बल्कि शरीर की आरोग्यता, मन की प्रसन्नता और आत्मा की शांति में निहित है। इस दिन हम भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना करें, “हे अमृतकलशधर, हमारे जीवन से रोग, शोक और भय को दूर करें। हमारे घरों में दीप जलें, पर जीवन में भी उजास फैले।” यही आरोग्य, समृद्धि और शुभता के संग दीपोत्सव की सच्ची शुरुआत है। कार्तिक मास की त्रयोदशी, वह तिथि जब पूरा भारत दीपमालिकाओं से जगमगाने लगता है। यही वह दिन है जब पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत होती है, जब धन, आरोग्य और आयु के देव भगवान धन्वंतरि के साथ महालक्ष्मी और कुबेर की आराधना होती है। इस साल धनतेरस 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाई जाएगी।
यह दिन वाराणसी पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ योग और संयोगों से युक्त है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 18 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर है, जबकि तिथि समाप्तिः 19 अक्टूबर दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर है. प्रदोष काल : शाम 5 बजकर 28 मिनट से 7 बजकर 58 मिनट तक, वृषभ काल (मुख्य पूजन काल)ः 6 बजकर 58 मिनट से 7 बजकर 58 मिनट तक व धनतेरस पूजन मुहूर्त शाम 6ः58 बजे से 7ः58 बजे तक है. इसी एक घंटे के शुभ समय में दीपक जलाकर लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करने से धन, वैभव, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शनिवार को पड़ने के कारण यह दिन दीर्घकालीन निवेश, वाहन, और गृहसंपत्ति की खरीद के लिए विशेष रूप से शुभ है। इस दिन अधिकांश भाग में चित्रा नक्षत्र रहेगा, जो सुख-समृद्धि और कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। लक्ष्मीयोग : प्रदोषकाल में वृषभ लग्न होने से लक्ष्मीयोग का संयोग बन रहा है, जो धनवृद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इन खगोलीय योगों के कारण धनतेरस विशेष फलदायी होगा। इस दिन यदि संभव हो तो किसी रोगी की सहायता करें, औषधदान या अस्पताल में सेवा करें, यही धन्वंतरि की वास्तविक आराधना है। यह धनतेरस केवल आराधना का अवसर नहीं, बल्कि आत्मसंतुलन, स्वास्थ्य, और सद्भाव का पर्व है। त्रयोदशी हमें यह सिखाती है कि जब दीप जलता है, तो अंधकार भागता ही नहीं, वह प्रकाश में विलीन हो जाता है।समुद्र मंथन की कथा : जब अमृत से प्रकट हुए आरोग्यदेव
समुद्र मंथन के समय जब चौदह रत्न प्रकट हुए, तब हाथों में अमृत कलश लिए भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथों में सोने का पात्र था, जिसमें अमृत भरा था। वही क्षण धनतेरस का उद्गम बना।
