Sunday, 5 October 2025

धनतेरस : आरोग्य, आराधना और आर्य परंपरा का प्रथम दीप

धनतेरस : आरोग्य, आराधना और आर्य परंपरा का प्रथम दीप 

भारत के प्रत्येक पर्व के भीतर कोई कोई गूढ़ दार्शनिक संदेश छिपा होता है। दीपावली महोत्सव की यह प्रथम संध्या, धनतेरस - केवल धन के अर्जन का प्रतीक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संतुलन और शुभारंभ का प्रतीक है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला यह दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि, धन की देवी लक्ष्मी और धन के रक्षक कुबेर की संयुक्त आराधना का पर्व है।धनं मूलं आरोग्यस्यअर्थात स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है। यह दिन केवल खरीदारी नहीं, बल्कि एक संस्कार है, जब हर दीपक यह संदेश देता है कि प्रकाश ही जीवन है। खासकर काशी की गलियों में जब यह दीपोत्सव उतरता है, तो लगता है जैसे गंगा की लहरें स्वयं मंत्र जप रही हों, “दीपो भव”. मतलब साफ है धनतेरस हमें यह सिखाती है कि प्रकाश जब भीतर उतरता है, तभी संसार उजला होता है. मतलब साफ है दीप केवल जलता नहीं, बल्कि जीवन को आलोकित करता है

सुरेश गांधी 

भारत में पर्व केवल दिन नहीं होते, वे ऋतुओं के परिवर्तन और मानव जीवन के भावों के संगम हैं। दीपावली का यह पंचदिवसीय महापर्व जब आरंभ होता है, तो उसकी पहली किरणधनतेरसके रूप में धरती को आलोकित करती है। यह वह दिन है जब मनुष्य अपनी बाहरी समृद्धि और आंतरिक स्वास्थ्य, दोनों का संतुलन साधता है। 
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला यह पर्व, धन और तेरस, दो शब्दों का सुंदर संयोग है, जिसका अर्थ केवल धन अर्जन नहीं, बल्कि जीवन में शुभारंभ का प्रतीक है। धनतेरस के दिन जब संध्या ढलती है, और घरों के बाहर दीपों की कतारें जलती हैं, तब लगता है जैसे हर लौ यह कह रही हो, “जहाँ प्रकाश है, वहीं जीवन है।” 
यह वह क्षण है जब परिवार, परंपरा और प्रार्थना एक साथ झिलमिलाते हैं, और आरोग्य के देवता धन्वंतरि, लक्ष्मी और कुबेर की आराधना से आरंभ होती है एक नयी ज्योति यात्रा। धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी या धन्वंतरि जयंती कहा जाता है, भारतीय संस्कृति के उस प्रस्थान बिंदु का प्रतीक है जहां आरोग्य और आध्यात्मिकता, धन और धर्म, दोनों का संगम होता है। इस दिन हम केवल धातु नहीं, बल्कि अपने जीवन में शुभता, समृद्धि और स्वास्थ्य कानिवेशकरते हैं।

भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की आराधना के साथ दीपावली का यह प्रथम दीप मानवता को रोगमुक्त और समृद्ध जीवन का संदेश देता है। धनतेरस का सच्चा अर्थ है
धन से अधिकधन्यबनना। जब दीप भीतर जलता है, तभी बाहर का उजास सार्थक होता है। भारतीय जीवन में पर्व केवल उत्सव नहीं, संस्कारों की गांठें हैं। जैसे गन्ने में रस उसकी गांठों में होता है, वैसे ही जीवन में मिठास इन पर्वों के कारण रहती है। दीपावली का प्रत्येक दिवस, धनतेरस (धन-आरोग्य), नरक चतुर्दशी (स्वच्छता और आत्मशुद्धि), दीपावली (प्रकाश और लक्ष्मी पूजन), गोवर्धन पूजा (प्रकृति और गौसंवर्धन), यमद्वितीया (भाई-बहन के प्रेम), इन सबमें भारतीय जीवनदर्शन का पूर्ण चक्र समाहित है। लक्ष्मी पूजन का तात्त्विक अर्थ केवल धन नहीं, माया की सकारात्मक शक्ति का आवाहन है। श्रीसूक्त का मंत्र, हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह।। यह स्मरण दिलाता है कि लक्ष्मी केवल मुद्रा नहीं, बल्कि मन की दरिद्रता दूर करने वाली ऊर्जा हैं। 

दीपोत्सव का अर्थ है, अंधकार से प्रकाश की ओर, निराशा से आशा की ओर, और रोग से आरोग्य की ओर यात्रा। यही धनतेरस का सबसे गहरा संदेश है। धनतेरस हमें यह स्मरण कराता है किधनकेवल तिजोरी में नहीं, बल्कि शरीर की आरोग्यता, मन की प्रसन्नता और आत्मा की शांति में निहित है। इस दिन हम भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना करें, “हे अमृतकलशधर, हमारे जीवन से रोग, शोक और भय को दूर करें। हमारे घरों में दीप जलें, पर जीवन में भी उजास फैले।यही आरोग्य, समृद्धि और शुभता के संग दीपोत्सव की सच्ची शुरुआत है। कार्तिक मास की त्रयोदशी, वह तिथि जब पूरा भारत दीपमालिकाओं से जगमगाने लगता है। यही वह दिन है जब पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत होती है, जब धन, आरोग्य और आयु के देव भगवान धन्वंतरि के साथ महालक्ष्मी और कुबेर की आराधना होती है। इस साल धनतेरस 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाई जाएगी। 

यह दिन वाराणसी पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ योग और संयोगों से युक्त है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 18 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर है, जबकि तिथि समाप्तिः 19 अक्टूबर दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर है. प्रदोष काल : शाम 5 बजकर 28 मिनट से 7 बजकर 58 मिनट तक, वृषभ काल (मुख्य पूजन काल) 6 बजकर 58 मिनट से 7 बजकर 58 मिनट तक धनतेरस पूजन मुहूर्त शाम 658 बजे से 758 बजे तक है. इसी एक घंटे के शुभ समय में दीपक जलाकर लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करने से धन, वैभव, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

शनिवार को पड़ने के कारण यह दिन दीर्घकालीन निवेश, वाहन, और गृहसंपत्ति
की खरीद के लिए विशेष रूप से शुभ है। इस दिन अधिकांश भाग में चित्रा नक्षत्र रहेगा, जो सुख-समृद्धि और कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। लक्ष्मीयोग : प्रदोषकाल में वृषभ लग्न होने से लक्ष्मीयोग का संयोग बन रहा है, जो धनवृद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इन खगोलीय योगों के कारण धनतेरस विशेष फलदायी होगा। इस दिन यदि संभव हो तो किसी रोगी की सहायता करें, औषधदान या अस्पताल में सेवा करें, यही धन्वंतरि की वास्तविक आराधना है। 

यह धनतेरस केवल आराधना का अवसर नहीं, बल्कि आत्मसंतुलन, स्वास्थ्य, और सद्भाव का पर्व है। त्रयोदशी हमें यह सिखाती है कि जब दीप जलता है, तो अंधकार भागता ही नहीं, वह प्रकाश में विलीन हो जाता है।

समुद्र मंथन की कथा : जब अमृत से प्रकट हुए आरोग्यदेव

समुद्र मंथन के समय जब चौदह रत्न प्रकट हुए, तब हाथों में अमृत कलश लिए भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथों में सोने का पात्र था, जिसमें अमृत भरा था। वही क्षण धनतेरस का उद्गम बना। 

वे विष्णु के अवतार और आयुर्वेद के प्रवर्तक माने गए। उन्होंने संसार कोअष्टांग आयुर्वेदका ज्ञान दिया और यह सिखाया कि स्वास्थ्य ही सच्चा सुख है। धनतेरस हमें यह स्मरण कराती है कि धन का पहला अर्थ शरीर की निरोगता है. आयुर्वेद के शास्त्रों में कहा गया है, “धनं मूलं आरोग्यस्य।अर्थात, स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है। 

इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने का अर्थ है, शरीर, मन और आत्मा में संतुलन स्थापित करना। यही कारण है कि प्राचीन काल में राजाओं के राजवैद्य इस दिन आयुर्वेद ग्रंथों का पाठ करते थे, औषधियां निर्मित करते और रोगनिवारण की संकल्पना करते थे। काशी, उज्जैन, और द्वारका के प्राचीन मंदिरों में आज भी धन्वंतरि जयंती के अवसर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर और संकल्प यज्ञ आयोजित होते हैं। बनारस का महामृत्युंजय मंदिर इस परंपरा का जीवंत उदाहरण है।