वे विष्णु के अवतार और आयुर्वेद के प्रवर्तक माने गए। उन्होंने संसार को “अष्टांग आयुर्वेद” का ज्ञान दिया और यह सिखाया कि स्वास्थ्य ही सच्चा सुख है। धनतेरस हमें यह स्मरण कराती है कि धन का पहला अर्थ शरीर की निरोगता है. आयुर्वेद के शास्त्रों में कहा गया है, “धनं मूलं आरोग्यस्य।” अर्थात, स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है।इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने का अर्थ है, शरीर, मन और आत्मा में संतुलन स्थापित करना। यही कारण है कि प्राचीन काल में राजाओं के राजवैद्य इस दिन आयुर्वेद ग्रंथों का पाठ करते थे, औषधियां निर्मित करते और रोगनिवारण की संकल्पना करते थे। काशी, उज्जैन, और द्वारका के प्राचीन मंदिरों में आज भी धन्वंतरि जयंती के अवसर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर और संकल्प यज्ञ आयोजित होते हैं। बनारस का महामृत्युंजय मंदिर इस परंपरा का जीवंत उदाहरण है।
काशी का धन्वंतरि कूप : अमृत की बूंदों से सिंचित आस्था
वाराणसी के महामृत्युंजय मंदिर में स्थित “धन्वंतरि कूप” आज भी आस्था का केंद्र है। लोकविश्वास है कि जब भगवान शिव ने विषपान किया, तब धन्वंतरि ने अमृत से उनका कंठ शीतल किया। उस अमृत की कुछ बूंदें काशी की भूमि में गिरीं और वहीं यह कूप प्रकट हुआ। धनतेरस पर भक्त यहां जल अर्पित करते हैं और आरोग्य की कामना करते हैं। कहा जाता है, “यत्र धन्वंतरि तत्र मृत्यु दूरं भवति।” कहते है इस कूप का जल सात स्तरों से निकलता है, जो शरीर की सप्त धातुओं का प्रतीक है। यह केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन की एक व्याख्या है, जैसे यह कूप गहराई से जल देता है, वैसे ही आरोग्य भीतर से जागृत होता है।
धन और धर्म का अद्भुत संतुलन : धन और धर्म का संगम
गजकेसरी राजयोग व लक्ष्मी योग
इस वर्ष 12 अक्टूबर
का धनतेरस है। इस दिन
चंद्रमा मिथुन राशि में और
गुरु उसी में विराजमान
होंगे, जिससे गजकेसरी योग बनेगा. यह
बुद्धि, सौभाग्य और धनवृद्धि देने
वाला योग है। ज्योतिष
में यह सबसे शुभ
योगों में से एक
है। यह योग विशेषकर
वृष, मिथुन और कन्या राशि
वालों के लिए लाभदायक
रहेगा। वृष राशि : आर्थिक
उन्नति और निवेश में
सफलता। मिथुन राशि : आत्मविश्वास और दांपत्य सुख
की वृद्धि। कन्या राशि : कार्यस्थल पर नई उपलब्धियां.
इसके अतिरिक्त इस वर्ष चंद्रमा
और बृहस्पति के संयोग से
“धन लक्ष्मी योग” भी बन
रहा है, जो व्यापार,
निवेश और गृहसौख्य के
लिए शुभ फलदायी रहेगा।
धनतेरस तिथि
प्रारंभ
: 18 अक्टूबर, दोपहर 12ः18
समाप्त :
19 अक्टूबर, दोपहर 1ः51
प्रदोषकाल पूजन
: शाम 7ः16 से 8ः20
अभिजीत मुहूर्त
: दोपहर 12ः01 से 12ः48
लाभ चौघड़िया
: दोपहर 1ः51 से 3ः18
इन मुहूर्तों में
किया गया पूजन वर्षभर
के लिए शुभ फलदायी
माना गया है। विशेषकर
प्रदोषकाल में दीपदान करने
से अकाल मृत्यु का
भय मिटता है और यमराज
कृपा करते हैं।
पूजन विधि : जब हर चरण एक ध्यान बन जाता है
स्नान
और
संकल्प
: प्रातः स्नान के बाद “ॐ
धन्वंतरये नमः” मंत्र से
संकल्प करें। घट स्थापना
: तांबे या पीतल के
कलश में जल भरें,
आम्रपल्लव और नारियल स्थापित
करें। धन्वंतरि पूजन
: भगवान की मूर्ति या
चित्र के समक्ष दीपक
जलाएँ, तुलसी और औषधियाँ अर्पित
करें। लक्ष्मी-कुबेर
आराधना
: धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य
से पूजा करें। दीपदान : घर
के द्वार, तुलसी चौरा और दक्षिण
दिशा में यमदीप जलाएँ।
सामूहिक आरती : पूरे
परिवार के साथ लक्ष्मी
आरती करें, प्रसाद वितरण.