काशी का धन्वंतरि कूप : अमृत की बूंदों से सिंचित आस्था

वाराणसी के महामृत्युंजय मंदिर में स्थितधन्वंतरि कूपआज भी आस्था का केंद्र है। लोकविश्वास है कि जब भगवान शिव ने विषपान किया, तब धन्वंतरि ने अमृत से उनका कंठ शीतल किया। उस अमृत की कुछ बूंदें काशी की भूमि में गिरीं और वहीं यह कूप प्रकट हुआ। धनतेरस पर भक्त यहां जल अर्पित करते हैं और आरोग्य की कामना करते हैं। कहा जाता है, “यत्र धन्वंतरि तत्र मृत्यु दूरं भवति।कहते है इस कूप का जल सात स्तरों से निकलता है, जो शरीर की सप्त धातुओं का प्रतीक है। यह केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन की एक व्याख्या है, जैसे यह कूप गहराई से जल देता है, वैसे ही आरोग्य भीतर से जागृत होता है।

धन और धर्म का अद्भुत संतुलन : धन और धर्म का संगम

धनतेरस की संध्या को कुबेर और लक्ष्मी दोनों की पूजा की जाती है। कुबेर शिव के कोषाध्यक्ष हैं, जो धन की रक्षा करते हैं, जबकि लक्ष्मी उसकी प्रवाहिनी शक्ति हैं। दोनों की आराधना यह सिखाती है, “धन तभी मंगलकारी है जब वह धर्म से संचालित हो।धन केवल प्राप्त करने की वस्तु नहीं, बल्कि संरक्षित करने की भी साधना है। यही कारण है कि इस दिन लोग धन कमाने से पहले धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प करते हैं। कुबेर देव का उल्लेख वेदों मेंराजाधिराजाय कुबेरायके रूप में हुआ है। वे शिव के कोषाध्यक्ष माने जाते हैं, और उनका प्रतीकस्थिरताहै। लक्ष्मी का प्रतीक हैचंचलता”, जो चलायमान है, जो प्रवाहित है। यही कारण है कि धनतेरस हमें यह संतुलन सिखाता है, “धन चंचल है, पर धर्म स्थिर।यही धर्म जब धन को दिशा देता है, तब घर में समृद्धि आती है।

गजकेसरी राजयोग लक्ष्मी योग 

इस वर्ष 12 अक्टूबर का धनतेरस है। इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में और गुरु उसी में विराजमान होंगे, जिससे गजकेसरी योग बनेगा. यह बुद्धि, सौभाग्य और धनवृद्धि देने वाला योग है। ज्योतिष में यह सबसे शुभ योगों में से एक है। यह योग विशेषकर वृष, मिथुन और कन्या राशि वालों के लिए लाभदायक रहेगा। वृष राशि : आर्थिक उन्नति और निवेश में सफलता। मिथुन राशि : आत्मविश्वास और दांपत्य सुख की वृद्धि। कन्या राशि : कार्यस्थल पर नई उपलब्धियां. इसके अतिरिक्त इस वर्ष चंद्रमा और बृहस्पति के संयोग सेधन लक्ष्मी योगभी बन रहा है, जो व्यापार, निवेश और गृहसौख्य के लिए शुभ फलदायी रहेगा।

शुभ मुहूर्त : जब समय स्वयं शुभता का दीप बन जाए

धनतेरस तिथि प्रारंभ : 18 अक्टूबर, दोपहर 1218

समाप्त : 19 अक्टूबर, दोपहर 151

प्रदोषकाल पूजन : शाम 716 से 820

अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 1201 से 1248

लाभ चौघड़िया : दोपहर 151 से 318

इन मुहूर्तों में किया गया पूजन वर्षभर के लिए शुभ फलदायी माना गया है। विशेषकर प्रदोषकाल में दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय मिटता है और यमराज कृपा करते हैं।

पूजन विधि : जब हर चरण एक ध्यान बन जाता है

स्नान और संकल्प : प्रातः स्नान के बाद धन्वंतरये नमःमंत्र से संकल्प करें। घट स्थापना : तांबे या पीतल के कलश में जल भरें, आम्रपल्लव और नारियल स्थापित करें। धन्वंतरि पूजन : भगवान की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएँ, तुलसी और औषधियाँ अर्पित करें। लक्ष्मी-कुबेर आराधना : धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य से पूजा करें। दीपदान : घर के द्वार, तुलसी चौरा और दक्षिण दिशा में यमदीप जलाएँ। सामूहिक आरती : पूरे परिवार के साथ लक्ष्मी आरती करें, प्रसाद वितरण.  

दीपदान - यमदीप : मृत्यु के अंधकार पर जीवन का आलोक 

धनतेरस की संध्या को घर के बाहर दक्षिण दिशा में आटे का दीपक जलाकर यमराज को समर्पित किया जाता है। इसेयम-दीपकहा जाता है। यह दीप केवल अनुष्ठान नहीं, जीवन का दर्शन है। इस दीपक के प्रकाश से घर मेंअकाल मृत्युका भय समाप्त होता है। 

दीपं समर्पयाम्यहम् यमराजाय नमो नमः।यह प्रतीक है उस स्वीकृति का, जब मनुष्य मृत्यु को भी सहचर बना लेता है, और जीवन में निर्भयता जाती है। 

काशी में इस रात घाटों परदीपदानकी परंपरा है। अस्सी से दशाश्वमेध तक जब हजारों दीप बहते हैं, तो लगता है जैसे गंगा स्वयं आरती में लीन है। गंगा का प्रवाह और दीपों की पंक्तियां मिलकर कहती हैं, “प्रकाश मृत्यु से बड़ा है।या यूं कहे मृत्यु के पार भी उजाला है। 

बर्तन, धातु और स्वास्थ्य का विज्ञान

धनतेरस
पर बर्तन या धातु खरीदने की परंपरा है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि यह ऋतु परिवर्तन का समय है, वर्षा के बाद शरद ऋतु के आरंभ में तांबा, पीतल, चांदी जैसी धातुएं शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। 
आयुर्वेद के अनुसार, इस समयवातप्रबल होता है, जिसे नियंत्रित करने के लिए धातुओं का प्रयोग लाभकारी होता है। इसीलिए बर्तन खरीदना केवल शुभता नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का प्रतीक भी है। 
गृहिणियां आज भी नए बर्तनों में जल भरकरधन्वंतरि जलके रूप में पूजा करती हैं, और उसे पूरे परिवार के आरोग्य के लिए प्रयोग करती हैं।

जब शहर दीपों का सागर बन जाता है

धनतेरस की शाम काशी किसी झिलमिल स्वप्न-लोक जैसी लगती है। या यूं कहे किसी स्वर्णमंडित उत्सव से कम नहीं होती। चौखंभा से दशाश्वमेध तक सजे बाज़ार, मिट्टी के दीपों की कतारें, गंगा के घाटों पर दीपदान, लहुराबीर, गोदौलिया और महमूरगंज तक दुकानों में दीपों की झिलमिलाहट बिखरी रहती है। मालाओं से सजे द्वार, हल्दी-कुमकुम की रेखाएँ, और मंदिरों से आती शंखध्वनि, पूरा शहर जैसे धन्वंतरि के अमृत स्नान में डूब जाता है। सब कुछ जैसे किसी दिव्य उत्सव की पटकथा हो। 
घाटों पर आरती के साथ गूंजती शंखध्वनि और बच्चों के हाथों में झिलमिलाते दीप, यही काशी की आत्मा है। यहां दीप केवल रोशनी नहीं फैलाते, बल्कि आस्था के बंधन को जोड़ते हैं। यहां के कारीगर आज भी मिट्टी केपंचमुखी दीपबनाते हैं, जो पंचतत्वों का प्रतीक हैं। घाटों पर महिलाएँ मिट्टी के दीपों में तिल का तेल भरकर आरती करती हैं और यह मानती हैं कि गंगा का जल उस दीप की लौ को अमर कर देता है।

धर्म और पुरुषार्थ : जब धन बनता है साधना का साधन

धनतेरस हमें चार पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का स्मरण कराता है। यह बताता है कि धन कमाना पाप नहीं, परंतु धन का उपयोग धर्म में होना चाहिए। यही कारण है कि हमारे ऋषियों ने कहा, “अर्थः धर्मेण संगृहीतः। धर्मः अर्थेन पोष्यते।” 

अर्थात, धन धर्म से प्राप्त हो और धर्म धन से पोषित हो, यही जीवन का संतुलन है। भारतीय चिंतन में धन का संबंध हमेशा धर्म से रहा है। धन का अर्जन धर्म से और उसका उपयोग समाज के कल्याण में, यही धनतेरस का सन्देश है।