दीपदान - यमदीप : मृत्यु के अंधकार पर जीवन का आलोक
धनतेरस की संध्या को घर के बाहर दक्षिण दिशा में आटे का दीपक जलाकर यमराज को समर्पित किया जाता है। इसे “यम-दीप” कहा जाता है। यह दीप केवल अनुष्ठान नहीं, जीवन का दर्शन है। इस दीपक के प्रकाश से घर में “अकाल मृत्यु” का भय समाप्त होता है।
“दीपं समर्पयाम्यहम् यमराजाय नमो नमः।” यह प्रतीक है उस स्वीकृति का, जब मनुष्य मृत्यु को भी सहचर बना लेता है, और जीवन में निर्भयता आ जाती है।काशी में इस रात
घाटों पर “दीपदान” की
परंपरा है। अस्सी से
दशाश्वमेध तक जब हजारों
दीप बहते हैं, तो
लगता है जैसे गंगा
स्वयं आरती में लीन
है। गंगा का प्रवाह
और दीपों की पंक्तियां मिलकर
कहती हैं, “प्रकाश मृत्यु से बड़ा है।”
या यूं कहे मृत्यु
के पार भी उजाला
है।
आयुर्वेद के
अनुसार, इस समय “वात”
प्रबल होता है, जिसे
नियंत्रित करने के लिए
धातुओं का प्रयोग लाभकारी
होता है। इसीलिए बर्तन
खरीदना केवल शुभता नहीं,
बल्कि स्वास्थ्य का प्रतीक भी
है। जब शहर दीपों का सागर बन जाता है
धर्म और पुरुषार्थ : जब धन बनता है साधना का साधन
धनतेरस हमें चार पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का स्मरण कराता है। यह बताता है कि धन कमाना पाप नहीं, परंतु धन का उपयोग धर्म में होना चाहिए। यही कारण है कि हमारे ऋषियों ने कहा, “अर्थः धर्मेण संगृहीतः। धर्मः अर्थेन पोष्यते।”
अर्थात, धन धर्म से प्राप्त हो और धर्म धन से पोषित हो, यही जीवन का संतुलन है। भारतीय चिंतन में धन का संबंध हमेशा धर्म से रहा है। धन का अर्जन धर्म से और उसका उपयोग समाज के कल्याण में, यही धनतेरस का सन्देश है।जब दीप भीतर जलता है
धनतेरस केवल त्योहार नहीं, बल्कि एक दर्शन है। धनतेरस की रात जब दीप जलते हैं, तब वह केवल मिट्टी का नहीं, बल्कि आस्था का दीप होता है। वह हमें सिखाता है कि आरंभ शुभ हो तो मार्ग भी उज्जवल होता है।
यह हमें सिखाता है कि समृद्धि केवल बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और स्वास्थ्य में निहित है। कहते हैं, “जहाँ दीप है, वहाँ दैव है।” काशी की परंपरा इसे सबसे सुंदर ढंग से कहती है, “दीपो भव : स्वयं प्रकाश बनो।”
जब भीतर दीप
जलता है, तब बाहर
का उजाला स्वतः ही फैलता है।
यही धनतेरस का सार है,
धन से अधिक धन्य
होने की साधना। स्वास्थ्य में श्रद्धा, संपन्नता
में सादगी और जीवन में
संतुलन ही सच्चा उत्सव
है।
धनतेरस से जुड़े लोकविश्वास
यम
दीप जलाने से अकाल मृत्यु
का भय मिटता है।
औषधि सेवन का यह सर्वोत्तम
दिन है। इस दिन घर में
तुलसी और दीपक का
संग सबसे शुभ माना
गया है।
धर्म संवाद
“धनतेरस का प्रकाश केवल दीपक से नहीं, मन की भक्ति से फैलता है।” और प्रकाश ही वह शक्ति है जो भीतर की अंधकार को मिटा सकता है।
पं. विश्वनाथ मिश्र,
धर्माचार्य, वाराणसी “यह पर्व हमें
याद दिलाता है कि धन
तभी मंगलकारी है जब उसमें
धर्म की गंध हो।”
डॉ. अर्चना द्विवेदी, ज्योतिषाचार्य, संकटकटेश्वर मठ
भारतीय जीवन-दर्शन में
धन का अर्थ “धन”
(संपत्ति) के साथ-साथ
“धन्य” (पवित्रता) भी है। यही
कारण है कि जब
हम दीप जलाते हैं,
तो वह केवल तेल
से नहीं, हमारे भीतर की आशा
से प्रज्वलित होता है।
काशी के प्रमुख आयोजन
मंत्र संग्रह
🕉 ॐ धन्वंतरये नमः
🕉 ॐ श्रीं ह््रीं
क्लीं
श्री
सिद्ध
लक्ष्म्यै
नमः
🕉 ॐ कुबेराय नमः
खरीदारी का शुभ महत्व
वास्तु और दीपदान
वास्तु शास्त्र में ईशान कोण
(उत्तर-पूर्व दिशा) को देवताओं की
दिशा माना गया है।
इसी दिशा में दीपक
की लौ रखना शुभ
है, जिससे परिवार में स्वास्थ्य और
धन की वृद्धि होती
है। पश्चिम दिशा में दीपक
रखना अशुभ माना गया
है। धनतेरस की रात यमराज
के लिए आटे का
दीपक जलाकर द्वार पर रखना चाहिए.
यह दीपक अकाल मृत्यु
के भय से रक्षा
करता है। जब काशी
की गलियों में दीप जलते
हैं, तब केवल दीवारें
ही नहीं, मनुष्य का मन भी
प्रकाशमान होता है।

















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