जब दीप भीतर जलता है

धनतेरस केवल त्योहार नहीं, बल्कि एक दर्शन है। धनतेरस की रात जब दीप जलते हैं, तब वह केवल मिट्टी का नहीं, बल्कि आस्था का दीप होता है। वह हमें सिखाता है कि आरंभ शुभ हो तो मार्ग भी उज्जवल होता है। 

यह हमें सिखाता है कि समृद्धि केवल बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और स्वास्थ्य में निहित है। कहते हैं, “जहाँ दीप है, वहाँ दैव है।काशी की परंपरा इसे सबसे सुंदर ढंग से कहती है, “दीपो भव : स्वयं प्रकाश बनो।” 

जब भीतर दीप जलता है, तब बाहर का उजाला स्वतः ही फैलता है। यही धनतेरस का सार है, धन से अधिक धन्य होने की साधना।  स्वास्थ्य में श्रद्धा, संपन्नता में सादगी और जीवन में संतुलन ही सच्चा उत्सव है।

धनतेरस से जुड़े लोकविश्वास

झाड़ू
खरीदना दरिद्रता दूर करने का प्रतीक है। सोना, चाँदी, बर्तन या धातु खरीदने से लक्ष्मी स्थायी होती हैं।

यम दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय मिटता है। औषधि सेवन का यह सर्वोत्तम दिन है। इस दिन घर में तुलसी और दीपक का संग सबसे शुभ माना गया है।

धर्म संवाद

धनतेरस का प्रकाश केवल दीपक से नहीं, मन की भक्ति से फैलता है।और प्रकाश ही वह शक्ति है जो भीतर की अंधकार को मिटा सकता है। 

पं. विश्वनाथ मिश्र, धर्माचार्य, वाराणसी यह पर्व हमें याद दिलाता है कि धन तभी मंगलकारी है जब उसमें धर्म की गंध हो।डॉ. अर्चना द्विवेदी, ज्योतिषाचार्य, संकटकटेश्वर मठ 

भारतीय जीवन-दर्शन में धन का अर्थधन” (संपत्ति) के साथ-साथधन्य” (पवित्रता) भी है। यही कारण है कि जब हम दीप जलाते हैं, तो वह केवल तेल से नहीं, हमारे भीतर की आशा से प्रज्वलित होता है।

काशी के प्रमुख आयोजन

महामृत्युंजय मंदिर में धन्वंतरि पूजन और आरोग्य यज्ञ. दशाश्वमेध घाट पर गंगा दीपदान. विश्वनाथ गली में कुबेर-लक्ष्मी आराधना. पंचगंगा घाट पर सामूहिक आरती और दीपोत्सव.

मंत्र संग्रह

🕉 धन्वंतरये नमः

🕉 श्रीं ह््रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः

🕉 कुबेराय नमः

खरीदारी का शुभ महत्व

धनतेरस पर खरीददारी का अर्थ केवल धातु प्राप्ति नहीं, बल्कि लक्ष्मी का स्वागत है। शास्त्रों में कहा गया है, “यत्र दीप तत्र लक्ष्मीअर्थात जहां प्रकाश है, वहां समृद्धि है। सोना-चांदी खरीदने से वर्ष भर बरकत बनी रहती है। जौ को सोने का प्रतीक माना गया है, जो लोग सोना खरीद सकें, वे जौ लाकर गमले में बो दें। नई झाड़ू खरीदना दरिद्रता निवारण का प्रतीक है। खड़ा धनिया लक्ष्मी-कुबेर अर्पण के लिए शुभ है। पीली कौड़ियां और हल्दी की गांठ तिजोरी में रखें, यह अचानक धनलाभ का संकेत देती हैं।

वास्तु और दीपदान

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) को देवताओं की दिशा माना गया है। इसी दिशा में दीपक की लौ रखना शुभ है, जिससे परिवार में स्वास्थ्य और धन की वृद्धि होती है। पश्चिम दिशा में दीपक रखना अशुभ माना गया है। धनतेरस की रात यमराज के लिए आटे का दीपक जलाकर द्वार पर रखना चाहिए. यह दीपक अकाल मृत्यु के भय से रक्षा करता है। जब काशी की गलियों में दीप जलते हैं, तब केवल दीवारें ही नहीं, मनुष्य का मन भी प्रकाशमान होता है।

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